निर्देशन-पुनरावृति नोट्स

                                                                       CBSE कक्षा 12 व्यवसाय अध्ययन

(भाग-1) पाठ-7 निर्देशन
पुनरावृति नोट्स


  • निर्देशन का अर्थ:-
    निर्देशन का अभिप्राय संगठन में मानव संसाधन को निर्देश देना, उसका मार्गदर्शन करना, संदेशवाहन करना व उसे अभिप्रेरित करना हैं ताकि उद्देश्यों को प्राप्त किया जा सके।
  • निर्देशन में निम्नलिखित सम्मिलित है:-
    1. उच्चअधिकारी द्वारा अधिनस्थ को आदेश देना।
    2. कर्मचारियों का प्रर्यवेक्षण, जब वे काम कर रहे हों।
    3. अधीनस्थों को और अधिक कुशलता से कार्य करने के लिए अभिप्रेरित करना।
    4. संस्था के उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए अधीनस्थों को नेतृत्व करना।
  • विशेषताएँ:-
    1. निर्देशन गतिविधि को प्रारम्भ करता है:- प्रबन्ध के अन्य कार्य गतिविधि हेतु आधार तैयार करते हैं परन्तु निर्देशन संगठन के भीतर कार्य को प्रारम्भ करता है।
    2. निर्देशन प्रबन्ध के प्रत्येक स्तर पर होता है:- उच्चस्तरीय प्रबन्धक से लेकर निम्नस्तरीय प्रबन्धक तक सभी निर्देशन का कार्य करते है।
    3. निर्देशन एक निरंतर चलने वाली प्रक्रिया है:- निर्देशन पर्यवेक्षण, संदेशवाहन, नेतृत्व एवं अभिप्रेरणा की निरंतर रूप से चलने वाली प्रक्रिया होती है। यह संगठन में जीवनभर चलती रहती है।
    4. निर्देशन का प्रवाह ऊपर से नीचे की ओर होता है। यह उच्च स्तरीय प्रबन्ध से शुरू होकर निम्नस्तरीय प्रबन्ध तक समाप्त होता है।
  • निर्देशन का महत्त्व:- निर्देशन का महत्त्व निम्नलिखित तथ्यों से स्पष्ट होता है:-
    1. यह गतिशीलता प्रदान करता है:- संगठन में व्यक्ति केवल तब कार्य शुरू करते हैं जब वे अपने वरिष्ठ अधिकारियों से निर्देश प्राप्त करते है। यह निर्देशन कार्य ही हैं जो योजनाओं को परिणामों में बदलने हेतु वास्तविक कार्य का प्रारम्भ करता है।
    2. कर्मचारियों के प्रयासों को एकीकरण करना:- संगठन में सभी क्रियाएं एक-दूसरे से जुड़ी रहती है। अतः सभी क्रियाओं में समाजस्य स्थापित करना आवश्यक है। निर्देशन पर्यवेक्षण, दिशा-निर्देश व सलाह के द्वारा अधीनस्थों की गतिविधियों को समन्वित करता है।
    3. यह अभिप्रेरणा का माध्यम है:- संस्था के उद्देश्यों को अभिप्रेरित कर्मचारी ही पूरा कर सकते है। अभिप्रेरणा का काम प्रबंध के निर्देशन कार्य द्वारा सम्पन्न किया जाता है।
    4. यह परिवर्तन को लागू करना सम्भव बनाता है:- प्रायः कर्मचारी जिस तरह के ढाँचे में काम कर रहे होते है, वे उसमे कोई परिवर्तन स्वीकार नहीं करते। प्रबंधक निर्देशन के माध्यम से कर्मचारियों को इस प्रकार तैयार करते हैं की वे परिवर्तनों को स्वीकार करने लगते है।
    5. यह संगठन में संतुलन स्थापित करता है:- कभी-कभी व्यक्तिगत व संस्थागत उद्देश्यों में संघर्ष पैदा हो जाता है। निर्देशन इन संघर्षों को दूर करता हैं और संगठन में संतुलन स्थापित करने में सहायता करता है।
  • निर्देशन में तत्व:-
  1. पर्यवेक्षण:- इसका अभिप्राय अपने अधीनस्थों के दिन-प्रतिदिन के काम की प्रगति की देखभाल करने एवं उनका मार्गदर्शन करने से है। पर्यवेक्षण में एक महत्त्वपूर्ण बात यह हैं की अधिकारी एवं अधीनस्थ में आमने-सामने होता है।
  2. अभिप्रेरणा:- व्यावसायिक संगठन के दृष्टिकोण से अभिप्रेरणा से अभिप्राय संगठनात्मक उद्देश्यों को प्राप्त करने हेतु सभी स्तर के लिए तैयार करना है। इसमे व्यक्तियों की जरूरतों एवं इच्छाओं को जगाना भी सम्मिलित होता है। ताकि उनके व्यवहार को इच्छित दिशा में निर्देशित किया जा सके।
  3. नेतृत्व:- नेतृत्व वह क्रिया हैं जिसके द्वारा किसी व्यक्ति को इस प्रकार प्रभावित किया जाता हैं की वह स्वेच्छा से संगठनात्मक उद्देश्यों को प्राप्त करने की ओर प्रयासरत हो जाता है। नेतृत्व किसी व्यक्ति की वह योग्यता हैं जिसके द्वारा वह अपने तथा उन्हें संगठनात्मक उद्देश्यों को प्राप्त करने हेतु अभिप्रेरित करत पाता है।
    सभी स्तर के प्रबन्धकों से यह आशा की जाती हैं की वे अपने अधीनस्थों को नेतृत्व प्रदान करें।
  4. संप्रेषण:- संप्रेषण दो अथवा दो से अधिक व्यक्तियों के मध्य तथ्यों, विचारो सम्मतियों एवं भावनाओंं का विनिमय है। संप्रेक्षण विचारों सम्मतियों एवं भावनाओंं का विनिमय है। संप्रेषण विचारों को एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति तक पहुँँचने एवं समझाने की कला है।
  • पर्यवेक्षण
    पर्यवेक्षण से अभिप्राय अपने अधीनस्थों की कार्य पर जाँच करना और उन्हें कार्य सम्बन्धी निर्देश और प्रशिक्षण देने से है।
  • पर्यवेक्षण का महत्त्व/पर्यवेक्षक की भूमिका
    1. कर्मचारियों तथा प्रबंध के मध्य कड़ी:- पर्यवेक्षण प्रबंधकों एवं श्रमिकों के बीच एक महत्त्वपूर्ण कड़ी के रूप में कार्य करता है, वह श्रमिकों को प्रबंध की नीतियाँ बताता है। तथा कर्मचारियों की समस्याओ पर प्रबंध का ध्यान आकर्षित करता है।
    2. निर्देशों को जरी किया जाना:- नियंत्रण का आशय वास्तविक एवं नियोजित उत्पाद में तालमेल बैठना / बिठाना होता है। पर्यवेक्षण कार्य के निष्पादन को लक्ष्य के अनुसार किया जाना तय करता है।
    3. अनुशासन बनाए रखना:- पर्यवेक्षक का कठोर पर्यवेक्षण एवं मार्गदर्शन कर्मचारियों को अधिक अनुशासित रहकर कार्य करने की प्रेरण देता है।
    4. पर्यवेक्षक के मार्गदर्शन में श्रमिक निर्धारित समय सारणी का पालन करते हैं तथा योजनाओंं को सही दिशा में संचलित करते हैं।
    5. प्रतिपुष्टि (फीडबैक):- पर्यवेक्षक कर्मचारियों के साथ करके उनकी सहायता करता है। सीधा संपर्क होने के कारण वे उनसे प्राप्त सुझावों व शिकायतों की जानकारी प्रबंध को देते हैं।
    6. अभिप्रेरणा में वृद्धि:- अच्छी नेतृत्व क्षमता रखने वाला पर्यवेक्षक श्रमिको को मनोबल को बढ़ा सकता है। पर्यवेक्षक अपनी सर्वोतम क्षमता से कर्मचारियों को कार्य करने के लिए प्रेरित करते है। पर्यवेक्षक एवं कर्मचारियों के सम्बन्ध होने से कर्मचारियों का प्रेरणा स्तर बढ़ता है। कर्मचारियों का मार्गदर्शन करते समय पर्यवेक्षक उन्हें अपनी सर्वोतम क्षमता से कार्य करने के लिए प्रेरित करते है।
    7. संसाधनों का कुशलता उपयोग:- पर्यवेक्षक के अन्तगर्त विभिन्न क्रियाओ पर निगरानी रखी जाती है। ऐसी स्थिति में संसाधनों का बेहतर उपयोग संभव होता है।
  • अभिप्रेरणा का अर्थ:-
    अभिप्रेरणा का अर्थ उस प्रक्रिया से हैं जो इच्छित उद्देश्यों को पूरा करने हेतु लोगो को कार्य करने के लिए अभिप्रेरित करती है। अभिप्रेरणा लोगों की संतुष्टि की आवश्यकता पर निर्भर करती है। इसके द्वारा व्यक्तियों को उनकी जरूरतों का अनुभव इसलिए कराया जाता हैं की उन जरूरतों को पूरा करने के लिए वे कुछ कार्य करेंगे जो की संस्था के हित में होगा।
  • विशेषताएँ
    1. अभिप्रेरणा एक आंतरिक अनुभव है:- सर्वप्रथम व्यक्ति के मस्तिष्क में कुछ आवश्यकताएँँ जन्म लेती हैं जिनका प्रभाव उसके व्यवहार पर पड़ता हैं और उनको पूरा करने के लिए व्यक्ति कुछ कार्य करने की सोचता है।
    2. लक्ष्य निर्देशित व्यवहार:- यह व्यक्तियों को इस तरह से व्यवहार करने की प्रेरणा देता हैं जिससे वे अपने लक्ष्यों को प्राप्त कर सके।
    3. सकारत्मक अथवा नकारात्मक:- सकारत्मक अभिप्रेरणा का आशय व्यक्तियों को बेहतर कार्य करने तथा कार्य को सराहने के लिए प्रोत्साहन देना होता है। नकारात्मक अभिप्रेरणा से व्यक्तियों को धमकी या दण्ड द्वारा कार्य पर बल दिया जाता है।
    4. जटिल प्रक्रिया:- यह एक कठिन प्रक्रिया हैं क्योंकि व्यक्तियों की आवश्यकताएँं भिन्न-भिन्न होती हैं तथा ये घटती-बढ़ती रहती है।
    5. सतत् प्रक्रिया:- व्यक्ति आवश्यकताएँं असीमित होती हैं तथा सदैव बदलती रहती हैं। एक आवश्यकता को संतुष्ट होने पर दूसरी आवश्यकता उत्पन्न हो जाती हैं। इसलिए प्रबंधको को अभिप्रेरणा कार्य सतत् रूप से करना होता है।

  • अभिप्रेरणा का महत्त्व:-
    अभिप्रेरणा के महत्त्व को निमिन्लिखित लाभों से समझा जा सकता है।
    1. अभिप्रेरणा कर्मचारियों के निष्पादन स्तर में सुधार के साथ-साथ संगठन के सफल निष्पादन में सहायक है।
    2. अभिप्रेरणा कर्मचारियों के नकारात्मक दृष्टिकोण को सकारात्मक दृष्टिकोण में बदलने में सहायक होता है।
    3. अभिप्रेरणा कर्मचारियों के संस्था को छोड़कर जाने की दर को कम करती है।
    4. अभिप्रेरणा संगठन में कर्मचारियो की अनुपस्थिति दर को कम करती है।
    5. अभिप्रेरणा प्रबंधको को नए परिवर्तनों को लागू करने में सहायता देती है।
  • मास्लो की विचारधारा- क्रम अभिप्रेरणा का सिदान्त
    1. लोगो का व्यवहार उनकी आवश्यकताओं से प्रभावित होता है।
    2. लोगों की आवश्यकताएँ अनेक हैं और उनका क्रम निर्धारित किया जा सकता है।
    3. संतुष्ट आवश्यकता से अभिप्रेरणा बंद हो जाती है।
    4. लोग अपनी उच्च स्तरीय आवश्यकता पर तभी जाते हैं जब निम्न स्तरीय आवश्यकता संतुष्ट हो जाती है।
  • मौदीक तथा गैर-मौदिक प्रोत्साहन:-
    प्रोत्साहन का अर्थ हैं वे सभी माप जो व्यक्तियों को अभिप्रेरित कर निष्पादन सुधारने में प्रयोग किए जाते है।
मोद्रिकगैर मोद्रिक
जिनका मूल्याकंन मुद्रा के रूप में किया जा सकेजिनका मुद्रा से कोई प्रत्यक्ष सम्बन्ध नही है|
1. वेतन तथा भत्ता -वेतन महंगाई भता आदि1. पद प्रतिष्टा-उच्च पद देना ताकि समाजिक व मान-समान आवश्कता पूरी हो|
2.लाभ में भागीदारी-संस्था के लाभों में कर्मचारियों को हिस्सा2. संगठनिक वातावरण-अच्छा कार्य वातावरण  
3.बोनस-वेतन के अतिरिक्त3. जीवनवृति विकास के सुअवसर-कौशल में वृद्धि
4. उत्पादकता सबंधित परिप्रमित- कार्य के अनुसार परिश्रमिक4. पद संवर्धन-कार्य को और अधिक रुचिकर बनाना
5. अनुलाभ-कार भत्ता, घर5. कर्मचारियों को मान-सम्मान देने सम्बंधित कार्यक्रम
6. सहभागीदारी या स्टँक- बाजार से कम कीमत पर अंश6. पद सुरक्षा-स्थयी नौकरी
7. सेवा निवृति लाभ-पेंशन आदि7. कर्मचारीयों की भागीदारी-निणय लेने में भागीदारी
 8. कर्मचारीयो का सशक्तिकरण-ज्यादा स्वयातता व अधिकार देना
  • नेतृत्व
    नेतृत्व काम पर लोगो के व्यवहार को, संगठन के उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए प्रभावित करने की प्रक्रिया है। सभी स्तरों पर प्रबंधक अपने अधीनस्थों का नेतृत्व करते है।
    नेतृत्व अपने अनुयायियों के साथ अच्छे सम्बन्धो को रखने की क्षमता को दशार्ता हैं तथा उन्हें संगठनात्मक उद्देश्यों की प्राप्ति हेतु योगदान करने के लिए प्रोत्साहित करता है।
  • नेतृत्व की विशेषताएँँ
    1. नेतृत्व किसी व्यक्ति की दूसरों को प्रभावित करने की योग्यता को दर्शाता है।
    2. नेतृत्व, दूसरों के व्यवहार में परिवर्तन लाने का प्रयास करता है।
    3. नेतृत्व नेता तथा अनुयायियों के मध्य उनको पारस्परिक संबंधों को दर्शाता है।
    4. नेतृत्व संस्था के लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए किया जाता है।
    5. नेतृत्व एक निरंतर चलने वाली क्रिया जाता है।
  • नेतृत्व की शैलियाँ
    नेतृत्व शैली से हमारा आशय नेता के सामान्य व्यवहार से है। व्यवहार का वह पैटर्न जो एक नेता के लिए समान्य रूप से प्रदर्शित करता हँ, नेतत्व की शैली कहलाता है।
    एक नेतृत्व शैली नेता के दर्शन व्यक्तिव, अनुभव एवं मूल्य प्रणाली का परिणाम है। यह अनुयायियों के प्रकार एवं संगठन के प्रचलित वातावरण पर भी निर्भर करती है।
  • समान्य रूप से नेतृत्व शैली तीन प्रकार की होती हैं:-
    1. निरंकुशवादी नेतृत्व
    2. जनतांत्रिक या सहभागी नेतृत्व
    3. अहस्क्षेप नेतृत्व

  1. निरंकुशवादी या सहभागी नेतृत्व‍‌‌:-
    एक निरंकुश नेता आदेश देता है और इस बात पर देता है कि उन आदेशों को बिना किसी सुझाव या विरोध के माना जाए। वह बिना विचार-विमर्श किए, समूह के लिए नीतियाँ निर्धारित करता है।
    वह समूह को भविष्य की योजनाओं की जानकारी देने के स्थान पर उन्हें केवल उठाए जाने वाले अगले कदम बताता है।
    इस शैली के अंतर्गत सभी निर्णय लेने की शक्ति नेता के पास केंद्रीकृत होती है, जैसा की नीचे में प्रदर्शित है।
    • निरंकुशवाद नेतृत्व कब प्रयोग करना चाहिए?
      • समूह से विचार-विमर्श के लिए पर्याप्त समय उपलब्ध न होने पर।
      • जब नेता समूह का सबसे विदान हो।
  2. जनतांत्रिक या लोकतान्त्रिक नेतृत्व :-
    एक जनतांत्रिक नेता समूह से परामर्श के पश्चात ही आदेश देता हैं और समूह की स्वीकृति के बाद ही नीतियो को लागू करता है। ऐसा नेता बिना सुनिश्चित दीर्घकालीन योजना के अपने अधीनस्थों को कोई आदेश नहीं देता। जैसा की चित्र में प्रदर्शित है, ऐसा नेता समूह द्वारा लिए गये निर्णयों का समर्थन करता है। यह शैली कर्मचारियों को अपने कार्य के प्रति अभिप्रेरित करती है। इस शैली के प्रयोग से नेता और उसके अनुयायी, दोनों लाभान्वित होते है। यह शैली जहाँ एक तरफ अनुयायियों (अधीनस्थों) को टीम का हिस्सा बनने का अवसर देती है, वही दूसरी तरफ नेताओ (वरिष्ठों) को बेहतर निर्णय लेने में मदद करती है।
    • जनतांत्रिक नेतृत्व शैली का प्रयोग कब करना चाहिए?
      • उन स्थितियों में जहाँ समूह के सदस्य कुशल हो और अपने ज्ञान को बाँटने के इच्छुक हो।
      • जब योजना के निर्माण एवं क्रियान्वयन हेतु पर्याप्त समय उपलब्ध हो।
    • जनतांत्रिक नेतृत्व शैली का प्रयोग कब नहीं करना चाहिए?
      • जब समूह के सदस्यों की भूमिकाएँ स्पष्ट न हो।
      • जब समय की कमी हो।
  3. अहस्तक्षेप शैली
    इस नेतृत्व शैली के अंतर्गत नेता अपने अनुयायियों को पूरी स्वतंत्रता प्रदान करता है। ऐसा नेता शक्ति एवं अधिकारियों का प्रयोग कम करता है। समूह के सदस्य अपना कार्य अपने इच्छा एवं क्षमताओं के अनुसार करते हैं नेता का कार्य बाह्य स्रोतों से सम्पर्क स्थापित करके सूचनाओंं को अधीनस्थों तक पहुँचाना एवं कार्य पूर्ण करने के आवश्यक संसाधन उपलब्ध करना होता है।
    • अहस्तक्षेप नेतृत्व शैली का प्रयोग कब करना चाहिए?
      • अनुयायी अत्यधिक कुशल, अनुभवी एवं उच्च शिक्षा प्राप्त हों।
      • अनुयायियोंको अपने कार्य में एवं कार्य को स्वयं सफलतापूर्वक करने में गर्व का अनुभव होता है।
      • अनुयायी विश्वसनीय हो।
      • स्टॉक विशेषज्ञों या सलाहकारों के रूप में बाहर के विशेषज्ञ की सहायता ली जा रही हो।
    • अहस्तक्षेप नेतृत्व शैली का प्रयोग कब नहीं करना चाहिए?
      • जब नेता की अनुपस्थिति में अनुयायी असुरक्षित महसूस करते हैं।
      • जब नेता अपने अनुयायियो को नियमित प्रतिपुष्टि प्रदान करने में असक्षम हों।
  4. संप्रेषण:- संप्रेषण एक ऐसी प्रक्रिया हैं जिसके अंतर्गत सन्देश को एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति तक पहुँचाया जाता हैं ताकि वे पारस्परिक समझ बना सकें। प्रबंधक की निर्देशन क्षमता मुख्य रूप से प्रबंधक की संचार दक्षता पर निर्भर करती है। इसलिए संगठन सदैव प्रबंधको एवं कर्मचारियों की संचार दक्षता के विकास पर जोर देते है।
    1. प्रेषक- जो अपने विचारो को प्राप्तकर्ता के पास भेजता है।
    2. सन्देश- विचार, सुझाव, सूचना अदि।
    3. एन्कोडिंग- यह सूचना को विचार चिन्हों जैसे शब्दों चित्रों आदि में बदलने की प्रक्रिया है।
    4. माध्यम- कुटबद्ध सन्देश को प्राप्तकर्ता के पास भेजा जाता है।
    5. डिकोडिंग- सन्देश प्राप्त करने के बाद प्राप्तकर्ता उसी तरह प्रेषक आशा करता है, सन्देश को समझने का प्रयास करता है। एनकोडिंग चिन्हों को प्रेक्षकों को भेजना की प्रक्रिया है।
    6. प्राप्तकर्ता- वह व्यक्ति जो प्रेक्षक के संप्रेषण को प्राप्त करता है।
    7. प्रतिपुष्टि- प्राप्तकर्ता की सभी गतिविधियाँ सम्मिलित हैं जो यह संकेत करती हैं की उसने प्रेक्षक द्वारा भेजा गया सन्देश प्राप्त कर लिया है।
    8. शोरगुल / ध्वनि- शोरगुल एक ऐसा तत्व हैं जो सूचना में बाधा डालता है।

  • संप्रेषण का महत्त्व:-
    1. समन्वय के आधार के रूप में काम करना:- सफलता प्राप्ति के लिए विभिन्न क्रियाओ में समन्वय आवश्यक है। इसके लिए सभी व्यक्तियों को इस बात को पूरी जानकारी होने चाहिए की उनकी क्रियाओ में क्या सम्बंध हैं ऐसा केवल प्रभावपूर्ण संदेशवाहन द्वारा ही संभव है।
    2. निर्णय लेने के आधार के रूप में काम करना:- निर्णय से सम्बंधित सूचनाओं को संदेशवाहन द्वारा ही प्राप्त किया जा सकता है।
    3. प्रबंधकीय कुशलता को बढ़ाती है:- निर्णय से सम्बंधित सूचनाओं को संदेशवाहन द्वारा ही प्राप्त किया जा सकता है।
    4. सहयोग तथा औद्योगिक शांति को बढ़ावा:- संदेशवाहन के मध्यम से श्रमिक एवं प्रबधक दोनों को अपनी-अपनी बात कहने का अवसर मिलता हैं जिससे औद्योगिक शांति एवं सहयोग को बढ़ावा मिलता है।
    5. प्रभावशाली नेतृत्व की स्थापना:- प्रबंधक अपनी संदेशवाहन कला में सुधार करके एक कुशल नेता बन सकता हैं। लोगो को प्रभावित करते समय नेता को अच्छे संचार कौशल का उपयोग करना चाहिए।
    6. संस्था को निर्बाध चलने में सहायता करती है:- सभी संगठनिक अंत-क्रियाएँ सम्प्रेषण पर निर्भर करती है। अतः प्रभावी सम्प्रेषण व्यवस्था संस्था को निर्विहत चलने में सहायक सिद्ध होती है।
  • औपचारिक संप्रेषण:- जब कार्यालय से सम्बंधित विचारो या सन्देश या सूचना का आदान-प्रदान पूर्व निर्धारित रास्ते से होता हैं तो इसे औपचारिक संप्रेषण कहते हैं।
  • औपचारिक संप्रेषण का वर्गीकरण:-
    1. लम्बवत् संदेशवाहन- औपचारिक श्रृंखला के मध्यम से लम्बवत् रूप में ऊपर की और व नीचे की और चलता है।
      1. नीचे की और अथवा अधोमुखी संदेशवाहन- योजना, नीति, नियम
      2. ऊपर की ओर अथवा ऊर्द्धमुखी संदेशवाहन-सुझाव, शिकायत
    2. समतल संदेशवाहन:- औपचारिक श्रृंखला के माध्यम से समतल रूप में ही स्तर के दो व्यक्तियों के मध्य चलता है।
  • औपचारिक सम्प्रेषण के लाभ:-
    1. सूचनाओं का निश्चित रास्ते से प्रवाह
    2. सूचनाओं के स्रोत की जानकारी में सुगमता।
    3. उत्तरदायित्व निर्धारण में आसानी
    4. नियंत्रण में सुगमता
  • औपचारिक सम्प्रेषण की सीमाऐ:-
    1. धीमी प्रक्रिया
    2. व्यक्तिगत रूचि का अभाव
    3. कार्य की अधिकता
  • अनौपचारिक संप्रेषण:- संचार की औपचारिक रेखाओं को अपनाए बिना किया जाने वाला संप्रेषण अनौपचारिक संप्रेषण होता है।
    अनौपचारिक संप्रेषण के अधीन सूचनाओं के प्रवाह की कोई निश्चित दिशा या मार्ग नहीं होता।
  • अनौपचारिक संप्रेषण के लाभ:-
    1. तीव्र संदेशवाहन
    • सम्बन्धो में घनिष्ठता
    • सामाजिक संतुष्टि
    • औपचारिक संप्रेषण को प्रभावी बनाने में सहायक
  • अनौपचारिक संप्रेषण की सीमाए:-
    1. संदेशों की गलत प्रस्तुति
    2. अफावाहों को बढ़ावा
    3. असंगठित एवं अनियमित
    4. महत्त्वपूर्ण सूचनाओं की गोपनीयता में कमी
  • औपचारिकक तथा अनौपचारिक संप्रेषण में अंतर:-
क्र.सं.आधारऔपचारिकअनौपचारिक
1.आशययह अधिकार-दायित्व पर आधारित हैयह व्यक्तियों के आपसी संबंधो पर आधारित है
2.वाहिकाइसमे सप्रेषण मार्ग पूर्वनर्धरित होते हैइसमें संप्रेषण के मार्ग निर्धारित नही होते ये मानव सबंधो व भावनाओ से पनपते हँ|
3.गतिइसमें निर्णय देरी से लिये जाते है|इसमें तुरंत व शीघ निर्णय होते है|
4.प्रक्रतिइसकी प्रकृति कठोर होती है तथा इसमे सुधार नहीकिया जा सकता है|व्यक्ति से अन्य व्यक्ति तक बदल जाता है|
5.अभिव्यक्तिइसमें सन्देश लिखित रूप से व्यक्त किया जाता हैइसमें सन्देश मौखिक रूप से व्यक्त किया जाता है|

प्रभावशाली सन्प्रेषण में बधाएँ:-

  • भाषा संबंधी बाधाएँ:- शब्दों व भावों में सन्देश कूट लेखन व कूटवाचन समस्याओं तथा कठिनाइयों से जुड़ा है।
  • भाषा संबंधी मुख्य बाधाएँ निम्नलिखित है:-
    1. संदेशों की गलत व्याख्या-वांछित आशय प्रकट नहीं हो पाता।
    2. भिन्न अर्थो वाले चिन्ह अथवा शब्दों के प्रयोग से सन्देश अर्थहीन हो जाता है।
    3. त्रुटिपूर्ण अनुवाद अथवा रूपांतर से गलत सन्देश पहुँचता है।
    4. अर्थहीन तकनीकी भाषा का प्रयोग अधीनस्थों को दुविधा में डाल देता है।
    5. अस्पष्ट मान्यताओ को पीछे अलग-अलग मतलब निहित होते हैं जिससे अधीनस्थ दुविधा में आ जाते हैं।
  • मनोवैज्ञानिक बाधाएँ:- मानसिक रूप से अशांत कोई भी पक्ष संदेशवाहन को सार्थक बनाने में रुकावट बन सकता है। मानसिक बाधाएँ इस प्रकार हैं।
    1. समय से पूर्व मूल्यांकन गलत भी हो सकता है।
    2. ध्यान की कमी के कारण सन्देश निष्प्रभावी हो जाता है।
    3. प्रसारण द्वारा हानि तथा कमजोर ठहराव:- जब सन्देश कई लोगो के मध्य से होकर पहुँंचता हैं तो प्राप्तकर्ता तक पहुँँचते-पहुँँचते संदेश का स्वरूप बिगड़ जाता हैं जिससे कम सटीक सूचना आगे बढ़ती है।
    4. अविश्वास- इस प्रकार एक-दूसरे के सन्देश को उसके मूल भाव में नहीं समझ सकते।
  • संगठनात्मक बाधाएँं:-
    संगठनात्मक ढांचा कर्मचारियों के संदेशवाहन करने की योग्यता पर महत्त्वपूर्ण प्रभाव डालता है।
    संगठनात्मक बाधाएँ के इस प्रकार है:-
    1. यदि संगठनात्मक नीतियाँ संचार के मुख्या प्रभाव का समर्थन नही करती हैं तो बाधा उत्पन्न हो सकती है।
    2. नियम एवं अधिमियम- कठोर नियम एवं अधिनियम से लालफीताशाही, कार्य में विलम्ब हो सकता है।
    3. पदवी / पद-अपने पद प्रति अधिक देने वाले प्रबन्धक, अपने अधीनस्थों को स्वतंत्र रूप से अपनी भावनाएँ नहीं करने देते।
    4. संगठनात्मक ढाँचे की जटिलता-इससे विलंब एवं विदूषण होता है।
  • व्यक्तिगत बाधाएँ:-
    अधिकारियों व अधीनस्थों के बीच की व्यक्तिगत बाधाएँ इस प्रकार है:-
    1. सत्ता के सामने चुनौती के भय के कारण उच्च अधिकारियों द्वारा निम्न अधिकारियों से सम्प्रेषण न करना।
    2. अधिकारियों की अधीनस्थों के प्रति विश्वास की कमी।
    3. सम्प्रेषण में अनिच्छा- यदि सूचना नकारात्मक है तो उसका प्रभाव उन पर ही पड़ेगा।
    4. उपयुक्त प्रोत्साहन के अभाव के कारण अधीनस्थ संचार हेतु कदम नहीं उठाते।
  • प्रभावी संप्रेषण के लिए सुधार:-
    1. संदेशवाहन से पहले विचारो अथवा लक्ष्यों को स्पष्ट करना।
    2. प्राप्तकर्ता की आवश्यकताओं के अनुसार संप्रेषण।
    3. संप्रेषण से पहले दूसरों से सलाह लेना।
    4. सन्देश की भाषा शब्द व विषय वस्तु के प्रति जागरूक रहना।
    5. प्राप्तकर्ता के लिए सहायक एवं मूल्यवान सन्देश प्रेषित करना।
    6. उपयुक्त प्रतिपुष्टि सुनिश्चित करना-इससे संचार की सफलता को सुनिश्चित किया जा सकता है।
    7. सन्देश की समानता- जब कभी पुराने संदेश के स्थान पर नया सन्देश भेजना हो तो इसमें परिवर्तन का वर्णन होना चाहिए।