ईंटें मनके तथा अस्थियाँ-महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर

                                                           सीबीएसई कक्षा -12 इतिहास

महत्वपूर्ण प्रश्न
पाठ – 01
ईंटें, मनके तथा अस्थियाँ (हड़प्पा सभ्यता)


प्रश्नोत्तर-
प्रश्नः-1 हड़प्पा सभ्यता में मनके बनाने के लिए प्रयुक्त पदार्थो की सूची बनाइए। चर्चा करें कि इन पदार्थो को कैसे प्राप्त किया जाता था ? (2)
उत्तरः- 
मनकों के निर्माण में प्रयुक्त पदार्थों की विविधता उल्लेखनीय हैः कार्नीलियन (सुंदर लाल रंग का), जैस्पर, स्फटिक, क्वार्ट्ज तथा सेलखड़ी जैसे पत्थरताँबा, काँसा तथा सोने जैसी धातुएँ; तथा शंख, फयॉन्स और पक्की मिट्टी, सभी का प्रयोग मनके बनाने में होता था।
दो तरीके जिनके द्वारा हड़प्पावासी शिल्प-उत्पादन हेतु माल प्राप्त करते थे
1. उन्होंने नागेश्वर और बालाकोट में जहाँ शॅख आसानी से उपलब्ध था, बस्तियाँ स्थापित कीं ।
2. उन्होंने राजस्थान के खेतड़ी अँचल (ताँबे के लिए) तथा दक्षिण भारत (सोने के लिए) जैसे क्षेत्रों में अभियान भेजा 


प्रश्नः-2 अन्य सभ्यताओं की अपेक्षा सिन्धु घाटी की सभ्यता के विषय में हमारी जानकारी कम क्यों है ? अपने तर्क से व्याख्या करें। (2)
उत्तरः- 
अन्य सभ्यताओं की अपेक्षा सिन्धु घाटी की सभ्यता के विषय में हमारी कम जानकारी निम्नलिखित कारणों से है

  • उस काल की लिपि आज तक पढ़ी नहीं जा सकी है।
  • केवल पुरातात्विक अवशेषों का अध्ययन करते हुए अनुमान के आधार पर ही सिन्धु घाटी सभ्यता के विषय में (सभ्यता का समय व विकास आदि का) ज्ञान प्राप्त कर पाए है जबकि अन्य सभ्यताओं के सम्बन्ध में जानकारी का मुख्य आधार उनकी लिपि का पढ़ा जाना है।

प्रश्नः-3 हड़प्पा सभ्यता के अघ्ययन के दौरान कनिंघम के मन में क्या भ्रम था ? (2)
उत्तरः-

  • आरंभिक बस्तियों की पहचान के लिए उन्होंने चौथी से सातवीं शताब्दी ईसवीं के बीच उपमहाद्वीप में आए चीनी बौद्ध तीर्थयात्रियों द्वारा छोड़े गए वृतांतों का प्रयोग किया।
  • यहाँ तक कि कनिंघम की मुख्य रुचि भी आरंभिक ऐतिहासिक ;लगभग छठी शताब्दी ईसा पूर्व से चौथी शताब्दी ईसवीं तथा उसके बाद के कालों से संबंधित पुरातत्व में थी।
  • कई और लोगों की तरह ही उनका भी यह मानना था कि भारतीय इतिहास का प्रारंभ गंगा की घाटी में पनपे पहले शहरों के साथ ही हुआ 

प्रश्नः-4 हड़प्पा सभ्यता के अध्ययन के दौरान मार्शल और कनिंघम के द्वारा अपनाए गए तकनीक में क्या अंतर था ? (2)
उत्तरः-
 

  • मार्शल, पुरास्थल के स्तर विन्यास को पूरी तरह अनदेखा कर पूरे टीले में समान परिमाण वाली नियमित क्षैतिज इकाइयों के साथ-साथ उत्खनन करने का प्रयास करते थे। इसका यह अर्थ हुआ कि अलग-अलग स्तरों से संबद्ध होने पर भी एक इकाई विशेष से प्राप्त सभी पुरावस्तुओं को सामूहिक रूप से वर्गीकृत कर दिया जाता था। परिणामस्वरूप इन खोजों के संदर्भ के विषय में बहुमूल्य जानकारी हमेशा के लिए लुप्त हो जाती थी।
  • आर.ई.एम. व्हीलर ने इस समस्या का निदान किया। व्हीलर ने पहचाना कि एकसमान क्षैतिज इकाइयों के आधार पर खुदाई की बजाय टीले के स्तर विन्यास का अनुसरण करना अधिक आवश्यक था।

प्रश्नः-5 शवाधान हड़प्पा सभ्यता में व्याप्त सामाजिक विषमताओं को समझने का एक बेहतर स्रोत है । व्याख्या करें । (2)
उत्तरः- 
1. शवाधान का अध्ययन सामाजिक विषमताओं को परखने की एक विधि है ।
2. हड़प्पा स्थलों से मिले शवाधानों में आमतौर पर मृतकों को गर्तो में दफनाया जाता था । इन गर्तो की बनावट एक दुसरे से भिन्न होती थी ।
3. कुछ कब्रों में कंकाल के पास मृदभाण्ड तथा आभूषण मिले हैं जो इस ओर संकेत करते हैं कि इन वस्तुओं का प्रयोग मृत्युपरांत किया जा सकता है । पुरूष एवं स्त्री दोनों के शवाधानों से आभूषण मिले है ।


प्रश्नः-6 हड़प्पाई जल निसारण प्रबंध के बारे में लेख लिखें । (5)
उतरः- 
इस नगर की एक प्रमुख विशेषता, इसका जल निकास प्रबंध था । इस नगर की नालियाँ मिट्टी के गारे, चुने और जिप्सम की बनी हुई थी । इनको बड़ी ईटों और पत्थरों से ढ़का जाता था । जिनको ऊपर उठाकर उन नालियों की सफाई की जा सकती थी । घरों से बाहर की छोटी नालियाँ , सड़कों के दोनो ओर बनी हुई थी, जो बड़ी और पक्की नालियों में आकर मिल जाती थी । वर्षा के पानी के निकास के लिए बड़ी नालियों का घेरा ढ़ाई से पाँच फुट तक था। घरों से गंदे पानी के निकास के लिए सड़कों के दोनों ओर गड्ढे बने हुए थे । इस तथ्यों से यह प्रतीत होता है कि सिंधु घाटी के लोग अपने नगरो की सफाई की ओर बहुत ध्यान देते थे ।


प्रश्नः-7 हड़प्पाई समाज में शासकों द्वारा किये जाने वाले संभावित कार्यो की चर्चा कीजिए। (5)
उत्तरः-
 विद्वानों की राय है -

  • हड़प्पाई समाज में शासकों द्वारा जटिल फैसले लेने और उन्हें कार्यान्वित करने जैसे महत्वपूर्ण कार्य किये जाते थे। वे इसके लिए एक साक्ष्य प्रस्तुत करते हुए कहते है कि हड़प्पाई पुरावस्तुओं में असाधारण एकरूपता को ही ले, जैसा कि मृदमांडों, मुहरों, बांटों तथा ईंटों से स्पष्ट है।
  • बस्तियों की स्थापना के बारे में निर्णय लेना बड़ी संख्या में ईंटों को बनाना, शहरो में विशाल दीवारें, सार्वजनिक इमारतें, उनके नियोजन करने का कार्य, दुर्ग के निर्माण से पहले चबूतरों का निर्माण कार्य के बारे में निर्णय लेना, लाखो की संख्या में विभिन्न कार्यो के लिए श्रमिकों की व्यवस्था करना जैसे महत्वपूर्ण ओर कठिन कार्य संभवतः शासक ही करता था।
  • कुछ पुरातत्वविद यह मानते है कि सिन्धु घाटी की समकालीन सभ्यता मैसोपोटामिया के समान हड़प्पाई लोगों में भी एक पुरोहित राजा होता था जो प्रासाद (महल) में रहता था। लोग उसे पत्थर की मूर्तियो में आकार देकर सम्मान करते थे। संभवतः धार्मिक अनुष्ठान उन्हीं के द्वारा किया या कराया जाता था।
  • कुछ पुरातत्वविद इस मत के है कि हड़प्पाई समाज में शासक नहीं थे तथा सभी की सामाजिक स्थिति समान थी। दूसरे पुरातत्वविद यह मानते है कि यहां कोई एक नही बल्कि कई शासक थे जैसे मोहनजोदडों, हड़प्पा आदि के अपने अलग-अलग राजा होते थे।
  • कुछ और यह तर्क देते थे कि यह एक ही राज्य था जैसा कि पुरावस्तुओ में समानाओं, नियोजित बस्तियों के कच्चे माल, ईंटों के आकार निश्चित अनुपात तथा बस्तियों के कच्चे माल के स्त्रोतों के समीप संस्थापित होने से स्पष्ट है।

प्रश्नः-8 आप यह कैसे कह सकते है कि हड़प्पा संस्कृति एक नागरीय सभ्यता थी ? (5)
उत्तरः- 
हाँ, हम कह सकते है कि हड़प्पा संस्कृति एक नागरीय सभ्यता थी। निम्नलिखित उदाहरण उस बात को दर्शाते है

  • नगर सुनियोजित और घनी आबादी वाले थे।
  • सड़के सीधी और चौड़ी थी।
  • घर पक्की लाल ईंटों के बने थे और एक से अधिक मंजिला में थे।
  • प्रत्येक घर में कुंआ व स्नानघर थे।
  • जल निकासी की उत्तम व्यवस्था थी जो मुख्य जल निकासी से जुड़ी थी।
  • हड़प्पा नगर में सार्वजनिक भवन देखने को मिले है।
  • लोथल में डोकयार्ड मिले है जिससे पता चलता है कि मुख्य व्यापारिक केन्द्र रहे थे।
  • हड़प्पा संस्कृति के पतन के बाद नगर नियोजन लगभग भूल गये और नगर जीवन लगभग हजार वर्ष तक देखने को नहीं मिला।

प्रश्नः-9 हड़प्पाई लोगों की कृषि प्रौद्योगिकी पर एक लेख लिखें । (5)
उतरः- 
हड़प्पाई लोगों का मुख्य व्यवसाय कृषि था । उत्खनन के दौरान अनाज के दानों का पाया जाना इस ओर संकेत करता है । किंतु कृषि की विधियों का स्पष्ट जानकारी नही मिली है । खेंतों के जोतने के संकेत कालीबंगन से मिले है । मुहरों पर वृषभ का चित्र पाया जाना भी इस ओर ही संकेत करता है । इस आधार पर पुरातत्वविद अनुमान लगाते हैं कि खेत जोतने के लिए बैलों का प्रयोग होता था कई स्थलों से मिट्टी के बने हल भी मिले हैं । ऐसे भी प्रमाण मिले हैं, जिससे यह पता चलता है कि दो फसलें एक साथ भी उगाया जाती थीं ।
मुख्य कृषि उपकरण कुदाल थी तथा फसल काटने के लिए लकड़ी के हत्थों पर पत्थर या धातु के फलक लगाए जाते थे । अधिकांश हड़प्पा क्षेत्रों में सिंचाई के साधनों को विकसित किया गया था क्योंकि यह क्षेत्र अर्ध शुष्क प्रवृत्ति का है । सिंचाई के मुख्य साधन नहर और कुएँ थें । अफगानिस्तान में नहरों के अवशेष मिले हैं । प्रायः सभी जगह कुएँ मिले हैं और धौलावीरा में जलाशय मिला है । संभवतः सिंचाई हेतु इसमें जल संचय किया जाता होगा ।


प्रश्नः-10 चर्चा कीजिए कि पुरातत्वविद किस प्रकार अतीत का पुननिर्माण करते है ? (10)
उतरः- 
1. कई बार अप्रत्यक्ष साक्ष्य का भी सहारा लेना पड़ता है और वे प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष साक्ष्य में समानता ढूँढ़ते हैं ।
2. भोजन अथवा भोज्य पदार्थो की पहचान के लिए मिले अवशेषों में अन्न अथवा अनाज पीसने या पकाने के यंत्र अथवा बरतनों का अध्ययन किया जाता है ।
3. पुरातत्वविद पुरावस्तुओं को ढूँढ़कर उनका अध्ययन कर अतीत का पुननिर्माण करते है । पुरावस्तुओं की खोज उद्यम का आरंभ मात्र है ।
4. इसक बाद पुरातत्वविद अपनी खोजों को वर्गीकृत करते है ।
5. पुरातत्वविदों को संदर्भ की रूपरेखा भी विकसित करनी पड़ती है ।
6. शिल्प उत्पादन के केन्द्रों की पहचान के लिए प्रस्तर पिण्ड, औजार, ताँबा-अयस्क जैसा कच्चा माल इत्यादि ढूँढ़ते है ।
7. वर्गीकरण का एक सामान्य सिद्धांत प्रयुक्त पदार्थो जैसे पत्थर, मिट्टी, धातु, अस्थि से संबंधित होता है ।
8. किसी भी वस्तु को उसकी वर्तमान उपयोग से जोड़ा जाता है ।
9. सांस्कृतिक एवं सामाजिक भिन्नता को जानने के लिए कई अन्य विधियों का प्रयोग करते है । शवाधानों का अध्ययन ऐसा ही एक प्रयोग है ।
10. पुरातत्वविद किसी पुरावस्तु की उपयोगिता को समझने का प्रयास उसके उत्खनन स्थल से भी करते है ।


प्रश्नः-11 अनुच्छेद आधारित प्रश्न
निम्नलिखित अवतरण को ध्यानपूर्वक पढ़कर दिए गए प्रश्नों का उत्तर लिखिए:-

एक ‘आक्रमण’ के साक्ष्य

डैडमैन लेन एक सँकरी गली है, जिसकी चौड़ाई 3 से 6 फीट तक परिवर्ती है, ... वह बिदु जहाँ यह गली पश्चिम की ओर मुड़ती है, 4 फीट तथा 2 इंच की गहराई पर एक खोपड़ी का भाग तथा एक वयस्क की छाती तथा हाथ के ऊपरी भाग की हड्डियाँ मिली थीं। ये सभी बहुत भुरभुरी अवस्था में थीं। यह धड़ पीठ के बल, गली में आड़ा पड़ा हुआ था। पश्चिम की ओर 15 इंच की दूरी पर एक छोटी खोपड़ी के कुछ टुकड़े थे। इस गली का नाम इन्हीं अवशेषों पर आधारित है।
जॉन मार्शल, मोहनजोदड़ो एंड द इंडस सिविलाईजेशन, 1931 से उद्धत।
1925 में मोहनजोदड़ो के इसी भाग से सोलह लोगों के अस्थि-पंजर उन आभूषणों सहित मिले थे जो इन्होंने मृत्यु के समय पहने हुए थे।
बहुत समय पश्चात 1947 में आर.ई.एम. व्हीलर ने जो भारतीय पुरातात्विक सर्वेक्षण के तत्कालीन डायरेक्टर जनरल थे, इन पुरातात्विक साक्ष्यों का उपमहाद्वीप में ज्ञात प्राचीनतम ग्रंथ ऋग्वेद के साक्ष्यों से संबंध स्थापित करने का प्रयास किया।
उन्होंने लिखाः
ऋग्वेद में पुर शब्द का उल्लेख है जिसका अर्थ है प्राचीर, किला या गढ़। आर्यों के युद्ध के देवता इंद्र को पुरंदर, अर्थात् गढ़-विध्वंसक कहा गया है। ये दुर्ग कहाँ हैं .... या थे ....? पहले यह माना गया था कि ये मिथक मात्र थे ....हड़प्पा में हाल में हुए उत्खननों ने मानो परिदृश्य बदल दिया है। यहाँ हम मुख्यतः अनार्य प्रकार की एक बहुत विकसित सभ्यता पाते हैं जिसमें अब प्राप्त जानकारी के अनुसार विशाल किलेबंदियाँ की गई थीं .... यह सुदृढ़ रूप से स्थिर सभ्यता कैसे नष्ट हुई ? हो सकता है जलवायु संबंधी, आर्थिक अथवा राजनीतिक ह्यास ने इसे कमजोर किया हो, पर अधिक संभावना इस बात की है कि जानबूझ कर तथा बड़े पैमाने पर किए गए विनाश ने इसे अंतिम रूप से समाप्त कर दिया। यह मात्र संयोग ही नहीं हो सकता कि मोहनजोदड़ो के अंतिम चरण में आभास होता है कि यहाँ पुरुषों, महिलाओं तथा बच्चों का जनसंहार किया गया था। पारिस्थितिक साक्ष्यों के आधार पर इंद्र अभियुक्त माना जाता है।
आर.ई.एम. व्हीलर, हड़प्पा 1946, एंशिएंट इंडिया (जर्नल) 1947 से उद्धत। 1960 के दशक में जॉर्ज डेल्स नामक पुरातत्वविद ने मोहनजोदड़ो में जनसंहार के साक्ष्यों पर सवाल उठाए। उन्होंने दिखाया कि उस स्थान पर मिले सभी अस्थि-पंजर एक ही काल से संबद्ध नहीं थेः
हालाँकि इनमें से दो से निश्चित रूप में संहार के संकेत मिलते हैं, . . . . पर अधिकांश अस्थियाँ जिन संदर्भों में मिली हैं वे इंगित करती हैं कि ये अत्यंत लापरवाही तथा श्रद्धाहीन तरीके से बनाए गए शवाधान थे। शहर के अंतिम काल से संबद्ध विनाश का कोई स्तर नहीं है, व्यापक स्तर पर अग्निकांड के चिह्य नहीं हैं, चारों ओर फैले हथियारों के बीच कवचधारी सैनिकों के शव नहीं हैं। दुर्ग से जो शहर का एकमात्र किलेबंद भाग था, अंतिम आत्मरक्षण के कोई साक्ष्य नहीं मिले हैं।
जी.एफ.डेल्स, ‘द मिथिकल मैसेकर एट मोहनजोदड़ो’, एक्सपीडीशन, 1964 से उद्धत।
जैसा कि आप देख सकते हैं कि तथ्यों का सावधानीपूर्वक पुनर्निरीक्षण कभी-कभी पूर्ववर्ती व्याख्याओं को पूरी तरह से उलट देता है।
(क) किस पुरातत्वविद ने यह साक्ष्य प्रस्तुत किया है ? (1)
उत्तर-
 जन मार्शल ने यह साक्ष्य अपनी पुस्तक मोहनजोदड़ो एंड द इंडस सिविलाईजेशन में दिया है ।
(ख) हड़प्पा सभ्यता के विनाश के किस तर्क की ओर यह अनुच्छेद इशारा करता है ?(1)
उत्तर- 
यह साक्ष्य हड़प्पा के विनाश में विदेशी हमलो की भूमिका की ओर इशारा करता है ।
(ग) कौन इस प्रमाण को ऋग्वेद के साथ जोड़ता है और क्यों ? (3)
उत्तर- 
आर. ई एम व्हीलर इस प्रमाण को ऋग्वेद के साथ जोड़ता है । क्योंकि ऋग्वेद में पुर शब्द का उल्लेख है जिसका अर्थ है प्राचीर, किला या गढ़। आर्यों के युद्ध के देवता इंद्र को पुरंदर, अर्थात् गढ़-विध्वंसक कहा गया है।
(घ) किसने और कैसे इसकी एक अलग व्याख्या की है ? (3)
उत्तर- 
जॉर्ज डेल्स ने इस प्रमाण के विपरीत सिद्धांत का प्रतिपादन किया है । वो इस बात को मानने से हिचकते है कि यह हमला आर्यो ने किया था । उनके अनुसार जो कंकाल यहाँ मिलें है वो हड़प्पा काल के नही है । इस मात्रा में कंकाल मिलें है तथा उनकी जो अवस्था है उससे यह भी कहा जा सकता है कि यह एक बूचड़खाने का शवाधान हो । किसी भी शव पर शस्त्र के घाव, कोई हथियार जलने के अवशेष नही प्राप्त हुए है ।