नियोजित विकास की राजनीतिक - पुनरावृति नोट्स

CBSE Class 12 राजनीति विज्ञान
पुनरावृति नोटस
भाग-2 पाठ-3
नियोजित विकास की राजनीति

स्मरणीय बिन्दु-
  1. आजादी के बाद लगभग सभी इस बात पर सहमत थे कि भारत के विकास का अर्थ आर्थिक संवृद्धि और आर्थिक समाजिक न्याय दोनो ही है।
  2. इस बात पर भी सहमति थी कि आर्थिक विकास और सामाजिक-आर्थिक न्याय को केवल व्यवसायी, उद्योगपति व किसानों के भरोसे नहीं छोड़ा जा सकता। सरकार को प्रमुख भूमिका निभानी होगी।
  3. आजादी के वक्त 'विकास' का पैमाना पश्चिमी देशों को माना जाता था। आधुनिक होने का अर्थ था पश्चिमी औद्योगिक देशों की तरह होना।
  4. विकास के दो मॉडल थे पहला-उदारवादी - पूँजीवादी मॉडल तथा दूसरा-समाजवादी मॉडल। भारत ने मिश्रित अर्थव्यवस्था का मॉडल, जिसमें सार्वजनिक व निजी क्षेत्र दोनों के गुणों का समावेश था, अपनाया।
  5. आजादी के आन्दोलन के दौरान नेताओं में सहमति बन गयी थी कि गरीबी मिटाने और सामाजिक-आर्थिक पुर्नवितरण के काम का मुख्य जिम्मा आजाद भारत की सरकार का होगा।
  6. कृषि अथवा उद्योग किसे प्राथमिकता मिले, इस पर मतभेद थे।
  7. 1944 में उद्योगपतियों के एक समूह ने देश में नियोजित अर्थव्यवस्था चलाने का एक प्रस्ताव तैयार किया। इसे बाम्बे प्लान कहा जाता है। बाम्बे प्लान की मंशा थी कि सरकार औद्योगिक तथा अन्य आर्थिक निवेश के क्षेत्र में बड़े कदम उठाए।
  8. योजना आयोग की स्थापना मार्च, 1950 में भारत सरकार के एक प्रस्ताव द्वारा की गई। प्रधानमंत्री इसके अध्यक्ष बने।
  9. 01 जनवरी 2015 से योजना आयोग के स्थान पर नीति आयोग अस्तित्व में आया है। जिसके अध्यक्ष प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी हैं एवं वर्तमान उपाध्यक्ष राजीव कुमार है। नीति शब्द का विस्तार है National Institute For Transforming India.
  10. सोवियत संघ की तरह भारत के योजना आयोग ने भी पंचवर्षीय योजनाओं का रास्ता चुना।
  11. पंचवर्षीय योजना से तात्पर्य था कि अगले पाँच सालों के लिए सरकार की आमदनी और खर्च की योजना होगी।
  12. प्रथम पंचवर्षोंय योजना (1951-56) में ज्यादा जोर कृषिक्षेत्र पर था। इसी योजना के अन्तर्गत बाँध और सिचाई के क्षेत्र में निवेश किया गया। भागड़ा-नांगल परियोजना इनमे से एक थी।
  13. द्वितीय पंचवर्षीय योजना (1956-61) में उद्योगों के विकास पर जोर दिया गया। सरकार ने देसी उद्योगों को संरक्षण देने के लिए आयात पर भारी शुल्क लगाया। इस योजना के योजनाकार पी.सी. महालनोबीस थे।
  14. विकास का केरल मॉडल - केरल में विकास और नियोजन के लिए अपनाए गए इस मॉडल में शिक्षा, स्वास्थ्य, भूमि सुधार, कारगर खाद्य-वितरण और गरीबी उन्मूलन पर जोर दिया जाता रहा है।
  15. जे.सी. कुमारप्पा जैसे गाँधीवादी अर्थशास्त्रीयों ने विकास की वैकल्पिक योजना प्रस्तुत की, जिसमें ग्रामीण औद्योगीकरण पर ज्यादा जोर था।
  16. चौधरी चरण सिंह ने भारतीय अर्थव्यवस्था के नियोजन में कृषि को केन्द्र में रखने की बात प्रभावशाली तरीके से उठायी।
  17. भूमि सुधार के अन्तर्गत जमींदारी प्रथा की समाप्ति, जमीन के छोटे छोटे टुकड़ों को एक साथ करना (चकबंदी) और जो काश्तकार किसी दूसरे की जमीन बटाई पर जोत-बो रहे थे, उन्हें कानूनी सुरक्षा प्रदान करने व भूमि स्वामित्व सीमा कानून का निर्माण जैसे कदम उठाए गए।
  18. 1960 के दशक में सूखा व अकाल के कारण कृषि की दशा बद से बदतर हो गयी। खाद्य संकट के कारण गेहूँ का आयात करना पड़ा।
  1. इस्पात की विश्वव्यापी माँग बढ़ी, तो  निवेश के लिहाज से उड़ीसा एक महवपूर्ण जगह के रूप में उभरा की राज्य सरकार ने इसे भुनाने के लिए अंतर्राष्ट्रीय इस्पात निर्माताओं और राष्ट्रीय स्तर के निर्माताओं के साथ एक सहमति पत्र पर हस्ताक्षर किए, जो जरूरी पूँजी निवेश व रोज़गार के अवसर लेकर आए। इससे उड़ीसा के आदिवासी इलाकों के लोगों में एक डर पैदा हुआ कि उन्हें अपने घर-बार से विस्थापित होना पड़ेगा तथा पर्यावरणविद् भी इससे पर्यावरण प्रदूषित होने के भय से चिन्तित थे।
  2. 'विकास' रहन-सहन के स्तर और औद्योगिक उत्पादन के आर्थिक स्वर को प्राप्त करने की प्रक्रिया को दर्शाता है। स्वतंत्रता के तुरंत पश्चात् भारत सरकार ने गरीबी उन्मूलन, आर्थिक व सामाजिक पुनर्वितरण व कृषि के विकास के कार्यों पर जोर देना शुरू किया।
  3. 'नियोजन' राष्ट्रीय लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए एक उद्देश्यपूर्ण व तरीके से की गई प्रक्रिया होती है। जीवन की मूलभूत आवश्यकताएँ देने के लिए भारत सोवियत संघ के नियोजन प्रक्रिया से प्रेरित था, जैसे-आधुनिक शिक्षा, चिकित्सीय परीक्षण और तकनीकी योग्याताएँ। 1944 में 'बॉम्बे प्लान' का प्रारूप तैयार किया गया, जिसकी मंशा थी कि सरकार औद्योगिक तथा अन्य आर्थिक निवेश के क्षेत्र में बड़े कदम उठाए।
  4. भारत के योजना आयोग की स्थापना 1950 में एक सलाहकार के रूप में की गई थी, जिसकी अध्यक्षता प्रधानमंत्री करता है तथा मंत्रिमंडल भी इसमें सलाह देने की भूमिका निभाता है। यह समय को बर्बाद होने से बचाता है व प्रति व्यक्ति आय को बढ़ाने में मदद करता है।
  5. स्वतंत्रता से पहले 1930 में आँकड़ों को इकट्ठा करने व उद्देश्यों का प्रारूप तैयार करने और पंचवर्षीय योजनाओं व वार्षिक बजट का प्रारूप तैयार करने के लिए राष्ट्रीय नियोजन समिति की स्थापना की आवश्यकता महसूस की गई थी।
  6. 1951 में प्रथम पंचवर्षीय योजना का प्रारूप जारी हुआ, जिसे के०एन० राज जैसे विशेषज्ञों ने तैयार किया था। इसका उद्देश्य बाँध और सिंचाई के क्षेत्र में निवेश, भूमि-सुधार और राष्ट्रीय आय का स्तर ऊँचा उठाना था। दूसरी पंचवर्षीय योजना इससे अलग थी, जिसमें भारी उद्योगों पर जोर दिया गया, जिससे तेज गति से संरचनात्मक बदलाव लाए जा सकें।
  7. भारत ने केवल पूँजीवादी या समाजवादी अर्थव्यवस्था को नहीं अपनाया, बल्कि निजी व सार्वजनिक क्षेत्रों को साथ-साथ बनाए रखने के लिए मिश्रित अर्थव्यवस्था को अपनाया तथा तीव्र आर्थिक विकास को प्राप्त करने के लिए सामाजिक कल्याण व निजी औद्योगिक उत्पादन के साधनों को संरक्षण देने का लक्ष्य बनाया।
  8. दूसरी पंचवर्षीय योजना ने ग्रामीण क्षेत्रों में भी भारी औद्योगिकरण पर जोर दिया, लेकिन इसकी आलोचना की गई कि ग्रामीण कल्याण की कीमत पर शहरी व औद्योगिक क्षेत्रों में सम्पन्नता पैदा की जा रही है। इसमें इस बात पर भी विवाद हुआ कि नियोजन की नीतियाँ असफल नहीं हुई, दरअसल इनका कार्यान्वयन ठीक नहीं हुआ, क्योंकि भूमि-संपन्न तबके के पास सामाजिक व राजनीतिक ताकत ज्यादा थी।
  9. नियोजन के समय कृषि-क्षेत्र में भूमि-सुधार के लिए गंभीर प्रयास किए गए, जिसमें जमींदारी प्रथा को खत्म करने व जमीन की हदबंदी करने का प्रावधान था। लेकिन कुछ बुराइयों की वजह से ये सुधार बहुत सफल नहीं रहे, क्योंकि राजनीतिक प्रभाव के चलते कानून तोड़े गए व कुछ कानून केवल कागजों तक ही सीमित रह गए।
  10. 1965 और 1967 के बीच देश में कई जगहों पर सूखा पड़ गया था तथा बिहार में अकाल जैसी स्थिति महसूस की गई थी। दूसरी तरफ बिहार में खाद्यान्न की कीमतें भी काफी बढ़ीं। सरकार ने उस वक्त 'जोनिंग' या 'इलाकाबंदी की नीति अपना रखी थी, इसकी वजह से विभिन्न राज्यों के बीच खाद्यान्न का व्यापार नहीं हो पा रहा था, जिसकी वजह से बिहार में खाद्यान्न की उपलब्धता में भारी गिरावट आ गई थी।
  11. हरित क्रांति के माध्यम से सरकार ने कृषि की नई नीतियों पर जोर दिया, जैसे-उच्च गुणवत्ता के बीज, उर्वरक, कीटनाशक और बेहतर सिंचाई सुविधा बड़े अनुदानित मूल्य पर मुहैया कराना आदि। हरित क्रांति ने गरीब किसानों के लिए बेहतर स्थितियाँ उपलब्ध कराईं तथा मध्यमवर्गीय किसानों को राजनीतिक रूप से प्रभावशाली बनाया। हरित क्रांति के कुछ नकारात्मक प्रभाव भी थे, जैसे-इसने जमींदारों व गरीबों के बीच का दायरा बढ़ा दिया तथा कृषि उत्पादन भी केवल मध्यम रूप से ही बढ़ा।
  12. गुजरात में 'श्वेत क्रांति' की शुरुआत 'वर्गीज कूरियन' ने की, जिन्हें 'मिल्कमैन ऑफ़ इण्डिया' के नाम से जाना जाता है। उन्होंने सहकारी दुग्ध उत्पादन व विपणन के नाम पर 'अमूल' नाम से एक राष्ट्रव्यापी आंदोलन शुरू किया। ग्रामीण विकास और गरीबी-उन्मूलन के लिहाज से 'अमूल' नाम का सहकारी आंदोलन अपने-आप में एक अनूठा और कारगर मॉडल है, जिसका विस्तार ही 'श्वेत क्रांति' के नाम से जाना जाता है।
  13. केरल में विकास और नियोजन के लिए जो रास्ता चुना गया, उसे 'केरल मॉडल' कहा जाता है। इस मॉडल में शिक्षा, स्वास्थ्य, भूमि-सुधार, कारगर खाद्य-वितरण और गरीबी-उन्मूलन पर जोर दिया गया। केरल में इस बात के भी प्रयास किए गए कि लोग पंचायत, प्रखंड और जिला स्तर की योजनाओं को तैयार करने में शामिल हों |
हरित क्रांति
  • सरकार ने खाद्य सुरक्षा को सुनिश्चित करने के लिए एक नई रणनीति अपनाई, जो कि हरित क्रान्ति के नाम से जानी जाती है। अब उन इलाकों पर ज्यादा संसाधन लगाने का निर्णय किया, जहाँ सिचाई सुविधा मौजूद थी, तथा किसान समृद्ध थे।
  • सरकार ने उच्च गुणवत्ता के बीज, उवरंक, कीटनाशक और बेहतर सिंचाई सुविधा बड़े अनुदानित मूल्य पर मुहैया कराना शुरू किया। उपज को एक निर्धारित मूल्य पर खरीदने की गारन्टी दी। इन संयुक्त प्रयासों को ही हरित क्रान्ति कहा गया। भारत में हरित क्रान्ति के जनक एम.एस.स्वामीनाथन को कहा जाता है।
  • इसके कारण गेहूँ की पैदावार में बढ़ोतरी हुई व पंजाब हरियाणा व पश्चिमी उत्तर प्रदेश जैसे इलाके समृद्ध हुए।
  • इसका नकारात्मक प्रभाव यह हुआ कि क्षेत्रीय व सामाजिक असमानता बढ़ी।
  • हरित क्रांति के कारण गरीब किसान व बड़े भूस्वामी के बीच अंतर बढ़ा जिससे वामपंथी संगठनों का उभार हुआ। मध्यम श्रेणी के भू-स्वामित्व वाले किसानों का उभार हुआ।
श्वेत क्रान्ति:-
  • 'मिल्कमैन ऑफ इंडिया' के नाम से मशहूर वर्गीज कुरियन ने गुजरात सहकारी दुग्ध एवं विपरण परिसंघ में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और 'अमूल' की शुरूआत की। इसमें गुजरात के 25 लाख दूध उत्पादक जुड़े। इस मॉडल के विस्तार को ही श्वेत क्रान्ति कहा गया।
  • प्रमुख कृषि क्रान्ति व उनके उद्देश्य -
    हरित क्रान्ति -- खाद्यान्न उत्पादन बढ़ाना।
    श्वेत क्रान्ति -- दुग्ध उत्पादन बढ़ाना।
    पीली क्रान्ति -- तिलहन उत्पादन बढ़ाना।
    नील क्रान्ति -- मत्स्य उत्पादन बढ़ाना।
  • पंचवर्षोंय योजनाएँ :-
पंचवर्षोंय योजनाएं
अवधि
उददेश्य
प्रथम
1951-56
कृषि विकास
द्वितीय
1956-61
औद्योगिक विकास
तृतीय
1961-66
खाद्यान्न आत्मनिर्भरता, बेरोजगारी उन्मूलन
चौथी
1969-74
उत्पादन वृद्रि, आर्थिक स्थिरता
पांचवी
1974-79
आत्मनिर्भरता, निर्धनता दूर करना।
छठी
1980-85
उर्जा संसाधन विकास, कमजोर वर्ग की हित पूर्ति
सातवीं
1985-90
खाद्य उत्पादन, आधुनिकीकरण, ग्रामीण विकास
आठवीं
1992–97
रोजगार, स्वास्थ्य, साक्षरता
नौवीं
1997–2002
सामाजिक न्याय, 6.5 प्रतिशत आर्थिक विकास
दसवीं
2002-2007
सामाजिक–औद्योगिक विकास तथा 7 प्रतिशत आर्थिक विकास
ग्यारहवीं
2007-2012
उर्जा, रोजगार, 9 प्रतिशत विकास
बारहवीं
2012-2017
8 प्रतिशत आर्थिक विकास
अन्य महत्त्वपूर्ण बिंदु-
  • स्वतंत्रता के पश्चात आर्थिक संवृद्धि व सामाजिक न्याय सुनिश्चित करने के लिये सरकार ने योजना निर्माण की ओर कदम बढ़ाये।
  • भारत के विकास का अर्थ आर्थिक विकास, भौतिक प्रगति आर्थिक सामाजिक न्याय, विभिन्न हितों के बीच टकराव परंतु विकास सबसे आवश्यक।
  • वामपंथ व दक्षिण पंथ: वामपंथ समाजवाद के समर्थक तथा पिछड़े वर्गों को सरकारी नीतियों का समर्थन मिलने पर खुश जबकि दक्षिण पंथी मुक्त अर्थव्यवस्था के पक्षधर व कम से कम सरकारी हस्तक्षेप के सरफदार
  • विकास के मॉडल- उदारवादी समाजवादी भारत का मिश्रित अर्थव्यवस्था का मॉडल जिसमें सार्वजनिक व निजी क्षेत्र के गुणों का समावेश
  • योजना आयोग 1950 में गठन अध्यक्ष प्रधानमंत्री भौतिक संसाधनों का बंटवारा, उत्पादन का विकेन्द्रीकरण सभी नागरिकों को अजीविका के साधन उद्देश्य।
  • नियोजन देश की आर्थिक सामाजिक स्थिति के आधार पर निर्धारित लक्ष्यों की प्राप्ति के प्रयत्न
  • बॉम्बे योजना- 1944 में उद्योगपतियों का एकजुट हो नियोजित अर्थव्यवस्था चलाने का संयुक्त प्रस्ताव जिसके तहत सरकार औद्योगिक व अन्य आर्थिक निवेश के क्षेत्र में बड़े कदम उठाये।
  • पंचवर्षीय योजनाएं: उद्देश्य आर्थिक विकास, आत्मनिर्भरता राष्ट्रीय आय में वृद्धि
  • प्रथम पंचवर्षीय योजना (1951-56) में कृषि क्षेत्र पर जोर, मूल मंत्र था- धीरज
  • दूसरी पंचवर्षीय योजना (1956-61) भारी उद्योगों के विकास पर जोर, विशेषज्ञ पी.सी. महालनोविस मूल मंत्र सार्वजनिक क्षेत्र का विकास
  • केरल मॉडल- विकेन्द्रीकृत नियोजन, शिक्षा, भूमि सुधार स्वास्थ्य, गरीबी उन्मूलन पर जोर।
  • मुख्य विवाद- कृषि बनाम उद्योग अर्थात निजी क्षेत्र बनाम सार्वजनिक क्षेत्र विवाद, इसी समय भूमि सुधार के लिये गंभीर प्रयास हुए।
  • दक्षिण पंथी व वामपंथी खेमो ने मिले जुले मॉडल मिश्रित अर्थव्यवस्था की आलोचना की। उनका मानना था कि इससे भ्रष्टाचार व अकुशलता बढ़ी है। कुछ आलोचकों के अनुसार सरकार को जितना करना चाहिये था उतना उसने नहीं किया जिससे इस अवधि में गरीबी से ज्यादा कमी नहीं आई।
  • खाद्य संकट व हरित क्रांति- 1865-67 के दौरान भारत के कुछ हिस्सों विशेषकर बिहार में खाद्य संकट होने के परिणामस्वरूप कृषि क्षेत्र में वृद्धि व आत्मनिर्भरता बढ़ाने के लिये हरित क्रांति द्वारा उत्पादन व तकनीक में सुधार हुआ। हरित क्रांति के सकारात्मक व नकारात्मक परिणाम निकले।
  • आपरेशन फ्लड- 1970 में ग्रामीण विकास कार्यक्रम जिसके अन्तर्गत सहकारी दूध उत्पादकों को उत्पादन व वितरण के राष्ट्रव्यापी तंत्र से जोड़ा गया। आणंद शहर (गुजरात) में AMUL द्वारा वर्गीज कूरियर (Milk man of India) की मुख्य भूमिका थी।
  • श्वेत क्रांति को विकास के माध्यम के रूप में अपनाया गया।
  • बाद के बदलाव- 1960 के अंत में विकास की अवधारणा बदली। श्रीमती इन्दिरा गांधी ने राज्य की भूमिका को विकास के सन्दर्भ में अधिक महत्व दिया।
  • इन्दिरा गांधी ने 14 बैंकों का राष्ट्रीयकरण किया।