सांस्कृतिक विविधता की चुनौतियाँ - पुनरावृति नोट्स

CBSE कक्षा 12 समाजशास्त्र
[खण्ड-1] पाठ - 6 सांस्कृतिक विविधता की चुनौतियाँ
पुनरावृत्ति नोट्स

मुख्यबिंदु-
    • 'विविधता' शब्द असमानताओं के बजाय अंतरों पर बल देता है। जब हम यह कहते है कि भारत एक महान सांस्कृतिक विविधता वाला राष्ट्र है वो हमारा तात्पर्य यह होता है कि यहाँ अनेक प्रकार के सामाजिक समूह एवं समुदाय निवास करते है।
    • भारत में सांस्कृतिक विविधता की झलक :- भारतम में विभिन्न प्रदेशों में भाषा, रहन-सहन, खानपान, वेश-भूषा, प्रथा, परम्परा, लोकगीत, लोकगाथा, विवाह प्रणाली, जीवन संस्कार, कला, संगीत तथा नृत्य में भी हमें अनेक रोचक व आकर्षक भेद देखने को मिलते है।
    • सांस्कृतिक विविधता से सम्प्रदायवाद, जातिवाद, क्षेत्रवाद, भाषावाद आदि पनपते है। एक समुदाय दूसरे समुदाय को नीचा दिखाता है।
    • जैसे-नदियों के जल, सरकारी नौकरियों, अनुदानों के बंटवारे को लेकर खींचतान शुरू हो जाती है।
    • सांस्कृतिक विविधता - भारत में अनेक प्रकार के सामाजिक समूह व समुदाय निवास करते है। जिनकी भाषा, धर्म, पंथ, जाति, प्रजाति अलग-अलग है। इसे ही सांस्कृतिक विविधता कहा जाता है।
    • सांस्कृतिक विविधता के कारण हमारे सामने बड़ी-बड़ी चुनौतिया है जैसे क्षेत्रवाद, सांप्रदायिकता व जातीयता।
    • सामुदायिक पहचान जन्म तथा अपनेपन पर आधरित होती हैं कि किसी अर्जित योग्यता या उपलब्धि के आधार पर।
    • प्रदत्त पहचान -जो पहचान जन्म से निर्धारित होती है। उसे प्रदत्त पहचान होती जैसे जाति, धर्म, लिंग आदि।
    • अर्जित पहचान - जिसकी पहचान अपनी योग्यता, कौशल, हुनर आदि से प्राप्त की जाती है उसे अर्जित पहचान कहा जाता है। जैसे डॉक्टर, इंजीनियर, अध्यापक आदि।
    • समुदाय - व्यक्तियों का समूह जिसमें हम की भावना है, तथा अपनापन हो।
    • राष्ट्र - राष्ट्र एक तरह का बड़े स्तर का समुदाय होता है, यह कई समुदायों से मिल कर बनता है।
    • मैक्स वैबर के अनुसार - राज्य एक ऐसा निकाय होता जो एक विशेष क्षेत्र में विधिसम्मत एकाधिकार का सफलतापूर्वक दावा करता है।
    • राष्ट्र व राज्य के बीच एकैक (एक-एक का) सम्बन्ध है जैसे-एक-राष्ट्र-एक राज्य या एक राज्य–एक राष्ट्र।
    • सांकृतिक विविधता के कारण अधिकांश राज्यों को डर था कि इसमें सामाजिक विखंडन की स्थिति उत्पन्न हो जाएगी व समरसत्ता पूर्ण समाज के निमार्ण मे रूकावट आएगी।
    • भारत में सांस्कृतिक विविधता - जनसंख्य की दृष्ट्रि से भारत का स्थान विश्व में दूसरा है। यहाँ पर 1632 भिन्न भाषाएं व बोलियां है तथा
      • विभिन्न धर्म - हिन्दू 80.5%, 13.4% मुसलमान, ईसाई 2.3%, सिख 1.9%, बौद्ध 0.8%, जैन 0.4%, o.2% विभिन्न जातियों
  1. सामुदायिक पहचान का महत्त्व:-
    • हमारा समुदाय हमें भाषा (मातृभाषा) और सांस्कृतिक मूल्य प्रदान करता है जिनके माध्यम से हम विश्व को समझते हैं। यह हमारी स्वयं की पहचान को भी सहारा देता है।
    • सामुदायिक पहचान, जन्म तथा अपनेपन पर आधारित है, न कि किसी उपलब्धि के आधार पर। यह 'हम क्या' हैं इस भाव की द्योतक है न कि हम क्या बन गए हैं।
    • संभवतः इस आकस्मिक, शर्त सहित अथवा लगभग अनिवारणीय तरीके से संबंधित होने के कारण ही हम अक्सर अपनी सामुदायिक पहचान से भावनात्मक रूप से इतना गहरे जुड़े होते हैं। सामुदायिक संबंधों (परिवार, तानेदारी, जाति, नृजातीयता, भाषा, क्षेत्र या धर्म) के बढ़ते हुए और परस्पर व्यापी दायरे ही हमारी दुनिया को सार्थकता प्रदान करते हैं और हमें पहचान प्रदान करते हैं कि हम कौन हैं।
  2. राष्ट्र की व्याख्या करना सरल है पर परिभाषित करना कठिन क्यों?
    • राष्ट्र एक अनूठे किस्म का समुदाय होता है। जिसका वर्णन तो आसान है पर इसे परिभाषित करना कठिन है। हम ऐसे अनेक विशिष्ट राष्ट्रों का वर्णन कर सकते है। जिनकी स्थापना साझे-धर्म, भाषा, इतिहास अथवा क्षेत्रीय संस्कृति जैसी साझी सांस्कृतिक, ऐतिहासिक ओर राजनीतिक संस्थानों के आधार पर की गई है।
    • उदाहरण के लिए, ऐसे बहुत से राष्ट्र है जिनकी अपनी एक साझा या सामान्य भाषा, धर्म, नृजातीयता आदि नहीं है। दूसरी ओर ऐसी अनेक भाषाएं, धर्म या नृजातिया है जो कई राष्ट्रों में पाई जाती है। लेकिन इससे यह निष्कर्ष नहीं निकलता कि यह सभी मिलकर एक एकीकृत राष्ट्र का निर्माण करते हैं, उदाहरण के लिए सभी अंग्रेजी भाषी लोग या सभी बौद्धर्मावलंबी।
    • आत्मासात्करणवादी और एकीकरणवादी रणनीतियाँ:- एकल राष्ट्रीय पहचान स्थापित करने की कोशिश करती है जैसे:-
      • संपूर्ण शक्ति को ऐसे मंचों में केन्द्रित करना जहाँ प्रभावशाली समूह बहुसंख्यक हो और स्थानीय या अल्पसंख्यक समूहों की स्वायत्ता को मिटाना।
      • प्रभावशाली समूह की परंपराओं पर आधारित एक एकीकृत कानून एवं न्याय व्यवस्था को थोपना और अन्य समूहों द्वारा प्रयुक्त वैकल्पिक व्यवस्थाओं को खत्म कर देना।
      • प्रभावशाली समूह की भाषा को ही एकमात्र राजकीय 'राष्ट्रभाषा' के रूप में अपनाना और उसके प्रयोग को सभी सार्वजनिक संस्थाओं में अनिवार्य बना देना।
      • प्रभावशाली समूह की भाषा और संस्कृति को राष्ट्रीय संस्थाओं के जरिए, जिनमें राज्य नियंत्रित, जनसंपर्क के माध्यम और शैक्षिक संस्थाएँ शामिल है, बढ़ावा देना।
      • प्रभावशाली समूह के इतिहास, शूरवीरों और संस्कृति को सम्मान प्रदान करने वाले राज्य प्रतीकों को अपनाना, राष्ट्रीय पर्व, छुट्टी या सड़कों आदि के नाम निर्धारित करते समय भी इन्हीं बातों का ध्यान रखना।
      • अल्पसंख्यक समूहों और देशज लोगों से जमीनें, जंगल एवं मत्सय क्षेत्र छीनकर, उन्हें 'राष्ट्रीय संसाधन' घोषित कर देना।
  3. भारतीय सन्दर्भ में क्षेत्रवाद:-
    • भारत के क्षेत्रवाद भारत की भाषाओं, संस्कृतियों, जनजातियों और धर्मों की विविधता के कारण पाया जाता है इसे विशेष पहचान चिन्हकों के भौगोलिक संकोद्रण को कारण भी प्रोत्साहन मिलता है ओर क्षेत्रीय वंचन का भाव अग्नि में घी का काम करना है। भारतीय संघवाद इन क्षेत्रीय भावुकताओं को समायोजित करने वाला एक साधन है।
  4. अल्पसंख्यक का समाजशास्त्रीय अर्थ:- वह समूह जो धर्म, जाति की दृष्टि से संख्या में कम हो। जैसे- सिक्ख, मुस्लिम, जैन, पारसी, बौद्ध
    • अल्पसंख्यक समूहों की धारणा का समाजशास्त्र में व्यापक रूप से प्रयोग किया जाता है एवं सिर्फ एक संख्यात्मक विशिष्टता के अलावा और अधिक महत्व है- इसमें आमतोर पर असुविधा या हानि का कुछ भावनिहित है। अतः विशेषाधिकार प्राप्त अल्पसंख्यक जैसे अत्यंत धनवान लोगों को आमतौर पर अल्पसंख्यक नहीं कहा जा सकता।
    • अल्पसंख्यकों को क्यों संवेधानिक संरक्षण दिया जाना चाहिए?
      - बहुसंख्यक वर्ग को जनसांख्यिकीय प्रभुत्व को कारण धार्मिक अथवा सांस्कृतिक अल्पसंख्यकों को विशेष संरक्षण की आवश्यक्ता होती है।
      - धार्मिक तथा सांस्कृतिक अल्पसंख्यक वर्ग राजनीति दृष्टि से कमजोर होते है भले ही उनकी आर्थिक या सामाजिक स्थिति केसी भी हो, अतः इन्हें संरक्षण की आवश्यकता होती है।
    • अल्पसंख्यको एवं सांस्कृतिक विविधता पर भारतीय संविधान का
अनुच्छेद 29
  1. भारत के राज्यक्षेत्र या उसके किसी भाषा के निवासी नागरिकों के किसी अनुभाग को, जिसकी अपनी विशेष भाषा, लिपि या संस्कृति है, उसे बनाए रखने का अधिकार होगा।
  2. राज्य द्वारा पोषित या राज्य-निधि से सहायता पाने वाली कसी शिक्षा संस्था में प्रवेश से किसी भी नागरिक को केवल धर्म, मूलवंश, जाति, भाषा या इनमें से किसी के आधार पर वंचित नहीं किया जाएगा।
अनुच्छेद 30
  1. धर्म या भाषा पर आधारित सभी अल्पसंख्यक-वर्गों को अपनी रूचि की शिक्षा संस्थाओं की स्थापना और प्रशासन का अधिकार होगा।
  2. शिक्षा संस्थाओं को सहायता देने में राज्य किसी शिक्षा संस्था के विरूद्ध इस आधार पर विभेद नहीं करेगा कि वह धर्म या भाषा पर आधारित किसी अल्पसंख्यक वर्ग के प्रबंध में है।
  1. सांप्रदायिकता:-
    • रोजमर्रा की भाषा में 'सांप्रदायिकता' का अर्थ है धार्मिक पहचान पर आधारित आक्रामक उग्रवाद, अपने आपमें एक ऐसी अभिवृत्ति है जो अपने समूह को ही वैध या श्रेष्ठ समूह मानती है ओर अन्य समूह को निम्न, अवैध अथवा विरोधी समझती है।
    • सांप्रदायिकता एक आक्रामक राजनीतिक विचारधारा है जो धर्म से जुड़ी होती है।
    • सांप्रदायिकता राजनीति से सरोकार रखती है धर्म से नहीं। यद्यपि संप्रदायिकता धर्म के साथ गहन रूप से जुड़ा होता है।
    • भारत में बार-बार सांप्रदायिक तनाव फैलते हैं जो कि चिंता का विषय बना हुआ है। इसमें लूटा जाता है, बलात्कार होता है ओर लोगों की जान ली जाती है, जैसा कि 1984 में सिक्खों के साथ एवं 2002 में गुजरात के मुसलमानों के साथ हुआ, इसके अलावा भी हजारों ऐसे फसाद हुए हैं। जिसमें सदैव अल्पसंख्यकों का बड़ा नुकसान हुआ है।
  2. धर्मनिरपेक्षतावाद:-
    • पश्चिमी नजरिये के अनुसार इसका अर्थ है चर्च या धर्मों को राज्य से अलग रखना। धर्म का सत्ता से अलग रखना पश्चिमी देशों के लिए एक सामाजिक इतिहास की हैसियत रखता है।
    • भारतीय संदर्भ में धर्मनिरपेक्ष राज्य वह होता है। जो किसी विशेष धर्म का अन्य धर्मों की तुलना में पक्ष नहीं लेता। भारतीय भाव के राज्य के सभी धर्मों को समान आदर देने के कारण दोनों के बीच तनाव से एक तरह की कठिन स्थिति पैदा हो जाती है हर फैसला धर्म को ध्यान में रखते हुए लिया जाता है। उदाहरण के लिए हर धर्म के त्योहार पर सरकारी छुट्टी होती है।
  3. सक्तावादी राज्यः-
    • एक सत्तावादी राज्य लोकतंत्रात्मक राज्य का विपरीत होता है।
    • इसमें लोगों की आवाज नहीं सुनी जाती है। और जिनके पास शक्ति होती है वे किसी के प्रति उत्तरदायी नहीं होते।
    • सतावादी राज्य अक्सर भाषा की स्वतंत्रता, प्रेस की स्वतन्त्रता, सत्ता के दुरूपयोग से संरक्षण का अधिकार विधि (कानून) की अपेक्षित प्रक्रियाओं का अधिकार जैसी अनेक प्रकार की नागरिक स्वतंत्रताओं को अक्सर सीमित या समाप्त कर देते हैं।
  4. नागरिक समाज:-
    • नागरिक समाज उस व्यापक कार्यक्षेत्र को कहते हैं जो परिवार को निजी क्षेत्र से परे होता है, लेकिन राज्य और बाजार दोनों क्षेत्र से बाहर होता है।
    • नागरिक समाज में स्वैच्छिक संगठन होते है।
    • यह सक्रिय नागरिकता का क्षेत्र है यहाँ व्यक्ति मिलकर सामाजिक मुद्दों पर चर्चा करते हैं। जैसे-गैर सरकारी संस्थाएँ, राजनीतिक दल, मीडिया, श्रमिक संघ अादि।
    • नागरिक समाज के द्वारा उठाए गए मुद्दे -
      - जनजाति की भूमि की लड़ाई
      - पर्यावरण की सुरक्षा उदाहरण
      - मानक अधिकार और दलितों के हक की लड़ाई (मुद्दे)।
      - नगरीय शासन का हस्तांतरण।
      - स्त्रियों के प्रति हिसा और बलात्कार के विरूद्ध अभियान।
      - बाँधों के निर्माण अथवा विकास की अन्य परियोजनाओं के कारण विस्थापित हुए लोगों का पुर्नवास।
      - गंदी बस्तियाँ हटाने के विरूद्ध और अवासीय अधिकारों के लिए अभियान।
      - प्राथमिक शिक्षा संबंधी सुधार।
      - दलितों को भूमि का वितरण।
      - राज्य को काम काज पर नजर रखने और उससे कानून का पालन करवाना।
सूचनाधिकार अधिनियम 2005 (लोगों को उत्तर देने को लिए राज्य को बाध्य करना)
  • संसद द्वारा 15 जून 2005 को पारित किया तथा 13 अक्टूबर 2005 से लागू किया। पुराना गुप्त अधिनियम 1923 रद्द कर दिया है, अब राज्य को लोगों के उत्तर देने के लिए बाध्य किया। इन्हें देखकर, प्रिन्ट आउट के रूप में विडियों कैसेट तथा अन्य विधि से ले सकते हैं।
  • सूचनाधिकार अधिनियम 2005 भारतीय संसद द्वारा अधिनियमित एक ऐसा कानून है जिसके तहत भारतीयों को (जम्मू और कश्मीर) सरकारी अभिलेखों तक पहुँचने का अधिकार दिया गया है।
  • कोई भी व्यक्ति किसी 'सार्वजनिक प्राधिकरण' से सूचना को लिए अनुरोध कर सकता है ओर उस प्राधिकरण से यह आशा की जाती है कि वह शीघ्रता से यानी 30 दिन के भीतर उसे उत्तर देगा।