विश्व की जलवायु एवं जलवायु परिवर्तन-पुनरावृति नोट्स
सीबीएसई कक्षा - 11
विषय - भूगोल
पुनरावृत्ति नोट्स
पाठ - 12 विश्व की जलवायु एवं जलवायु परिवर्तन
महत्त्वपूर्ण तथ्य-
- जलवायु का विभाजन तीन आधारों पर किया जाता है। आनुभाविक जननिक तथा व्यावहारिक या क्रियात्मक।
- कोपेन का जलवायु विभाजन जननिक और आनुभाविक है।
- थार्नथ्वर्ट ने वर्षण प्रभाविता, तापीय दक्षता तथा संभाव्य वाष्पोत्सर्जन को अपने जलवायु विभाजन का आधार बनाया।
- जलवायु लम्बे समय की दैनिक मौसमी दशाओं का माध्य है।
- कोपेन ने जलवायु का विभाजन तापमान तथा वर्षण के अंतर्गत किया।
- कोपेन ने वनस्पति के वितरण तथा जलवायु के मध्य एक घनिष्ठ संबंध की पहचान की। उन्होंने तापमान तथा वर्षण के कुछ निश्चित मानों का चयन करते हुए उनका वनस्पति के वितरण से संबंध स्थापित किया और इन मानों का उपयोग जलवायु के वर्गीकरण के लिए किया।
- कोपेन के अनुसार जलवायु समूह-
- शुष्क
- कोष्ण शीतोष्ण
- शीतल हिम-वन
- शीत
- उष्ण कटिबन्धीय आर्द्र
- उच्च भूमि
- कोपेन ने बड़े तथा छोटे अक्षरों के प्रयोग का आरंभ जलवायु के समूहों एवं प्रकारों की पहचान करने के लिए किया। सन् 1918 में विकसित तथा समय के साथ संशोधित हुई कोपेन की यह पद्धति आज भी लोकप्रिय और प्रचलित है।
- कोपेन ने पाँच प्रमुख जलवायु समूह निर्धारित किए, जिनमें से चार तापमान पर तथा एक वर्षण पर आधारित है।
- कोपेन ने बड़े अक्षर A, C, D तथा E से आर्द्र जलवायु को और अक्षर B से शुष्क जलवायु को निरूपित किया है। जलवायु समूहों को तापक्रम एवं वर्षा की मौसमी विशेषताओं के आधार पर कई छोटी-छोटी इकाइयों में विभाजित किया गया है तथा छोटे अक्षरों के माध्यम से अभिहित किया गया है।
- उष्ण कटिबंधीय आर्द्र जलवायु कर्क रेखा तथा मकर रेखा के मध्य पाई जाती है। संपूर्ण वर्ष सूर्य के ऊर्ध्वस्थ तथा अंतर उष्ण कटिबंधीय अभिसरण क्षेत्र की उपस्थिति की वजह से यहाँ की जलवायु ऊष्ण एवं आर्द्र रहती है। यहाँ वार्षिक तापांतर बहुत कम तथा वर्षा ज़्यादा होती है।
- कोपेन के उष्ण कटिबंधीय जलवायु को तीन प्रकारों में बाँटा जाता है, जिनके नाम हैं :
- Af उष्ण कटिबंधीय आर्द्र जलवायु
- Am उष्ण कटिबंधीय मानसून जलवायु
- Aw उष्ण कटिबंधीय आर्द्र जलवायु, जिसमें शीत ऋतु शुष्क होती है।
- उष्ण कटिबंधीय आर्द्र जलवायु विषुवत वृत के निकट पाई जाती है। इस जलवायु के प्रमुख क्षेत्र दक्षिण अमेरिका का आमेजन बेसिन, पश्चिमी विषुवतीय अफ्रीका तथा दक्षिणी-पूर्वी एशिया के द्वीप हैं। वर्ष के प्रत्येक माह में दोपहर के बाद गरज और बौछारों के साथ प्रचुर मात्रा में वर्षा होती है।
- विषुवतीय प्रदेश में तापमान समान रूप से ऊँचा तथा वार्षिक तापांतर नगण्य होता है। किसी भी दिन ज़्यादातर तापमान 30° सेल्सियस और न्यूनतम तापमान 20° सेल्सियस होता है।
- उष्ण कटिबंधीय मानसून जलवायु भारतीय उपमहाद्वीप, दक्षिण अमेरिका के उत्तर-पूर्वी भाग तथा उत्तरी ऑस्ट्रेलिया में मिलती है। भारी वर्षा ज़्यादातर गर्मियों में ही होती है। शीत ऋतु शुष्क होती है।
- शुष्क जलवायु की विशेषता अत्यंत न्यून वर्षा है जो पादपों के विकास हेतु काफ़ी नहीं होती। यह जलवायु पृथ्वी के बहुत बड़े भाग पर मिलती है जो विषुवत वृत से 15° से 60° उत्तर व दक्षिण अक्षांशों के मध्य प्रवाहित होती है।
- उपोष्ण कटिबंधीय स्टैपी एवं उपोष्ण कटिबंधीय मरुस्थलीय जलवायु में वर्षण और तापमान के लक्षण एक समान होते हैं। उपोष्ण कटिबंधीय स्टैपी जलवायु में मरुस्थलीय जलवायु की अपेक्षा वर्षा थोड़ी ज्यादा होती है। जो विरल घास भूमियों के लिए पर्याप्त होती है।
- उपोष्ण कटिबंधीय मरुस्थलीय जलवायु के लीबिया के अल-अजीजिया में 13 सितंबर, 1922 को उच्चतम तापमान 58° सेल्सियस दर्ज किया गया था। इस जलवायु में वार्षिक और दैनिक तापांतर भी अधिक पाए जाते हैं।
- भूमध्य सागरीय जलवायु भूमध्य सागर के चारों ओर तथा उपोष्ण कटिबंध से 30° से 40° अक्षाशों के बीच महाद्वीपों के पश्चिमी तट के साथ-साथ पाई जाती है।
- मध्य कैलिफोर्निया, मध्य चिली तथा ऑस्ट्रेलिया के दक्षिण-पूर्वी और दक्षिण-पश्चिमी तट भूमध्य सागरीय जलवायु के उदाहरण हैं। इस जलवायु में उष्ण व शुष्क गर्मियाँ तथा मृदु एवं वर्षा युक्त सर्दियाँ तथा ग्रीष्म ऋतु में औसत मासिक तापमान 25° सेल्सियस के आसपास तथा शीत ऋतु में 10° सेल्सियस से कम रहता है। वार्षिक वर्षा 35 से 90 से. मी. के बीच होती है।
- आर्द्र उपोष्ण कटिबंधीय जलवायु पूर्वी संयुक्त राज्य अमेरिका, दक्षिणी तथा पूर्वी चीन, दक्षिणी जापान, उत्तर-पूर्वी अर्जेन्टाइना, तटीय दक्षिण अफ्रीका और ऑस्ट्रेलिया के पूर्वी तट पर पाई जाती है। औसत वार्षिक वर्षा 75 से 150 से.मी. के बीच रहती है। ग्रीष्म ऋतु में औसत मासिक तापमान लगभग 27° सेल्सियस होता है जबकि जाड़ों में यह 5° से 12° सेल्सियस के बीच रहता है।
- भारत में भी आर्द्र एवं शुष्क युग आते जाते रहे हैं। पुरातत्व खोजें दर्शाती हैं कि ईसा से लगभग 8000 वर्ष पूर्व राजस्थान मरुस्थल की जलवायु आर्द्र एवं शीतल थी। ईसा से 3000 से 1700 वर्ष पूर्व यहाँ वर्षा अधिक होती थी। लगभग 2000 से 1700 वर्ष ईसा पूर्व यह क्षेत्र हड़प्पा संस्कृति का केंद्र था। शुष्क दशाएँ तभी से गहन हुई हैं।
- लगभग 50 करोड़ से 30 करोड़ वर्ष पहले भूवैज्ञानिक काल के कैंब्रियन, आडोविसियन तथा सिल्युरियन युगों में पृथ्वी गर्म थी। प्लीस्टोसीन युगांतर के दौरान हिम युग और अंतर हिम युग अवधियाँ रही हैं। अंतिम प्रमुख हिमयुग आज से 18000 वर्ष पूर्व था। वर्तमान अंतर हिमयुग 10000 वर्ष पूर्व आरंभ हुआ था।
- सभी कालों में जलवायु बदलाव देखे जा सकते हैं। पिछली शताब्दी के 90 के दशक में चरम मौसमी घटनाएँ घटित हुई हैं। 1990 के दशक में शताब्दी का सबसे गर्म तापमान और विश्व में सबसे भयंकर बाढ़ों को दर्ज किया है।
- संयुक्त राज्य अमेरिका 1930 के दशक में बृहत मैदान के दक्षिण-पश्चिमी भाग में जिसे 'धूल का कटोरा' कहा जाता है, भीषण सूखा पड़ा।
- सन् 1550 से 1850 के समय लघु हिम युग का अनुभव किया गया। 1885 से 1940 तक विश्व के तापमान में विकास की प्रवृति मिली। 1940 के पश्चात तापमान में वृद्धि की दर घटी है।
- ग्रीनहाउस शब्द का साम्यानुमान उस ग्रीनहाउस से लिया गया है, जिसका इस्तेमाल ठंडे इलाकों में ऊष्मा का परिरक्षण करने हेतु किया जाता है। ग्रीनहाउस काँच का बना होता है। काँच प्रवेशी सौर विकिरण की लघु तरंगों के लिए पारदर्शी होता है, मगर बहिर्गामी विकिरण की दीर्घ तरंगों के लिए अपारदर्शी। इस प्रकार काँच अधिकाधिक विकिरण को आने देता है और दीर्घ तरंगों वाले विकिरण को काँच घर से बाहर जाने से रोकता है। इससे ग्रीनहाउस इमारत के अंदर बाहर की अपेक्षा तापमान ज़्यादा हो जाता है। जब आप गर्मियों में किसी बंद खिड़कियों वाली कार अथवा बस में प्रवेश करते हैं तो आप बाहर की अपेक्षा ज़्यादा गर्मी अनुभव करते हैं।
- ग्रीनहाउस गैसें कार्बन डाईऑक्साइड और ओज़ोन है। कुछ अन्य गैसें जैसे नाइट्रिक, क्लोरो-फ्लोरोकार्बन्स, मीथेन, नाइट्रस ऑक्साइड, ऑक्साइड और कार्बन मोनोक्साइड आसानी से ग्रीनहाउस गैसों से प्रतिक्रिया करती हैं।
- वायुमंडल में विधमान ग्रीनहाउस गैसों में सबसे ज़्यादा प्रभाव कार्बन डाइऑक्साइड का है। कार्बन डाइऑक्साइड का उत्सर्जन मुख्यतः जीवाश्मी ईधनों (तेल, गैस एवं कोयला) के दहन से होता है।
- ओज़ोन समतापमंडल में विधमान होती है, जहाँ पराबैंगनी किरणें ऑक्सीजन को ओज़ोन में परिवर्तित कर देती हैं। ये पराबैंगनी किरणें पृथ्वी की सतह पर नहीं पहुँच पातीं हैं। समताप मंडल में वाहित होने वाली ग्रीनहाउस गैसें भी ओज़ोन को नष्ट करती हैं।
- वायुमंडल में ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन को कम करने के लिए अंतराष्ट्रीय स्तर पर प्रयत्न्न किए गए हैं। इनमें से सबसे आवश्यक 'क्योटो प्रोटोकॉल' है। इसकी उद्घोषणा सन् 1997 में की गई थी।