भू-आकृतिक प्रक्रियाएँ-प्रश्न-उत्तर

                                                                  सीबीएसई कक्षा - 11

विषय - भूगोल
एनसीईआरटी प्रश्नोत्तर
पाठ - 6 भू-आकृतिक प्रक्रियाएँ


1. बहुवैकल्पिक प्रश्न
(i) निम्नलिखित में से कौन-सी एक अनुक्रमिक प्रक्रिया है?

(क) निपेक्ष
(ख) ज्वालामुखीयता
(ग) पटल विरूपण
(घ) अपरदन
उत्तर- (घ) अपरदन

(ii) जलयोजन प्रक्रिया निम्नलिखित पदार्थों में से किसे प्रभावित करती है?
(क) ग्रेनाइट
(ख) क्वार्ट्ज़
(ग) चीका (क्ले) मिट्टी
(घ) लवण
उत्तर- (घ) लवण

(iii) मलवा अवधान को किस श्रेणी में सम्मिलित किया जा सकता है?
(क) भूस्खलन
(ख) तीव्र प्रवाही बृहत संचलन
(ग) मंद प्रवाही बृहत संचलन
(घ) अवतलन/धसकन
उत्तर- (ख) तीव्र प्रवाही बृहत संचलन


2. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 30 शब्दों में दीजिए:
(i) अपक्षय पृथ्वी पर जैव विविधता के लिए उत्तरदायी है। कैसे?

उत्तर- अपक्षय पृथ्वी पर जैव विविधता के लिए उत्तरदायी है क्योकि अपक्षय प्रक्रियाएँ चट्टानों को छोटे-छोटे टुकड़ों में तोड़ने एवं मृदा निर्माण के कार्य में मदद नहीं करती हैं यधपि वे अपरदन तथा बृहत संचलन के लिए भी उतरदायी हैं। जैव मात्रा तथा जैव विविधता प्रमुखतः वन की उपज हैं और वन अपक्षयी प्रवाल की गहराई अर्थात न केवल आवरण प्रस्तर एवं मिट्टी अपितु अपरदन बृहत संचलन पर निर्भर करता है। यदि चट्टानों का अपक्षय न हो तो अपरदन का कोई महत्त्व नहीं होता। चट्टानों का अपक्षय एवं निक्षेपण राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था के लिए अति आवश्यक और मूल्यवान है। यह कुछ खनिजों जैसे मैगनीज, एल्युमिनियम, लोहा, ताँबे के अयस्कों के समृद्धीकरण एवं संकेंद्रण में मदद करता है।

(ii) बृहत संचलन जो वास्तविक, तीव्र एवं गोचर, अवगम्य (Perceptible) हैं, वे क्या हैं? सूचीबद्ध कीजिए।
उत्तर- बृहत संचलन=इसमें सभी संचलन आते हैं, जिनमें चट्टानों के मलबे गुरुत्वाकर्षण के सीधे प्रभाव की वजह से ढाल अनुरूप स्थानांतरित होते हैं। भूस्खलन अपेक्षाकृत तीव्र और अवगम्य संचलन है। भूस्खलन मुख्यतः पर्वतीय भागों में ज़्यादा होता है। पर्वतीय भागों में शिखरों की ढाल बहुत तेज होती है। तीव्र ढाल की वजह शिखरों से पत्थर, मलबा, मिट्टी आदि घाटी की ओर गिरने लगते हैं। असम्बद्ध भ्रंश, तीव्रता से झुके हुए संस्तर, खड़े भृगु या तीव्र ढाल, पर्याप्त वर्षा, मूसलाधार वर्षा, कमजोर पदार्थ, छिछले संस्तर वाली चट्टानें, भूकंप तथा वनस्पति का अभाव, झीलों, नदियों एवं जलाशयों से भारी मात्रा में जल निष्कासन, विस्फोट आदि बृहत संचलन को अनुकूलित करते हैं।

(iii) विभिन्न गतिशील एवं शक्तिशाली बहिर्जनिक भू-आकृतिक कारक क्या हैं तथा वे क्या प्रधान कार्य संपन्न करते हैं?
उत्तर- बहिर्जनिक प्रक्रियाएँ = ये सूर्य द्वारा निर्धारित वायुमंडलीय ऊर्जा तथा अंतर्जनित शक्तियों से नियंत्रित विवर्तनिक कारकों से उत्पन्न प्रवणता से अपनी ऊर्जा प्राप्त करती हैं। इन सभी प्रक्रियाओं को एक सामान्य शब्दावली अनाच्छादन के अंतर्गत रखा जा सकता है। अनाच्छादन का अर्थ है आवरण को हटाने से है। संचलन, अपरदन, अपक्षय, वृहत क्षरण,परिवहन आदि अनाच्छादन प्रक्रिया से सम्मिलित होते हैं। तापमान एवं वर्षण जलवायु के दो महत्त्वपूर्ण घटक हैं जोकि विभिन्न भू-आकृतिक प्रक्रियाओं को नियंत्रित करते हैं।

(iv) क्या मृदा निर्माण में अपक्षय एक आवश्यक अनिवार्यता है?
उत्तर- मृदा निर्माण में अपक्षय एक आवश्यक अनिवार्यता है क्योंकि अपक्षय प्रक्रियाएँ शैलों को न केवल छोटे-छोटे टुकड़ों में तोड़ने तथा आवरण प्रस्तर एवं मृदा निर्माण के लिए मार्ग प्रशस्त करती हैं बल्कि इसके साथ-ही-साथ अपरदन एवं बृहत संचलन के लिए भी उत्तरदायी हैं। अपक्षय चट्टान निर्माणकारी, जलवायु पदार्थों की विशेषताओं एवं जीवों सहित कई अन्य कारकों के समुच्चय पर निर्भर करता है। मृदा निर्माण में मूल शैल एक निष्क्रिय नियंत्रक कारक है।अपक्षय मूल शैल को छोटे कण के रूप में बदल देती है तथा वही धीरे-धीरे मृदा का रूप ले लेता है।


3. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 150 शब्दों में दीजिए:
(i) "हमारी पृथ्वी भू-आकृतिक प्रक्रियाओं के दो विरोधात्मक वर्गों के खेल का मैदान है," विवेचना कीजिए।

उत्तर-"हमारी पृथ्वी भू-आकृतिक प्रक्रियाओं के दो विरोधात्मक वर्गों के खेल का मैदान है," इसके अनुसार धरातल पर दिखाई देने वाले विभिन्न स्थलरूपों का निर्माण पृथ्वी के आंतरिक एवं बाह्य बलों के पारस्परिक प्रभाव की वजह से होता है। इन बलों के माध्यम मुलायम शैलें आसानी से काँटी-छाँटी जाती हैं यधपि अपेक्षाकृत कठोर शैलों पर इनका प्रभाव कम पड़ता है। अतः किसी क्षेत्र के स्थल रूपों के निर्माण में शैलों की बहुत आवश्यक भूमिका होती है। पृथ्वी के आंतरिक बल धरातल को निरंतर ऊपर उठाने में लगे रहते हैं। यधपि बाह्य बल द्वारा उठे हुए भागों को काँट-छाँटकर समतल बनाने में निरंतर कार्य किया जाता रहता हैं। इस तरह बाह्य बलों अर्थात तल संतुलन के कारकों के निरंतर क्रियाशील रहने की वजह से विविध प्रकार के स्थलरूप बनते रहते हैं। धरातल पर पाए जाने वाले प्रमुख स्थलरूप पर्वत, पठार और मैदान हैं। इन स्थलरूपों में बाह्य बल द्वारा निक्षेपण, परिवहन, अपरदन, जैसी क्रियाएँ आरम्भ हो जाती हैं, जिससे कई नए स्थलाकृतियों का निर्माण होता है। सामान्यतः अन्तर्जनित शक्तियाँ मूल रूप से आकृति निर्मात्री शक्तियाँ होती हैं। धरातल का निर्माण एवं विघटन क्रमशः अन्तर्जनित एवं बहिर्जनिक शक्तियों का परिणाम है।

(ii) 'बहिर्जनिक भू-आकृतिक प्रक्रियाएँ अपनी अंतिम ऊर्जा सूर्य की गर्मी से प्राप्त करती हैं।' व्याख्या कीजिए।
उत्तर- 'बहिर्जनिक भू-आकृतिक प्रक्रियाएँ अपनी अंतिम ऊर्जा सूर्य की गर्मी से प्राप्त करती हैं।' गर्मी की वजह से शैलें फैलती रहती हैं और सुर्दी की वजह से सिकुड़ती हैं। गर्म मरुस्थलीय प्रदेशों में दिन में तापमान बहुत ऊँचा हो जाता है तथा यहां रातें बहुत ठंडी होती हैं। दैनिक ताप परिसर के ज़्यादा होने की वजह से शैलें क्रमिक रूप से फैलती तथा सिकुड़ती रहती हैं। इससे उनकी दरारें तथा जोड़ चौड़े हो जाते हैं तथा ये शैलें छोटे-छोटे टुकड़ों में टूट जाती हैं। शैलें सामान्यतः ताप क कुचालक होती हैं। अधिक गर्मी की वजह से शैलों की बाहरी परतें तेज से फैल जाती हैं। लेकिन भीतरी परतें गर्मी से लगभग अप्रभावित रहती हैं। क्रमिक रूप से फैलने और सिकुड़ने से शैलों की बाहरी परतें शैल के मुख्य भाग से पृथक हो जाती हैं। इस प्रक्रिया में शैलों की परतें प्याज कके छिलकों की तरह उतरती चली जाती हैं। उच्च तापमान तथा अधिक आर्द्रता वाले क्षेत्रों में रासायनिक अपक्षय अधिक तीव्रता से होता है। वनस्पति के प्रकार एवं वितरण, जो प्रमुखतः वर्षा एवं तापमान पर निर्भर करते हैं, बहिर्जनिक भू-आकृतिक प्रक्रियाओं पर अप्रत्यक्ष प्रभाव डालते हैं। इन सभी बहिर्जनिक भू-आकृतिक प्रक्रियाओं की शक्ति का स्रोत सौर ऊर्जा है। अतः हम कह सकते हैं कि बहिर्जनिक प्रक्रियाएँ अपनी अंतिम ऊर्जा सूर्य की गर्मी से प्राप्त करती हैं।

(iii) क्या भौतिक एवं रासायनिक अपक्षय प्रक्रियाएँ एक-दूसरे से स्वतंत्र हैं? यदि नहीं तो क्यों? सोदाहरण व्याख्या कीजिए।
उत्तर- भौतिक एवं रासायनिक अपक्षय की प्रक्रियाएँ भिन्न-भिन्न हैं, लेकिन यह एक-दूसरे से संबंधित भी हैं। भौतिक बल के माध्यम से चट्टानों का विघटन होता है यधपि रासायनिक क्रिया द्वारा चट्टानों का अपघटन होता है। भौतिक अपक्षय प्रक्रियाओं में कुछ अनुप्रयुक्त शक्तियाँ जैसे तापक्रम में परिवर्तन, गुरुत्वाकर्षण बल, क्रिस्टल रवों में वृद्धि आदि सम्मिलित हैं। रासायनिक अपक्षय प्रक्रियाओं का एक वर्ग जैसे विलयन, ऑक्सीकरण तथा न्यूनीकरण शैलों के अपघटन, विलयन, कार्बोनेटीकरण, जलयोजन, अथवा न्यूनीकरण का कार्य करते हैं, जो रासायनिक क्रिया के माध्यम से सूक्ष्म अवस्था में परितर्तित हो जाती हैं। ऑक्सीजन, धरातलीय या मृदा-जल एवं अन्य अम्लों की प्रक्रिया द्वारा चट्टानों का न्यूनीकरण होता है। इस प्रकार से दोनों में बीच अंतर देखने को मिलता है। लेकिन कई क्षेत्रों में भौतिक तथा रासायनिक अपक्षय की ये प्रक्रियाएँ अंतसबंधित हैं। ये एक साथ ही चलती रहती हैं तथा अपक्षय प्रक्रिया को त्वरित बना देती हैं। ये भौतिक तथा रासायनिक अपक्षय प्रक्रियाएँ चट्टानों को टुकड़ों या कणों में परिवर्तित करती हैं। दोनों चट्टानों में विखंडन करती हैं। दोनों मूल पदार्थों में अपघर्षण करती हैं।

(iv) आप किस प्रकार मृदा निर्माण प्रक्रियाओं तथा मृदा निर्माण कारकों के बीच अंतर ज्ञात करते हैं? जलवायु एवं जैविक क्रियाओं की मृदा निर्माण में दो महत्त्वपूर्ण कारकों के रूप में क्या भूमिका है?
उत्तर- मृदा निर्माण की प्रक्रिया- अपक्षय मृदा निर्माण में मुख्य भूमिका निभाता है। भौतिक अपक्षय धरातलीय शैलों को विघटित करके उन्हें बारीक चूर्ण में बदल देता है। जल इन छोटे-छोटे शैल कणों को परतों के रूप में बिछा देता है। ह्यूमस द्वारा जैविक अपक्षय बनता है। यह जैव पदार्थ पेड़-पौधों तथा जीव-जंतुओं के क्रियाकलापों से बनता है, जो मृदा के निर्माण में मदद करता है। अपक्षय की प्रक्रिया से अलग-अलग रंगों तथा गुणों वाली मृदाओं का निर्माण होता है।
मृदा निर्माण के कारक- मृदा निर्माण को नियंत्रित करने वाले कारकों में उच्चावच, समय, मूल शैल, जलवायु तथा जैविक तत्व शामिल हैं। उच्चावच, समय, मूल शैल, उच्चावच, समय,और जलवायु तथा जैविक तत्व को क्रियाशील कारक कहते हैं। आधारी शैल तथा जलवायु मृदा निर्माण के दो आवश्यक कारक हैं, क्योंकि ये अन्य कारकों को प्रभावित करते हैं।
मृदा निर्माण के कारक-

  1. उच्चावच- किसी क्षेत्र की स्थलाकृति मूल शैल पदार्थों के अपरदन की मात्रा तथा वहाँ बहने वाले जल की गति को प्रभावित करती है। इस तरह मृदा निर्माण में सहायक प्रक्रियाएँ प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप में उच्चावच से प्रभावित होती हैं।
  2. मूल शैल- मृदा अनेक खनिजों से युक्त शैल या मूल शैल पदार्थों से निर्मित होती है।
  3. जलवायु- मृदा निर्माण की प्रक्रिया में जलवायु सबसे ज़्यादा आवश्यक कारक है।
  4. समय- मृदा का निर्माण बहुत धीरे-धीरे होता है। इसलिए पूर्णरूप से विकसित मृदा के निर्माण में ज़्यादा समय लगता है।
  5. वनस्पति तथा जीव- पेड़-पौधे और जीव-जन्तु । मूल शैल पदार्थों को विकसित मृदा में बदलने में एक सक्रिय भूमिका निभाते हैं।