वायुमंडल में जल-महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर

                                                            CBSE कक्षा 11 भूगोल

(भाग-क) पाठ 10 वायुदाब एवं पवनें
महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर


अति लघुतरात्मक प्रश्न (1 अंक वाले)

  1. आजकल वायुदाब मापन की किस इकाई का उपयोग किया जाता है?
    उत्तर- हैक्टोपास्कल
  2. पवनों के विक्षेपण संबंधी नियम को किस वैज्ञानिक ने सिद्ध किया था?
    उत्तर- अमेरिकी वैज्ञानिक फैरल।
  3. विषुवतीय निम्न वायुदाब कटिबन्ध को किस नाम से जाना जाता है?
    उत्तर- शान्त कटिबन्ध (डोलड्रम)
  4. कौन-सा व्यापारिक पवन ग्रीष्म ऋतु में मध्य एशिया में विकसित अत्यंत निम्न दाब केन्द्र की और विषुवत वृत पार करके दक्षिणी पश्चिमी दिशा में बहने लगता है?
    उत्तर- दक्षिणी-पूर्वी व्यापारिक पवनें।
    प्रश्न 5. किस अंक्षाश पर कारिआलिस बल शून्य होता है?
    उत्तर- विषुवत रेखा
  5. उष्ण कटिबन्धीय चक्रवात की आंख का विशेष लक्षण क्या है?
    उत्तर- शांत क्षेत्र (साफ मौसम)
  6. शान्त कटिबन्ध या डोलड्रम किसे कहते है?
    उत्तर- वह निम्न वायुदाब प्रदेश जहाँ पवनें क्षैतिज या धरातल के साथ गति नही करती है बल्कि अधिक तापमान के कारण वायु हल्की होकर ऊपर उठती है। इस प्रदेश को शान्त कटिबन्ध कहते है।
  7. चीन के तट को प्रभावित करने वाले उष्ण कटिबन्धीय चक्रवात को किस नाम से पुकारा जाता है?
    उत्तर- टाईफून।
  8. किन स्थानीय पवनों को हिमभक्षी अथवा हिमहरिणी कहा जाता है?
    उत्तर- चिनूक (रॉकी पर्वत श्रेणी)
  9. वातागृ का क्या अर्थ है?
    उत्तर- जब दो भिन्न प्रकार की वायुराशियां मिलती है तो उनके मध्य सीमा क्षेत्र को वाताग्र कहते है।
  10. टोरनेडो या जलस्तंभ किसे कहते है?
    उत्तर- भयानक तडि़तझंझा से कभी-कभी वायु आक्रामक रूप में हाथी की सूंड की तरह सर्पिल अवरोहण करती है। इसमें केन्द्र पर अत्यंत कम वायुदाब होता है और यह व्यापक रूप से भयंकर विनाशकारी होते है। इस परिघटना को टोरनेडो कहते है।
  11. वायुमंडलीय दाब किसे कहते हैं ?
    उत्तर-
     समुद्रतल से वायुमंडल की अंतिम सीमा तक एक इकाई क्षेत्रफल के वायु स्तंभ के भार को वायुमंडलीय दाब कहते हैं।
  12. वायु दाब किस यन्त्र से मापा जाता है और इसके मापन के लिये किस इकाई का प्रयोग होता है ?
    उत्तर-
     पारद वायुदाबमापी या निर्द्रव बैरोमीटर। इकाई-मिलीबार या किलोपास्कल है।
  13. वायुदाब की ह्रास (कमी आना) दर क्या है?
    उत्तर-
     वायु दाब वायुमंडल के निचले हिस्से में अधिक तथा ऊँचाई बढ़ने के साथ तेजी से घटता है यह ह्रास दर प्रति 10 मीटर की ऊँचाई पर 1 मिलीबार होता है।
  14. सम दाब रेखाओं Isobar को परिभाषित करें।
    उत्तर-
     समुद्र तल से एक समान वायु दाब वाले स्थानों को मिलती हुयी खींची जाने वाली रेखाओं को समदाब रेखाएँ कहते हैं। ये समान अंतराल पर खीचीं जाती हैं।
  15. सम दाब रेखाओं का पास या दूर होना क्या प्रकट करता है?
    उत्तर-
     सम दाब रेखायें यदि पास-पास है तो दाब प्रवणता अधिक और दूर हैं तो दाब प्रवणता कम होती है।
  16. दाब प्रवणता से क्या तात्पर्य है ?
    उत्तर-
     एक स्थान से दूसरे स्थान पर दाब में अन्तर को दाब प्रवणता कहते हैं।
  17. स्थानीय पवनें किसे कहते हैं ?
    उत्तर-
     तापमान की भिन्नता एंव मौसम सम्बन्धी अन्य कारकों के कारण किसी स्थान विशेष में पवनों का संचलन होता है जिन्हें स्थानीय पवनें कहते हैं।
  18. उष्ण कटिबन्धीय चक्रवातों को पश्चिमी आस्ट्रेलिया एवं पश्चिमी प्रशान्त महासागर में किस नाम से जाना जाता है ?
    उत्तर-
     उष्ण कटिबंधीय चक्रवातों को प. आस्ट्रेलिया में विली विलीज एवं पश्चिमी प्रशान्त महासागर में टाइफून के नाम से जाना जाता है।
  19. टारनैडो क्या है ?
    उत्तर-
     मध्य अंक्षाशों में स्थानीय तूफान तंड़ित झंझा के साथ भयानक रूप ले लेते हैं। इसके केन्द्र में अत्यन्त कम वायु दाब होता है और वायु ऊपर से नीचे आक्रामक रूप से हाथी की सँड़ की तरह आती है इस परिघटना को टारनैडो कहते हैं।
  20. अंतर उष्ण कटिबंधीय अभिशरण क्षेत्र (ITCZ) प्राय: कहाँ होता हैं?
    उत्तर- विषुवत वृत के निकट।
  21. वायु राशि से क्या अभिप्राय है ?
    उत्तर-
     जब वायु किसी विस्तृत क्षेत्र पर पर्याप्त लम्बे समय तक रहती है तो उस क्षेत्र के गुणों (तापमान तथा आर्द्रता संबंधी) को धारण कर लेती है। तापमान तथा विशिष्ट गुणों वाली यह वायु वायु राशि कहलाती है। ये सैंकडों किलोमीटर तक विस्तृत होती हैं तथा इनमें कई परतें होती हैं।


CBSE कक्षा 11 भूगोल (भाग-क)
पाठ 11 वायुमण्डल में जल
महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर


अतिलघुत्तरात्मक प्रश्न (1 अंक वाले)

  1. सापेक्ष आर्द्रता को कौन-सी इकाई में व्यक्त किया जाता है?
    उत्तर- प्रतिशत में
  2. जलवाष्प का प्रमुख स्त्रोत कौन-सा है?
    उत्तर- महासागर
  3. विशिष्ट आर्द्रता में वायु का भार, माप की किस इकाई के द्वारा प्रकट किया जाता है?
    उत्तर- किलोग्राम में |
  4. सापेक्ष आर्द्रता ज्ञात करने का सूत्र बताइए?
    उत्तर- सापेक्ष आर्द्रता: निरपेक्ष आर्दता/आर्दता सामर्थ्य × 100
  5. वृष्टि या वर्षण के कौन-कौन से रूप है?
    उत्तर- हिमपात, ओलावृष्टि, वर्षा
  6. निरपेक्ष आर्द्रता को परिभाषित कीजिए?
    उत्तर- वायु के प्रति इकाई आयतन में उपस्थित जलवाष्प की वास्तविक मात्र को निरपेक्ष आर्द्रता कहते है।
  7. ओसांक को परिभाषित कीजिए?
    उत्तर- वह तापमान जिस पर संघनन की क्रिया शुरू हो जाती है।

CBSE कक्षा 11 भूगोल
(भाग-क) 
पाठ 10 वायुदाब एवं पवनें
महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर


लघु उत्तर प्रश्न (3 अंक वाले)

  1. कारिआलिस (Coriolis Force) प्रभाव किस प्रकार पवनों की दिशा को प्रभावित करता है? संक्षेप में वर्णन कीजिए?
    उत्तर- पवन सदैव समदाब रेखाओं के आर-पार उच्च दाब से निम्नवायुदाब की ओर नही चलती। वे पृथ्वी के घूर्णन के कारण विक्षेपित हो जाती है। पवनों के इस विक्षेपण को ही कारिआलिस बल या प्रभाव कहते हैं।
    • इस बल के प्रभाव से पवन उत्तरी गोलार्द्ध में अपने दाई और तथा दक्षिणी गोलार्द्ध में अपने बाई और मुड़ जाती हैं।
    • कारिआलिस बल का प्रभाव विषुवत वृत पर शून्य तथा ध्रुवो पर अधिकतम होता है।
    • इस विक्षेप को फेरेल नामक वैज्ञानिक ने सिद्ध किया था, अतः इसे फेरेल का नियम कहते है।
  2. पवनों के प्रकारों का वर्णन कीजिए?
    उत्तर- पवनें तीन प्रकार की होती है-
    1. भूमंण्डलीय पवन- पृथ्वी के विस्तृत क्षेत्र पर एक ही दिशा में वर्ष भर चलने वाली पवन को भूमण्डलीय पवन कहते है। ये पवने एक वायुदाब कटिबन्ध से दूसरे वायुदाब कटिबन्ध की ओर नियमित रूप में चलती रहती है। ये मुख्यतः तीन प्रकार, सन्मार्गी या व्यापारिक पवन, पछुआ पवन तथा ध्रुवीय पवने होती है।
    2. सामयिक पवन- ये वे पवने है जो ऋतु या मौसम के अनुसार अपनी दिशा परिवर्तित करती है। उन्हें सामयिक पवन कहते है। मानसून पवन इसका उदाहरण है।
    3. स्थानीय पवन- ये पवनें भूतल के गर्म व ठण्डा होने की भिन्नता से पैदा होती है और स्थानीय रूप से सीमित क्षेत्र को प्रभावित करती है। स्थल समीर व समुद्र समीर, लू, फोन, चिनूक मिस्ट्रल आदि।
  3. मानसून पवनें किसे कहते है। इसकी तीन विशेषताएं बताइए?
    उत्तर- मानसून शब्द अरबीं भाषा के मौसिम शब्द से लिया गया है। जिसका अर्थ ऋतु है अतः मानसून पवनें वे पवने है जिनकी दिशा मौसम के अनुसार बिल्कुल उलट जाती है। ये पवने ग्रीष्म ऋतु के छह माह मे समुद्र से स्थल की ओर तथा शीत ऋतु के छह माह में स्थल से समुद्र की ओर चलती है। इन पवनों को दो वर्गो, ग्रीष्मकालीन मानसून तथा शीतकालीन मानसून में बाँटा जाता है। ये पवने भारतीय उपमहाद्वीप में चलती हैं।
  4. स्थल समीर व समुद्र समीर मे अन्तर स्पष्ट कीजिए?
    उत्तर- स्थल समीर व समुद्र समीर, स्थानीय पवन के उदाहरण है।
    स्थल समीर: ये पवने दिन के समय चलती है। दिन के समय जब सूर्य चमकता है तो समुद्र की अपेक्षा स्थल शीघ्र गर्म हो जाता है। जिससे स्थल पर उच्च वायुदाब प्रदेश बनता है। ये पवनें शुष्क होती है।


    समुद्र समीर: ये पवनें रात के समय चलती हैं। रात के समय स्थल शीघ्र ठण्डा होता है तथा समुद्र देर से ठण्डा होता है जिसके कारण समुद्र पर उच्च वायुदाब प्रदेश बनता है। इन पवनों में आर्द्रता होती है।
  5. प्रश्न 5. पर्वत-समीर व घाटी समीर में अंतर स्पष्ट कीजिए ?
    उत्तर- घाटी समीर-
    1. दिन के समय शांत स्वच्छ मौसम में वनस्पतिहीन सूर्यभिमुख, ढाल तेजी गर्म हो जाते है और इनके संपर्क में आने वाली वायु भी गर्म होकर ऊपर उठ जाती है। इसका स्थान लेने के लिए घाटी से वायु ऊपर की ओर चल पड़ती है।
    2. दिन मे दो बजे इनकी गति बहुत तेज होती है।
    3. कभी कभी इन समीरों के कारण बादल बन जाते है, और पर्वतीय ढालों पर वर्षा होने लगती है।

      पर्वत समीर- (i) रात के समय पर्वतीय ढालों की वायु तेज पार्थिव विकिरण के कारण ठंडी और भारी होकर घाटी में नीचे उतरने लगती है।
      (ii) इससे घाटी का तापमान सूर्योदय से कुछ पहले तक काफी कम हो जाता है। अतः तापमान का व्युक्रमण हो जाता है।
      (iii) सूर्योदय से कुछ पहले इनकी गति बहुत तेज होती है। ये समीर शुष्क होती है।
  6. चक्रवात एवं प्रति चक्रवात में अन्तर बताइये।
    उत्तर-
     चक्रवात :- जब किसी क्षेत्र में निम्न वायु दाब स्थापित हो जाता है और उसके चारों ओर उच्च वायुदाब होता है तो पवनें निम्न दाब की ओर आकर्षित होती हैं एवं पृथ्वी की घूर्णन गति के कारण पवनें उत्तरी गोलार्ध में घडी की सुईयों के विपरित तथा द गोलार्ध में घडी की सुइयों के अनुरूप घूम कर चलती हैं।
    प्रतिचक्रवात :- इस प्रणाली के केन्द्र में उच्च वायुदाब होता है। अत: केन्द्र से पवनें चारों ओर निम्न वायु दाब की ओर चलती हैं। इसमें पवनें उत्तरी गोलार्ध में घडी की सुइयों के अनुरूप एंव द गोलार्ध में प्रतिकूल दिशा में चलती हैं।

  7. वाताग्र किसे कहते हैं ? ये कितने प्रकार के होते हैं?
    उत्तर-
     जब दो भिन्न प्रकार की वायु राशियाँ मिलती हैं तो उनके मध्य सीमा क्षेत्र को वाताग्र कहते हैं।
    ये चार प्रकार के होते है -
    1. शीत वाताग्र
    2. उष्ण वाताग्र
    3. अचर वाताग्र
    4. अधिविष्ट वाताग्र
  8. चक्रवात किसे कहते हैउष्ण कटिबन्धीय चक्रवात की विशेषताएं बताइए?
    उत्तर- पवनों का ऐसा चक्र जिसमें अन्दर की और वायुदाब कम और बाहर की ओर अधिक होता है। चक्रवात कहलाता है। यह वृत्ताकार या अण्डाकार होता है। इसमें वायु चारो और उच्च वायुदाब के क्षेत्र से केन्द्र के निम्नवायुदाब क्षेत्र की ओर चलती है। पृथ्वी के घूर्णन के कारण ये उत्तरी गोलार्द्ध में घडि़यों की सूइयों की विपरीत दिशा मे तथा दक्षिणी गोलार्द्ध में घडि़यों के सुइयों के अनुसार चलती है। उष्ण कटिबन्धीय चक्रवात की निम्नलिखित विशेषताएं हैं।
    • इनकी उत्पत्ति सागरतल पर होती है।
    • इनकी उत्पत्ति भूमध्य रेखा के आसपास निम्न अक्षांशों में होती है।
    •  उष्णकटिबन्धीय चक्रवात की दिशा पूर्व से पश्चिम (उत्तर-पश्चिम) हैं।
    •  ये चक्रवात भारी मूसलाधार वर्षा प्रदान करते हैं।


CBSE कक्षा 11 भूगोल (भाग-क)
पाठ 11 वायुमण्डल में जल
महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर


दीर्घ-उत्तरात्मक प्रश्न (5 अंक वाले)

  1. वर्षा कैसे होती हैयह कितने प्रकार की होती हैचित्र बनाकर स्पष्ट कीजिए?
    उत्तर- जब किसी कारणवश जलवाष्प से लदी हुई वायु ऊपर को उठती है तो वह ठण्डी हो जाती है और जलवाष्प का संघनन होने लगता है। इस प्रकार जलकण पैदा होते है और वे वायुमण्डल में उपस्थित धूल-कणों पर एकत्रित होकर वायु में ही तैरने लगते है। अतः मेघो का निर्माण हो जाता है मेघ किसी अवरोध में टकराकर अपनी नमी को जल के रूप में पृथ्वी के धरातल पर गिरा देते है। इसे जल वर्षा कहते है यह तीन प्रकार की होती है।
    1. संवहनीय वर्षा (Convection Rainfall):- जब भूतल बहुत गर्म हो जाता है तो उसके साथ लगने वाली वायु भी गर्म हो जाती है। वायु गर्म होकर फैलती है और हल्की वायु ऊपर को उठने लगती है और संवहनीय धाराओं का निर्माण होता है। ऊपर जाकर यह वायु ठण्डी हो जाती है और इसमे उपस्थित जलवाष्प का संघनन होने लगता है। संघनन से कपासी मेघ बनते है। जिनसे घनघोर वर्षा होती है। इसे संवहनीय वर्षा कहते हैं।
    2. पर्वतकृत वर्षा (Orographic Rainfall):- जब जलवाष्प से लदी हुई गर्म वायु को किसी पर्वत या पठार की ढलान के साथ ऊपर चढ़ना पड़ता है तो यह वायु ठण्डी हो जाती है। ठण्डी होने से यह संतृप्त हो जाती है और ऊपर चढ़ने से जलवाष्प का संघनन होने लगता है इससे वर्षा होती है, इसे पर्वतकृत वर्षा कहते हैं।
    3. चक्रवाती वर्षा (Cyclonic Rainfall):- चक्रवातो द्वारा होने वाली वर्षा को चक्रवाती अथवा वाताग्री वर्षा कहते हैं।
  2. बादल कैसे बनते हैं तथा बादलों का वर्गीकरण कीजिए ?
    उत्तर-
     बादलों का निर्माण वायु में उपस्थित महीन धुलकणों के केंद्रकों (Nuclei) के चारों ओर जलवाष्प के संघनित होने से होता है। चूँकि बादल का निर्माण पृथ्वी की सतह से कुछ ऊँचाई पर होता है इसलिए उनके विस्तार, घनत्व तथा या अपारदर्शिता के आधार पर बादलों को चार रूपों में वर्गीकृत किया जाता है:-
    1. पक्षाम मेघ (Cirrus Clouds) :- इनका निर्माण 8000-12000 मी. की. ऊँचाई पर होता है |य पतले तथा बिखरे हुए बादल होते है जो, पंख के समान प्रतीत होते हैं। ये हमेशा सफेद रंग के होते हैं।
    2. कपासी मेघ (cumulus Clouds) :- ये रूई के समान दिखते हैं | प्राय: 4000-7000 मीटर की ऊँचाई पर बनते हैं। ये छितरे तथा इधर-उधर बिखरे देखे जा सकते हैं। ये चपटे आधार वाले होते हैं।
    3. स्तरी मेघ (Stratus Clouds) :- ये परतदार बादल होते हैं जो कि आकाश में बहुत बड़े भाग पर फैले रहते हैं। ये बादल सामान्यतः या तो ऊष्मा के हास या अलग-अलग तापमानों पर हवा के आपस में मिश्रत होने से बनते हैं।
    4. वर्षा मेघ (Nimbus Clouds):- ये काले या गहरे स्लेटी रंग के होते हैं। ये मध्य स्तरों या पृथ्वी की सतह के काफी नजदीक बनते हैं। ये सूर्य की किरणों के लिए अपारदर्शी होते हैं। वर्षा मेघ मोटे जलवाष्प की आकृति विहीन संहति होते हैं। ये चार मूल रूपों के बादल मिलकर निम्नलिखित रूपों के बादलों का निर्माण करते है:-
      1. ऊँचे बादल (5 से 14 किलोमीटर) पक्षाभस्तरी, पक्षाभ कपासी।
      2. मध्य ऊँचाई के बादल (2 से 7 किलोमीटर) स्तरी मध्य तथा कपासी मध्य |
      3. कम ऊँचाई के बादल (2 किलोमीटर से कम) स्तरी कपासी, स्तरी वर्षा मेघ तथा कपासी वर्षा मेघ |

CBSE कक्षा 11 भूगोल
(भाग-क) 
पाठ 10 वायुदाब एवं पवनें
महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर


दीर्घ उत्तरात्मक प्रश्न (5 अंक वाले)

  1. वायुदाब के क्षैतिज वितरण के विश्व प्रतिरूप का वर्णन कीजिए?
    उत्तर- वायुमण्डलीय दाब के अक्षांशीय वितरण केा वायुदाब का क्षैतिज वितरण कहते है। विभिन्न अक्षांशों पर तापमान में अन्तर तथा पृथ्वी के घूर्णन के प्रभाव से पृथ्वी पर वायुदाब के सात कटिबन्ध बनते है। जो इस प्रकार है।
    1.  विषुवतीय निम्न वायुदाब कटिबन्ध:-
      • इस कटिबन्ध का विस्तार 5 अंश उत्तर और 5 अंश दक्षिणी अक्षांशों के मध्य है।
      • इस कटिबन्ध में सूर्य की किरणें साल भर सीधी गिरती है। अतः यहाँ की वायु सदैव गर्म रहती है।
      • इस कटिबन्ध में पवन नही चलती। केवल ऊर्ध्वाधर (लम्बवत्) संवहनीय वायुधाराएं ही ऊपर की ओर उठती है। अतः यह कटिबन्ध पवन-विहीन शान्त प्रदेश बना रहता है। इसीलिए इसे शान्त कटिबन्ध या डोलड्रम कहते है।
    2. उपोष्ण उच्च वायुदाब कटिबन्ध
      • यह कटिबन्ध उत्तरी और दक्षिणी दोनों ही गोलार्द्धो में 30 अंश से 35 अंश के मध्य फैला है।
      • इस कटिबन्ध में वायु लगभग शांत एवं शुष्क होती है। आकाश स्वच्छ और मेघ रहित होता है। संसार के सभी गरम मरूस्थल इसी कटिबन्ध में महाद्वीपो के पश्चिमी भागो में स्थित है।
    3. उपध्रुवीय निम्न वायुदाब कटिबन्ध
      • इस कटिबन्ध का विस्तार उत्तरी और दक्षिणी गोलार्द्ध में 60 अंश से 65 अंश अक्षांशों के मध्य है।
      • इस कटिबन्ध में विशेष रूप से शीतऋतु में अवदाब (चक्रवात) आते है।
    4. ध्रुवीय उच्च वायुदाब कटिबन्ध
      • इनका विस्तार उत्तरी और दक्षिणी ध्रुवों 90 अंश उत्तर तथा दक्षिण के निकटवर्ती क्षेत्रे में है
      • तापमान यहाँ स्थायी रूप से बहुत कम रहता है। अतः धरातल सदैव हिमाच्छादित रहता है।
  2. भूमण्डलीय या प्रचलित पवनों का वर्णन कीजिए?
    उत्तर- वर्षभर एक ही दिशा में बहने वाली पवनों को भूमण्डलीय पवन कहते है। ये पवने एक वायुदाब कटिबन्ध से दूसरे वायुदाब कटिबन्ध की ओर नियमित रूप से चला करती है। ये तीन प्रकार है।
    1. सन्मार्गी या व्यापारिक पवनें-
      • उपोष्ण उच्च वायुदाब कटिबन्धों से भूमध्य रेखीय निम्नवायुदाब कटिबन्ध की ओर चलने वाली पवनों को सन्मार्गी पवने कहते है।
      • करिआलिस बल के अनुसार ये अपने पथ से विक्षेपित होकर उत्तरी गोलार्द्ध में उत्तर-पूर्व दिशा से तथा दक्षिणी गोलार्द्ध में दक्षिण-पूर्व दिशा में बहते है।
      • व्यापारिक पवन को अंग्रेजी में ट्रेड विड्ंस कहते है। जर्मन भाषा में ट्रेड का का अर्थ निश्चित मार्ग होता है।
      • विषुवत वृत्त तक पहुँचते -पहुँचते ये जलवाष्प से संतृप्त हो जाते है तथा विषुवत वृत के निकट पूरे साल भारी वर्षा करते है।
    2. पछुआ पवनें-
      • ये पवने उपोष्ण उच्चवायुदाब कटिबन्धों से उपध्रुवीय निम्न वायुदाब कटिबन्ध की ओर बहती है।
      • दोनो गोलार्द्ध में इनका विस्तार 30 अंश से 60 अंश अक्षांशों के मध्य होता है।
      • उत्तरी गोलार्द्ध में इनकी दिशा दक्षिणी पश्चिमी से तथा दक्षिणी गोलार्द्ध में उत्तर पश्चिम से होती है।
      • व्यापारिक पवनों की तरह ये पवन शक्ति और दिशा की दृष्टि से नियमित नही है। इस कटिबन्ध में प्रायः चक्रवात तथा प्रतिचक्रवात आते रहते हैं।
    3. ध्रुवीय पवनें-
      • ये पवन ध्रुवीय उच्च वायुदाब कटिबन्धों से उपध्रुवीय निम्नवायुदाब कटिबन्धों की ओर बहते है।
      • इनका विस्तार दोनो गोलार्द्धो में 60 अंश अक्षांशों और ध्रुवो के मध्य है।
      • बर्फ की चादरों पर से आने के कारण ये पवन अत्यन्त ठंडी और शुष्क होती है।
  3. शीतोष्ण कटिबन्धीय चक्रवातों के विकास की अवस्थाओं का संक्षिप्त विवरण दीजिए?
    उत्तर- शीतोष्ण कटिबन्धीय चक्रवातों की उत्पत्ति तथा प्रभाव क्षेत्र शीतोष्ण कटिबन्ध में ही है। ये चक्रवात उत्तरी गोलार्द्ध में शीतऋतु में आते है परन्तु दक्षिणी गोलार्द्ध में जलभाग के अधिक होने के कारण लगभग सारा साल चलते रहते है। इनकी उत्त्पत्ति जे॰ बजर्कनीस के ध्रुवीय वाताग्र सिद्धान्त के आधार पर समझी जा सकती है। इनकी उत्पत्ति की निम्नलिखित अवस्थाएं है।
    अवस्था (क)- इस सिद्धान्त के अनुसार इनकी उत्पत्ति दो विभिन्न ताप तथा आर्द्रता वाली वायुराशियों के विपरीत दिशा से आकर मिलने से होती है। कोरिऑलिस बल के अधीन ये पवनें एक दूसरे के लगभग सामान्तर चलती है। इन दोनो वायुराशियों के बीच वाताग्र स्थित है।

    पहली अवस्था में गर्म और ठंडी वायुराशियों एक दूसरे के समांतर चल रही हैं। तथा वाताग्र स्थायी है।
    अवस्था (ख)- इस अवस्था में चक्रवात बाल्यावस्था को दर्शाया गया है। इस अवस्था में उष्ण वायुराशि वाताग्र को धकेलकर शीतल वायुराशि में प्रविष्ट होने का प्रयास करती है और शीतल वायुराशि भारी होने के कारण नीचे आने लगती है। इससे वाताग्र तंरग के रूप में पविर्तित होने लगता है। अब वाताग्र केा स्पष्ट रूप से उष्ण एवं शीत वाताग्रो में बांटा जा सकता है। इन वाताग्रो पर उष्ण तथा आर्द्र वायु ऊपर उठने को बाध्य हो जाती है, इसलिए आकाश प्रायः मेघाच्छन हो जाता है और वृष्टि होती है।

    दूसरी अवस्था में गर्म और ठंडी वायुराशियाँ एक दूसरे के क्षेत्र में बलपूर्वक घुसने का प्रयास कर रही है। अतः वाताग्र लहरनुमा हो गया है।
    अवस्था (ग)- इस अवस्था में चक्रवात की प्रोढ़ावस्था आरम्भ होती है। इस अवस्था में शीतल वायु तेजी से नीचे उतरकर उष्ण वायु को परे धकेलती है जिससे उष्ण खण्ड का आकार छोटा हो जाता है।

    तीसरी अवस्था में गर्म वायुराशि के ऊपर उठने से एक निम्न वायुदाब केंद्र विकसित हो गया है। पवन इस निम्नदाब केंद्र की ओर चक्राकार गति से चल रहे हैं। अब चक्रवात बन गया है। उष्मा और शीत वाताग्र का पूर्ण विकास भी हो गया है।
    अवस्था (घ)- इस अवस्था में चक्रवात की प्रोढ़ावस्था पूर्ण रूप से विकसित हो गई है। इसमें शीत वाताग्र की शीतल वायु उष्ण वायु को ऊपर की ओर धकेलती है जिससे उष्ण वायु केन्द्र में स्थापित हो जाती है परिणामस्वरूप वहां निम्न वायुदाब केन्द्र विकसित होने लगता है और शीतल वायु तेजी से केन्द्र की ओर चलने लगती है।

    चौथी अवस्था में शीत वाताग्र के तेजी से आगे बढ़ने के कारण दोनों वाताग्र निकट आ रहे हैं और उष्ण खंड सिकुड़ता जा रहा है।
    अवस्था (ड़)- इसमें चक्रवात के क्षय होने की पहली अवस्था है। शीतल वायु, उष्ण वायु को तब तक धकेलती रहती है जब तक उसका भू-पृष्ठ से सम्पर्क टूट जाता है।

    पाँचवी अवस्था में उष्ण वाताग्र शीत वाताग्र के ऊपर चढ़ गया है। इसे अधिविष्ट वाताग्र कहते हैं। यह चक्रवात की समाप्ति की अवस्था है।
    अवस्था (च) इसमें चक्रवात का क्षय हो चुका है।

    छठी और अंतिम अवस्था में उष्ण खंड विलीन हो गया है। गर्म और ठंडी वायुराशियाँ ध्रुवीय वाताग्र के दोनों और एक दूसरे की विपरीत दिशा में चल रही हैं। यह चक्रवात का अंत है।
  4. पवनों की दिशा व वेग को प्रभावित करने वाले प्रमुख कारक क्या हैं? संक्षेप में बताओ ।
    उत्तर-
     तापमान व वायुमंडलीय दाब की भिन्नता के कारण वायु गतिमान होती है इस क्षेतिज गतिमान वायु को पवन कहते हैं। ये पवनें तीन संयुक्त प्रभावों का परिणाम हैं -
    1. दाब प्रवणता (Pressure Gradient) :- वायुमंडलीय दाब जब कम दूरी पर परिवर्तित होता है तो पवनें तीव्र गति से चलती हैं।
    2. घर्षण बल (Frictional Forces) :- धरातल से एक से तीन है। किलोमीटर की ऊँचाई तक घर्षण बल पवनों के वेग को प्रभावित करता है |
    3. कोरिऑलिस बल (coriolis Force) :- पृथ्वी अपने अक्ष पर पश्चिम से पूर्व घूमती है इस कारण उत्तरी गोलार्ध में पवनें अपनी मूल दिशा से दायीं ओर एंव द. गोलार्ध में बायीं ओर विक्षेपित हो जाती है यह विक्षेपण विषुवत वृत्त से ध्रुवों की ओर बढ़ता जाता है। सन् 1884 ई. में फ्रांसीसी वैज्ञानिक डी. कोरियॉलिस ने इस का विवरण प्रस्तुत किया था।
  5. घोड़े का अक्षांश किसे कहते हैं।
    उत्तर-
     मध्य अक्षांशों को 60o-65o उत्तर अक्षांशों के बीच |
  6. भू-विक्षेपी पवन (Geostrophicwind) किसे कहते हैं।
    उत्तर-
     जब समदाब रेखाएँ सीधी हों ओर घर्षण का प्रभाव न हो तो दाव प्रवणता कोरिऑलिस प्रभाव से संतुलित हो जाता है फलस्वरूप पवनें सम दाब रेखाओं के समांतर बहती है। इन्हें भू-विक्षेपी पवनें कहते हैं।
  7. मिलान करो।
    स्थानीय पवनेंस्थान
    1. लू(क) U.S.A. कनाडा
    2. फोहन(ख) भारत
    3. चिनूक(ग) आल्प्स
    4. मिस्ट्रल(घ) फ्रांस
    उत्तर- 
    1. - ख
    2. - ग
    3. - क
    4. - घ
  8. ऊँचाई के साथ जल वाष्प की मात्रा क्यों तेजी से कम होने लगती है।
    उत्तर-
     जल वाष्प वायुमंडल में विभिन्न मात्रा में पायी जाती है। यह स्थान और समय के अनुसार बदलती रहती है। ऊँचाई के साथ तापमान कम हो जाता है जिससे जल वाष्प की मात्रा भी कम हो जाता है।
  9. एल-निनो क्या है? दक्षिणी दोलन से इसका क्या संबंध है? विश्व की जलवायु पर इसका क्या प्रभाव पड़ता है?
    उत्तर-
     मध्य प्रशांत महासागर की गर्म जलधाराएं दक्षिणी अमेरिका के तट की ओर प्रवाहित होती हैं, और पेरू की ठंडी धराओं का स्थान ले लेती हैं। पेरू के तट पर इन गर्म धाराओं की उपस्थिति एल-निनो कहलाता है।
    एल-निनो घटना का मध्य प्रशांत महासागर और आस्ट्रेलिया के वायुदाब परिवर्तन से गहरा संबंध है। प्रशांत महासागर पर वायुदाब में यह परिवर्तन दक्षिणी दोलन कहलाता है।
    दक्षिणी दोलन तथा एल-निनो की संयुक्त घटना को ई.एन.एस. ओ. (ENSO) के नाम से जाना जाता है। जिन वर्षों में ENSO शक्तिशाली होता है, विश्व में वृहत् मौसम संबंधी भिन्नताएँ देखी जाती हैं, जैसे-दक्षिणी अमेरिका के पश्चिमी शुष्क तट पर भारी वर्षा होती है, आस्ट्रेलिया व कभी-कभी भारत अकालग्रस्त होते हैं तथा चीन में बाढ़ आती हैं |
  10. वायुराशियाँ कितने प्रकार की होती हैं? इनके उद्गम क्षेत्रों का वर्णन कीजिए।
    उत्तर-
     वायुराशियाँ पाँच प्रकार की होती है :- उद्गम क्षेत्र
    1. उष्णकटिबंधीय महासागरीय वायुराशि (mT) - महासागर
    2. उष्णकटिबंधीय महाद्वीपीय वायुराशि (cT) - महाद्वीप
    3. ध्रुवीय महासागरीय वायुराशि (mP) - ध्रुवीय महासागर
    4. ध्रुवीय महाद्वीपीय वायुराशि (cP) - ध्रुवीय महाद्वीप
    5. महाद्वीपीय आर्कटिक वायुराशि (cA) - आर्कटिक महाद्वीप
      उष्णकटिबंधीय वायुराशियाँ गर्म होती हैं तथा ध्रुवीय वायुराशियाँ ठंडी होती हैं। वायुराशियों के उद्गम क्षेत्र निम्नलिखित हैं:-
       उद्गम क्षेत्र
      i) उष्ण व उपोषण कटिबंधीय महासागरउष्ण महासागर
      ii) उपोषण कटिबंधीय उष्ण मरुस्थलउष्ण मरूस्थल
      iii) उच्च अक्षांशीय अपेक्षाकृत ठंडे महासागरठंडे महासागर
      iv) उच्च अक्षांशीय अति शीत बर्फ आच्छादित महाद्वीपीय क्षेत्रबर्फीला महाद्वीप
      v) स्थाई रुप से बर्फ आच्छादित महाद्वीप, अंटार्कटिक तथा आर्कटिक क्षेत्र|अंटार्कटिका तथा आर्कटिक