हरिबंश राय बच्चन - पुनरावृति नोट्स

 सीबीएसई कक्षा - 12 हिंदी कोर आरोह

पाठ – 01 आत्मपरिचय


पाठ का सार व्यक्ति के लिए समाज से निरपेक्ष एवं उदासीन रहना न तो संभव है न ही उचित है। अपने व्यंग्य वाणों, शासन-प्रशासन से चाहे कितना कष्ट दे, पर दुनिया से कट कर व्यक्ति अपनी पहचान नहीं बना सकता, परिवेश ही व्यक्ति को बनाता है, ढालता है। इस कविता में कवि ने समाज एवं परिवेश से प्रेम एवं संघर्ष का संबंध निभाते हुए जीवन में सामंजस्य स्थापित करने की बात की है। छायावादोत्तर गीति काव्य में प्रीति-कलह का यह विरोधाभास दिखाई देता है, व्यक्ति और समाज का संबंध इसी प्रकार प्रेम और संघर्ष का है जिसमें कवि आलोचना की परवाह न करते हुए संतुलन स्थापित करते हुए चलता है। ‘नादान वहीं है हाय, जहाँ पर दाना’ पंक्ति के माध्यम से कवि सत्य की खोज के लिए अहंकार को त्याग कर नई सोच अपनाने पर जोर दे रहा है।


पाठ – 01 एक गीत

पाठ का सार दिन जल्दी जल्दी ढलता है। प्रस्तुत कविता में कवि बद्धन कहते हैं कि समय बीतते जाने का एहसास हमें लक्ष्य-प्राप्ति के लिए प्रयास करने के लिए प्रेरित करता है।  मार्ग पर चलने वाला राही यह सोचकर अपनी मंजिल की ओर कदम बढ़ाता है कि कहीं रास्तें में ही रात न हो जाए। पक्षियों को भी दिन बीतने के साथ यह एहसास होता है कि उनके बचे कुछ पाने की आशा में घोंसलों से झांक रहे होंगे। यह सोचकर उनके पंखो में प्रति आ जाती है कि वे जल्दी से अपने लोगों से मिल सकें। कविता में आशावादी स्वर है। गंतव्य का स्मरण पथिक के कदमों में स्फूर्ति भर देता है।आशा की किरण जीवन की जड़ता को समाप्त कर देती है।