सामाजिक असमानता और बहिष्कार के स्वरूप - पुनरावृति नोट्स

CBSE कक्षा 12 समाजशास्त्र
[खण्ड-1] पाठ - 5 सामाजिक विषमता एवं बहिष्कार के स्वरूप
पुनरावृत्ति नोट्स

मुख्य बिन्दु-
  1. सामाजिक असमानता:
    • सामाजिक विषमता व वहिष्कार हमारे दैनिक जीवन में प्राकृतिक वास्तविकता है।
    • प्रत्येक समाज में हर व्यक्ति की सामाजिक प्रस्थिति एक समान नहीं होती है। समाज में कुछ लोगों के पास तो धन, सम्पत्ति, शिक्षा, स्वास्थ्य, सत्ता और शक्ति जैसे साधनों की अधिकता होती है तो दूसरी ओर कुछ लोगों के पास इनका नितान्त अभाव रहता है तो कुछ लोगों की स्थिति बीच की होती है।
    • सामाजिक विषमता व बहिष्कार सामाजिक इसलिए है-
      • ये व्यक्ति से नहीं समूह से सम्बन्ध है।
      • ये व्यवस्थित व संरचनात्मक है।
      • ये आर्थिक नहीं है।
    • सामाजिक संसाधनों को तीन रूपों में विभाजित किया जा सकता है-
      1. भौतिक संपत्ति एवं आय के रूप में - आर्थिक पूंजी
      2. प्रतिष्ठा व शैक्षणिक योगता के रूप मे - सास्कृतिक पूंजी
      3. सामाजिक संगतियों व संपकों के जाल के रूप मे - सामाजिक पूंजी
    • सामाजिक विषमता – सामाजिक संसाधनों तक असमान पहुँच की पद्धति सामाजिक किषमता कहलाती है।
  2. सामाजिक स्तरीकरण
    • वह व्यवस्था जो एक समाज के अंतर्गत पाए जाने वाले समूहों का ऊँच-नीच या छोटे--बड़े के आधार पर विभिन्न स्तरों पर बँट जाना ही सामाजिक स्तरीकरण कहलाता है।
    • स्तरीकरण (सामाजिक) के तीन मुख्य सिद्धान्त-
      • सामाजिक स्तरीकरण व्यक्तियों के बीच की विभिन्नता का प्रकार्य ही नही समाज की विशिष्टता है।
      • सामाजिक स्तरीकरण पीढ़ी दर पीढ़ी बना रहता हैं।
      • सामाजिक स्तरीकरण को विश्वास या विचार धारा द्वारा समर्थन मिलता है।
    • पूर्वाग्रह - एक समूह के सदस्यों द्वारा दूसरे समूह के बारे में पूर्वकल्मित विचार या व्यवहार को पूर्वाग्रह कहते है।
    • पूर्वाग्रह अपरिवर्तनीय, कठोर व रूढ़िवद्ध धारणाओं पर आधरित होते है।
    • रूढ़धारणाएँ:- ऐसा लोक विशवास, समूह, स्वीकृत कोई अचल विचार या भावना जो सामान्यतः शाब्दिक तथा संवेगयुक्त होती हैं रूढ़धारणा कहलाती है। यह ज्यादातर महिलाओं, नृजातीय, प्रजातीय समूहों के बारे में प्रयोग की जाती है।
    • भेदभाव - किसी समूह के सदस्यों को उनके लिग, जाति या धर्म के आधार पर अवसरों तथा सुविधाओं सं वंचित रखा जाना भेदभाव कहलाता है।
  3. सामाजिक वहिष्कार-
    • वह तौर तरीके जिनके जरिए किसी व्यक्ति या समूह को समाज में पूरी तरह घुलने तथा मिलने से रोका जाता है या अलग रखा जाता है: यह आकस्मिक न होकर व्यवस्थित तथा अनैच्छि होता है।
    • सामाजिक वहिष्कार आकस्मिक नही होता, यह व्यवस्थित तथा अनैच्छिक होता है। लम्बे समय तक विषमता के कारण निष्कासित समाज में प्रतिशोध व घृणा की भावना पैदा हो जाती है, जिस कारण निष्कासित समाज अपने-आप को मुख्य धारा से जोड़ने की कोशिश नहीं करते। जैसे दलित, जनजातीय समुदाय, महिलाएँ तथा अन्यथा सक्षम लोग।
  4. जाति एक भेदभावपूर्ण व्यवस्था है
    • जाति प्रथा जन्म से ही निर्धारित होता है न कि उस मनुष्य की क्या स्थिति है।
    • जाति व्यवस्था व्यक्तिओं का व्यवसाय निर्धारित करती है।
    • सामाजिक व आर्थिक प्रस्थिति एकदूसरे के अनूरूप होती है।
  5. अस्पृश्यता- आम बोल चल में छुआछूत कहा जाता है। धार्मिक एवं कर्मकांडीय दृष्टि से शुद्धता व अशुद्धता के पैमाने पर सबसे नीची जाने वाली जातियों के विरूद्ध अत्यन्त कठोर सामाजिक दंडो का विधान किया जाता है। इसे अस्पृश्यता कहते हैं।
    1. अस्पृश्यता शब्द का प्रयोग ऐसे लोगों के लिए किया गया है जिन्हे अपवित्र, गन्दा और अशुद्ध माना जाता था। ऐसे लोगों को कुओं, मन्दिरों और सार्वजनिक स्थानों पर प्रवेश निषेध था।
    2. गाँधी जी ने इन लोगों के लिए हरिजन शब्द का प्रयोग किया था किन्तु आजकल दलित शब्द का प्रयोग किया जाता है।
    3. दलित का शब्दिक अर्थ है- 'पैरो से कुचला हुआ।'
    4. भारतीय संविधान (1956) के अनुसार जाति अस्पृश्यता निषेध है।
    5. महात्मा गाँधी, डॉ अम्बेडकर और ज्योतिबा फूले ने अस्पृश्यता निवारण की दिशा में उल्लेखनीय कार्य किया।
    6. अस्पृश्यता को आयाम-
      1. अपवर्जन या बहिष्कार : पेयजल के सामान्य स्त्रोतों से पानी नहीं लेने दिया जाता। सामाजिक उत्सव, समारोहों में भाग नहीं ले सकते। धार्मिक उत्सव पर ढोल–ननाड़े बजाना।
      2. अनादर और अधीनतासूचक : टोपी या पगड़ी उतारना, जूतो को उतारकर हाथ में पकड़कर ले जाना, सिर झुकाकर खड़े रहना, साफ या चमचमाते हुए कपड़े नहीं पहनना।
      3. शोषण व आश्रिता : उन्हें 'बेगार' करनी पड़ती है जिसके लिए उन्हें कोई पैसा नहीं दिया जाता या बहुत कम मजदूरी दी जाती है।
      4. दलित : वह लोग जो निचली पायदान (जाति व्यवस्था में ) पर है तथा शोषित हैं, दलित कहलाते है।
  6. जातियों व जन जातियों के प्रति भेदभाव मिटाने के लिए राज्य द्वारा उठाए गए कदम:
    1. अनुसूचित जाति व जनजाति के लिए राज्य व केन्द्रीय विधान-मंडलों में अरक्षण
    2. सरकारी नौकरी में आरक्षण
    3. अस्पृश्यता का उन्मूलन (अनुच्छेद 17) (अपराध) 1955
    4. 1850 का जातिय नियोग्यता निवारण अधिनियम
    5. अनुसूचित जाति व अनुसूचित जनजाति अस्पृश्यता उन्मूलन कानून–1989
    6. उच्च शैक्षिक संस्थानों के 93वें संसोधन के अंतर्गत अन्य पिछड़े वर्ग को आरक्षण देना।
      • गैरसरकारी प्रयास व सामाजिक आन्दोलन-
      • स्वाधीनता पूर्व - ज्योतिबा फूले, इयोतीदास, पेरियार, सर सैयद अहमद खान, डॉ अंबेडकर, महात्मा गाँधी, राजाराम मोहन राय आदि का महत्त्वपूर्ण योगदान रहा है।
      • उत्तर प्रदेश में बहुजन समाज पार्टी, कर्नाटक मे दलित संघर्ष समिति
      • विभिन्न भाषाओं के साहित्य में योगदान
  7. अन्य पिछड़ा वर्ग- सामाजिक, शैक्षिक रूप से पिछड़ी जातियों का वर्ग, को अन्य पिछड़ा वर्ग कहा जाता है। इसमे सेवा करने वाली शिल्पी जातियों के लोग शामिल है।
    • इन वर्गों की प्रमुख विशेषता संस्कृति, शिक्षा, और सामाजिक-आर्थिक दृष्टि से इनका पिछड़ापन है।
    • काका साहेब कालेलकर की अध्यक्षता से सबसे पहले  "पिछड़े वर्ग आयोग" का गठन किया था। आयोग ने अपनी रिपोर्ट 1953 में सरकार को सौंप दी थी।
    • 1979 में दूसरा पिछड़ा वर्ग आयोग (मंडल आयोग) गठित किया।
    • आज अन्य पिछड़े वर्गों के बीच भारी विषमता देखने को मिलती है। एक ओर तो OBC का वह वर्ग है जो धनी किसान है तो दूसरी ओर गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन कर रहा दूसरा वर्ग है।
  8. भारत में जनजातीय जीवन:-
    • भारतीय संविधान के अनुसार निर्धनता, शक्ति हीनता व सामाजिक लांछन से पीड़ित सामाजिक समूह है। इन्हें जनजाति भी कहा जाता है।
      जनजातियों को प्राय- 'वनवासी' और आदिवासी जाना जाता है।
    • आन्तरिक उपनिवेशवाद– आदिवासी समाज ने प्रगति को नाम पर आन्तरिक उपनिवेशवाद का सामना किया। भारत सरकार ने वनों का दोहन, खदान कराखानें, बांध बनाने के नाम पर उनकी जमीन का अधिग्रहण किया तथा उनका पलायन हुआ।
      आदिवासियों की समस्याओं से जुड़े प्रमुख मुद्दे:-
      1. राष्ट्रीय वन नीति बनाम आदिवासी विस्थापन
      2. आदिवासी क्षेत्रों में सधन औद्योगीकरण की नीति
      3. आदिवासियों में सजातीय राजनीतिक जागरूकता के दर्शन।
  9. स्त्रियों के अधिकारों व उनकी स्थिति के लिए उन्नीसवीं सदी में सुधार आन्दोलन हुआः-
    • स्त्री-पुरुष में असमानता सामाजिक है, न कि प्राकृतिक यदि स्त्री-पुरुष प्राकृतिक आधार पर असमान है तो क्यों कुछ महिलाएँ समाज में शीर्ष स्थान पर पहुँच जाती है। दुनिया या देश में ऐसे भी समाज है जहाँ परिवारों में महिलाओं की सत्ता व्याप्त है जैसे केरल के 'नायर' परिवारों में और मेघालय की ' खासी' जनजाति। यदि महिला जैविक या शारीरिक आधार पर अयोग्य समझी जाती हो तो कैसे वह सफलतापूर्वक कृषि और व्यापार को चला पातीं संक्षेप में, यह कहना न्याय संगत होगा कि स्त्री-पुरुष के बीच असमानता के निर्धारण में जैविक/प्राकृतिक या शारीरिक तत्वों की कई भूमिका नहीं है।
    • राजा राम मोहन राय ने सती प्रथा तथा बाल विवाह का विरोध किया तथा विधवा विवाह का समर्थन किया।
    • ज्योतिबा फूले ने जातिय व लैंगिक अत्याचारों के विरोध में आन्दोलन किया।
    • सर सैयद अहमद खान ने इस्लाम में सामाजिक सुधारों के लिए लड़कियो के स्कूल तथा कॉलेज खोले।
    • दयानंद सरस्वती ने नारियों की शिक्षा में योगदान दिया।
    • रानाडे ने विधवा विवाह पुनर्विवाह पर जोर दिया।
    • ताराबाई शिंदे ने "स्त्री-पुरूष तुलना" लिखी जिसमें गलत तरीके से पुरूषों को ऊँचा दर्जा देने की बात कही गई।
    • बेगम रोकेया हुसैन ने 'सुल्तानाज ड्रीम' नामक किताब लिखी जिसमें हर लिंग को बराबर अधिकार देने पर चर्चा की गई है।
    • 1931 में कराची में भारतीय कांग्रेस द्वारा एक अध्यादेश जारी करके स्त्रियों को बराबरी का हक देने पर बल दिया गया। सार्वजनिक रोजगार, शक्ति या सम्मान के संबंध में निर्योग्य नहीं ठहराया जाएगा।
    • 1970 में काफी अहम मुद्दे पर जोर दिया गया जैसे- पुलिस हिरासत में बलात्कार, दहेज, हत्या आदि। स्त्रियों को मत डालने, सार्वजनिक पदधारण करने का अधिकार होगा।
  10. अक्षमता (विकलांगता ):- शारीरिक, मानसिक रूप से बाधित व्यक्ति, इसलिए अक्षम कहलाते हैं क्योंकि वे समाज की रीतियों व सोच के अनुसार जरूरत को पूरा नहीं करते।
  11. निर्योग्यता/अक्षमता को एक जैविक कमजोरी माना जाता है।
  12. जब कभी किसी अक्षम व्यक्ति के समक्ष कई समस्याएँ खड़ी होती है तो यह मान लिया जाता है कि ये समस्याएँ उसकी बाधा या कमजोरी के कारण ही उत्पन्न हुई है।
  13. अक्षम व्यक्ति को हमेशा शिकार यानी पीड़ित व्यक्ति के अपने प्रत्यक्ष ज्ञान से जुड़ी है।
  14. यह माना जाता है कि निर्योग्यता उस नियॉंग्य व्यक्ति के अपने प्रत्यक्ष ज्ञान से जुड़ी है।
  15. निर्योग्यता तथा गरीबी के बीच काफी निकट संबंध देखा गया है क्योकि गरीबी के कारण ही माताएँ कुपोषण का शिकार होती है और दुर्बल व अविकसित बच्चों को जन्म देती है। जो बड़े होकर विक्लांग लोगों की संख्या को बढ़ाते है।
  16. सरकार इनके लिए विभिन्न कार्यक्रम प्रदान करती है- जैसे- शिक्षा, रोजगार, व्यावसायिक।