महात्मा गाँधी और राष्ट्रीय आंदोलन सविनय अवज्ञा और उससे आगे-पुनरावृति नोट्स
सीबीएसई कक्षा 12 इतिहास
(सविनय अवज्ञा और उससे आगे)
पुनरावृत्ति नोट्स
स्मरणीय बिन्दु-
- दो दशक विदेश में रहने के बाद 1915 में गांधी जी ने मातृभूमि वापस लौटने पर भारत को 1893 से अपेक्षाकृत भिन्न पाया भारत अब राजनीतिक रूप से अधिक सक्रिय था।
- 1905-07 के स्वदेशी आंदोलन ने कुछ प्रमुख नेताओं को जन्म दिया जिनमें महाराष्ट्र के बाल गंगाधर तिलक, बंगाल के विपिन चंद्र पाल और पंजाब के लाला लाजपत राय थे। ये तीनों "लाल बाल और पाल" के रूप में जाने जाते हैं।
- वर्ष 1917-18 में चम्पारन, खेड़ा और अहमदाबाद में की गई पहल से गाँधी जी एक ऐसे राष्ट्रवादी के तौर पर उभर कर सामने आए जिनमें गरीबों के लिए बेहद हमदर्दी थी।
- रॉलेट एक्ट के खिलाफ अभियान-दुकानों, स्कूलों आदि का बंद होना। इस एक्ट का मतलब था, ‘न दलील, न अपील, न वकील।’
- 13 अप्रैल, 1919 की जलियाँवाला बाग की घटना - अंग्रेज ब्रिगेडियर द्वारा राष्ट्रवादी सभा पर गोली चलाने का हुक्म तथा जलियाँवाला बाग हत्याकांड। इस हत्याकांड में 400 से अधिक लोग मारे गए।
- रॉलेट सत्याग्रह से गाँधी जी एक सच्चे समर्पित राष्ट्रीय नेता बन गए।
- खिलाफ़ आन्दोलन (1919-20) मुहम्मद अली और शौकत अली के नेतृत्व में भारतीय मुसलमानों का आन्दोलन। इस आंदोलन की माँगे थी - ऑटोमन साम्राज्य के तमाम इस्लामी पवित्र स्थानों पर खलीफ़ा का क़ब्ज़ा कायम रहे तथा जज़ीरात-उल -अरब इस्लामी प्रभुता के अधीन रहे।
- 1922 तक आंदोलन का केवल व्यावसायिकों और बुद्धिजीवियों तक सीमित न रहकर जन आंदोलन बनाना। 1857 के विद्रोह के बाद पहली बार असहयोग आंदोलन के कारण अंग्रेजी राज की नींव हिल गई।
- फरवरी 1992 में किसानों के एक समूह ने गोरखपुर के नजदीक चौरी-चोरा में एक पुलिस स्टेशन पर आक्रमण कर उसमें आग लगा दी जिससे कई पुलिस वाले मारे गए। परिणामस्वरूप गाँधीजी ने असहयोग आंदोलन को स्थगित कर दिया।
- 1922 तक गाँधी जी एक जननेता बन गए थे, क्योंकि भारतीय राष्ट्रवाद को उन्होंने एक नई दिशा डी जिसमें किसान, मज़दूर, व्यापारी मध्यमवर्ग को आंदोलन में शामिल किया, और उन तक अपनी पहचान बनाई। उनकी कार्यशैली, पहनावा, संगठन क्षमता ने आम भारतीय का शुभचिंतक बना दिया, लोगों ने उन्हें अपने दुःखों को हरने वाला माना।
- चरखे का महत्व - ऐसे मानव समाज के प्रतीक के रूप में देखा जिसमें मशीनों और प्रौद्योगिकी को बहुत महामंडित नही किया गया।
- दिसम्बर 1929 के लाहौर अधिवेशन में कांग्रेस द्वारा पूर्ण स्वराज्य की उद्घोषणा। 26 जनवरी 1930 केा राष्ट्रीय ध्वज फहराकर, स्वतंत्रता दिवस मनाया गया।
- 12 मार्च 1930 से साबरमती से समुद्र की ओर दाण्डी मार्च का गांधी जी द्वारा अपने अनुयायियों के साथ आरम्भ किया तथा 6 अप्रैल, 1930 को नमक बनाकर दाण्डी यात्रा को समाप्त किया।
- नमक यात्रा तीन कारणों से उल्लेखनीय था।
- इस आन्दोलन के चलते गाँधी जी दुनिया की नजर में आए।
- यह पहला राष्ट्रवादी गतिविधि थी, जिसमें औरतों ने बढ़चढ़कर हिस्सा लिया।
- अंग्रेज़ों को यः अहसास हुआ उनका राज बहुत दिनों तक नहीं टिकेगा।
- 1931 में गाँधी-इर्विन समझौते पर सहमति। शर्ते-सविनय अवज्ञा आंदोलन वापस लेना, सारे कैदियों की रिहाई, तटीय इलाको में नमक उत्पादन की अनुमति।
- 1931 के अंत में दूसरा गोलमेज सम्मेलन भी असफल। सम्मेलन के किसी नतीजे पर न पहुँच पाने के कारण गाँधी जी का खाली हाथ भारत लौटने पर सविनय अवज्ञा आंदोलन शुरू करना।
- भारत छोड़ो आंदोलन सही मायने में एक जनांदोलन था। गाँधी, नेहरू जैसे प्रमुख नेताओं के गिरफ्तारी के बाद स्वतः स्फूर्त तरीके से जारी। युवाओं की भारी मात्रा में हिस्सेदारी।जयप्रकाश नारायण द्वारा भूमिगत प्रतिरोध आंदोलन। सतारा, मिदनापुर और बलिया में स्थानीय स्वतंत्र सरकार की स्थापना।
- 1935 का नया गवर्नमेंट ऑफ इंडिया एक्ट-सीमित प्रतिनिधिक शासन व्यवस्था का आश्वासन।
- कांग्रेस मंत्रिमंडल द्वारा अक्टूबर 1939 में इस्तीफा चूंकि काँग्रेस की स्वतंत्रता देने की मांग को सरकार ने खारिज कर दिया।
- मार्च 1940 में मुस्लिम लीग द्वारा उपमहाद्वीप के मुस्लिम-बहुल इलाक़ों के लिए स्वायत्तता की माँगों का प्रस्ताव प्रस्ततु किया। अब आजादी का संघर्ष कांग्रेस, मुस्लिम लीग तथा ब्रिटिश शासन तीन धुरियों के बीच संघर्ष हो गया।
- क्रिप्स मिशन की विफलता के बाद अगस्त, 1942 में भारत छोड़ो आन्दोलन का फैसला। यह सही अर्थों में जनांदोलन था।
- 1946 में कैबिनट मिशन भारत आया किन्तु वार्ता असफल।
- 16 अगस्त 1946 का दिन जिन्ना द्वारा पाकिस्तान की स्थापना के लिए लीग की माँग के समर्थन में प्रत्यक्ष कार्यवाही दिवस के रूप में तय। उसी दिन कलकत्ता में खूनी संघर्ष शुरू।
- 1947 में वावेल की जगह लॉर्ड माउंटबेटन की वायसराय के पद पर नियुक्ति। उनके द्वारा वार्ताओं के अंतिम दौर का आह्वान। प्रयासो के विफल होने पर स्वतंत्रता का ऐलान किन्तु उसके साथ विभाजन का भी ऐलान।
- समकालीन स्रोत जैसे गाँधी जी के सहयोगियों और प्रतिद्वंदियों का भाषण व लेखन, गाँधीजी की आत्मकथा तथा जीवनी, पुलिस रिकोर्ड, अखबारों में छपे रिपोर्ट निजी पत्राचार गाँधी जी को समझने में बहुत महत्त्वपूर्ण समकालीन स्रोत है।
- अंततः 30 जनवरी 1948 की शाम को गाँधी जी की दैनिक प्रार्थना सभा में, एक युवक द्वारा गोली मारकर उनकी हत्या कर दी गई। यद्यपि गाँधी जी ने स्वतंत्र और अखंड भारत के लिए जीवन भर अहिंसक संघर्ष किया तथापि देश विभाजित हो गया।
महत्वपूर्ण बिंदु-
- गाँधीजी स्वंतत्रता सग्रांम में भाग लेने वाले सभी नेताओं में सर्वाधिक प्रभावशाली और सम्मानित है।
- मोहनदास करमचंद गाँधी दक्षिण अफ्रीका में दो दशक रहने के बाद जनवरी 1915 में भारत वापस आए।
- दक्षिण अफ्रीका में गाँधीजी ने पहली बार सत्याग्रह के रूप में जानी गई अंहिसांत्मक विरोध की अपनी विशिष्ठ तकनीक का इस्तेमाल किया और विभिन्न धर्मो के बीच सौहाद्र बढ़ाने का प्रयास किया।
- गोखले की सलाह से इस भूमि और इसके लोगों को जानने के लिए गाँधीजी ने एक वर्ष की यात्रा की।
- उनकी पहली महत्वपूर्ण सार्वजनिक उपस्थिति फरवरी 1916 में बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय में के उद्घाटन समारोह में हुई। जहाँ उन्होंने मजदूरों और किसानों को अपने भाषण का केंद्र बिंदु बनाया तथा अपने भविष्य की राजनीतिक रूपरेखा तय की।
- अपनी भाषण की माध्यम से उन्होंने भारतीय विशिष्ट वर्ग को आड़े हाथों लिया और लाखों गरीब भारतीयो का समर्थन किया।
- उन्होंने सफलता पूर्वक 1917 में चम्पारण सत्याग्रह और 1918 में खेड़ा सत्याग्रह और अहमदाबाद कपडे मिल के मजदूरो का समर्थन किया।
- 1914-18 के प्रथम विश्वयुद्ध के दौरान अंग्रेज़ों ने प्रेस पर प्रतिबंध लगा दिया और बिना जाँच के कारावास की अनुमति दी। आगे चलकर सर सिडनी रॉलेट समिति की सिफारिशों के आधार पर इन कठोर उपायों को जारी रखा गया।
- 1919 देशभर में रोलेट एक्ट के खिलाफ अभियान, रोलेट सत्याग्रह से गाँधीजी एक सच्चे राष्ट्रीय नेता बने।
- 1920 में असहयोग आंदोलन की शुरुआत हुई, जिसमें खिलाफत आंदोलन को समर्थन देकर हिन्दू मुस्लिम एकता पर बल दिया गया।
- 1920 जलियाँवाला बाग हत्याकांड के बाद अग्रेंजी शासन के खिलाफ असहयोग आदोंलन, खिलाफ आंदोलन का समर्थन, अंग्रेजों के साथ पूरी तरह असहयोग, स्कूल, कालेज और कचहरियों का बहिष्कार।
- चौरी चोरा हत्याकांड और आदोंलन वापिस लेना।
- गाँधीजी एक लोकप्रिय नेता होने के कारण- आम लोगों की तरह वस्त्र पहनते थे, उनकी तरह रहते थे और उनकी तरह ही भाषा बोलते थे।
- 1924 जेल से रिहा होने के बाद गाँधीजी अपना घ्यान रचनात्मक कार्य जैसे, चरखा को लोकप्रिय बनाना, हिन्दू - मुसलमान एकता, छुआछूत को समाप्त करने में लगाया।
- 1928 साईमन कमीशन, गाँधीजी का राजनीति में पुनः प्रवेश।
- 1929 लाहोर में काग्रेंस का अधिवशेन, पूर्ण स्वराज्य की माँग।
- 1930 दांडी मार्च, नमक कानून का उल्लंघन।
- देश के विशाल भाग में वन कानून का उल्लंघन, फैक्ट्री कामगरों का हड़ताल, वकीलों का ब्रिटिश अदालतों का बहिष्कार, विद्यार्थियों का सरकारी शिक्षा संस्थानों का बहिष्कार।
- 1930 गोलमेज सम्मेलन, कांग्रेंस ने बहिष्कार किया।
- 1931 गाँधी - इर्विन समझौता
- 1935 गवर्नमेंट ऑफ इंडिया एक्ट
- 1937 प्रांतों में चुनाव, 11 में से 8 प्रांतों में कांग्रेंस की सरकारे
- 1939 द्वितीय विश्व युद्ध, कांग्रेसी मंत्रिमंडलों द्वारा इस्तीफा।
- 1940 मुसलिम लींग के द्वारा प्रथक राष्ट्र की माँग।
- 1942 क्रिप्स मिशन की असफलता, भारत छोडों आदोंलन, पूरे भारत में जन आदोंलन।
- 1946 केबिनेट मिशन, कांग्रेस और मुस्लिम लीग को एक संघीय व्यवस्था पर राजी करने में असफलता, बंगाल बिहार उत्तर प्रदेश और पंजाब में साम्प्रदायिक दंगे
- 1946 लार्ड मांउटबेटन का वायस राय बनना, भारत का विभाजन, औपचारिक सत्ता हस्तातरण, भारत को स्वंतत्रता की प्राप्ति।
- राजधानी में हो रहे उत्सवों में गाँधीजी की अनुपस्थिति, कलकत्ते में 24 घंटे के उपवास।
- बंगाल में शांति स्थापना के लिए अभियान चलाने के बाद गाँधीजी का दिल्ली आंगमन, यहाँ से दंगाग्रस्त पंजाब के जिलों में जाने के विचार 30 जनवरी 1948 नाथूराम गोडसे द्वारा गाँधीजी को गोली मारकर हत्या कर दी गई।