अंतरा - हजारी प्रसाद द्विवेदी - पुनरावृति नोट्स

 CBSE Class 12 हिंदी ऐच्छिक

पुनरावृति नोट्स
पाठ-21 कुटज


पाठ-परिचय
कुटज हिमालय पर्वत की ऊँचाई पर सूखी शिलाओं के बीच उगने वाला एक जंगली फूल है, इसी फूल की प्रकृति पर यह निबंध् कुटज लिखा गया है। कुटज में न विशेष सौंदर्य है, न सुगंध् फिर भी लेखक ने उसमें मानव के लिए एक संदेश पाया है। कुटज में अपराजेय जीवन शक्ति है, स्वावलंबन है, आत्मविश्वास है और विषम परिस्थितियों में भी शान के साथ जीने की क्षमता। वह समान भाव से सभी परिस्थितियों को स्वीकारता है।
स्मरणीय बिन्दु

  • पर्वत शोभा निकेतन माने गए है। हिमालय को ‘पृथ्वी का मानदंड’ कहा जाता है। इसे शिवालिक श्रृंखला भी कहते है। ‘शिवालिक’ का अर्थ है शिव के जटाजूट का निचला हिस्सा । यहाँ खड़े पेड़-पौधें की जड़ें काफी गहरी, पैठी रहती है। ये भी पाषाण की छाती फाड़कर न जाने किस अतल गह्वर से अपना भोग्य खींच लाते है।
  • शिवालिक की सूखी नीरस पहाड़ियों पर वृक्ष अलमस्त हैं, किसी का नाम, कुल और शील का नहीं पता। ये अनादिकाल से है। इन्हीं में से एक छोटा सा बहुत ही ठिगना पेड़ है कुटज का। अजीब सी अदा है, मुस्कराता सा जान पड़ता है। लेखक को उसका नाम याद नहीं आता उसे लगता था कि नाम में क्या रखा है। नाम की जरूरत हो तो सौ दिए जा सकते हैं। पर मन नहीं मानता। नाम इसलिए बड़ा नही है कि वह नाम है। वह इसलिए बड़ा होता है कि उसे सामाजिक स्वीकृति मिली होती है। नाम उस पद को कहते है जिस पर समाज की मुहर लगी होती है।
  • कुटज को गाढ़े का साथी कहा गया है क्योंकि कुटज कठिनाई के समय में काम आया। का लिदास जब रामगिरि पहुँचे तब उन्होनें इसी कुटज का अध्र्य देकर मेघ की अभ्यर्थना की थी। उस समय उन्हें कोई और फूल नहीं मिला। तब कुटज ने उनके संतृप्त चित्त को सहारा दिया था।
  • कुटज का क्या अर्थ है? कुटज अर्थात् जो कुट से पैदा हुआ हो। ‘कुट’ घड़े को भी कहते है, और घर को भी कहते है। ‘कुट’ अर्थात् घड़े से उत्पन्न होने के कारण अगस्त्य मुनि भी ‘कुटज’ कहे जाते है। एक जरा गलत ढंग की दासी ‘कुटनी’ कही जाती है। संस्कृत में उसे ‘कुट्टनी’ कह दिया जाता है।
  • कुटज का पौध लहराता रहता है। वह नाम और रूप दोनों से अपनी अपराजेय जीवनी-शक्ति की घोषणा करता है। वह ध्ध्कती लू में भी हरा-भरा बना रहता है। वह कठोर पत्थर के बीच रूके अज्ञात जलस्रोत से बरबस रस खींचकर सरस बना रहता है। वह सूने गिरि कांतार में भी मस्त बना रहता है। वह कठोर पाषाण को भेदकर पाताल की छाती चीरकर अपना भोग्य संग्रह करता है। वह उल्लास में झूमता है। यही उसकी जीवनी शक्ति है। पत्थरों और चट्टानों के बीच उगते हुए अपने जीवन को किसी उद्देश्य के लिए न्यौछावर करने वाला कुटज का यह पौध दुनिया को संदेश देता है कि यदि जीना चाहते हो तो कठिनाइयों से मत घबराओं और संघर्ष करते रहो। विषम परिस्थितियों में जीना सीखो। आत्मसम्मान के साथ जियो, शान के साथ जिओ। जहाँ से भी संभव हो अपना भोग्य प्राप्त करो।
  • कुटज के जीवन से हमें यह सीख मिलती है कि हर हाल में जिओ और मस्ती के साथ जिओ। अपना आत्मसम्मान बनाए रखो। परोपकार के लिए जिओ। किसी की चापलूसी मत करो। मन पर नियंत्राण रखो। हमें जीवन में किसी भी कीमत पर हार नहीं माननी चाहिए। कुटज स्वार्थ के दायरे से बिल्कुल बाहर है। हमें भी स्वार्थी नही होना चाहिए।
  • लेखक ने एक स्थान पर प्रश्न किया है कि कुटज क्या केवल जी रहा है? यह प्रश्न उठाकर लेखक ने मानवीय कमजोरियों पर टिप्पणी की है मानव जरा भी मुसीबत आने पर दूसरों के द्वार पर भीख माँगने चला जाता है। कुटज का पौंध दूसरों का द्वार भीख माँगने नहीं जाता। वह बड़ी शान से अपने स्थान पर खड़ा रहता है। सामान्य मानव शक्तिशाली के सामने घुटने टेक देता है। उसमें आत्म विश्वास की कमी है। आज का मानव परमार्थ से दूर हटता चला जा रहा है।
  • लेखक का कहना है कि स्वार्थ से बढ़कर जिजीविषा से भी प्रचंड शक्ति अवश्य है और वह शक्ति है ‘आत्मा’। आत्मा परमात्मा का अंश है और वह सभी में व्याप्त है। व्यक्ति की आत्मा केवल उसी तक सीमित नही है, वह व्यापक है। याज्ञवल्कय आत्मनः का अर्थ कुछ और बड़ा करना चाहते थे व्यक्ति को तब तक पूर्ण सुख का आनन्द नही मिलता जब तक मनुष्य में, अपने में सब और सब में आप - इस प्रकार समष्टि बुद्धि नही आती। अपने आपको दलित द्राक्षा की भांति निचोड़कर जब तक सर्व के लिए न्यौछावर नही कर दिया जाता तब तक ‘स्वार्थ’ खंड-सत्य है। वह मोह को बढ़ावा देता है। ऐसा व्यक्ति दयनीय कृपण बन जाता है। वह तो स्वार्थ भी नही समझ पाता, परमार्थ तो दूर की बात है।
  • ‘कुटज’ पाठ में बताया गया है कि दुख और सुख तो मन के विकल्प है। वास्तव में सुखी व्यक्ति वह है, जिसका मन वश में है और दुखी वह है जिसका मन परवश है। यहाँ परवश होने का अर्थ है -दूसरों की खुशामद करना, दाँत निपोरना, चाटुकारिता करना, जी हजूरी करना। इसीलिए सुख और दुख की चिंता किए बिना हमें जीवन जीने की कोशिश करनी चाहिए।