संरचना तथा भूआकृति विज्ञान-पुनरावृति नोट्स

                                                                 सीबीएसई कक्षा - 11

विषय - भूगोल
पुनरावृत्ति नोट्स
पाठ - 2 संरचना तथा भू-आकृति विज्ञान


महत्त्वपूर्ण तथ्य-

  • भू-वैज्ञानिक संरचना व शैल समूह की विविधता के अंतर्गत भारत को तीन भू-वैज्ञानिक खंडो में बांटा  गया है-
    1. प्रायद्वीपीय खंड
    2. सिंधु-गंगा-ब्रहमपुत्र मैदान।
    3. हिमालय और अन्य अतिरिक्त प्रायद्वीपीय पर्वत मालाएं
  • प्रायद्वीपीय मुख्यतः प्राचीन नाइस व ग्रेनाईन से बना है जो कैम्ब्रियन कल्प से एक कठोर खंड के रूप में खड़ा है।
  • हिमालय तथ अन्य अतिरिक्त - प्रायद्वीपीय पर्वत मालाओं की भूवैज्ञानिक संरचना तरूण दुर्बल और लचीली है।
  • सिंधु-गंगा-ब्रहमपुत्र मैदान एक भू-अभिनति गर्त है जिसका निर्माण मुख्य रूप से हिमालय पर्वतमाला निर्माण प्रक्रिया के तीसरे चरण में लगभग 64 करोड़ वर्ष से पूर्व हुआ।
  • मोटे तौर पर भारत को 6 भू-आकृतिक खंडो में बांटा गया है।
    1. भारतीय मरूस्थल
    2. तटीय मैदान
    3. द्वीप समूह
    4. उत्तरी तथा उत्तरी-पूर्वी पर्वतमाला
    5. उत्तरी भारत का मैदान
    6. प्रायद्वीपीय पठार
  1. भूवैज्ञानिक संरचना और शैल समूह की विविधता के अंतर्गत भारत को तीन भूवैज्ञानिक खंडों में बाँट गया है जो भौतिक लक्षणों पर निर्धारित हैं-
    1. प्रायद्वीपीय खंड
    2. सिंधु-गंगा-ब्रह्मपुत्र का मैदान
    3. हिमालय और अन्य अतिरिक्त प्रायद्वीपीय पर्वतमालाएँ
  2. प्रायद्वीप खंड की उत्तरी सीमा कटी-फटी है जो कच्छ से शुरू होती है एवं अरावली पहाड़ियों के पश्चिम से गुजरती हुई दिल्ली तक और फिर यमुना व गंगा नदी के समानांतर राजमहल की पहाड़ियों व गंगा डेल्टा तक जाती है। इसके अलावा उत्तर-पूर्व में काबी-ऐंगलोंग व मेघालय का पठार तथा पश्चिम में राजस्थान भी इसी खंड के विस्तार हैं।
  3. प्रायद्वीप मुख्यतः प्राचीन नाइस व ग्रेनाइट से बना है। कैम्ब्रियन कल्प से यह भूखंड एक कठोर खंड के रूप में खड़ा है। नर्मदा, तापी और महानदी की रिफ्ट घाटियाँ तथा सतपुड़ा ब्लॉक पर्वत इसके उदाहरण हैं। प्रायद्वीप में मुख्यतः अवशिष्ट यहाँ की नदी घाटियाँ उथली और उनकी प्रवणता कम होती है।
  4. पूर्व की तरफ बहने वाली ज़्यादातर नदियाँ बंगाल की खाड़ी में गिरने से पूर्व डेल्टा बनाती हैं। उदाहरण: महानदी, गोदावरी तथा कृष्णा द्वारा निर्मित डेल्टा 
  5. कठोर एवं स्थिर प्रायद्वीपीय खंड के विपरीत हिमालय तथा इसके अलावा प्रायद्वीपीय पर्वतमालाओं की भूवैज्ञानिक संरचना तरुण, दुर्बल और लचीली है।
  6. भारत का तृतीय भूवैज्ञानिक खंड सिंधु, गंगा और ब्रह्मपुत्र नदियों का मैदान है। मूलतः यह एक भू-अभिनति गर्त है, जिसका निर्माण मुख्य रूप से हिमालय पर्वतमाला निर्माण-प्रक्रिया के तीसरे चरण में लगभग 6.4 करोड़ वर्ष पूर्व हुआ था। तब से इसे हिमालय तथा प्रायद्वीप से निकलने वाली नदियाँ अपने साथ लाए हुए अवसादों से विभाजित हो रही हैं। इन मैदानों में जलोढ़ की औसत गहराई 1000 से 2000 मीटर है।
  7.  मुख्य रूप से भारत को निम्न भू-आकृतिक खंडों में विभाजित किया जा सकता है-
    1. भारतीय मरुस्थल
    2. तटीय मैदान
    3. द्वीप समूह
    4. उत्तर तथा उत्तरी-पूर्वी पर्वतमाला
    5. उत्तरी भारत का मैदान
    6. प्रायद्वीपीय पठार
  8. उत्तर एवं उत्तरी-पूर्वी पर्वतमाला में हिमालय पर्वत तथा उत्तरी-पूर्वी पहाड़ियाँ सम्मिलित हैं। हिमालय में कई समानांतर पर्वत श्रृंखलाएँ हैं। इसमें वृहत हिमालय, पार हिमालय श्रृंखलाएँ मध्य हिमालय और शिवालिक मुख्य श्रेणियाँ हैं।
  9. वृहत हिमालय श्रृंखला, केंद्रीय अक्षीय श्रेणी भी कहलाती है। इसकी पूर्व-पश्चिम लंबाई लगभग 2500 किलोमीटर तथा उत्तर-दक्षिण चौड़ाई 160 से 400 किलोमीटर है।
  10. उच्चावच, पर्वत श्रेणियों के सरेखण और दूसरी भूआकृतियों के आधार पर हिमालय को निम्न उपखंडों में बांटा जा सकता है-
    1. कश्मीर या उत्तरी-पश्चिमी हिमालय
    2. अरुणाचल हिमालय
    3. पूर्वी पहाड़ियाँ और पर्वत
    4. हिमाचल और उत्तराखंड हिमालय
    5. दर्जिलिंग और सिक्किम हिमालय
  11. कश्मीर हिमालय में विभिन्न पर्वत श्रेणियाँ हैं, जैसे- लद्दाख, जास्कर, काराकोरम और पीरपंजाल।
  12. शिवालिक शब्द का उदय देहरादून के नजदीक शिवावाला में पाए जाने वाले भूगर्मिक रचनाओं से हुआ है। किसी समय यहाँ इम्पीरियल सर्वे का मुख्यालय स्थित था, जो इसके पश्चात स्थायी रूप से देहरादून में स्थापित हुआ।
  13. हिमाचल तथा उत्तरांचल हिमालय का हिस्सा पश्चिम में रावी नदी और पूर्व में काली नदी के मध्य स्थित है। लघु हिमालय में 1000 से 2000 मीटर ऊँचाई वाले पर्वत ब्रिटिश प्रशासन के लिए मुख्य आकर्षण केंद्र रहे हैं। कुछ पर्वत नगर, जैसे-अलमोड़ा, लैंसडाउन, धर्मशाला, मसूरी, कासौली तथा रानीखेत इसी क्षेत्र में स्थित हैं।
  14. वृहत हिमालय की घाटियों में भोटिया प्रजाति के लोग रहते हैं। ये खानाबदोश लोग कहे जाते हैं ये लोग ग्रीष्म ऋतु में बुगयाल (ऊँचाई पर स्थित घास के मैदान) में चले जाते हैं और शरद ऋतु में घाटियों में लौट आते हैं। प्रसिद्ध 'फूलों की घाटी' भी इसी पर्वतीय क्षेत्र में स्थित है। केदारनाथ, ब्रद्रीनाथ, गंगोत्री, यमुनोत्री तथा हेमकुंड साहिब भी इसी इलाके में स्थित हैं।
  15. सिक्किम और दार्जिलिंग हिमालय अपने रमणीय सौंदर्य, वनस्पति जात तथा प्राणी जात और आर्किड के लिए जाना जाता है।
  16. अरुणाचल हिमालय की एक महत्वपूर्णता यह है कि यहाँ बहुत-सी जनजातियाँ निवास करती हैं। इस क्षेत्र में पश्चिम से पूर्व में बसी कुछ जनजातियाँ इस तरह हैं-मोनपा, मिशमी, निशी, डफ्फला, अबोर और नागा। इनमें से अधिकांश जनजातियाँ झूम खेती करती हैं, जिसे स्थानांतरी कृषि या स्लैश और बर्न कृषि भी कहा जाता है।
  17. पूर्वी पहाड़ियाँ उत्तर में पटकाई बूम, नागा पहाड़ियाँ, मणिपुर पहाड़ियाँ तथा दक्षिण में मिज़ो या लुसाई पहाड़ियों के नाम से जानी जाती हैं। मणिपुर घाटी के मध्य एक झील स्थित है, जो लोकताक झील कहलाती है।
  18. उत्तरी भारत का मैदान सिंधु, गंगा तथा ब्रह्मपुत्र नदियों द्वारा बहाकर लाए गए जलोढ़ निक्षेप से बना है। इस मैदान की पूर्व से पश्चिम लम्बाई लगभग 3200 किलोमीटर है। इसकी औसत चौड़ाई 150 से 300 किलोमीटर है। उत्तर से दक्षिण दिशा में इस मैदान को तीन भागों में विभाजित क्र सकते हैं-भाभर, तराई तथा जलोढ़ मैदान। जलोढ़ मैदान को आगे दो भागों में विभाजित किया जाता है-खादर और बाँगर।
  19. भाभर 8 से 10 किलोमीटर चौड़ाई की पतली पट्टी है जो शिवालिक गिरिपाद के समानांतर रूप से फैली हुई है। भाभर के दक्षिण में तराई क्षेत्र है, जिसकी चौड़ाई 10 से 20 किलोमीटर है। भाभर क्षेत्र में लुप्त नदियाँ इस प्रदेश में धरातल पर निकल कर प्रकट होती हैं।
  20. उत्तरी भारत का मैदान एक सपाट मैदान है, जिसकी समुद्र तल से औसत ऊँचाई 50 से 100 मीटर है। हरियाणा और दिल्ली राज्य सिंधु और गंगा नदी तंत्रों के मध्य जल-विभाजक है।
  21. नदियों के मैदान से 150 मीटर ऊँचाई से ऊपर उठता हुआ प्रायद्वीपीय पठार तिकोने आकार वाला कटा-फटा भूखंड है, जिसकी ऊँचाई 600 से 900 मीटर है। उत्तर-पश्चिम से दिल्ली, पूर्व में राजमहल पहाड़ियाँ, पश्चिम में गिर पहाड़ियाँ, कटक (अरावली विस्तार) और दक्षिण में इलायची (कार्डामिम) पहाड़ियाँ, प्रायद्वीप पठार की सीमाएँ निर्धारित करती हैं। उत्तर-पूर्व में शिलांग तथा कार्बी-ऐंगलोंग पठार भी इसी भूखंड का विस्तार है। प्रायद्वी,पीय भारत विभिन्न पठारों से इकट्ठा होकर है, जैसे- पलामू पठार, राँची पठार, मालवा पठार, हजारीबाग पठार, कोयम्बटूर पठार और कर्नाटक पठार।
  22. दक्कन के पठार के पश्चिम में पश्चिमी घाट, पूर्व में पूर्वी घाट और उत्तर में सतपुड़ा, मैकाल और महादेव पहाड़ियाँ हैं। पश्चिमी घाट को स्थानीय तौर पर अनेक नाम दिए गए हैं, जैसे-महाराष्ट्र में सहयाद्रि, कर्नाटक और तमिलनाडु में नीलगिरी और केरल में अनामलाई और इलायची (कार्डामिम पहाड़ियाँ)। पश्चिमी घाट औसत ऊँचाई लगभग 1500 मीटर है। प्रायद्वीपीय पठार की सबसे ऊँची चोटी अनाईमुडी (2695 मीटर) है जो पश्चिमी घाट की अनामलाई पहाड़ियों में स्थित है। दूसरी सबसे ऊँची चोटी डोडाबेटा है और यह नीलगिरी पहाड़ियों में है।
  23. पूर्वी घाट की मुख्य श्रेणियाँ जावादी पहाड़ियाँ, पालकोण्डा श्रेणी, नल्लामाला पहाड़ियाँ और महेन्द्रगिरी पहाड़ियाँ हैं।
  24. मेघालय के पठार को तीन भागों में बाँटा गया है-
    1. गारो पहाड़ियाँ
    2. खासी पहाड़ियाँ
    3. जयंतिया पहाड़ियाँ।
    4. असम की कार्बी-ऐंगलोंग पहाड़ियाँ भी मेघालय के पठार का विस्तार है।
  25. विशाल भारतीय मरुस्थल अरावली पहाड़ियों से उत्तर-पूर्व में स्थित है। यह एक उबड़-खाबड़ भूतल है, छत्रक शैलें, जिस पर रेतीले टीले, बरखान तथा मरुद्यान पाए जाते है।
  26. भारत के तटीय मैदानों को दो भागों में बाँटा जा सकता है-
    1. पश्चिमी तटीय मैदान
    2. पूर्वी तटीय मैदान।
      पश्चिमी तटीय मैदान की तुलना में पूर्वी तटीय मैदान चौड़ा है और उभरे हुए तट का उदाहरण है।
  27. भारत में दो प्रमुख द्वीप समूह स्थित हैं-एक बंगाल की खाड़ी में और दूसरा अरब सागर में। बंगाल की खाड़ी के द्वीप समूह में लगभग 572 द्वीप हैं। बैरन आइलैंड नामक भारत का एकमात्र जीवंत ज्वालामुखी निकोबार द्वीपसमूह में स्थित है।
  28. अरब सागर के द्वीपों में लक्षद्वीप और मिनिकॉय सम्मिलित हैं। यहाँ 36 द्वीप हैं और इनमें से 11 पर मानव आवास है। मिनिकॉय सबसे बड़ा द्वीप है, जिसका क्षेत्रफल 453 वर्ग किलोमीटर है।