अंतरा - तुलसीदास - पुनरावृति नोट्स

 CBSE Class 12 हिंदी ऐच्छिक

पुनरावृति नोट्स
पाठ-7 भारत-राम का प्रेम / पद


(क) भरत-राम का प्रेम
(1) पुलकि  सरीर  ....................  पिआसे  नैन  ।।
व्याख्या  बिंदु:- प्रस्तुत  छंद कवि तुलसीदास कृत  रामचरितमानस के  अयोध्या कांड का  अंश  है।  राम वन गमन के उपरान्त भरत के मनोभाव का वर्णन है। अपने प्रभु श्री राम के विषय में बोलते समय उनका  शरीर  पुलक  से  भर  जाता  है  और नेत्रा  अश्रु पूरित  हो उठते  है।  वह  श्री  राम के  स्वभाव  की चर्चा करते  हुए कहते  है  कि उनका  हृदय  कोमल  और निर्मल  है।  उनके  व्यक्तित्व की  विशेषताएं बताते हैं  कि  वे अपराधी  पर भी  क्रोध् नहीं करते,  खेल में  स्वयं हार कर  मुझे  जिताते  है। ऐसा  करना मेरे प्रति उनके प्रेम और अनुराग का परिचायक है। बचपन से ही उन्होनें मेरा साथ दिया है। भरत कहते है  कि  मेरे  नेत्रा  सदा  श्री  राम  के  दर्शन  के  लिए  लालायित  रहते  है। 
2) विधि न सकेउ .............. मुनि रघुराउ।।
व्याख्या बिन्दु: भरत भाव विभोर हो कर कहते  है कि संभवतः ईश्वर के  लिए मेरे प्रति  श्रीराम का प्रेम असहनीय  था,  इसी  कारण  उन्होंने  माता के  दुव्र्यवहार को  बहाना बना  हम दोनों  को अलग  कर दिया। माता की कुबुद्धि के कारण  ही राम वन गए।  भरत कहते  हैं  कि माता के प्रति  अभद्र विचार और अपशब्द सर्वथा अनुचित है। अपने  चरित्रा का  सही आकलन स्वयं कठिन है।  चरित्रा की पवित्राता का  निर्णय अन्य ही करते  है। माता को अध्म  और स्वयं को  उत्तम मानना  अनुचित है।  जिस प्रकार कोदो की  बाली से उत्तम धन उत्पन्न नहीं हो सकता और घोंघा श्रेष्ठ मोती केा जन्म नही दे सकता, उसी प्रकार दुराचारी  माता के गर्भ  से चरित्रावान सदाचारी पुत्रा का जन्म संभव नहीं है।  श्री राम और मेरे अलगाव का कारण मेरे  पूर्व जन्म के  पाप कर्म  हैं।  माता के साथ  बुरा व्यवहार और अपशब्दों का प्रयोग कर मैंने उन्हें दुखी और पीड़ित किया है। मेरे उद्धार का एक मात्रा साध्न मेरे गुरू और श्रीराम है।  मेरे वचनों  की  सत्यता  और पवित्राता  से  मुनि  विशिष्ठ और श्री  राम परिचित  है। 
3)  भूपति  मरन  ............... ...........  सहावइ  काहि।।
व्याख्या बिन्दु :-  राम के  वन गमन  के पश्चात्  सब  दुखी है।  भरत माताओं  और अयोध्या  वासियों के दुख का मूल कारण स्वयं को मानते  हैं। राजा दशरथ ने राम वियोग में प्राण त्याग दिए। राजा की मृत्यु  और  माता  की  कुबुद्धि  का  साक्षी  समस्त  संसार  है।  राम  के  वनवास  के  कारण  अयोध्या  के  नागरिक विरह अग्नि में जल रहे है। मेरे कारण ही श्री राम, लक्ष्मण और सीता मुनि का वेष धरण कर वन को चले गए,  वे बिना  पादुका  पैदल चले गए।  भगवान् शंकर इस  बात के  साक्षी  है कि मैं सब के दुख का कारण होने पर भी जीवित हूँ।  निषाद राज की भक्ति और श्रद्धा को जानकर भी मेरा कठोर हृदय नहीं पिघला।  श्री राम के प्रताप  से मार्ग  में आने वाले सर्प और बिच्छु  भी अपना  विष त्याग  देते है । 
ऐसे दयालु, श्री राम लक्ष्मण और सीता के साथ शत्रुता का व्यवहार किया उस कैकेयी के पुत्रा भरत को ईश्वर अवश्य दंड देगा।

(ख) पद
1) जननी  निरखति  ........................  प्रीति  सिखी  सी।।
व्याख्या  बिंदु :- प्रस्तुत  पद तुलसीदास  कृत  गीतावली  से  है।  राम  वन गमन  के  पश्चात् माता  कौशल्या की  विरह  वेदना का मार्मिक  चित्राण  किया गया है।  राम के  शैशव काल की  जूतियाँ, ध्नुष  बाण आदि को देखकर माता कौशल्या का दुःख बढ़ जाता है। वह उन्हें के बार बार अपने हृदय से लगाती है। उनके कक्ष  में जाकर वह यह कहकर जगाने लगती है कि अनुज और सखा तुम्हारी प्रतीक्षा कर रहे हैं  उठों और अपने भाइयों,  मित्रों के  साथ मिलकर अपनी रूचि का भोजन ग्रहण करो।  राम को कमरे में न देख  अचानक  राम वन गमन प्रसंग के  स्मरण से वह  दुःख वेदना के  कारण,  स्तब्ध् और चित्रावत् हो जाती है। 
माता कौशल्या की दशा नृत्य में मग्न उस मोरनी की भांति हैं जो नृत्य के अंत में अपने पैरों को  देखकर  रोने लगती  है।  भाव  यह है  कि  माँ  कौशल्या  की विरह  वेदना  का  वर्णन शब्दों  में  नहीं किया  जा सकता  है। 
2 .  राधौ  एक  ............... ....  बड़ो  अंदेसो।।
व्याख्या  बिंदु:-  प्रस्तुत पद  में अश्व  के  बहाने  माता कौशल्या  की  वेदना  का मार्मिक  मित्राण  है।  किस प्रकार  अश्वों को  देखाने के  बहाने  अयोध्या लौटने  को कहती  हैं।  वास्तव  में माता  राम को  देखाने  मिलने की आकांक्षी है।  राम के  प्रिय अश्वों की दुःखी अस्वस्थ  अवस्था उनकी चिंता का कारण  है। माता कौशल्या  कहती  हैं  जिन  अश्वों  की  देखभाल  तुम  स्वयं  अपने  कर-कमलों  से  करते  थे  तुम् हारे  स्पर्श के अभाव में उनकी दशा हिमपात हुए कमल के समान है। माता कौशल्या पथिक से अनुरोध् करती हैं  कि  वन  में  यदि  राम  से  भेंट  हो  तो  उन्हें  अश्वों  की  दशा  से  अवगत करा  देना।