सौर विकिरण ऊष्मा संतुलन एवं तापमान-पुनरावृति नोट्स

                                                                     सीबीएसई कक्षा - 11

विषय - भूगोल
पुनरावृत्ति नोट्स
पाठ - 9 सौर विकिरण, ऊष्मा सन्तुलन एवं तापमान


महत्त्वपूर्ण तथ्य-

  •  सूर्य, पृथ्वी सतह पर ऊर्जा का प्रमुख स्रोत है।यह गर्म गैसो का पिण्ड है इसके पृष्ठ का तापमान 6000C है। यह गैसीय पिण्ड लगातार अन्तरिक्ष में चारों ओर ऊष्मा का विकिरण करता है जिसे विकिरण कहते है। सूर्य से पृथ्वी तक पहुँचने वाली विकिरण को सूर्यातप कहते है। पृथ्वी औसत रूप से वायुमण्डल की ऊपरी सतह पर 1.94 कैलोरी/प्रति वर्ग सेंटीमीटर प्रति मिनट ऊर्जा प्राप्त करती है। इसे सौर सिथरांक कहते है।
    इस अध्याय में विशेष रूप से और विकिरण, सूर्यातप का वितरण, पृथ्वी का ऊष्मा बजट, तापमान को नियन्त्रित करने वाले कारक आदि का अध्ययन करेंगें।
  1. हमारे ऊपर निरंतर एक वायु दाब का जाल बना रहता हैं। हम वायु में साँस लेते हुए साँस द्वारा वायु को बाहर निकालते हैं, लेकिन उसे महसूस तभी करते हैं, जब वह गतिमान होती है।
  2. वायुमंडल= वायु का आवरण ही वायुमंडल है जो बहुत-सी गैसों से बना है। इन्हीं गैसों की वजह से पृथ्वी पर जीवन बना हुआ है।
  3. पृथ्वी के पृष्ठ पर मिलने वाली ऊर्जा का ज़्यादातर भाग लघु तरंगदैर्ध्य के रूप में आता है।
  4. सूर्यातप की यह विविधता पृथ्वी की सतह पर होने वाले प्रतिदिन के मौसम में होने वाले बदलाव पर ज़्यादा प्रभाव नहीं डाल पाती है।
  5. पृथ्वी अपनी ऊर्जा का लगभग संपूर्ण भाग सूर्य से लेती है। इसके बदले पृथ्वी सूर्य से प्राप्त ऊर्जा को अंतरिक्ष में वापस विकिरित कर देती है।इसके कारण पृथ्वी न तो ज़्यादा समय के लिए गर्म होती है और न ही ज़्यादा ठंडी। अतः हम यह पाते हैं कि पृथ्वी के भिन्न-भिन्न भागों में प्राप्त ताप की मात्रा समान नहीं होती। इसी विविधता की वजह से वायुमंडल के दाब में भिन्नता होती है।
  6. सूर्य की किरणें वायुमंडल के ऊपरी भाग पर तिरछी पड़ती हैं, जिसकी वजह से पृथ्वी सौर ऊर्जा का निम्न अंश प्राप्त कर पाती है। पृथ्वी औसत रूप से वायुमंडल की ऊपरी सतह पर 1.94 कैलोरी/प्रति वर्ग सेंटीमीटर प्रति मिनट की दर से ऊर्जा प्राप्त करती है।
  7. वायुमंडल की ऊपरी सतह पर प्राप्त होने वाली ऊर्जा में प्रतिवर्ष थोड़ा परिवर्तन होता है। यह परिवर्तन पृथ्वी एवं सूर्य के बीच की दूरी में अंतर के कारण होता है।
  8. पृथ्वी 4 जुलाई को सूर्य के चारों ओर परिक्रमण के दौरान सूर्य से 15 करोड़ 20 लाख किलोमीटर दूर होती है। पृथ्वी की इस स्थिति को अपसौर कहा जाता है।
  9. अपसौर= 3 जनवरी को पृथ्वी सूर्य से सबसे निकट अर्थात 14 करोड़ 70 लाख किलोमीटर दूर होती है। इस स्थिति को उपसौर कहा जाता है।
  10. पृथ्वी द्वारा प्राप्त वार्षिक सूर्यातप 3 जनवरी को 4 जुलाई से ज़्यादा होता है।
  11. सूर्यातप की तीव्रता की मात्रा में प्रतिदिन, हर मौसम और प्रतिवर्ष परिवर्तन होता रहता है।
  12. पृथ्वी का अक्ष सूर्य के चारों तरफ परिक्रमण की समतल कक्षा से 66½° का कोण बनाता है, जो विविध अक्षांशों पर प्राप्त होने वाले सूर्यातप की मात्रा को बहुत प्रभावित करता है।
  13. पृथ्वी की सतह पर पहुँचने से पहले सूर्य की किरणें वायुमंडल से होकर गुजरती हैं। इसमें मौजूद जलवाष्प, ओजोन तथा अन्य किरणें अवरक्त विकिरण को अवशोषित कर लेती हैं।
  14. धरातल पर प्राप्त सूर्यातप की मात्रा में उष्णकटिबंध में 320 वाट प्रतिवर्ग मीटर से लेकर ध्रुवों पर 70 वाट प्रतिवर्ग मीटर तक विविधता मिलती है।
  15. सर्वाधिक सूर्यातप उपोष्ण कटिबंधीय मरुस्थलों पर प्राप्त होता है, क्योंकि यहाँ मेघाच्छादन निम्न होता है। उष्णकटिबंध की अपेक्षा विषुवत वृत पर कम मात्रा में सूर्यातप प्राप्त होता है।
  16. पृथ्वी के संपर्क में आई हुई वाय निरंतर गर्म होती रहती है। यह वायु गर्म होकर धाराओं के रूप में लंबवत उठती है एवं वायुमंडल में ताप संचरण करती है।
  17. सूर्यातप की 100 इकाइयों में से 35 इकाइयाँ पृथ्वी के धरातल पर पहुँचने से पहले ही अंतरिक्ष में परावर्तित हो जाती हैं। 27 इकाइयाँ बादलों के ऊपरी छोर से तथा 2 इकाइयाँ पृथ्वी के हिमाच्छादित क्षेत्रों द्वारा परावर्तित होकर लौट जाती हैं।
  18. ऊँचाई के साथ तापमान घटता जाता है। लेकिन बहुत बार यह स्थिति बदल जाती और इसे तापमान का व्युत्क्रमण कहते हैं। अक्सर व्युत्क्रमण बहुत थोड़े समय हेतु होता है, पर यह काफी सामान्य घटना है।
  19. व्युत्क्रमण के लिए सर्दियों की मेघविहीन लंबी रात तथा शांत वायु की आदर्श दशाएँ हैं। दिन में प्राप्त ऊष्मा रात के समय विकिरित कर दी जाती है और सुबह तक भूपृष्ठ अपने ऊपर की हवा से अधिक ठंडी हो जाती है। ध्रुवीय क्षेत्रों में वर्षभर तापमान व्युत्क्रमण होना सामान्य है।
  • तापमान के वितरण को नियंत्रित करने वाले कारक :
    • उस स्थान की अक्षांश रेखा
    • वायु सहंति का परिसंचरण
    • स्थानीय कारक
    • समुद्र ताल से ऊँचाई
    • समुद्र से दूरी
    • महासागरीय धाराएँ
  1. भूपृष्ठीय व्युत्क्रमण वायुमंडल के निचले स्तर में स्थिरता को बढ़ावा देता है। धुआँ तथा धूलकण व्युत्क्रमण स्तर से नीचे एकत्र होकर चारों तरफ फैल जाते हैं, जिनसे वायुमंडल का निम्न स्तर भर जाता है। इससे सर्दियों में सुबह के समय बने कुहरे की रचना सामान्य घटना है। यह व्युत्क्रमण कुछ ही घंटों तक रहता है। सूर्य के ऊपर चढ़ने और पृथ्वी के गर्म होने के साथ यह समाप्त हो जाता है।
  2. व्युत्क्रमण की उत्पतिपहाड़ी और पर्वतीय क्षेत्रों में वायु अपवाह की वजह से होती है। पहाड़ियों तथा पर्वतों पर रात में ठंडी हुई हवा गुरुत्वाकर्षण बल के प्रभाव में भारी और घनी होने के कारण लगभग जल की तरह कार्य करती है और ढाल के साथ ऊपर से नीचे उतरती है।