आधुनिकीकरण के रास्ते-प्रश्न-उत्तर

                                                        कक्षा 11 इतिहास

एनसीईआरटी प्रश्न-उत्तर
पाठ 11 आधुनिकीकरण के रास्ते


संक्षेप में उत्तर दीजिए

1. मेजी पुनस्र्थापना से पहले की वे अहम् घटनाएँ क्या थीं, जिन्होंने जापान के तीव्र आधुनिकीकरण को संभव किया?

उत्तर - जापान में 1867-68 में एक युगांतकारी घटना मेंजी पुनस्र्थापना के रूप में घटी। सदियों पूर्व जापान में दो अहम प्रशासनिक शक्तियाँ दो भागो में विभाजित थीं - प्रधान सेनापति तथा सम्राट अथवा शोगुन। यधपि शक्तियाँ प्रशासन की शोगुन में केंद्रित थीं तथा सम्राटका स्थान केवल राजनैतिक मुखौटा के रूप में था। परन्तु 1668 ई० में एक आंदोलन के माध्यम से शोगुन का पद समाप्त कर दिया गया। उसके सारे अधिकार सम्राट के हाथों में दे दिए गए। नए सम्राट चौदह वर्षीय मुत्सुहितों ने मेजी की उपाधि धारण की। मेजी पुनस्र्थापना से पूर्व जापान में कुछ महत्वपूर्ण घटनाएँ घटित हुई। फलत: आधुनिकीकरण का मार्ग प्रशस्त हुआ।

  •  जापान में किसान हथियार 16वीं शताब्दी तक रखते थे। फलत: यदा-कदा अराजकता का वातावरण पैदा हो जाता था। यधपि इस शताब्दी के अंतिम वर्षों में किसानों से हथियार ले लिए गए। अब मात्र सामुदाई वर्ग के लोग ही हथियार रख सकते थे। इससे किसान अपना संपूर्ण समय और ध्यान कृषि कार्य में लगाने लग।
  •  भूमि का वर्गीकरण भूमि का सर्वेक्षण और उत्पादकता के आधार पर किया गया। मालिकों तथा करदाताओं का निर्धारण इस कार्य का मुख्य उद्देश्य करना था। इस परिवर्तन ने राजस्व के स्थायी निर्धारण में महत्वपूर्ण योगदान दिया।
  • इससे पूर्व दम्यों को ज़्यादातर समय शोगुन के निर्देशानुसार राजधानी एदो में व्यतीत करना पड़ता था। फलत: वे अपने क्षेत्रों के प्रशासनिक कार्यों का संचालन सुचारु रूप से करने में असमर्थ हो जाते थे। 16वीं शताब्दी के अंतिम वर्षों में उन्हें अपनी राजधानियों में रहने के आदेश दिए गए।
  •  जापान में विभिन्न आवश्यक एवं बड़े शहरों का विकास मेजी पुनस्र्थापना से पहले हुआ। शहरों के विकास ने वाणिज्यिक अर्थव्यवस्था के विकास को प्रोत्साहित किया। फलत: वित्त और ऋण की प्रणालियाँ स्थापित हुई। गुणों को पद से अधिक महत्वपूर्ण माना जाने लगा। व्यापार का विकास हुआ और शहरों की जीवित संस्कृति विकसित होने लगी। सांस्कृतिक कार्यक्रमों को बढ़ावा मिला।
  • इन सभी घटनाओं के सामूहिक प्रयास से जापान में तीव्रगति से आधुनिकीकरण का सपना साकार हुआ।

2. जापान के विकास के साथ-साथ वहाँ की रोजमर्रा की जिदगी में किस तरह बदलाव आए? चर्चा कीजिए।

उत्तर - रोजाना की जिंदगी में आए परिवर्तनों में भी जापान का एक आधुनिक समाज में बदलाव देखा जा सकता है। परिवार के मुखिया का नियंत्रण परिवार व्यवस्था में कई पीढ़ियाँ में रहता था लेकिन जैसे-जैसे लोग समृद्ध एवं संपन्न हुए, परिवारों के संदर्भ में नये विचार फैलने लगे। नया घर (जिसे जापानी अंग्रेजी शब्द का इस्तेमाल करते हुए होम कहते हैं) का संबंध मूल परिवार से था, जहाँ पति-पत्नी साथ रहकर कमाते हैं और घर बसाते हैं। पारिवारिक जीवन की इस नयी समझ ने नए प्रकार के घरेलू उत्पादों, नए किस्म के पारिवारिक मनोरंजन और नए तरह की माँग पैदा की। 1920 के दशक में निर्माण कम्पनियों द्वारा आरम्भ में 200 येन देने के बाद निरंतर 10 साल के लिए 12 येन प्रति माह की किस्तों पर लोगों को सस्ते मकान उपलब्ध कराए गए। यह एक ऐसे समय में जब एक बैंक कर्मचारी (उच्च शिक्षा प्राप्त व्यक्ति) की मासिक आय 40 येन प्रति मास थी।
जापान के विकास के साथ-ही-साथ नवीन घरेलू उत्पादों, जैसे कुकर टोस्टर आदि का इस्तेमाल होने लगा। नवीन मध्यमवर्गीय परिवारों को आधुनिकता के प्रसार ने प्रभावित किया।आवागमन की प्रक्रिया ट्रामों के आने से की आसान हो गई इसके साथ ही मनोरंजन के नवीन साधनों का आविष्कार हुआ। फिल्मों का निर्माण 1899 ई० में होने लगा। पहला रेडियो स्टेशन सन् 1925 ई० में खोला गया।


3. पश्चिमी ताकतों द्वारा पेश की गई चुनौतियों का सामना छींग राजवंश ने कैसे किया?

उत्तर -  पश्चिमी ताकतों द्वारा पेश की गई चुनौतियों का सामना छींग राजवंश ने निम्नलिखित प्रकार से किया :

1. चीन की व्यवस्था को सुदृढ़ बनाना के लिए, उपनिवेशीकरण की समाप्ति का मुख्य कदम था। उसने आधुनिक प्रशासन, नयी सेना और शिक्षा के लिए नयी नीतियों का निर्माण किया।
2. जनसामान्य के द्वारा राष्ट्रीय जागरूकता पैदा करने के लिए विभिन्न प्रयत्न्न किए गए। चीन विचारक लियांग किचाऊ का विचार था कि चीनियों में राष्ट्रीयता की भावना पैदा करके ही चीन पश्चिम का सफलतापूर्वक विरोध कर सकता था। उनके अंतर्गत अंग्रेज व्यापारियों के हाथों भारतीयों की हार का मुख्य की मुख्य वजह भारतीयों में एकता तथा राष्ट्रीयता की भावना का अभाव था। अत: चीनी विचारकों ने जनसामान्य को उपनिवेश बनाए गए देशों के नकारात्मक उदाहरणों से परिचित कराने का अहम कार्य किया। पोलैंड का विभाजन 18वीं शताब्दी में एक दृष्टांत बन गया।चीन में 1890 के दशक में 'पोलैंड' शब्द का प्रयोग एक क्रिया स्वरूप-'टू पोलैंड रूस" (बोलान वू) अर्थात् 'हमें विभाजित करने'-किया जाने लगा।3. संवैधानिक सरकार की स्थापना हेतु स्थानीय विधायिकाओं के गठन की तरफ ध्यान आकृष्ट किया गया। प्रशासकों का विचार था कि एक संवैधानिक रूप से चुनी हुई सरकार की पश्चिमी ताकतों द्वारा प्रस्तुत की गई चुनौतियों से भली-प्रकार से निपट सकती हैं।
4. जनसाधारण की परंपरागत सोच को बदलने की कोशिश की गई क्योंकि बुद्धजीवी वर्ग का मानना था कि परंपरागत सोच को बदलकर ही चीन का विकास संभव है। उल्लेखनीय है कि उस समय चीन की प्रमुख विचारधारा कन्फ्यूशियसवाद से ओतप्रोत थी।
5.सरकारी पदों की नियुक्ति के लिए योग्यता के आधार का चलन किया गया।रूस-जापान युद्ध के बाद 1905 ई० में दीर्घकाल से प्रचलित चीनी परीक्षा प्रणाली को समाप्त कर दिया गया। परंपरागत परीक्षा प्रणाली में साहित्य पर बल दिया जाता था। फलत: यह विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी के लिए बाधक थी।
6. जिन विद्यार्थियों को जापान में 1890 के दशक में अध्ययन हेतु भेजा गया था उन्होंने जापान के नए विचारों से प्रभावित होकर चीन में गणतंत्र स्थापित करने में आवश्यक भूमिका निभाई।
7. सैन्य-शक्ति को मजबूत बनाने के लिए विभिन्न आवश्यक सुधार किए गए। सेना को अत्याधुनिक अस्त्र-शस्त्र से सुसज्जित किया गया।


4. सन यात-सेन के तीन सिद्धांत क्या थे?

उत्तर - 1911 में सन यात-सेन के नेतृत्व में मांचू साम्राज्य की समाप्ति की गई तथा इसके बाद चीनी गणतंत्र की स्थापना की गई। आधुनिक समय में वे चीन के संस्थापक गए है। उन्हें एक गरीब परिवार से  माना जाता है तथा उन्होंने मिशन स्कूलों से शिक्षा प्राप्त की जहाँ उनका परिचय लोकतंत्र व ईसाई धर्म से हुआ। उन्होंने डॉक्टरी की पढ़ाई की, किन्तु इसके साथ ही वे चिउँ के भविष्य के लिए भी बहुत चिंतनशील  थे। उनका कार्यक्रम तीन सिद्धांत (सन मिन चुई) के नाम से प्रसिद्ध है। 
सन यात-सेन के तीन सिद्धांत :
1. राष्ट्रवाद-  इसके अंतर्गत मांचू वंश-जिसे विदेशी राजवंश के रूप में माना जाता था-को सत्ता से हटाना, साथ-ही-साथ अन्य साम्राज्यवादियों को हटाना।
2. समाजवाद- जो भूस्वामित्व में समानता लाए और पूँजी का नियमन करे। सन यात-सेन के अनुसार कुओमीनतांग के राजनीतिक दर्शन का आधार बने। उन्होंने इन 'चार बड़ी आवश्यकताओं' को रेखांकित किया : कपड़ा, खाना, घर और परिवहन,।
3. गणतांत्रिक सरकार की स्थापना- अन्य साम्राज्यवादियों को हटाना तथा गणतंत्र की स्थापना करना।


संक्षेप में निबंध लिखिए -

5. क्या पड़ोसियों के साथ जापान के युद्ध और उसके पर्यावरण का विनाश तीव्र औद्योगीकरण की जापानी नीति के चलते हुआ?

उत्तर - इतिहासकारो के अनुसार, औद्योगीकरण की जापानी नीति ने ही जापान को पड़ोसियों के साथ युद्धों में उलझा दिया एवं उसके पर्यावरण को समाप्तप्राय कर दिया। जापान ने आर्थिक-राजनैतिक-सामाजिक सभी क्षेत्रों में मेजी पुनस्र्थापना ने तकरीबन चालीस वर्षों के अंतराल में अभूतपूर्व प्रगति की। सरकार ने अपनी नवीन नीति की घोषणा वहाँ के तत्कालीन सम्राटों ने विदेशियों को जंगली 'फुकोकु क्योहे' अर्थात् 'समृद्ध देश, मजबूत सेना' के नारे के साथ की। अपनी अर्थव्यवस्था एवं सेना को मजबूत बनाना इस नयी नीति का उद्देश्य था। मेजी सुधारों के अनुसार अर्थव्यवस्था के आधुनिकीकरण पर  अधिक बल दिया गया। सरकार ने उद्योगों के विकास हेतु विदेशों से भी सहायता ली। सूती वस्त्र उद्योग को प्रोत्साहित करने हेतु कपास की नयी-नयी किस्मों को विकसित करने का प्रयास किया गया। संचार और यातायात के अत्याधुनिक संसाधनों ने आर्थिक क्रांति में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया। बीसवीं शताब्दी के प्रथम दशक तक जापान की गिनती विश्व के सर्वोत्तम औद्योगिक देशों में होने लगी। औद्योगिक विकास की तीव्र गति ने जापान को पड़ोसियों के साथ युद्ध करने के लिए विवश कर दिया। जापान भी बाजार की खोज में 19वीं शताब्दी में औपनिवेशिक दौड़ में सम्मिलित हो गया। जापान के साम्राज्यवाद का एक अन्य प्रमुख कारण एशिया और प्रशांत क्षेत्र में अपनी श्रेष्ठता को साबित करना था। फलत: उसे 1894 ई०-95 ई० में चीन के साथ और 1904-05 में रूस के साथ युद्ध करना पड़ा।
1872 ई० में जापान की जनसंख्या 3.5 करोड़ थी। औद्योगिकीकरण के कारण से 1920 आते-आते जापान की जनसंख्या 5.5 करोड़ हो गयी।
जापान की अर्थव्यवस्था प्रथम विश्वयुद्ध के बाद लगातार विकास की ओर बढ़ने लगी। वह सूती वस्त्र, रेयन और कच्चे रेशम का सबसे बड़ा निर्यातक देश बन गया। युद्धों के परवर्ती काल में इंजीनियरिंग एवं लोहा-इस्पात उद्योग के क्षेत्र में जापान ने अद्भवितीय विकास किया। तीव्र गति से औद्योगिक विकास का एक नकारात्मक पक्ष था-पर्यावरण का दिन-पर-दिन दूषित होना। औद्योगिक विकास ने लकड़ी की माँग में वृद्धि की जिससे पेड़ों की अंधाधुंध कटाई हुई। फलत: पर्यावरण पर इसका प्रतिकूल प्रभाव पड़ा। प्रथम संसद (1897 ई० में) के निम्न सदन के सदस्य तनाको शोजों ने औद्योगिक प्रदूषण के विरोध में पहला आंदोलन किया। उनका मानना था कि मानवीय हितों को नजरअंदाज़ करके औद्योगिक विकास करना मानव जाति के प्रति क्रियावादी कदम हैं। द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद जापान में होने वाले तीव्र औद्योगिक विकास का जनसामान्य के स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव पड़ा। बीमारी का कारण अरगजी का जहर एक भयंकर कष्टदायी था एवं यह एक आरंभिक सूचक भी था। फलत: 1960 के दशक के उत्तरार्द्ध में हवा इतनी दूषित हो गई कि अनेक समस्याएँ उठ खड़ी हुई।

अत: यह कहना उचित ही होगा कि तीव्र औद्योगिकीकरण की जापानी नीति ने जापान को सीमावर्ती देशों के साथ युद्धों में उलझा दिया। साथ-साथ वहाँ के पर्यावरण को भी दूषित कर दिया।


6. क्या आप मानते हैं कि माओ त्सेतुंग और चीन के साम्यवादी दल ने चीन को मुक्ति दिलाने और इसकी मौजूदा कामयाबी की बुनियाद डालने में सफलता प्राप्त की?

उत्तर - अधिकतर इतिहासकार इस विचार से सहमत हैं कि माओ त्सेतुंग और चीन के साम्यवादी दल ने चीन को मुक्ति दिलाने और इसकी मौजूदा कामयाबी की बुनियाद डालने में सफल रहे। प्रथम विश्वयुद्ध के पश्चात् से ही चीन में साम्यवादियों के प्रभाव में बढ़ोतरी होने लगी थी। साम्यवादी दल की स्थापना 1921 ई० में की गई जो अपने प्रथम चरण में ही एक शक्तिशाली दल के रूप में उभरने लगा। हालाँकि एक समय चीन में दो सरकारों का अस्तित्व था। इनमें से एक कुओमीनतांग (राष्ट्रवादी दल) की सरकार थी। इसके अध्यक्ष सन यात-सेन थे। दूसरी सरकार का अध्यक्ष एक सैनिक जनरल च्यांग कोईशेक था। इसका मुख्यालय बीजिंग में था। डॉ. सन यात-सेन की मृत्यु के पश्चात् कुओमीनतांग का नेतृत्व च्यांग कोईशेक की सरकार के विरोध में था, क्योंकि वह अमरीका तथा ब्रिटेन के हाथों का कठपुतली मात्र था। मुद्रास्फीति की वजह से जनसामान्य की मुसीबतें बढ़ गई थी। जनता दोहरी मार झेल रही थी। 
चीनी साम्यवादी पार्टी के मुख्य नेता माओ त्सेतुंग की कोशिशों के कारण यह पार्टी एक मजबूत राजनैतिक शक्ति बन गई थी। माओ त्सेतुंग घोर परिवर्तनवादी थे। उन्होंने एक ताकतवर किसान सोबित का गठन किया और भूमि अधिग्रहण करके पुन: नए नियमों के अंतर्गत वितरण किया। 
द्वितीय विश्वयुद्ध में जापान की हार के बाद चीन को जापानी प्रभाव से पूरी तरह से मुक्ति मिल गई। इसके बाद माओ त्सेतुंग के अधीन साम्यवादियों तथा च्योग कोई-शेक के नेतृत्व में राष्ट्रवादियों में सत्ता के गृहयुद्ध आरम्भ हो गया। इस संघर्ष में साभ्यवादियों की जीत हुई। अक्टूबर सन् 1943 को चीन में ‘पीपुल्स रिपब्लिक' ऑफ चाइना' के नाम से गणतंत्रीय सरकार की स्थापना कर दी गई।
नए गणतंत्र के प्रथम राष्ट्रपति माओ त्सेतुंग और प्रथम प्रधानमंत्री चाऊ-एन-लाई बने। इस सरकार ने अपने आरंभिक वर्षों में कुछ अहम् भूमि सुधार संबंधी कानून लागू किए। औद्योगिक क्रांति के लिए एक सुनियोजित कार्यक्रम भी तैयार किया गया।1953 तक इस कार्यक्रम के अनुसार आचरण होता रहा। इसके उपरांत समाजवादी परिवर्तन का कार्यक्रम बनाने की घोषणा की गई।
मौजूदा कार्यक्रम के तहत आंतरिक क्षेत्र में चीन जिस नए कार्यक्रम के तहत आंतरिक क्षेत्र में चीन जिस नए कार्यक्रम का पालन किया वह "लंबी छलाँग" के नाम से प्रसिद्ध हुआ। इस कार्यक्रम का प्रमुख लक्ष्य आर्थिक सुधार करना था। माओ ने 1954 ई० में तथा 1956 ई० में क्रमश: कृषि का सहकारिताकरण तथा सामूहिकीकरण आरंभ करने की दिशा में अहम कदम उठाया चीनवासियों को अपने-अपने घरों के   गाँवों में 'पीपुल्स कम्यून्स' स्थापित किए गए। ये सामूहिक उत्पादन तथा सामूहिक अधिकार के तहत कार्य करते थे। 
माओ त्सेतुंग ऐसे 'समाजवादी' व्यक्तियों का निर्माण करना चाहते थे, जिन्हें पितृभूमि, जनता, काम, विज्ञान तथा जनसंपत्ति पाँचों से बेहद प्यार हो। उन्होंने महिलाओं के लिए 'ऑल चाइना डेमोक्रेटिस वीमेन्स फेडरेशन' तथा विद्यार्थियों के लिए ऑल चाइना स्टूडेंट्स फेडरेशन' का निर्माण किया। वे योग्यता से अधिक महत्व विचारधारा को देते थे। अत: माओवादियों तथा उनके आलोचकों के मध्य संघर्ष प्राय: होता रहता था। माओ त्सेतुंग ने अपने आलाचकों को मुँहतोड़ जवाब देने के लिए 1965 ई० में महान सर्वहारा सांस्कृतिक क्रांति का प्रारंभ किया। इसके अंतर्गत पुरानी आदतों, पुरानी संस्कृति तथा पुराने रिवाजों के प्रतिक्रियास्वरूप अभियान छेड़े गए। 
जनमुक्ति सेना के युवा अंग लाल रक्षकों द्वारा क्रांति को करने या जारी रखने के नाम पर भयंकर अत्याचार किए गए। माओ त्सेतुंग की विचारधारा को न मानने वालों को नाना प्रकार की मुसीबतों और यातनाओं का सामना करना पड़ा। इसके कारण अर्थव्यवस्था एवं शिक्षा व्यवस्था में रुकावट आने लगी। साथ-साथ पार्टी भी बेहद कमजोर हुई। हालाँकि 1970 ई० में चीन की परिस्थितियों तेजी से बदलने लगीं। वहाँ की अर्थव्यवस्था विकास के पथ पर अग्रसर होने लगी तथा चीन परमाणु शक्ति से भी संपन्न हो गया। राष्ट्रपति निक्सन के काल में संयुक्त राज्य अमरीका ने भी साम्यवादी चीन को मान्यता प्रदान कर दी। कालांतर में वह संयुक्त राष्ट्र संघ की सदस्यता तथा सुरक्षा परिषद का स्थायी सदस्य भी बन गया।
इस प्रकार यह कहना उचित ही होगा कि चीन को मुक्ति दिलाने तथा इसकी तत्कालीन कामयाबी की आधारशिला रखने में साम्यवादी दल के प्रमुख माओ त्सेतुंग ने अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभायी।