लेखन कला और शहरी जीवन-प्रश्न-उत्तर

                                                                         कक्षा 11 इतिहास

एनसीईआरटी प्रश्न-उत्तर
पाठ 2 लेखन कला और शहरी जीवन


संक्षेप में उत्तर दीजिए -

1. आप यह कैसे कह सकते हैं कि प्राकृतिक उर्वरता तथा खाद्य उत्पादन के उच्च स्तर ही आरंभ में शहरीकरण के कारण थे?

उतर - शहरीकरण तब संभव हो सकता है जब खेती से इतनी उपज प्राप्त हो क़ी जिसके द्वारा शहर की खाद्य की पूर्ति हो सके। शहर में लोग घनी बस्तियों में रहते हैं। अत: जहाँ शहर का विकास होता है वहाँ की जमीन का प्राकृतिक रूप से उपजाऊ होना बहुत जरूर हो जाता है। क्योंकि ऐसी जमीन ही अधिक-से-अधिक लोगों को खाद्यान्न प्रदान करने में समर्थ हो सकती है। लेकिन केवल प्राकृतिक उर्वरता और खाद्य उत्पादन के उच्च स्तर ही शहरीकरण की वजह से कदापि नहीं हो सकते हैं। शहरीकरण के और भी कारक हैं; जैसे-उन्नत व्यापार, लेखन-कला का विकास, उद्योगों का विकास, श्रम-विभाजन तथा कुशल परिवहन व्यवस्था आदि। ये कारकों शहरीकरण के विकास में महत्वपूर्ण सिद्ध हुए । उद्योगों का प्राचीन काल में विकास शहरीकरण की एक अति आवश्यक शर्त थी। उद्योग मात्र शहरों में रहने वाले लोगों की अनेक जरूरतों को ही पूरा नहीं करते, अपितु विभिन्न प्रकार के मजदूरों एवं कारीगरों को आजीविका के साधन भी उपलब्ध कराते हैं। वास्तव में नगर जीवन और लोगों का एक स्थान पर बसना तभी संभव है, जब विशाल संख्या में लोग अलग-अलग गैर-खाद्यान्न उत्पादक कार्यों में लगे हों। उन्नत व्यापार शहरीकरण का एक अन्य आवश्यक कारक है। व्यापार के द्वारा ही नगरों में बनने वाला माल ग्रामों में पहुँचता है और ग्रामों से कच्चा माल तथा खाद्यान्न शहरों में पहुँचता है।
लेखन कला की शहरी विकास के लिए अहम् भूमिका रही है। इसका कारण यह है कि हिसाब-किताब की व्यवस्था के बिना व्यापार की किसी प्रकार की प्रगति संभव नहीं है।
नि:संदेह लेखन कला के विकास ने मेसोपोटामिया में नगरों के उदय में आवश्यक सहयोग दिया। लेखन कला के साथ ही शहरीकरण के लिए सुव्यवस्थित प्रशासनिक व्यवस्था भी अतिआवश्यक है। व्यापार की प्रगति के लिए शांति और सुरक्षा की स्थापना कुशल प्रशासन द्वारा ही संभव है। इस संबंध में उल्लेखनीय है कि कांस्य युग में जीवन निर्वाह के लिए आवश्यक वस्तुओं के अतिरिक्त अन्य वस्तुओं के उत्पादक मुख्य रूप से शासक वर्ग और मंदिरों पर ही निर्भर होते थे। प्रशासक वर्ग केवल कानून और व्यवस्था का संचालन ही नहीं करते थे, अपितु श्रम-विभाजन को भी नियंत्रित करते थे। नि:संदेह श्रम-विभाजन ने ही शहरीकरण की गति को बल दिया। नगरी जीवन और लोगों का एक स्थान पर बसना तभी संभव हो पाता है जब अनेक लोग अनेक गैर-खाद्यान्न उत्पादक रोजगारों, उदाहरण के लिए धातुकर्म, मुहर, नक्काशी, प्रशासन, मंदिर सेवा आदि में लगे हुए हों। ऐसी स्थिति में शहरी अर्थव्यवस्था में सामाजिक संगठन का होना नितांत आवश्यक है। इसका कारण यह है कि शहर के निर्माताओं को अपने-अपने उद्योगों के लिए विभिन्न वस्तुओं की आवश्यकता होती है जिन्हें केवल किसी एक स्थान से प्राप्त नहीं किया जा सकता। इसी तरह एक ही व्यक्ति सभी प्रकार की वस्तुओं के निर्माण में कुशल नहीं हो सकता। यही कारण है कि औद्योगिक एवं व्यापारिक विकास में श्रम-विभाजन का पालन अतिआवश्यक हो जाता है। कुशल परिवहन व्यवस्था भी शहरीकरण के लिए अतिआवश्यक होती है। परिवहन व्यवस्था अच्छी होने पर ग्रामों से पर्याप्त मात्रा में अनाज शहरों में भेजा जा सकता है और शहरों में तैयार वस्तुओं को ग्रामों तक पहुँचाया जा सकता है। मेसोपोटामिया की नहरें तथा प्राकृतिक जल संसाधन छोटी-बड़ी बस्तियों के बीच परिवहन के अच्छे साधन थे। यही कारण है कि उन दिनों फ़रात नदी व्यापार के विश्व-मार्ग का कार्य करती थी।
अत: उपरोक्त विवेचना के आधार पर कहा जा सकता है कि शहरीकरण के विकास में प्राकृतिक उर्वरता और खाद्य-उत्पादन के उच्च स्तर के साथ-साथ अनेक अन्य कारण भी उत्तरदायी थे।


2. आपके विचार से निम्नलिखित में से कौन-सी आवश्यक दशाएँ थीं जिनकी वजह से प्रारंभ में शहरीकरण हुआ था और निम्नलिखित में से कौन-कौन सी बातें शहरों के विकास के फलस्वरूप उत्पन्न हुई?

(क) अत्यंत उत्पादक खेती
(ख) जल-परिवहन
(ग) धातु और पत्थर की कमी
(घ) श्रम-विभाजन
(ड) मुद्राओं का प्रयोग
(च) राजाओं की सैन्य-शक्ति जिसने श्रम को अनिवार्य बना दिया।

उतर - कांस्यकालीन सभ्यताओं के समय विभिन्न शहर विकसित हुई । वस्तुत: शहर बड़े जनसंख्या के निवास-स्थान होते हैं तथा इसके अलावा विभिन्न आवश्यक आर्थिक गतिविधियों के केंद्रबिंदु भी हैं। यही वजह थी कि शहर ग्रामों की अपेक्षा अधिक घने तथा बड़े क्षेत्र में बसे हुए होते हैं।

प्रारंभिक शहरीकरण की आवश्यक दशाएँ-

(क) जल-परिवहन- जल-परिवहन भी शहरीकरण के लिए बहुत उत्पादक खेती से कम आवश्यक दशा नहीं थी। प्रारंभिक काल में बोझा ढोने वाले पशुओं की पीठ पर लादकर व बैलगाड़ियों में भरकर शहरों में कृषि उत्पाद को ले जाना सरल नहीं था। परिवहन में इन माध्यमों से अत्यधिक समय लगता था। इनकी अपेक्षाकृत कांस्यकालीन सभ्यताओं में जल-परिवहन, खाद्यान्न एवं अन्य सामान को एक स्थान से दूसरे स्थान तक पहुँचाने का एक सस्ता एवं सुरक्षित साधन था। नदी की धारा के साथ खाद्यान्न व अन्य सामान से भरी नौकाएँ चलती थीं। परिणामत: उन पर कोई अलावा व्यय नहीं करना पड़ता था। प्राचीन मेसोपोटामिया की नहरें तथा प्राकृतिक जल-धाराएँ छोटी-बड़ी बस्तियों के मध्य परिवहन के अच्छे साधनों के रूप में कार्य करती थीं। यही वजह थी कि जल-परिवहन मेसोपोटामिया में प्रारंभिक शहरीकरण के विकास का एक आवश्यक कारक सिद्ध हुआ।

(ख) अत्यंत उत्पादक खेती- निःसंदेह अत्यंत उत्पादक खेती प्राथमिक शहरीकरण की एक बहुत जरूरी दशा थी। यह निर्विवाद है कि शहरीकरण तभी संभव हो सकता है जब खेती में इतनी उपज होती हो कि वह शहर में रहने वाले लोगों का पेट भरने में समर्थ हो सके। शहरों में लोग घनी बस्तियों में रहते हैं। अत: कहा जा सकता है कि जिस स्थान पर शहर का विकास होता है, उस स्थान पर जमीन का प्राकृतिक स्वरूप उपजाऊ होना अत्यंत आवश्यक है। उदाहरणत: मेसोपोटामिया का शहर के रूप में विकास होना इसका प्रमाण है।

(ग) धातु और पत्थर की कमी- धातु और पत्थर की कमी ने भी मेसोपोटामिया में प्रारंभिक शहरीकरण को बल दिया। इसमें कोई वजह नहीं है की उन्नत व्यापार की अवस्था शहरीकरण का एक आवश्यक कारण है। इसके अलावा व्यापार के द्वारा ही नगरों में बनने वाला माल ग्रामों में पहुँचता है और ग्रामों से कच्चा माल तथा खाद्यान्न शहरों में आता है। मेसोपोटामिया खाद्य संसाधनों की दृष्टि से संपन्न था, किंतु वहाँ खनिज पदार्थों की कमी थी। दक्षिणी मेसोपोटामिया के ज़्यादातर भागों में औजार, मोहरें और आभूषण आदि बनाने के लिए अच्छे पत्थरों तथा गाड़ियों के पहिए अथवा नावें बनाने के लिए अच्छी लकड़ी का अभाव था। इसी प्रकार औजार, बर्तन तथा आभूषण बनाने के लिए अच्छी धातु भी उपलब्ध नहीं थी। अत: ये वस्तुएँ व्यापार के द्वारा ही प्राप्त की जाती थीं। इसके साथ ही मेसोपोटामिया से कपड़ा और कृषि संबंधी उत्पादों को अन्य देशों के लिए निर्यात किए जाते थे। मेसोपोटामिया में राँगा, सोना, चाँदी,अच्छी लकड़ी, ताँबा, सीपी, विभिन्न प्रकार के पत्थर आदि तुर्की, ईरान तथा खाड़ी के अन्य देशों से आयात किए जाते थे।

शहर के विकास के फलस्वरूप उत्पन्न दशाएँ :
(क) श्रम-विभाजन- नगर जीवन और लोगों का एक स्थान पर बसना तभी संभव होता है, जब अनेक लोग विभिन्न गैर-खाद्यान्न उत्पादक रोजगारों, जैसे- मुहर, नक्काशी, प्रशासन, धातुकर्म,मंदिर सेवा आदि में लगे हों। शहर के विनिर्माताओं को अपने-अपने उद्योगों के लिए ईंधन, धातु, अनेक प्रकार के पत्थर की जरूरत होती है। इन चीजों को केवल एक स्थान से प्राप्त करना असंभव है। इसी तरह कोई एक व्यक्ति सभी प्रकार की वस्तुओं के निर्माण में कुशल नहीं हो सकता है। परिणामत: औद्योगिक एवं व्यापारिक विकास में श्रम-विभाजन का महत्वपूर्ण योगदान होता है। वस्तुत: शहरीकरण की प्रक्रिया से श्रम-विभाजन को भी बल मिलता है।
(ख) मुद्राओं का प्रयोग- शहरीकरण के विकास के कारण मुद्राओं के प्रचलन को बल मिला। नि:संदेह मुद्राओं के प्रचलन ने साहूकारों, विभिन्न व्यवसायियों, व्यापार तथा सरकार के काम को सरल बना दिया। हम जानते हैं कि प्राचीन काल में शहरों का लेन-देन अवैयक्तिक रूप से होता था। जिन लोगों से लेन-देन होता था, वे सामान्यतया एक-दूसरे से अपरिचित होते थे। अत: संदेशों, दस्तावेजों और सामान के गट्ठरों को भेजते समय मुहर लगाना अनिवार्य समझा जाता था।
(ग) राजाओं की सैन्य- शक्ति जिसने श्रम को अनिवार्य बना दिया- शहरीकरण की प्रक्रिया ने राजाओं की सैन्य-शक्ति की आधारशिला रखी। हम जानते हैं कि शहरीकरण और औद्योगीकरण तथा व्यापारिक विकास में घनिष्ठ संबंध है। व्यापार के विकास के लिए शांति और सुरक्षा अति आवश्यक है जोकि किसी शक्तिशाली केद्र द्वारा ही प्रदान की जा सकती है। परिणामत: शहरीकरण के साथ-साथ कानून-व्यवस्था की देखभाल तथा श्रम-विभाजन पर नियंत्रण अति आवश्यक हो गया। इसके फलस्वरूप राजा की सैन्य-शक्ति में भी वृद्धि होने लगी। उदाहरण के लिए, यदि मेसोपोटामिया का शहरीकरण हुआ तो वहाँ एक कुशल और शक्तिशाली केंद्र शासक का भी उदय हुआ।


3. यह कहना क्यों सही होगा कि खानाबदोश पशुचारक निश्चित रूप से शहरी जीवन के लिए खतरा थे?

उतर - मेसोपोटामिया का इतिहास इस बात का गवाह है कि इसके पश्चिमी मरुस्थल से यायावर समूहों के कई झुंड इसके उपजाऊ एवं संपन्न मुख्य भूमि प्रदेश में आते रहते थे। ये पशुचारक गर्मी के मौसम में अपनी भेड़-बकरियों को इस उपजाऊ क्षेत्र के बोए हुए खेतों में ले जाते थे। अनेक बार ये यायावर समूह गड़रियों, फसल काटने वाले मजदूरों अथवा भाड़े के सैनिकों के रूप में इस उपजाऊ प्रदेश में आते थे और स्थायी रूप से इसे ही अपना निवास-स्थान बना लेते थे। ये खानाबदोश, अक्कदी, एमोराइट, असीरियाई और आमीनियन जाति के लोग ही थे।
पशुचारक अपने पशुओं तथा उनके उत्पादों, जैसे-पनीर, चमड़ा, मांस आदि के बदले अनाज और धातु के औजार आदि लेते थे। बाड़े में रखे जाने वाले पशुओं के गोबर से बनी खाद भूमि को उपजाऊ बनाती थी, इसलिए यह खाद किसानों के लिए बहुत उपयोगी होती थी। किंतु यदा-कदा किसानों और पशुचारकों अथवा गड़रियों के बीच झगड़े भी हो जाते थे। प्राय: ऐसा होता था कि पशुचारक अपनी भेड़-बकरियों को पानी पिलाने के लिए बोए हुए खेतों के बीच से निकालकर ले जाते थे। परिणामत: किसानों की फसल को हानि पहुँचती थी। यहाँ तक कि कई बार खेतों में खड़ी फसल बरबाद हो जाती थी।
मारी के अभिलेखों से जाहिर होता है कि सिंचाई वाले क्षेत्रों में पशुचारकों के आगमन पर नजर रखी जाती थी। नि:संदेह चरवाहे कभी उपयोगी साबित हो सकते थे तो कभी हानिकारक भी। यदि शहरी लोगों के साथ पशुचारकों का संबंध दोस्ताना नहीं होता तो वे आवागमन के प्रमुख रास्तों को भी हानि पहुँचा सकते थे। इसके अतिरिक्त, कभी-कभी खानाबदोश पशुचारक लूटमार की गतिविधियों में भी लिप्त हो जाते थे। यहाँ तक कि वे किसानों के गाँवों पर हमला कर देते थे और उनका इकट्ठा किया गया अनाज आदि लूटकर ले जाते थे।
उपलब्ध साक्ष्यों से यह भी जाहिर है कि ये यायावर पशुचारक घास के मैदानों में अथवा सड़क के किनारे तंबुओं में रहा करते थे। वे प्राय: राहजनी के कार्यों में लिप्त रहते थे। मारी राज्य में कृषक व पशुचारक दोनों निवास करते थे। फिर भी मारी नगर के राजा इन पशुचारक समूहों की गतिविधियों के प्रति अत्यधिक सावधान थे। पशुचारकों को राज्य में चलने-फिरने की तो अनुमति थी, किंतु उनकी गतिविधियों पर कड़ी नजर रखी जाती थी। इस प्रकार मेसोपोटामिया का समाज और वहाँ की संस्कृति भिन्न-भिन्न समुदायों के लोगों व संस्कृतियों के लिए खुली थी। नि:संदेह, विभिन्न जातियों तथा समुदायों के लोगों के आपसी मेलजोल से वहाँ की सभ्यता में जीवन-शक्ति उत्पन्न हो गई थी।


4. आप ऐसा क्यों सोचते हैं कि पुराने मंदिर बहुत कुछ घर जैसे ही होंगे?

उतर - सुमेरियाई लोग बहु-देवतावादी थे। प्रत्येक ग्राम व शहर का अपना देवता होता था। इसमें संदेह नहीं की उनके देवी-देवताओं की संख्या बहुत थी तथा उनमें से ज़्यादातर प्रकृति की शक्तियों के प्रतिनिधि थे। उदाहरणत: इन्नाना-प्रेम और युद्ध की देवी थी, तो 'उर' चंद्र देवता था। ये सुमेर के लोकप्रिय देवी-देवता थे। इसके अलावा एनलिल सुमेर में पूजे जाने वाले देवताओं में सर्वप्रमुख था। इस देवता को मानवता का स्वामी तथा राजाओं का राजा माना जाता था।उनके घर में अनेक देवी-देवताओं के निवास के लिए मंदिर बनाय होते थे।
प्रारंभ में मंदिरों का निर्माण विशेष योजना के आधार पर किया जाता था। मंदिर का केंद्रीय कक्ष देवी-देवता के प्रतिमा कक्ष से जुड़ा होता था। इसके अतिरिक्त मंदिरों के दोनों तरफ़ गलियारा होता था। परंतु बाद के काल में मंदिरों का निर्माण घर की योजनानुसार होने लगा। इसके अंतर्गत एक खुले आँगन के चारों ओर अनेक कमरे बनाए जाते थे। देवी-देवता की मूर्ति के दर्शन सीधे नहीं होते थे। वहाँ तक पहुँचने के लिए आँगनों, बाहरी कक्षों और तिरछे अक्षों से होकर गुजरना पड़ता था। इसके अलावा सभी मंदिरो का आकार समान होता था जो एक समान दिखाई देते थे।
यह संदेह रहित है कि मंदिर मानव जीवन से जुड़ी लगभग सभी गतिविधियों के केंद्रबिंदु थे। इतिहास गवाह है कि सुमेरिया के नगर राज्यों पर ऐसे सरदारों अथवा राजाओं ने शासन किया, जो पुजारी भी थे। संदर्भित काल में राजस्व पुजारियों के कामकाज से जुड़ा हुआ था। इसका अर्थ यह है कि एक ही व्यक्ति पुजारी एवं शासक दोनों रूपों में कार्य करता था। इस प्रकार मंदिर पूजा-स्थल के साथ-साथ प्रमुख पुजारी और शासक का निवास-स्थल भी था। इसके अतिरिक्त, मंदिर सार्वजनिक जीवन का केंद्रबिंदु भी था। सार्वजनिक जीवन से संबंधित कार्यों का मार्गदर्शन मंदिर से ही किया जाता था। मंदिर में गोदाम, कारखाने तथा कारीगरों के बड़े-बड़े निवास सम्मिलित थे। मंदिर व्यवस्थापक, व्यापारियों के नियोक्ता, आवंटन और वितरण के लिखित अभिलेखों के पालक आदि के रूप में भी कार्य करता था। इन्हीं मंदिरों में जादू-टोने से बीमारियाँ ठीक की जाती थीं। इसी स्थान पर लिखाई-पढ़ाई का कार्य संपन्न होता था। साथ-साथ ज्योतिष जानने वाले इसे प्रयोगशाला के रूप में इस्तेमाल करते थे। इस प्रकार मंदिर धार्मिक जीवन और सामाजिक जीवन के केंद्रबिंदु होने के कारण आकार-प्रकार और क्रियाकलाप के दृष्टिकोण से घर जैसे ही होते थे।


संक्षेप में निबंध लिखिए

5. शहरी जीवन शुरू होने के बाद कौन-कौन सी नयी संस्थाएँ अस्तित्व में आई? आपके विचार से उनमें से कौन-सी संस्थाएँ राजा की पहल पर निर्भर थीं?

उतर - मेसोपोटामिया में कालांतर में विभिन्न भव्य नगरों का निर्माण हुआ जिनमें लांगाश, बेबीलोन, उरुक, व मारी प्रमुख नगर थे। 5000 ई०पू० कके पास दक्षिणी मेसोपोटामिया में आर्थिक गतिविधियों के परिणामस्वरूप नयी-नयी बस्तियाँ स्थापित होने लगी थीं। इन बस्तियों में से कुछ बस्तियों ने प्राचीन शहरों का रूप धारण कर लिया था। इन शहरों की स्थिति के अनुसार निम्नलिखित विशेषताएँ भी थीं -

  1. मंदिर के चारों तरफ विकसित शहर।
  2. शाही शहर।
  3. व्यापारिक केंद्रों के आसपास विकसित शहर।

मेसोपोटामिया के तत्कालीन देहातों में जमीन और पानी के लिए बार-बार लड़ाइयाँ होती रहती थीं। जब किसी क्षेत्र में लंबे समय तक लड़ाई चलती थीं, जो मुखिया लड़ाई में जीत जाते थे, वे अपने साथियों एवं अनुयायियों में लूट का माल बाँटकर उन्हें खुश कर देते थे तथा पराजित लोगों को बंदी बनाकर अपने साथ ले जाते थे। जिन्हें वे कालांतर में अपने चौकीदार या नौकर बना लेते थे। वे इस प्रकार अपना वर्चस्व बढ़ा लेते थे। युद्ध में विजयी होने वाला मुखिया स्थायी रूप से समुदाय के मुखिया नहीं बने रहते थे। उनका स्थान दूसरे नेता भी ले लिया करते थे। कालांतर में इस प्रक्रिया में बदलाव तब आया जब इन नेताओं ने समुदायों के कल्याण की तरफ अधिक ध्यान देना प्रारंभ किया इसके कारण विभिन्न नई संस्थाएँ व परिपाटियाँ स्थापित हो गई। विजेता मुखिया ने मंदिर में देवताओं की मूर्तियों पर कीमती भेंटें चढ़ाना आरम्भ कर दिया। इसके द्वारा समुदाय के मंदिरों की सुंदरता बढ़ गई। एनमर्कर से जुड़ी कविताएँ व्यक्त करती हैं कि इस व्यवस्था ने राजा को ऊँचा स्थान दिलाया तथा उसका पूर्ण नियंत्रण स्थापित किया। पारस्परिक हितों को सुदृढ़ करने वाले विकास के एक ऐसे दौर की कल्पना कर सकते हैं जिसमें मुखिया लोगों ने ग्रामीणों को अपने पास बसने के लिए प्रोत्साहित किया जिससे वे जरूरत होने पर उसी समय अपनी सेना इकट्ठी कर सकें। एक अनुमान के अनुसार एक मंदिर को बनाने के लिए 1500 आदमियों को पाँच साल तक प्रतिदिन 10 घंटे काम में लगे रहना पड़ता था।
उपरोक्त आधारों सेज्ञात होता है कि नगरों की सामाजिक व्यवस्था में एक उच्च या संभ्रांत वर्ग भी पैदा हो चुका था तथा धन-दौलत का ज्यादातर हिस्सा इसी वर्ग के हाथों में केंद्रित था। इसकी पुष्टि उस शहर में राजाओं व रानियों की कब्रों व समाधियों से खुदाई के समय मिले बहुमूल्य चीजों; जैसे-सोने के पात्र, सफ़ेद सीपियाँ, आभूषण और लाजवर्द जड़े हुए लकड़ी के वाद्ययंत्र, सोने के सजावटी खंजरों आदि से हुई है। कानूनी दस्तावेजों (विवाह, उत्तराधिकार आदि के मामलों से संबंधित) के अनुसार, मेसोपोटामिया के समाज में एकल परिवार को ही आदर्श माना जाता था।
हमें विवाह आदि से संबंधित प्रक्रियाओं की भी जानकारी मिली है। विवाह करने की इच्छा की घोषणा की जाती थी और वधू के माता-पिता विवाह के लिए अपनी अनुमति व सहमति प्रदान करते थे। वर पक्ष के लोग वधू पक्ष को कुछ उपहार देते थे। विवाह की रस्म आदि के बाद दोनों पक्ष एक-दूसरे को उपहार देते थे और बैठकर भोजन करते थे। भोजन आदि के बाद मंदिर में जाकर भेंट चढ़ाते थे। जब नववधू को उसकी सास लेने आती थी, तब वधू को उसके पिता द्वारा उत्तराधिकार के रूप में उसका हिस्सा दे दिया जाता था। पिता का घर, जानवर, खेत आदि पैतृक संपत्ति उसके पुत्रों को मिलते थे।

सुव्यवस्थित प्रशासन व्यवस्था के अभाव में राज्य का कामकाज सुचारु ढंग से चलाना कठिन हो जाता था। अत: मेसोपोटामिया के शासकों ने एक सुव्यवस्थित प्रशासन व्यवस्था की नींव रखी। ऐसी प्रबंध व्यवस्था के कारण ही उस राज्य में शांति व सुव्यवस्था बनी रही जो मेसोपोटामिया के विकास के लिए आवश्यक था।


6. किन पुरानी कहानियों से हमें मेसोपोटामिया की सभ्यता की झलक मिलती है?

उतर - बाइबल के प्रथम भाग 'ओल्ड टेस्टामेंट' के कई संदभों में हमें मेसोपोटामिया की सभ्यता की झलक देखने को मिलती है। उदाहरणत: 'ओल्ड तेस्त्मेट' की 'बुक ऑफ़ जेनेसिस (Book of Genesis) में 'शिमर' (Shimar) का उल्लेख है जिसका अर्थ है कि सुमेर ईटों से बने शहर की भूमि से है। इस भूमि को यूरोपवासी अपने पूर्वजों की भूमि मानते हैं और जब इस क्षेत्र में पुरातत्वीय खोज की शुरुआत हुई तो ओल्ड टेस्टामेंट को अक्षरश: सिद्ध करने का प्रयास किया गया।
ब्रिटिश समाचार-पत्र ने सन् 1873 में ब्रिटिश म्यूजियम द्वारा शुरू किए गए खोज अभियान का खर्च उठाया जिसके द्वारा मेसोपोटामिया में एक ऐसी पट्टका (Tablet) की खोज की जानी थी जिस पर बाइबल में उल्लिखित जलप्लावन (Flood) की कहानी अंकित थी।
बाइबल के अंतर्गत, यह जलप्लावन पृथ्वी पर संपूर्ण जीवन को खत्म करने वाला था। लेकिन परमेश्वर ने जलप्लावन के पश्चात भी जीवन को पृथ्वी पर सुरक्षित रखने के लिए नोआ (Naoh) नाम के एक मनुष्य को चुना। नोआ ने एक बहुत विशाल नाव बनाई और उसमें सभी जीव-जंतुओं का एक-एक जोड़ा रख लिया और जब जलप्लावन हुआ तो बाकी सब कुछ नष्ट हो गया, पर नाव में रखे सभी जोड़े सुरक्षित बच गए। ऐसी ही एक कहानी मेसोपोटामिया के परंपरागत साहित्य में भी मिलती है। जिउसुद्र' (Ziusudra) या "उतनापिष्टिम' (Utnapishtim) को इस कहानी का मुख्य पात्र कहा जाता था।
1960 के दशक में ओल्ड टेस्टामेंट की कहानियाँ अक्षरश: सही नहीं पाई गई, लेकिन ये इतिहास में हुए मुख्य परिवर्तनों के अतीत को अपने ढंग से अभिव्यक्त करती हैं। धीरे-धीरे पुरातात्विक तकनीकें अधिकाधिक सक्षम तथा परिष्कृत होती गई। यहाँ तक कि आम लोगों के जीवन की भी परिकल्पना की जाने लगी। बाइबल कहानियों की अक्षरश: सच्चाई को प्रमाणित करने का कार्य गौण हो गया। ऐसी ही जलप्लावन की घटना का उल्लेख छायावादी कवि 'जयशंकर प्रसाद जी' ने अपने महाकाव्य 'कामायनी' में वर्णित किया है। इस जलप्लावन में शेष जीवित प्राणियों में मनु-श्रद्धा व इड़ा को दिखाया गया है। उनके द्वारा सृष्टि की रचना का काम पुन: शुरू हो गया था।