दो ध्रुवीयता का अंत - पुनरावृति नोट्स

CBSE Class 12 राजनीति विज्ञान
पुनरावृति नोटस
पाठ-2 दो ध्रुवीयता का अंत

स्मरणीय तथ्य-
  1. द्वितीय विश्व युद्ध के बाद शीतयुद्ध के दौरान विश्व दो भागों-संयुक्त राज्य अमेरिका तथा सोवियत संघ-में विभाजित हो गया था, इसलिए विश्व द्वि-ध्रुवीय व्यवस्था में परिवर्तित हो गया।
  2. द्वितीय विश्व युद्ध के बाद विश्व के द्वि-ध्रुवीय व्यवस्था में बदलने से अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति पर काफी प्रभाव पड़ा।
  3. 1945 से 1955 तक विश्व में कठोर द्वि-ध्रुवीय व्यवस्था कायम रही जो 1960 के दशक में लघु ध्रुवीय व्यवस्था में बदल गई। गुटनिरपेक्ष आन्दोलन के उदय तथा कई देशों की तटस्थता ने विश्व को बहु-ध्रुवीय व्यवस्था में परिवर्तित कर दिया।
  4. समाजवादी सोवियत गणराज्य (यू.एस.एस.आर.) रूस में हुई 1917 की समाजवादी क्रांति के बाद अस्तित्व में आया था।
  5. अमरीका को छोड़कर शेष विश्व से सोवियत संघ की अर्थव्यवस्था, संचार-प्रणाली काफी उन्नत अवस्था में थी। सोवियत संघ के पास बड़ी मात्रा में विशाल ऊर्जा साधन, खनिज तेल, लोहा और इस्पात तथा मशीनरी उपलब्ध थे।
  6. 1917 के बाद से ही सोवियत संघ में केवल एक दल कम्यूनिस्ट पार्टी का शासन था। सोवियत संघ अन्य 15 गणराज्यों कों मिलाकर बनाया गया था।
  7. 1980 के दशक में दोनों महाशक्तियों में शक्ति के लिए संघर्ष के चलते हथियारों की दौड़ चल रही थी। सारा ध्यान परमाणु हथियार बनाने में था, इसलिए अर्थव्यवस्था पर इसका प्रभाव पड़ा। वहीं मिखाइल गोर्बाचेव की खुलेपन की नीति के कारण भी सोवियत संघ का विघटन माना जाता है।
  8. मिखाइल गोबचेव ने पेरेस्त्रतोइका तथा ग्लासनोस्त के नाम से आर्थिक और राजनीतिक सुधार लागू किए।
  9. मिखाइल गोर्बाचेव ने अर्थव्यवस्था को सुधारने में पश्चिम की बराबरी की तथा प्रशासन में ढील ने सभी गणराज्यों को अलग राज्य की माँग को बढ़ावा दिया। सभी राज्यों में राष्ट्रवादी और सम्प्रभुता की भावनाएँ उभरने लगीं।
  10. सोवियत संघ के कुछ गणराज्य खासकर बाल्टिक और पूर्वी यूरोप के देश यूरोपीय संघ और नाटो के सदस्य बनना चाहते थे।
  11. 1989 के शीतयुद्ध के मुख्य केंद्र जर्मनी की दीवार गिराकर पश्चिमी व पूर्वी जर्मनी का एकीकरण कर दिया गया।
  12. इन्हीं सब कारणों से 1990 में सोवियत संघ का पतन हो गया। अब वह इस हालत में नहीं था कि सभी गणराज्यों को नियन्त्रित कर सके तथा सोवियत संघ की अर्थव्यवस्था भी काफ़ी खराब थी।
  13. सोवियत संघ के पतन के बाद साम्यवादी देशों ने आर्थिक विकास के लिए 'पूँजीवाद की ओर संक्रमण' का एक खास मॉडल अपनाया, जिसे विश्व बैंक तथा अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष ने शॉक थेरेपी के नाम से बुलाया।
  14. 1991 में यूगोस्लाविया का भी पतन हो गया और यह कई प्रांतों में बँट गया, जिन्होंने स्वयं को स्वतंत्र घोषित कर दिया।
  15. मध्य एशिया का संपूर्ण क्षेत्र 2001 तक संघर्ष और तनाव का मुख्य केन्द्र बना रहा।
  16. रूस के सभी गणराज्यों ने पूर्ण स्वतन्त्रता प्राप्त कर ली थी। ताज़िकिस्तान में 10 वर्षों (2001) तक गृहयुद्ध चलता रहा।
  17. उज़्बेकिस्तान में हिंदी फिल्मों की धूम रहती है। इसी कारण वे भारतीय लोगों को पसंद करते हैं और एक खासी संस्कृति का निर्माण होता है। उज़्बेकिस्तानवासी हिंदी फिल्मों के दीवाने हैं।
  18. रूस तथा पूर्व सोवियत संघ के सभी गणराज्यों में हिंदी फिल्मों के नायक (जैसे-राजकपूर इत्यादि) घर-घर में जाने जाते हैं।
  19. रूस और भारत बहुध्रुवीय विश्व का निर्माण करना चाहते हैं। भारत रूस के हथियारों का दूसरा सबसे बड़ा खरीददार देश हैं।
  20. भारत और रूस के बीच सामरिक समझौते से दोनों के संबंध काफी अच्छे बन गए हैं। हथियारों की खरीद, व्यापार, अंतरिक्ष, उद्योग, परमाणिक योजना जैसे कई क्षेत्र हैं, जहाँ दोनों के मध्य संबंधों की गहनता को देखा जा सकता है।
  • शीतयुद्ध के दौरान विश्व दो गुटों में बंट गया, एक गुट का नेता अमेरिका और दूसरे गुट का नेता सोवियत संघ था। 25 दिसंबर 1991 में सोवियत संघ के विघटन के साथ द्विध्रुवीयता का अंत हुआ और अमेरिका विश्व की एकमात्र महाशक्ति के रूप में उभरा।
  • बर्लिन की दीवार पूंजीवादी व साम्यवादी दुनिया के बीच विभाजन का प्रतीक थी। 1961 में बनी इस दीवार को 9 नवंबर, 1989 को तोड़कर पूर्वी व पश्चिमी जर्मनी का एकीकरण कर दिया गया।
  • सोवियत प्रणाली-योजनाबद्ध अर्थव्यवस्था व राज्य द्वारा नियंत्रित, साम्यवादी दल के अलावा अन्य राजनीतिक दल के लिए जगह नहीं, संचार प्रणाली उन्नत पर सरकार का एकाधिकार, बेरोजगारी नहीं, नौकरशाही का सख्त शिकंजा, नागरिकों को अभिव्यक्ति की आजादी नहीं, सभी नागरिकों को न्यूनतम जीवन स्तर की प्राप्ति। 1970 के दशक के अंत में सोवियत व्यवस्था लड़खड़ा गई थी।

    दूसरी दुनिया- 
    पूर्वी यूरोप के देशों को समाजवादी प्रणाली की तर्ज पर ढाला गया था, इन्हें ही समाजवादी खेमे के देश या दूसरी दुनिया कहा गया।
  • मिखाईल गोर्बाचोव, जो 1980 के दशक के मध्य में USSR की साम्यवादी पार्टी के अध्यक्ष बनें, ने देश के अंदर आर्थिक, राजनीतिक सुधारों तथा लोकतंत्राीकरण की नीति चलाई।
  • सोवियत संघ के भीतर संकट गहराता गया, विघटन की गति तेज हुई व दिसम्बर 1991 में बोरिस येल्तसिन के नेतृत्व में इसके तीन बड़े गणराज्यों रूस, यूक्रेन व बेलारूस ने सोवियत संघ की समाप्ति की घोषणा की। स्वतंत्र राज्यों का राष्ट्रकुल (Common wealth of Independent States – CIS) बना। अब विश्व परिदृश्य पर 15 नए गणराज्य सामने आए।
सोवियत संघ के विघटन के कारण-
  • नागरिको की राजनीतिक और आर्थिक आंकाक्षाओं को पूरा न कर पाना।
  • सोवियत प्रणाली पर नौकरशाही का शिकंजा।
  • कम्युनिस्ट पार्टी का अंकुश।
  • गोर्बाचेव द्वारा किए गए सुधारों का विरोध होना।
  • अर्थव्यवस्था गतिरूद्ध व उपभोक्ता वस्तुओं की कमी।
  • राजनीतिक आर्थिक संस्थाएं आंतरिक कमजोरियों के कारण जनता की आकांक्षाएं पूरी नहीं कर सकी।
  • संसाधनों का अधिकांश हिस्सा परमाणु हथियारों व सैन्य सामान पर खर्च।
  • नागरिकों को जानकारी हो गई कि सोवियत राजव्यवस्था व अर्थव्यवस्था पश्चिमी पूंजीवाद से बेहतर नहीं।
  • गतिरुद्ध प्रशासन, भ्रष्टाचार, सत्ता का केन्द्रीयकरण।
  • राष्ट्रवादी भावनाओं व संप्रभुता की इच्छाओं का उभार।
  • रूस की प्रमुखता।
सोवियत संघ के विघटन के परिणाम-
  • शीतयुद्ध के दौर के संघर्ष की समाप्ति
  • एक ध्रुवीय विश्व अर्थात् अमेरिकी वर्चस्व का उदय।
  • हथियारों की होड़ की समाप्ति
  • सोवियत खेमे का अंत और 15 नए देशों का उदय।
  • रूस सोवियत संघ का उत्तराधिकारी बना।
  • विश्व राजनीति में शक्ति सम्बन्धों में बदलाव व विश्व के एक ध्रुवीय होने की संभावना।
  • विश्व परिदृश्य पर नए देशों का उदय।
  • समाजवादी विचारधार पर प्रश्नचिन्ह या पूँजीवादी उदारवादी व्यवस्था का वर्चस्व।
शॉक थेरपी - अर्थ-
  • इसका शब्दिक अर्थ आघात पहुंचाकर उपचार करना था। रूस, मध्य एशिया के गणराज्य व पूर्वी यूरोप के देशों की साम्यवाद से पूंजीवाद की ओर बदलने की प्रक्रिया थी। यह खास मॉडल विश्व बैंक व अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष द्वारा दिया गया। यह मॉडल सफल नहीं हुआ व जनता को उपभोग के आनंदलोक तक नहीं ले गया।
शॉक शेरेपी की विशेषताएँ:-
  1. मिल्कियत का प्रमुख रूप निजी स्वामित्व।
  2. राज्य की संपदा का निजीकरण।
  3. सामूहिक फार्म की जगह निजी फार्म।
  4. मुक्त व्यापार व्यवस्था को अपनाना।
  5. मुद्राओं की आपसी परिवर्तनीयता।
  6. पश्चिमी देशों की आर्थिक व्यवस्था से जुड़ाव।
    पूँजीवादी के अतिरिक्त किसी भी वैकल्पिक व्यवस्था को स्वीकार नहीं किया गया।
शॉक थेरेपी के परिणाम:-
  1. पूर्णतया असफल, रूस का औद्योगिक ढाँचा चरमरा गया।
  2. रुसी रूबल मुद्रा में गिरावट।
  3. समाज कल्याण की पुरानी व्यवस्था नष्ट।
  4. आर्थिक असमानता बढ़ी।
  5. माफिया वर्ग का उदय।
  6. लोकतांत्रिक संस्थानों का निर्माण प्राथमिकताओं के आधार पर नहीं।
  7. वित्तीय संस्थान व इंकाम जैसे बैंक दिवालिया, इसे इतिहास की सबसे बड़ी गराज सेल कहा गया।
  8. कमजोर संसद व राष्ट्रपति को अधिक शक्तियाँ जिससे सत्तावादी राष्ट्रपति शासन।
संघर्ष व तनाव के क्षेत्र- पूवं सोवियत संघ के अधिकांश गणराज्य संघर्ष की आशंका वाले क्षेत्र है। इन देशों में बाहरी ताकतों की दखलंदाजी भी बढ़ी है। रूस के दो गणराज्यों चेचन्या और दागिस्तान में हिंसक अलगाववादी आन्दोलन चले। चेकोस्लोवाकिया दो भागों - चेक तथा स्लोवाकिया में बंट गया।
बाल्कन क्षेत्र:- वाल्कन गणराज्य युगोस्लाविया गृहयुद्ध के कारण कई प्रान्तों में वैट गया। जिसमें शामिल बोस्निया - हर्जेगोविना, स्लोवेनिया तथा क्रोएशिया ने अपने को स्वतंत्र घोषित कर दिया।
बाल्टिक क्षेत्र:- बाल्टिक क्षेत्र के लिथुआनिया ने मार्च 1990 में अपने आप को स्वतन्त्र घोषित किया। एस्टोनिया, लताविया और लिथुआनिया 1991 में संयुक्त राष्ट्रसंघ के सदस्य बने। 2004 में नाटो में शामिल हुए।
मध्य एशिया के ताजिकिस्तान में 10 वर्षों तक यानी 2001 तक गृहयुद्ध चला। अज़रबैजान, अर्मेनिया, यूक्रेन, किरगिझस्तान, जार्जीया में भी गृहयुद्ध की स्थिति हैं।
मध्य एशियाई गणराज्यों में पेट्रोल के विशाल भंडार है। इसी कारण से यह क्षेत्र बाहरी ताकतों और तेल कपनियों की प्रतिस्पर्धा का अखाड़ा भी बन गया है।
पूर्व साम्यवादी देश और भारत :-
  1. पूर्व साम्यवादी देशों के साथ भारत के संबंध अच्छे है, रूस के साथ विशेष रूप से प्रगाढ़ है।
  2. दोनों का सपना वहुध्रवीय विश्व का है।
  3. दोनों देश सहअस्तित्व, सामूहिक सुरक्षा, क्षेत्रीय सम्प्रभुता, स्वतन्त्र विदेश नीति, अंर्तराष्ट्रीय झगड़ों का वार्ता द्वारा हल, संयुक्त राष्ट्रसंघ के सुदृढ़ीकरण तथा लोकतंत्र में विश्वास रखते है।
  4. 2001 में भारत और रूस द्वारा 80 द्विपक्षीय समझौते पर हस्ताक्षर भारत रूसी हथियारों का खरीददार।
  5. रूस से तेल का आयात।
  6. परमाण्विक योजना तथा अंतरिक्ष योजना में रूसी मदद।
  7. कजाकिस्तान और तुर्कमेनिस्तान के साथ उर्जा आयात बढ़ाने की कोशिश।
  8. गोवा में दिसम्बर 2016 में हुए ब्रिक्स (BRICS) सम्मलेन के दौरान रूस-भारत के बीच हुए 17 वें वार्षिक सम्मेलन में भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी एवं रूस के राष्ट्रपति व्लादीमीर पुतीन के बीच रक्षा, परमाणु उर्जा, अंतरिक्ष अभियान समेत आर्थिक संबंधों को बढ़ावा देने एवं उनके लक्ष्यों की प्राप्ति पर बल दिया गया।
मिखाइल गोर्बाचेव की नीतियाँ:-
मिखाइल गोर्बाचेव ने 1985 में सोवियत संघ की शासन व्यवस्था और अर्थव्यवस्था में सुधर के लिए निम्न तीन नीतियाँ अपनाई:
  1. उस्कोरेनी (त्वरण):- अर्थव्यवस्था की वृद्धि को गुणात्मक दृष्टि से नई अवस्था की ओर ले जाना।
  2. परिस्त्रोइका (पुनर्गठन):- इसके द्वारा राजनीतिक, आर्थिक और प्रशासनिक सुधारों पर बल दिया गया।
  3. ग्लासनोस्त (खुलापन):- नागरिकों को यह अधिकार दिया गया कि वे सार्वजनिक विषयों के बारे में खुलकर विचार विमर्श करे।
सोवियत संघ के प्रमुख नेता और उनका कार्यकाल-
  • ब्लादीमीर लेनिन (1870-1924): रूस की बोल्शेविक कम्युनिस्ट पार्टी के संस्थापक (1917-1924)
  • जोजेफ स्टालिन (1879-1953): लेनिन के उत्तराधिकारी (1924-1953)
  • निकिता खु्रश्वेच (1894-1971): सोवियत संघ के राष्ट्रपति (1964-1982)
  • लिओनिड ब्रेझनेव (1906-1982): सोवियत संघ के राष्ट्रपति (1964-1982)
  • मिखाइल गोर्बाचेव (जन्म 1931): सोवियत संघ के अंतिम राष्ट्रपति (1985-1991)
  • बोरिस येल्तसिन (जन्म 1931): सोवियत संघ के पहले निर्वाचित राष्ट्रपति (1991-1999)