स्थानीय शासन - पुनरावृति नोट्स
CBSE कक्षा 11 राजनीति विज्ञान
पाठ - 8 स्थानीय शासन
पुनरावृति नोटस
पाठ - 8 स्थानीय शासन
पुनरावृति नोटस
स्मरणीय बिंदु:-
- स्थानीय शासन: गांव और जिला स्तर के शासन को स्थानीय शासन कहते है। यह आम आदमी का सबसे नजदीक का शासन है। इसमें जनता की प्रतिदिन की समस्याओं का समाधान बहुत तेजी से तथा कम खर्च में हो जाता है।
- लोकतंत्र का अर्थ है सार्थक भागीदारी तथा जवाबदेही। जीवंत और मजबूत स्थानीय शासन सक्रिय भागीदारी और उद्देश्यपूर्ण जवाबदेही को सुनिश्चित करता है। जो काम स्थानीय स्तर पर किए जा सकते हैं वे काम स्थानीय लोगों तथा उनके प्रतिनिधियों के हाथ में रहने चाहिए। आम
- जनता राज्य, सरकार या केन्द्र सरकार से कहीं ज्यादा स्थानीय शासन से परिचित होती है।
- भारत में स्थानीय शासन का विकास: प्राचीन भारत में अपना शासन खुद चलाने वाले समुदाय, ‘सभा’ के रूप में मैजूद थे। आधुनिक समय में निर्वाचित निकाय सन् 1882 के बाद आस्तित्व में आए। उस वक्त उन्हें ‘मुकामी बोर्ड” कहा जाता था। 1919 के भारत सरका अधिनियम के बनने पर अनेक प्रांतो में गग्रम पंचायते बनी।
जब संविधान बना तो स्थानीय शासन का विषय प्रदेशों को सौंप दिया गया। संविधान के नीति निर्देशक सिद्धांतों में भी इसकी चर्चा है। - स्वतंत्र भारत में स्थानीय शासन: संविधान के 73 वें और 74वें संशोधन के बाद स्थानीय शासन को मजबूत आधार मिला। इससे पहले 1952 का ‘सामुदायिक विकास कार्यक्रम” इस क्षेत्र में एक अन्य प्रयास था इस पृष्ठभूमि में ग्रामीण विकास कार्यक्रम के तहत एक त्रिस्तरीय पंचायती राज व्यवस्था की शुरूआत की सिफारिश की गई। ये निकाय वित्तीय मदद के लिए प्रदेश तथा केन्द्रीय सरकार पर बहुत ज्यादा निर्भर थे। सन् 1987 के बाद स्थानीय शासन की संस्थाओं के गहन पुनरावलोकन की शुरूआत हुई।
- सन् 1989 में पी.के. थुगन समिति ने स्थानीय शासन के निकायों को संवैधानिक दजी प्रदान करने की सिफारिश की।
- संविधान का 73वां और 74 वां संशोधन: सन् 1992 में ससंद ने 73वां और 74 वां संविधान संशोधन पारित किया।
- 73वां संशोधन गांव के स्थानीय शासन से जुड़ा है। इसका संबंध पंचायती राज व्यवस्था से है। 74वां संशोधन शहरी स्थानीय शासन से जुड़ा है।
- 73वां संशोधन- 73वें संविधान संशोधन के कुछ प्रावधान
(1) त्रि-स्तरीय ढांचा: अब सभी प्रदेशों में पंचायती राज व्यवस्था का त्रि-स्तरीय ढांचा है।
(2) चुनावः पंचायती राज संस्थाओं के तीनों स्तरों के चुनाव सीधे जनता करती है। हर निकाय की अवधि पांच साल की होती है।
(3) आरक्षण:
- महिलाओं के लिए एक तिहाई सीटें आरक्षित
- अनुसूचित जाति तथा अनुसूचित जन जाति के लिए उनकी जनसंख्या के अनुपात में आरक्षण का प्रावधान है।
- यदि प्रदेश की सरकार चाहे तो अन्य पिछड़ा वर्ग (ओ.बी.सी) को भी सीट में आरक्षण दे सकती है।
इस आरक्षण का लाभ हुआ कि आज महिलाएं सरपंच के पद पर कार्य कर रही है - भारत के अनेक प्रदेशों के आदिवासी जनसंख्या वाले क्षेत्रों को 73 वें संविधान के प्रावधानों से दूर रखा गया परन्तु सन् 1996 में एक अलग कानून बना कर पंचायती राज के प्रावधानों में, इन क्षेत्रों को भी शामिल कर लिया गया।
- राज्य चुनाव आयुक्त: प्रदेशों के लिए यह जरूरी है कि वे एक राज्य चुनाव आयुक्त नियुक्त करें। इस चुनाव आयुक्त की जिम्मेदारी पंचायती राज संस्थाओं के चुनाव कराने की होगी।
- राज्य वित्त आयोग: प्रदेशों की सरकार के लिए जरुरी है कि वो हर पांच वर्ष पर एक प्रादेशिक वित्त आयोग बनायें। यह आयोग प्रदेश में मौजूद स्थानीय शायन की संस्थाओं की आर्थिक स्थिति की जानकारी रखेगा।
- 74वां संशोधन: 74वें संशोधन का संबंध शहरी स्थानीय शासन से है अर्थात् नगरपालिका से।
शहरी इलाका: (1) ऐसे इलाके में कम से कम 5000 की जनसंख्या हो (2) कामकाजी पुरूषों में कम से कम 75% खेती बाड़ी से अलग काम करते हो (3) जनसंख्या का घनत्व कम से कम 400 व्यक्ति प्रति वर्ग किलोमीटर हो। विशेष: अनेक रूपों में 74 वें संविधान संशोधन में 73वे संशोधन का दोहराव है। लेकिन यह संशोधन शहरी क्षेत्रों से संबंधित है। 73 वें संशोधन के सभी प्रावधान मसालन प्रत्यक्ष चुनाव, आरक्षण विषयों का हस्तांतरण, प्रादेशिक चुनाव आयुक्त और प्रादेशिक वित्त आयोग 74 वें संशोधन में शामिल है तथा नगर पालिकाओं पर लागू होते हैं।
73वें और 74वें संशोधन का क्रियान्वयन: (1994-2016) इस अवधि में प्रदेशों में स्थानीय निकायों के चुनाव कम से कम 4 से 5 बार हो चुके है। में निरंतर भारी बढोतरी हुई है। महिलाओं की शक्ति और आत्म विश्वास में काफी वृद्धि हुई है। - विषयों का स्थानांतरण: संविधान के संशोधन ने 29 विषय को स्थानीय शासन के हवाले किया है। ये सारे विषय स्थानीय विकास तथा कल्याण की जरूरतो से संबंधित है।
स्थानीय शासन के विषय-
स्थानीय शासन के समक्ष समस्याएं-
- धन का अभाव
- जनता का जागरूक ना होना
- आयसे अधिक खर्च करना
- वित्तीय मदद के लिए सरकारों पर निर्भर
स्थानीय शासन की आवश्यकता:-
- सरकार का कार्यभार कम होता है उनके समय व शक्ति की बचत होती है।
- स्थानीय शासन में लोगों को स्वयं अपने कार्यो के प्रबंधन का अवसर मिलता है और उनमें जिम्मेदारी की भावना आती है।
- स्थानीय स्तर पर आपसी संबंधो में सुधार आता है।
- स्थानीय निकायों द्वारा नवीन योजनाओं की अच्छी जानकारी प्राप्त होती है।
- स्थानीय समस्याओं का समाधान कम खर्च व कम समय में कर पाते है।
- स्थानीय शासन का अर्थ है स्थानीय लोगों द्वारा स्वयं अपना शासन चलाना।
- स्थानीय शासन के निर्वाचित निकाय सन् 1882 के बाद अस्तित्व में आए।
- महात्मा गांधी ने सत्ता के विकेंद्रीकरण के लिए ग्राम पंचायतों को मजबूत और स्वालम्बी बनाने पर जोर दिया था।
- स्थानीय विकास में जनता की भागीदारी के लिए सन् 1952 में सामुदायिक विकास कार्यक्रम की शुरूआत की गई।
संविधान में स्थानीय शासन को उचित महत्व नही मिला-
- देश-विभाजन के कारण संविधान का झुकाव केन्द्र को मजबूत बनाने में रहा।
- नेहरू जी अति-स्थानीयता को राष्ट्र की एकता और अखण्डता के लिए खतरा मानते थे।
- स्थानीय शासन का उद्देश्य अच्छा है लेकिन ग्रामीण भारत में जाति व्यवस्था, गुटबाजी व अन्य बुराईयों के कारण इसे लागू करना ठीक नही समझा।
- 73 वें और 74 वें संविधान संशोधन द्वारा पंचायती राज संस्थाओं को संवैधानिक दर्जा प्रदान किया गया। ये संशोधन सन् 1992 में संसद में पारित हुए तथा सन् 1993 में लागू हुआ।
- सभी पंचायती संस्थाओं में एक तिहाई सीटें महिलाओं के लिए आरक्षित की गई है।
- स्थानीय विकास तथा कल्याण की जरूरतों से संबंधित 29 विषयों को संविधान की 11वीं अनुसूची मं दर्ज कर स्थानीय शासन के हवाले किया गया है।
- पंचायती राज संस्थाआें का त्रिस्तरीय ढाँचा अपनाया गया है।
- इन संस्थाओं के लिए अलग से राज्य चुनाव आयुक्त तथा राज्य वित्त आयोग की व्यवस्था की गयी है।