अंतरा - मलिक मुहम्मद जायसी - पुनरावृति नोट्स
CBSE Class 12 हिंदी ऐच्छिक
पुनरावृति नोट्स
पाठ-8 बारहमासा
बारहमासा
1 . अगहन मास ........... धुआं, हम लाग।।
व्याख्या बिंदु:- प्रस्तुत छंद सूपफी कवि जायसीकृत प्रबंध्काव्य ‘पद्मावत’ के बारह मासा का अंश है। इसमें नागमति की विरह वेदना का मार्मिक चित्राण है। अगहन महीने की विशेषताएँ बताते हुए नागमति पर उसके प्रभाव की अभिव्यक्ति है। शीतऋतु के इस माह की रात लम्बी और दिन छोटा होता है। प्रियतम के वियोग में नागमति को दिन भी रात की ही भांति दुखदायी प्रतीत होती है। विरह वेदना असहनीय है। उसका शरीर विरह अग्नि में जलकर भस्म हो रहा है। नागमति का रूप, रंग, यौवन और सौन्दर्य प्रिय के साथ चला गया। शीत से बचने के लिए जगह-जगह जलाई गई आग नायिका के शरीर को और मन को दग्ध् कर रही है। नागमति की इस अवस्था से, उसकी वेदना से, रत्नसेन (नागमति का पति) अनभिज्ञ है। विरह अग्नि का धुआँ लगने के कारण उसका शरीर काला पड़ गया है। वह भँवरे और काग से अपने प्रिय तक उसका संदेश पहुँचाने का अनुरोध् करती है कि नायिका विरह में जल गई है और उसके धुँए से वे काले पड़ गए हैं।
2 . पूस जाड़....... समेटहु पंख।
व्याख्या बिन्दु- पूस मास की शीत में विरह के कारण नागमति की मरणासन्न अवस्था की अभिव्यंजना है। शीत का प्रभाव बढ़ गया है, सूर्य के ताप में भी कमी प्रतीत होती है। इस समय शीत और पति वियोग के कारण नागमति का हृदय कांप रहा है। बिस्तर भी हिमालय समान ठंडा/बपर्फीला हो गया है। भयंकर सर्दी से बचने का एक मात्रा उपाय प्रिय से मिलन है। नागमति का कहना कि चकवा और चककी केवल रात को वियोग में रहते है, प्रातः उनका पुनः मिलन हो जाता है। मेरा और प्रिय का मिलन नहीं होता। इस अवस्था में जीवित रहना कठिन है। विरह रूपी बाज, मुझ निरीह पर झपटने के लिए तत्पर है। शरीर का सारा रक्त अश्रु बन बह गया है। नागमति पति से मरणासन्न विरही पक्षी के (अपने) पंखों को समेटने का आग्रह करती है। प्रिय मिलन की उत्कट इच्छा की अभिव्यक्ति है।
3 . लागेउ माँह ................ उड़ावा झोल।।
व्याख्या बिन्दु - माघ महीने में नागमति की विरह अवस्था, उसके दुख, वियोग की अभिव्यक्ति है। माघ महीने की भयंकर सर्दी (पाला पड़ने वाली) का चित्राण किया गया है। अत्याध्कि शीत से बचने का एक मात्रा उपाय प्रिय मिलन है, जो कि सूर्य के ताप के समान है। जिस प्रकार माघ महीने में फूलों में रस भरना आरंभ होता है, उसी प्रकार मेरा हृदय भी भावनाओं से ओत-प्रोत है। नागमति प्रियतम से भ्रमर रूप में आकर मिलने का आग्रह करती है। शीत के कारण नेत्रों से बहते अश्रु ओले के समान प्रतीत होते हैं। हवा चलने से गीले वस्त्रा बाण की भांति चुभ रहे हैं। पति वियोग में नागमति न तो किसी प्रकार का श्रृंगार करती है और न ही आभूषण धारण करती है। विरह वेदना के कारण शरीर दुर्बल, तिनके की भांति हल्का हो गया है। जिसे विरहाग्नि जलाकर राख की भाँति उड़ाना चाहती है।
4 . फागुन पवन ......... ध्रैं जहँ पाउ।।
व्याख्या बिंदु- पफागुन मास में नागमति के विरह की चरम सीमा की अभिव्यक्ति है। प्रिय मिलन की उत्कट इच्छा एवं उनके प्रति अनन्य प्रेम की अभिव्यंजना है। मिलन के इस मौसम में विरह असहनीय है। नागमति का शरीर पत्तों के समान पीला पड़ गया है। पौधे नवीन पत्तों और कोंपलों से भर रहे हैं। लोग परस्पर पफाग खेल रहें हैं, गायन और नृत्य में मग्न हैं। सभी का हृदय उल्लास से भरा हुआ है। नागमति को ऐसा प्रतीत हो रहा है कि होली उसी के हृदय में जल रही है। उसका शरीर जल कर राख हो गया है। उसे इस बात का कोई दुःख नहीं है। वह पवन से अनुरोध् करती है कि मेरे शरीर की राख को उड़ा कर प्रिय के मार्ग में बिछा दे, राख पर चलने से मुझे चरण स्पर्श का अनुभव होगा।