ई-बिजनेस एवं सेवाओं का ब्राह्मकरण-पुनरावृति नोट्स

                                                                                   CBSE कक्षा 11 व्यवसाय अध्ययन

पाठ-5 ई-बिजनेस एवं सेवाओं का ब्राह्मकरण
पुनरावृति नोट्स


पिछले दशक और उसके बाद व्यवसाय करने के तरीकों में अनेक मूलभूत परिवर्तन हुए हैं। व्यवसाय करने के तरीके को व्यवसाय पद्धति कहा जाता है और उभरते का अर्थ है कि यह परिवर्तन अब बने रहेंगे। व्यवसाय की यह नई पद्धतियाँ नया व्यवसाय नहीं वरन् यह तो व्यवसाय करने के नये तरीके हैं। ई- व्यवसाय - ई व्यवसाय को ऐसे उद्योग, व्यापार और वाणिज्य क संचालन क रूप मं परिभाषित किया जा सकता है, जिसमें हम कप्यूटर नेटवर्क का प्रयोग करते हैं।
ई-व्यवसाय बनाम ई-कॉमर्स -

  • ई-व्यवसाय, ई-कॉमर्स से अधिक विस्तृत/व्यापक शब्द हैं।
  • ई. व्यवसाय में ई-कॉमर्स भी सम्मिलित है।
  • ई-कॉमर्स एक फर्म के अपने ग्राहकों और पूर्तिकताओं के साथ इंटरनेट पर पारस्परिक संपर्क को सम्मिलित करता है।
  • ई-व्यवसाय न केवल ई-कॉमर्स वरन् व्यवसाय द्वारा इलेक्ट्रानिक माध्यम द्वारा संचालित किए गए अन्य कार्य जैसे उत्पादन, स्टॉक, प्रबंध, उत्पाद विकास, लेखांकन एवं वित्त और मानव संसाधन को भी सम्मिलित करता है।

अर्थ - आज जबकि इंटरनेट का जमाना है, दुनिया का आधुनिक व्यापार -धीरे इंटरनेट के साथ जुड़ने लगा है। इससे व्यापार की एक नई धारणा प्रचलन में आई हैं जिसे ई-कॉमर्स/ई-बिजनेस कहा जाता है। आज हम इंटरनेट पर अपनी दुकान खोलकर दुनिया भर के इंटरनेट उपभोक्ताओं तक पहुँचा सकते हैं। इंटरनेट उपभोक्ता घर बैठे ही माल का आदेश दे सकते हैं, माल की सुपुर्दगी ले सकते हैं और भुगतान भी कर सकते हैं

ई-बिजनेस का क्षेत्र : ई-बिजनेस के क्षेत्र में निम्नलिखित को सम्मिलित किया जाता है:-

  1. B2B कॉमर्स - Business to Business कॉमर्स इसक अंतर्गत इलेक्ट्रानिक व्यवहारों को करने वाले दोनों पक्ष में व्यावसायिक इकाईयां होती हैं। उदाहरण के लिए दोनों फर्मों में से एक उत्पादन करने वाली और दूसरी कच्चा माल सप्लाई करने वाली हो सकती है। उदाहरण - मारुती उद्योग लि. कार बनाने के लिए पुर्जे जैसे-टायर, सीट, दरवाजे आदि दूसरी कम्पनी से लेने।
  2. B2C कॉमर्स - Business to Customer कॉमर्स :- इसके अंतर्गत एक पक्ष फर्म होती है और दूसरा ग्राहक। ग्राहक घर बैठे ही इंटरनेट पर अपनी मनपंसद वस्तुओं की जानकारी प्राप्त कर सकता है, आदेश दे सकता है, कुछ मदों को प्राप्त कर सकता है और भुगतान भी कर सकता है और दूसरी और फर्म किसी भी समय यह जान सकती है कि ग्राहकों का सन्तुष्टि स्तर क्या है? आजकल कॉल सेन्टर के माध्यम से यह जानकारियां उपलब्ध हो जाती हैं।
  3. Intra B कॉमर्स - withing Business कॉमर्स - इसके अंतर्गत व्यावसायिक क्रिया में सम्मिलित दोनों पक्ष एक ही व्यवसाय के दो व्यक्ति अथवा विभाग होते हैं उदाहरण के लिए एक फर्म का विपणन विभाग इंटरनेट के माध्यम से लगातार उत्पादन विभाग के संपर्क में रहता है ताकि ग्राहकों की इच्छानुसार उत्पादन किया जा सके।
  4. C2C कॉमर्स - customer to customer - इसके अंतर्गत व्यावसायिक क्रिया में सम्मिलित दोनों पक्ष एक ही व्यवसाय के दो व्यक्ति अथवा विभाग होते हैं। उदाहरण के लिए एक फर्म का विपणन विभाग इंटरनेट के माध्यम से लगातार उत्पादन विभाग के संपर्क में रहता है ताकि ग्राहकों की इच्छानुसार उत्पादन किया जा सके।
  5. C2B कॉमर्स - यह उपभोक्ताओं को शॉपिंग की स्वतंत्रता देता हैं। उपभोक्ता कॉल सेंटर पर टोल फ्री नंबर के द्वारा पूछताछ कर सकते हैं।
  6. C2E कॉमर्स - इसके अन्तर्गत कम्पनी कर्मचारियों की भर्ती इंटरव्यू (साक्षात्कार), चयन और प्रशिक्षण आदि प्रक्रिया आसानी से पूरी कर सकती है।

ई-कॉमर्स क लाभ
इसके मुख्य लाभ निम्नलिखित है:-

  1. विश्व सतर पर पहुँच - जो व्यवसायी ई-बिजनेस से जुड़ जाते हैं उनके बाजार का विस्तार होता है। नये-नये ग्राहक संपर्क में आते हैं जिससे बिक्री में वृद्धि होती हैं।
  2. मध्यस्थ व्यापारियों का लुप्त होना - इससे थोक और फुटकर व्यापारी लुप्त होते हैं। अधिकतर ग्राहक उत्पादकों से सीधे सम्पर्क स्थापित करने लगे हैं जिससे उपभोक्ताओं को कम मूल्य पर माल प्राप्त होता है।
  3. सरल वितरण प्रक्रिया - ई-कॉमर्स के अंतर्गत अनेक सेवाएं एवं सूचनाएं कम्प्यूटर पर ही प्राप्त हो जाती है। जिससे वितरण प्रक्रिया सरल हो गई है और लागत में भी कमी आई है।
  4. स्थापना लागत का कम होना - इसके अंतर्गत बड़े शोरूम या बड़ी जमीन की जरूरत नहीं होती। सिर्फ कम्प्यूटर और इंटरनेट से काम चल सकता है।
  5. नये उत्पादकों को लाने में आसानी - इसके माध्यम से कोई भी नया उत्पाद- बाजार में लाया जा सकता है। इंटरनेट पर इसी पूरी जानकारी-उपलब्ध करा कर उपभोक्ताओं को घर बैठे उत्पादों के बारें में पूरी जानकारी उपलब्ध करा दी जाती हैं।
  6. समय की बचत - घर बैठे उपभोक्ताओं को समान मिल जाता है जिससे उन्हें बाजार में घूमना नहीं पड़ता |

ई-कॉमर्स के लिए आवश्यक संसाधन

  1. कम्प्यूटर सिस्टम (computer system ) : कम्प्यूटर सिस्टम का होना ई-कॉमर्स की पहली आवश्यकता है। कम्प्यूटर के द्वारा ही इंटरनेट से जुढ़ा जा सकता है।
  2. इंटरनेट कनेक्शन (Internet connection): इंठरनेट कनेक्शन लेना बहुत जरूरी है और आजकल यह घर बैठे ही बड़ी आसानी से लिया जा सकता है।
  3. वेब पेज बनाना - ई-कॉमर्स में वेब पेज का सर्वाधिक महत्व है। इसे होम पेज के नाम से भी जाना जाता है। जिस उत्पाद को इंटरनेट पर प्रदर्शित करना होता है। उसे वेब पेज पर दर्शाते हैं।
  4. ऑनलाइन व्यवहार (Online Transaction) : ऑन लाइन व्यवहार का अर्थ है इंटरनेट के माध्यम से माल के बारें में जानकारी प्राप्त करना, आदेश देना, सूचनाओं व सेवाओं का क्रय-विक्रय संभव हैं।

कुछ ई-व्यवसाय प्रयोग

  • ई-अधिप्राप्ति
  • ई-बोली/ई-निलामी
  • ई-संचार/ई-संवर्धन
  • ई-सुपुर्दगी
  • ई-व्यापार

ई-व्यवयास की सीमाएँ

  1. अल्प मानवीय स्पर्श-इसमें अंतरव्यक्ति पारस्परिक संपर्क की गर्माहट का अभाव होता है।
  2. आदेश प्राप्ति और आदेश पूरा करने की गति के मध्य असमरूपता-सूचना माउस क्लिक करने मात्र से की प्रवाहित हो सकती है, परंतु वस्तुओं की भौतिक सुपुर्दगी में समय ले ही लेती हैं।
  3. ई-व्यवसाय के पक्षों में तकनीकी क्षमता और सामथ्र्य की आवश्यकता-ई. व्यवसाय में सभी पक्षों की कम्प्यूटर के संसार से उच्च कोटि के परिचय की आवश्यकता होती है
  4. पक्षों की आनामता और उन्हें ढूँढ़ पाने की अक्षमता के कारण जोखिम में वृद्धि-पक्षों की पहचान करना मुश्किल है अतः लेन-देन जोखिम पूर्ण हो सकते हैं।
  5. जन प्रतिरोध- नई तकनीक के साथ समायोजन की प्रक्रिया एवं कार्य करने के नए तरीके तनाव व असुरक्षा की भावना पैदा करते हैं।
  6. नैतिक पतन - कम्पनियाँ अपने कर्मचारियों की कम्प्यूटर फाईलों, ई-मेल खातों आदि पर अनैतिक तरह से नजर रखते हैं।
    सीमाओं के बावजूद भी ई-कॉमर्स एक साधन हैं।

पारंपरिक व्यवसाय व ई-व्यवसाय में अंतर

 आधारपारंपरिकई-व्यवसाय
1निर्माणमुश्किलसरल
2भौतिक उपस्थितिआवश्यक हैआवश्यक नहीं
3प्रचालन लागतउच्च लागतनिम्न लागत
4ग्राहकों से संपर्कपरोक्षप्रत्यक्ष
5आतंरिक संचार की प्रकृतिलंबीतत्काल
6संगठनात्मक ढांचे का आकारआदेश की श्रंखला के कारण लंबासीधे आदेश व संचार के कारण समतल
7व्यावसायिक चक्र की लम्बाईव्यवसाय प्रक्रिया चक्र लंबा होता है |व्यवसाय प्रक्रिया चक्र छोटा होता है |
8अंतर वैयक्तिक स्पर्श के अवसरबहुत अधिककम
9उत्पादों के भौतिक पूर्व प्रतिचयन के अवसरबहुत अधिककम
10

वैश्वीकरण में आसानी

कमबहुत अधिक क्योंकि साइबर क्षेत्र सीमा है |
11सरकारी संरक्षणकम हो रहा है बहुत अधिक
12मानव पूँजी की प्रकृतिअर्धकुशल यहाँ तक कि अकुशल मानवश्रम की आवश्यकता होती है |तकनीकी एवं पेशेवर रूप से योग्य कर्मियों की आवश्यकता होती है |
13लेन-देन जोखिमआमने सामने संपर्क एवं लेन-देन होने के कारण कम जोखिम |अधिक दुरी एवं पक्षों की अनामता के कारण उच्च जोखिम

ई-लेनदेनों की सुरक्षा एवं बचाव
ई-व्यवसाय जोखिम

  1. लेन-देन जोखिम
    1. विक्रेता इस बात के मना कर सकता है ग्राहक ने उसे कभी आदेश प्रेषित किया था व ग्राहक यह मना कर सकता है कि उसने कभी विक्रेता को आदेश प्रेषित किया था- लेन-देन चूक
    2. वस्तुओं की सुपुर्दगी गलत पते पर हो जाना या आदेश से अलग वस्तुओं की सुपुर्दगी होना - सुपुर्दगी की चूक
    3. विक्रेता पूर्ति की गई वस्तुओं के लिए भुगतान प्राप्त नहीं कर पाया हो जबकि ग्राहक का दावा हो कि उसने भुगतान कर दिया है-भुगतान संबंधी चूक
      इन जोखिमों से बचने हेतु :-
    • पंजीकरण के समय पहचान और पते की जाँच द्वारा और आदेश स्वीकृति एवं भुगतान वसूली के लिए एक प्राधिकार प्राप्त कर बचा जा सकता है।
    • सुप्रतिष्ठित खरीदारी स्थानों से ही खरीदारी करें।
  2. डाटा संग्रहण एवं प्रसारण जोखिम - सूचना अगर गलत हाथों में चली जाए तो बहुत जोखिम हो सकता है। 'वायरस' व हैकिंग' से भी बहुत नुकसान हो सकता है। इससे बचाव के लिए एंटीवायरस व क्रिप्टोग्राफी का प्रयोग करना चाहिए |
  3. बौद्धिक संपदा एवं निजिता पर खतरे के जोखिम - ऑनलाइन लेन देनों के दौरान डाटा अन्य लोगों को भी पहुँचाए जा सकते हैं जोकि इसका गलत इस्तेमाल कर नुकसान पहुँचा सकते हैं।

भुगतान विधि (Payment Mechanism) इंटरनेट से खरीदी गई वस्तुओं का भुगतान निम्न तरीकी से हो सकता है।

  1. सुपुर्दगी के समय भुगतान (cash on Delivery) - वस्तुओं की सुपुर्दगी के समय Cash अथवा Check से भुगतान किया जा सकता है।
  2. Net Banking Transfer - इसमें ग्राहक Electronic Fund Transfer पद्धति द्वारा इंटरनेट के जरिए फर्म के खाते में पैसे जा करवा सकता है।
    Example इंटरनेट सॉफ्टवेयर बनाने वाली एक मशहूर कम्पनी नेटस्केप केलिफोर्निया के सनीवेल स्थित अपने कार्यालय के मुख्य कम्प्यूटर पर लगभग हर मिनट दुनिया के अलग-अलग हिस्सों से साफ्टवेयर के ऑर्डर प्राप्त करती रहती है। क्रेता ऑर्डर के साथ ही अपना क्रेडिट कार्ड का नंबर भी लिखते हैं। कपनी अपने कार्यलय से ही इलैक्ट्रानिक ढंग से सॉफ्टवेयर की सुपुर्दगी दे देती है और तुरंत ही भुगतान भी प्राप्त कर लेती हैं।
  3. डेबिट और क्रेडिट कार्ड द्वारा - ग्राहक बैंक द्वारा जारी किये गऐ डेबिट एवं क्रेडिट कार्ड से भुगतान भी कर सकते हैं सिर्फ उन कार्डों का नम्बर और बैंक का नाम ऑन लाइन देना होता है।
    व्यावसायिक सौदों की सुरक्षा - निम्न तरीकों से हम ई-कॉमर्स में होने वाले व्यवसायिक सौदों की सुरक्षा कर सकते हैं।
    1. वस्तु की सुपुर्दगी से पहले विवरण - ग्राहकों द्वारा वस्तु की सुपुर्दगी पहले क्रेडिट कार्ड नम्बर, कार्ड जारीकर्ता की जानकारी वैधता, की तिथि आदि का विवरण ऑन लाइन देना आवश्यक है।
    2. एंटी वायरस प्रोग्राम - डाटा फाइल, फोल्डर तथा कम्प्यूटर को वायरस से बचाने के लिए एंटी वायरस प्रोग्राम डालना तथा समय पर अपडेट करना |
    3. साइबर क्राइम सेल - सरकार द्वारा हैंकिग के केस देखने तथा हैकरों के खिलाफ कार्यवाही के लिए विशेष क्राइम सेल स्थापित करना।

सेवाओं का ब्राह्ययकरण
व्यवसाय को कुशलतापूर्वक चलाने के लिए अनेक क्रियाएं करनी होती हैं, जैसे उत्पादन, क्रय-विक्रय, वित्तीय प्रबन्ध, विज्ञापन, पत्र-व्यवहार आदि | जब व्यवसाय का पैमाना छोटा था तो व्यवसायी ये सभी क्रियाएं करने के लिए संगठन के अंदर ही इंतजाम कर लेते थे लेकिन व्यवसाय का पैमाना बढ़ने के साथ अब यह काम काफी कठिन हो गया है। अतः आज अनेक क्रियाओं को करने में आने वाजली कठिनाई को दूर करने तथा विशिष्टीकरण के लाभ प्राप्त करने के लिए इन सेवाओं को संगठन के बाहर से प्राप्त किया जाने लगा है। इसे सेवाओं का बाह्ययकरण कहते हैं।

सेवाअों को ब्राह्यकरण की आवश्यकता
सेवाओं के बाह्यकरण की आवश्यकता निम्नलिखित कारणों से होती है :

  1. अच्छी क्वालिटी की सेवाएँ प्राप्त करना - यदि कोई कम्पनी सभी क्रियाओं को स्वयं ही पूरा करने की कोशिश करती हैं, तो सेवाओं की क्वालिटी पर विपरीत प्रभाव पड़ने की पूरी संभावना रहती है। इस कठिनाई से बचने के लिए सेवाओं का बाह्यकरण आवश्यक होता है।
  2. सेवाओं में स्थाई विनियोग से बचना - यदि कोई कपंनी ये सेवाएं संगठन के अंदर ही उपलब्ध करती है तो उसे उनके लिए अलग-अलग विभागों की स्थापना करनी होगी जिस पर भारी स्थाई विनियोग करना पड़ता है। अत: ऐसा न्याय संगत लगता है कि इन सेवाओं को कम्पनी के बाहर से ही प्राप्त कर लिया जाए।
  3. व्यवसाय को सुविधापूर्वक ढंग से चलाना - सेवाओं के बाहयकरण की आवश्यकता व्यवसाय को सुविधापूर्वक तरीके से चलाने के लिए होती है। व्यवसायी का ध्यान अनेक छोटी-छोटी क्रियाओं से हटकर मुख्य क्रिया की ओर केन्द्रित हो जाता है।

बाह्यकरण सेवाओं के विषय क्षेत्र :-
आधुनिक सेवाओं के विषय क्षेत्र

आधुनिकव्यवसाय में अनेक प्रकार की बाह्यय सेवाओं का प्रयोग किया जाता है। इनमें से मुख्य निम्नलिखित हैं

  1. वित्तीय सेवाएं - वित्तीय सेवाओं का अभिप्राय ऐसी बाह्य सेवाओं से है जो किसी न किसी रूप में कपनी की वित्त प्रबन्ध में सहायता करती है।
  2. विज्ञापन सेवाएं - अधिक बिक्री के लिए विाापन अति-आवश्यक है यदि इस काम के लिए किसी विज्ञापन एजेंसी की सहायता ले ली जाए तो कम लागत पर बढ़िया काम हो जाता है।
  3. पत्रवाहक सेवाएं - इन सेवाओं के द्वारा कम्पनी उपभोक्ताओं को वस्तु पत्र, पार्सल आदि भेजती है।
  4. ग्राहक सहायता सेवाएं - ये कम्पनियाँ ग्राहकों को घर पर माल की सुपुर्दगीं, विक्रय के बाद सेवा प्रदान करती है। प्रायः टी.बी. फ्रिज, वाशिंग मशीन आदि के निर्माता इन सेवाओं का प्रयोग करते हैं।

ब्राह्यस्त्रोतिकरण

  1. बाह्यस्त्रोतिकरण में संविदा बाहर प्रदान करना सम्मिलित है।
  2. सामान्यतः गैर मुख्य व्यावसायिक गतििविधयों का ही बाह्यस्त्रोतिकरण हो रहा है।
  3. प्रक्रियाओं का बाह्यस्त्रोतिकरण आबद्ध इकाई अथवा तृतीय पक्ष का हो सकता है।

बाह्यस्त्रोतिकरण की आवश्यकता

  1. ध्यान केंद्रित करना - इसमें कपंनी अपने मुख्य कार्य पर ध्यान लगा सकती है व बाकी कार्य का बाह्यस्त्रोतिकरण कर सकती है।
  2. उत्कृष्टता की खोज - इसमें दोहरा फायदा है - एक जो कार्य फर्म स्वयं करती है उसपर ध्यान लगाकर उत्कृष्टता हासिल करके व जिस कार्य का बाह्यस्त्रोतिकरण, निष्पादन में सर्वश्रेष्ठ फर्म को किया, वह भी कार्य उत्कृष्ट कोर्ट का होगा |
  3. लागत की कमी - कार्य को बाह्यस्त्रोतिकरण से हर कार्य को उस फर्म को दिया गया जिसे विशिष्टिकरण हासिल है व वह फर्म उस कार्य को बड़े पैमाने पर काफी फर्मों के लिए करती है जिससे लागत में कमी व काम उत्कृष्ट किस्म का होता है।
  4. गठजोड़ द्वारा विकास - जब दूसरों से सेवाएं ग्रहण करेंगे तो उस क्षेत्र में पूंजी निवेश की आवश्यकता नहीं पड़ेगी व कम लागत वं उत्कृष्ट गुणवत्ता सेवाओं का लाभ प्राप्त होगा। अत: व्यवसाय का विकास होगा।
  5. आर्थिक विकास को प्रोत्साहन - वह देश जहाँ बाह्यस्त्रोतिकरण किया गया है में उद्यमशीलता, रोजगार एवं निर्यात को प्रोत्साहन मिलता है।

बाह्यस्त्रोतिकरण के सरोकार

  1. गोपनीयता - बाह्यस्त्रोतीकरण बहुत सारी महत्वपूर्ण सूचना एवं जानकारी की हिस्सेदाहरी पर निर्भर करता है जिससे पक्ष के हितों को हानि पहुँच सकती है।
  2. परिश्रम खरीदारी - व्यावसायिक फर्म जो बाह्यस्त्रोतिकरण करवाती है, अपनी लागतें कम करने का प्रयत्न करती हैं व मेजबान देश की निम्न मानव संसाधन लागत का अधिकतम लाभ उठाने की कोशिश करती हैं।
  3. नैतिक सरोकार - दूसरे देशों में सख्त कानून न होने की वजह से बाल मजदूरी व लिंग के आधार पर कम मजदूरी देकर अपनी लागत कम करना नैतिक नहीं है।
  4. ग्रहदेशों में विरोध - कार्य बाहर सौंपने से ग्रह देश में बेरोजगारी की समस्या बढ़ती है जिससे ग्रहदेश में विरोध पनप सकता है।

BPO की अवधारणा
BPO- Business Process Outsourcing

BPO का अर्थ व्यवसाय की बाहय प्रक्रिया है। इसके अन्तर्गत किसी समस्या के हल करने का एक पूर्व निर्धारित मार्ग दिया होता है।
इसमें प्रक्रिया विशेषज्ञता (Process Expertise) पर ध्यान केन्द्रित किया जाता है।
BPO क्षेत्र में नौकरी प्राप्त करने के लिए ज्ञान और तीव्र प्रवाह अंग्रेजी बोलना आना जरूरी है।

BPO के अन्तर्गत आने वाली सेवाएँ

  1. फैक्टरिंग सुविधा
  2. सौदागर बैंकिंग सेवाएँ
  3. विज्ञान सेवाएँ
  4. कोरियन सेवाएँ
  5. ग्राहक सहायता सेवाएँ आदि |

ज्ञान प्रक्रिया बाह्यकरण
KPO का अभिप्राय व्यवसाय को सफलतापूर्वक व न्यूनतम लागतों पर चलाने के लिए उच्च-स्तरीय ज्ञान वाले कार्य संगठन के बाहर से उपलब्ध करने से है। जहाँ BPO के अंतर्गत प्रक्रिया विशेषज्ञता पर ध्यान केन्द्रित किया जाता है वहीं दूसरी ओर KPO के अंतर्गत ज्ञान विशेषज्ञता पर ध्यान केन्द्रित किया जाता है।

KPO की आवश्यकता - आज के प्रतियोगितावादी वातावरण में कम्पनिया अधिक ध्यान उच्च प्राथमिकता वाले क्षेत्रों पर दे रही हैं। कम्पनियां यह महसूस कर रही है कि कम महत्वपूर्ण क्रियाओं को संगठन के बाहर से पूरा करवा कर केवल लागतों में कमी व कुशलता में वृद्धि ही नहीं होती बल्कि कम्पनी का सारा ध्यान व शक्ति मुख्य क्रियाओं की ओर संचालित हो जाता है।

KPO का क्या अर्थ है?
KPO को क्षेत्र

  1. यह BPO का अगला कदम है।
  2. यह प्रक्रिया विशेषज्ञता की अपेक्षा ज्ञान विशेषज्ञत पर ध्यान केन्द्रित करता है।
  3. यह कम महत्वपूर्ण क्रियाओं की सेवाएं प्रदान करता है।
  4. इस क्पित मिनियपहुँने केलएकईपू-निवार मार्ग नाह है।
  5. यह क्षेत्र शिक्षित लोगों को एक वैकल्पिक कैरियर उपलब्ध कराता है।

BPO के अन्तर्गत आने वाली सेवाएँ

  1. शोध एवं विकास
  2. व्यावसायिक एवं तकनीकी विश्लेषण
  3. सजीव चित्र एवं डिजाइन
  4. व्यावसायिक एवं विपणन शोध आदि।

स्मार्ट कार्ड एवं स्वाचालित टेलर मशरन (ATM)
स्मार्ट कार्ड
 - इसका अभिप्राय एक अति लघु टेम्पर प्रूफ उपकरण से है जिसमें एक माइक्रोप्रोसेसर/मेमोरी चिप लगी होती है तो उपयोगकर्ता का डेटा स्टोर करने के काम आती है। जैसे Credit Card, Sim Chip for CellularPhones
उपयोगिता-

  1. बैंकिंग व रीटेल के लिए - समार्ट बैंकिंग कार्ड से हम शॉपिंग, बिल भुगतान आदि कर सकते हैं।
  2. इलेक्ट्रानिक पर्स के रूप में - कागजी नोट रखने की जरूरत नहीं पड़ती क्योंकि भुगतान के समय स्मार्ट कार्ड इस्तेमाल को सकता है जिससे सफर इत्यादि में सुरक्षा रहती है।
  3. यह बहुत सा डाटा स्टोर कर सकती है।
  4. पूर्ण सुरक्षा - यह टेम्पर पूफ है अतः डेटा से छेड़छाड़ नहीं की जा सकती।
  5. आसान प्रयोग - यह उपभोक्ता अनुकूल है इसे आसानी से कोई भी प्रयोग कर सकता है।

स्वाचालित टेलर मशीन (ATM)
इसका अभिप्राय बैंक के एक विशेष इलेक्ट्रानिक कार्यालय से है जो ग्राहों को बिना बैंक प्रतिनिधि की मदद से ही आधारभूत बैंकिग व्यवहारों को पूरा करने की अनुमति प्रदान करता है।
उपयोगिता -

  1. यह मशीन 24x7 आधार पर काम करती है।
  2. इसने बैंक का काफी काम कम कर दिया है।
  3. ATM के माध्यम से धन निकालने व जमा करवाने के अतिरिक्त भी अनेक कार्य जैसे बिल भुगतान, मोबाइल रिचार्ज आदि हो सकता है।
  4. यह बैंकों द्वारा बहुत जगह पर खोले गए है ताकि कार्ड धारक को आसानी रहे।