क्षेत्रीय आकांक्षाएँ - पुनरावृति नोट्स

CBSE Class 12 राजनीति विज्ञान
पुनरावृति नोटस
भाग-2 पाठ-8
क्षेत्रीय आकांक्षाएँ

स्मरणीय बिंदु-
  1. 1980 के दशक को स्वायत्तता के दशक के रूप में देखा जाता हैं कई बार संकीर्ण स्वार्थों, विदेशी प्रोत्साहन आदि के कारण क्षेत्रीयता की भावना जब अलगाव का रास्ता पकड़ लेती है तो यह राष्ट्रीय एकता और अखण्डता के लिए गम्भीर चुनौती बन जाती है।
  2. क्षेत्रीयता के प्रमुख कारण:-
    1. धार्मिक विभिन्नता
    2. सास्कृतिक विभिन्नता
    3. भौगोलिक विभिन्नता
    4. राजनीतिक स्वार्थ
    5. क्षेत्रीय राजनीतिक दल इत्यादि
  3. 1980 के दशक में देश के कई हिस्सों में स्वायत्तता की माँग उठी। यों तो सरकार ने इन माँगों को दबाने की भरपूर कोशिश की, लेकिन उसे सफलता नहीं मिली। स्वायत्तता की माँग को लेकर चले अधिकतर संघर्ष लंबे समय तक जारी रहे और अंतत: केंद्र सरकार को स्वायत्तता के आंदोलन की अगुआई कर रहे समूहों से समझौते करने पड़े।
  4. भारतीय राष्ट्रवाद ने एकता और विविधता के बीच संतुलन साधने की कोशिश की है। भारत ने विविधता के सवाल पर लोकतांत्रिक दृष्टिकोण अपनाया है। जाहिर है लोकतंत्र क्षेत्रीयता को राष्ट्रविरोधी नहीं मानता।
  5. आज़ादी के तुरंत बाद हमारे देश को विभाजन, विस्थापन, देसी रियासतों के विलय और राज्यों के पुनर्गठन जैसे कठिन मसलों से जूझना पड़ा। आज़ादी के तुरंत बाद जम्मू-कश्मीर का मसला सामने आया। इसी तरह पूर्वोत्तर के कुछ भागों में भारत का अंग होने के मसले पर सहमति नहीं थी। दक्षिण भारत में भी द्रविड़ आंदोलन से जुड़े कुछ समूहों ने एक समय अलग राष्ट्र की बात उठाई थी।
  6. जम्मू-कश्मीर में तीन राजनीतिक एवं सामाजिक क्षेत्र शामिल हैं-जम्मू कश्मीर और लद्दाख। जहाँ तक इस प्रदेश को स्वायत्तता देने की बात थी, यह निर्णय लिया गया कि जम्मू-कश्मीर की नियति का फैसला जनमत सर्वेक्षण के द्वारा होगा। अंतत: भारत इसकी स्वायत्तता को बनाए रखने पर सहमत हो गया। इसे संविधान में धारा 370 का प्रावधान करके संवैधानिक दर्जा दे दिया गया। ,
  7. 1953 से लेकर 1974 के बीच अधिकांश समय जम्मू-कश्मीर की राजनीति पर कांग्रेस का प्रभाव रहा। आखिरकार 1974 में शेख अब्दुल्ला राज्य के मुख्यमंत्री बने। 1982 में शेख अब्दुल्ला की मृत्यु के बाद उनके पुत्र फारुख अब्दुल्ला राज्य के मुख्यमंत्री बने। लेकिन वहाँ के लोग उनसे संतुष्ट नहीं थे। 1980 के दशक से ही वहाँ का राजनीतिक वातावरण उग्र होने लगा था और 1989 तक यह राज्य उग्रवादी आंदोलन की गिरफ्त में आ चुका था। आंदोलनकारी जम्मू-कश्मीर को क्षेत्रीय स्वायत्तता दिलाना चाहते थे। फिलहाल केंद्र ने विभिन्न अलगाववादी समूहों से बातचीत शुरू कर दी है। अलग राष्ट्र की माँग की जगह, अब अलगावादी समूह अपनी बीतचीत में भारत संघ के साथ कश्मीर के रिश्ते को पुनर्परिभाषित करने पर जोर दे रहे हैं।
  8. पंजाब में 1970 के दशक में अकालियों के एक तबके ने राज्य के लिए स्वायत्तता की माँग उठाई। 1973 में, आनंदपुर साहिब में हुए एक सम्मेलन में इस आशय का प्रस्ताव पारित हुआ। आनंदपुर साहिब प्रस्ताव में क्षेत्रीय स्वायत्तता की बात उठाई गई। लेकिन इस प्रस्ताव का सिख जन-समुदाय पर बहुत कम असर पड़ा और 1980 में अकाली दल की सरकार बखास्त हो गई। बाद में, अकाली दल के द्वारा चलाए गए आदोलन ने सशस्त्र विद्रोह का रूप ले लिया और आनंदपुर साहिब प्रस्ताव विवादों में आ गया।
  9. 1985 में भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी और अकाली दल के तत्कालीन अध्यक्ष हरचंदसिंह लोंगोवाल के बीच जुलाई में एक समझौता हुआ, जिसे पंजाब समझौता का नाम दिया गया। समझौता पंजाब में अमन कायम करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम था। इस बात पर सहमति हुई कि चंडीगढ़ पंजाब को दे दिया जाएगा और पंजाब और हरियाणा के बीच सीमा-विवाद को सुलझाने के लिए एक अलग आयोग की नियुक्ति होगी। लेकिन पंजाब में हिंसा का चक्र चलता रहा और अकाली दल बिखर गया। केंद्र सरकार को राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू करना पड़ा। 1997 में अकाली दल और भाजपा के गठबंधन को बड़ी विजय मिली। उग्रवाद के खात्मे के बाद के दौर में यह पंजाब का पहला चुनाव था।
  10. पूर्वोत्तर क्षेत्र में सात राज्य हैं और इन्हें 'सात बहनें' कहा जाता है। 1972 तक पूर्वोत्तर का पुनर्गठन पूरा हो चुका था। लेकिन स्वायत्तता की माँग खत्म नहीं हुई। उदाहरण के लिए, असम को बोडो, करबी और दिमसा जैसे समुदायों ने अपने लिए अलग राज्य की माँग की। उनकी स्वायत्तता की माँग को संतुष्ट करने की कोशिश की गई, लेकिन इन समुदायों को असम में ही रखा गया। करबी और दिमसा समुदायों को जिला परिषद् के अंतर्गत स्वायत्तता दी गई, जबकि बोडो जनजाति को हाल ही में स्वायत्त परिषद् का दर्जा दिया गया है।
  11. क्षेत्रीय आकांक्षाएँ लगातार एक-न-एक रूप में उभरती रहीं, कभी कहीं से अलग राज्य बनाने की माँग उठी, तो कहीं आर्थिक विकास का मसला उठा। कहीं-कहीं अलगाववाद के स्वर उभरे। ये घटनाएँ हमें कई सबक सिखाती हैं, जैसे-क्षेत्रीय आकांक्षाएँ लोकतांत्रिक राजनीति का अभिन्न अंग हैं, क्षेत्रीय आकांक्षाओं को दबाने की जगह उनके साथ लोकतांत्रिक बातचीत का तरीका अपनाना सबसे अच्छा होता है, सत्ता की साझेदारी के महत्व को समझना आदि।
  12. गोवा, दमन और दीव काफी लंबे समय से पुर्तगाल के अधीन था। 1947 में भारत की आजादी के साथ वहाँ की जनता भी पुर्तगाल की अधीनता से मुक्त होकर भारत में मिल जाना चाहती थी। परिणामस्वरूप गोवा में आज़ादी के लिए एक मज़बूत जनआंदोलन चल पड़ा। इस आंदोलन को महाराष्ट्र के समाजवादी सत्याग्रहियों ने बल प्रदान किया। आखिरकार, दिसंबर 1961 में भारत सरकार ने गोवा में अपनी सेना भेद दी। दों दिन की कार्रवाई में भारतीय सेना ने गोवा को मुक्त करा लिया। गोवा, दमन और दीव संघशासित प्रदेश बन गए। लेकिन 1987 में गोवा को भारत संघ में राज्य का दर्जा मिल पाया।
भारतीय राजनीति में
  • 1980 के दशक को स्वायत्तता की मांग के दशक के रूप में भी देखा जा सकता है। इस दौर में देश के कई हिस्सों से स्वायतत्ता की मांग उठी।
  • इस दशक में असम, पंजाब, मिजोरम और जम्मू कश्मीर में क्षेत्रीय आकांक्षाओं ने सर उठाया और सरकार को बड़े जतन से समझौते करने पडे।
  • अलगवादी आंदोलनों के साथ अतिरिक्त देश में भाषा के आधार पर राज्यों के गठन की मांग को लेकर आंदोलन चले। आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, महाराष्ट्र, गुजरात और पंजाब ऐसे ही आंदोलनो वाले राज्य है।
  • आजादी के तुरंत बाद जम्मू-कश्मीर का मसला सामने आया। यह सिर्फ भारत और पाकिस्तान के बीच संघर्ष का मामला नही था। कश्मीर घाटी के लोगों की राजनीतिक आकांक्षाओं का सवाल भी इससे जुड़ा हुआ था।
  • जम्मू एवं कश्मीर में तीन राजनैतिक एवं सामाजिक क्षेत्र-जम्मू कश्मीर लद्दाख है।
  • 1947 से पहले जम्मू एवं कश्मीर में राजशाही थी।
  • अक्टूबर 1947 में पाकिस्तान द्वारा कबायलीयों के भेष में आक्रमण के बाद कश्मीर के महाराजा हरिसिंह ने अपनी रियासत के भारत में विलय को सहमति दे दी।
  • भारतीय संविधान में अनुच्छेद 370 के द्वारा जम्मू-कश्मीर के लिए विशेष प्रावधान किए गए।
  • पाकिस्तान के उग्रवादी व्यवहार और कश्मीर के अलगावादियों के कारण यह क्षेत्र अशान्त बना हुआ है यहाँ के अलगावादियों की तीन मुख्य धाराएँ है -
    1. कश्मीर को अलग राष्ट्र बनाया जाय
    2. कश्मीर का पाकिस्तान में विलय किया जाय
    3. कश्मीर भारत का ही भाग रहे परन्तु इसे और अधिक स्वायत्ता दी जाय।
  • 1989 से जम्मू कश्मीर में अलगाववादी राजनीति ने सर उठाया। अलगाववादियों का एक तबका कश्मीर को अलग राष्ट्र बनाना चाहता है। कुछ अलगाववादी समूह चाहते है कि कश्मीर का विलय पाकिस्तान में हो जाए। कुछ लोग चाहते हैं कि कश्मीर भारत संघ का ही हिस्सा रहें लेकिन और स्वायत्तता दी जाए।
  • 1920 के दशक में गठित अकाली दल ने पंजाबी भाषी क्षेत्र के गठन के लिए आन्दोलन चलाया जिसके परिणाम स्वरूप पंजाब प्रान्त से अलग करके सन् 1966 में हिन्दी भाषी क्षेत्र हरियाणा तथा पहाड़ी क्षेत्र हिमाचल प्रदेश बनाये गये।
  • 1970 के दशक में पंजाब में अकालियों के एक तबके ने स्वायत्तता की मांग उठायी। 1973 मे आनंदपुर साहिब हुआ।
  • पंजाब के कुछ चरमपंथी तत्वों ने भारत से अलग होकर ‘खालिस्तान बनाने की वकालत की। आंदोलन ने सशस्त्र विद्रोह का रूप ले लिया। भारत सरकार ने इसे कुचलने के लिए 1984 में ऑपरेशन ब्लू स्टार चलाया। उस ऑपरेशन की प्रतिक्रिया प्रधानमंत्री इंदिरागांधी की हत्या के आरोप रूप में सामने आयी। इसके बाद दिल्ली सहित उत्तर भारत के कई हिस्सों में सिख समुदाय के विरुद्ध हिंसा भड़क उठी।
  • इस सैन्य कार्यवाही को सिक्खों ने अपने धर्म, विश्वास पर हमला माना जिसका बदला लेने के लिए 31 अक्टूबर 1984 को इंन्दिरा गांधी की हत्या की गई तो दूसरी तरफ उत्तर भारत में सिक्खों के विरूद्र हिंसा भड़क उठी।
  • 1985 में प्रधानमंत्री राजीव गांधी और अकाली दल के अध्यक्ष हरचंद सिंह लोगोबाल के बीच एक समझौता हुआ जिसे पंजाब समझौता भी कहा जाता है।
  • भारत के पूर्वोत्तर के सात राज्यों को सात बहने भी कहा जाता है।
  • पूर्वोत्तर का भौगोलिक रूप से अलग-थलग होना, जटिल सामाजिक संरचना, आर्थिक पिछड़ापन और लंबी अंतर्राष्ट्रीय सीमा रेखा इस क्षेत्र को संवेदनशील बनाती है।
  • पूर्वोत्तर के राज्यों में राजनीति पर तीन मुद्दे हावी रहे हैं:- स्वायत्तता की मांग, अलगाव के आंदोलन और बाहरी लोगों का विरोध।
पूर्वोत्तर भारत:-
  • इस क्षेत्र में सात राज्य है भारत की 04 प्रतिशत आबादी रहती है। यहाँ की सीमायें चीन, म्यांमार, बांग्लादेश और भूटान से लगती है यह क्षेत्र भारत के लिए दक्षिण पूर्वी एशिया का प्रवेश द्वार है। संचार व्यवस्था एवं लम्बी अन्तर्राष्ट्रीय सीमा रेखा आदि समस्याये यहां की राजनीति को संवेदनशील बनाती है। पूर्वोत्तर भारत की राजनीति में स्वायत्तता की मांग, अलगाववादी आंदोलन तथा बाहरी लोगों का विरोध मुद्दे प्रभावी रहे है।
  1. स्वायत्तता की मांग- आजादी के समय मणिपुर एवं त्रिपुरा को छोड़कर पूरा क्षेत्र असम कहलाता था जिसमें अनेक भाषायी जनजातिय समुदाय रहते थे इन समुदायों ने अपनी विशिष्टता को सुरक्षित रखने के लिए अलग-अलग राज्यों की मांग की।
  2. अलगाववादी आन्दोलन
    1. मिजोरम - सन् 1959 में असम के मिजो पर्वतीय क्षेत्र में आये अकाल का असम सरकार द्वारा उचित प्रबन्ध न करने पर यहाँ अलगाववादी आन्दोलन उभारो।
      सन् 1966 मिजो नेशनल फ्रट (M.N.F.) ने लाल डेंगा के नेतृत्व में आजादी की मांग करते हुए सशस्त्र अभियान चलाया। 1986 में राजीव गांधी तथा लाल डेंगा के बीच शान्ति समझौता हुआ और मिजोरम पूर्ण राज्य बना।
    2. नागालँण्ड - नागा नेशनल कांउसिल (N.,N.C) ने अंगमी जापू फिजो के नेतृत्व में सन् 1951 से भारत से अलग होने और वृहत नागालैंण्ड की मांग के लिए सशस्त्र संघर्ष चलाया हुआ है। कुछ समय बाद N.N.C में दोगुट एक इशाक मुइवा (M) तथा दुसरा खापलांग (K) बन गये। भारत सरकार ने सन् 2015 में N.N.C - M गुट से शान्ति स्थापना के लिए समझौता किया परन्तु स्थाई शान्ति अभी बाकी है।
  3. बाहरी लोगों का विरोध - पूर्वोत्तर के क्षेत्र में बंगलादेशी घुसपैठ तथा भारत के दूसरे प्रान्तो से आये लोगों को यहां की जनता अपने रोजगार और संस्कृति के लिए खतरा मानती है।
  • 1979 से असम के छात्र संगठन आसू (AASU) ने बाहरी लोगों के विरोध में ये आन्दोलन चलाया जिसके परिणाम स्वरूप आसू और राजीव गांधी के बीच शान्ति समझौता हुआ सन् 2016 के असम विधान सभा चुनावों में भी बांग्लादेशी घुसपैठ का प्रमुख मुद्दा था।
  • द्रविड आन्दोलन – दक्षिण भारत के इस आन्दोलन का नेतृत्व तमिलसमाज सुधारक ई.वी. रामास्वामी नायकर पेरियार ने किया। इस आन्दोलन ने उत्तर भारत के राजनीतिक, आर्थिक व सांस्कृतिक प्रभुत्व, ब्राह्मणवाद व हिन्दी भाषा का विरोध तथा क्षेत्रीय गौरव बढ़ाने पर जोर दिया। इसे दूसरे दक्षिणी राज्यों में समर्थन न मिलने पर यह तमिलनाडु तक सिमट कर रह गया। इस आन्दोलन के कारण एक नये राजनीतिक दल – 'द्रविड कषगम' का उदय हुआ यह दल कुछ वर्षों के बाद दो भागो (D.M.K. एवं A.I.D.M.K.) में बंट गया ये दोनों दल अब तमिलनाडु की राजनीति में प्रभावी है।
  • सिक्किम का विलय :- आजादी के बाद भारत सरकार ने सिक्किम के रक्षा व विदेश मामले अपने पास रखे और राजा चोगयाल को आन्तरिक प्रशासन के अधिकार दिये। परन्तु राजा जनता की लोकतांन्त्रिक भावनाओं को नहीं संभाल सका और अप्रैल 1975 में सिक्किम विधान सभा ने सिक्किम का भारत में विलय का प्रस्ताव पास करके जनमत संग्रह कराया जिसे जनता ने सहमती प्रदान की। भारत सरकार ने प्रस्ताव को स्वीकार कर सिक्किम की भारत का 22वाँ राज्य बनाया।
  • गोवा मुक्ति :- गोवा दमन और दीव सोलहवीं सदी से पुर्तगाल के अधीन थे और 1947 में भारत की आजादी के बाद भी पुर्तगाल के अधीन रहे। महाराष्ट्र के समाजवादी सत्याग्रहियों के सहयोग से गोवा में आजादी का आन्दोलन चला दिसम्बर 1961 में भारत सरकार ने गोवा में सेना भेजकर आजाद कराया और गोवा दमन, दीव को संघ शासित क्षेत्र बनाया।
  • भारत का सर्वप्रथम जनमत संग्रह जनवरी 1967 में गोवा को महाराष्ट्र में शामिल होने या अलग बने रहने के लिए कराया गया और सन् 1987 में गोवा की राज्य बनाया गया।
आजादी के बाद से अब तक उभरी क्षेत्रीय आकांक्षाओं के सबक-
  • क्षेत्रीय आकांक्षाये लोकतांन्त्रिक राजनीति की अभिन्न अंग है।
  • क्षेत्रीय आकाक्षाओं को दबाने की बजाय लोकतान्त्रिक बातचीत को अपनाना अच्छा होता है।
  • सत्ता की साझेदारी के महत्व को समझना।
  • क्षेत्रीय असन्तुलन पर नियन्त्रण रखना।