पाश्चात्य समाजशास्त्री एक परिचय - एनसीईआरटी प्रश्न-उत्तर

कक्षा 11 समाजशास्त्र
एनसीईआरटी प्रश्न-उत्तर
पाठ - 9 पाश्चात्य समाजशास्त्री-एक परिचय

1. बौद्धिक ज्ञानोदय किस प्रकार समाजशास्त्र के विकास के लिए आवश्यक है?
उत्तर- बौद्धिक ज्ञानोदय निम्नलिखित प्रकार से समाजशास्त्र के विकास के लिए आवश्यक है :
  1. पश्चिमी यूरोप में 17वीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध और 18वीं शताब्दी में संसार के विषय में सोचने-विचारने के मौलिक दृष्टिकोण का उदय हुआ। यह ज्ञानोदय तथा प्रबोधन के नाम से जाना जाता है।
  2. आलोचनात्मक ढंग तथा विवेकपूर्ण से सोचने की प्रवृत्ति ने मनुष्य को सभी प्रकार के ज्ञान का उत्पादन और उपभोक्ता दोनों में बदल दिया।
  3. 'ज्ञान का पात्र' की उपाधि मानव को दी गई। उसी व्यक्ति को पूर्ण रूप से मनुष्य माना गया, जो व्यक्ति विवेकपूर्ण ढग से सोच-विचार कर सकते थे।
  4. तर्कसंगत की मानव जगत की पारिभाषिक विशिष्टता का स्थान देने के लिए प्रकृति, धर्म-संप्रदाय तथा देवी देवताओं के वर्चस्व को कम करना अनिवार्य था। इसका कारण यह था कि पहले मानव जगत लेना पड़ता था।

2. औद्योगिक क्रांति किस प्रकार समाजशास्त्र के जन्म के लिए उत्तरदायी है?
उत्तर- औद्योगिक क्रांति निम्न प्रकार से समाजशास्त्र के जन्म के लिए उत्तरदायी है :
  1. उत्पादन कुटीर उधोगो से हटकर फैक्ट्रियों के हवाले चला गया। नवीन उद्योगों में काम की तलाश में लोगों शहरी क्षेत्रों में चले गए।
  2. आधुनिक प्रशासनिक व्यवस्था की वजह से राजतंत्र की लोक संबंधी विषयों तथा कल्याणकारी कार्यों की जवाबदेही उठाने के लिए बाध्य किया गया।
  3. मज़दूर वर्ग ने गंदी बस्तियों में रहना प्रारंभ कर दिया और अमीर लोग बड़े-बड़े भवनों में रहने लगे।

3. उत्पादन के तरीकों के विभिन्न घटक कौन-कौन से हैं?
उत्तर- उत्पादन के तरीकों के घटक निम्नलिखित हैं :
  1. उत्पादन के साधन प्रथम हैं इसके अंतर्गत मज़दूर वर्ग आता है जो उत्पादन करते हैं।
  2. द्वितीय, पूँजीपति वर्ग है जो उत्पादन के साधनों पर नियंत्रण करते है।
  3. उपभोग की वस्तुओं की प्रकार श्रम बाज़ार में बेचा जाता है।
  4. अपने उत्पादन को मज़दूरों के माध्यम से निष्पादन के लिए पूँजीपति वर्ग के पास अर्थ तथा साधन हैं।
  5. पूँजीपति वर्ग मज़दूरों के दम पर अधिक अमीर बन गए।

4. मार्क्स के अनुसार विभिन्न वर्गों में संघर्ष क्यों होते हैं?
उत्तर- मार्क्स के अंतर्गत, समाज को दो वर्गो में विभाजित किया गया है। प्रत्येक समाज में दो विरोधी समूह पाये जाते हैं। राज्य के उदय से ही इन दो वर्गों के मध्य संघर्ष सामान्यतया बढ़ता जा रहा है।
  • पूँजीपति वर्ग नियंत्रण का उत्पादन के सभी साधनों पर रहता है और यह वर्ग उत्पादन के अपने साधनों की मदद से अन्य वर्गों का दमन करता है।
  • द्वितीय वर्ग मज़दूर वर्ग है जिन्हें श्रमजीवी वर्ग कहा जाता है।
    शोषक और शोषित वर्ग के मध्य संघर्ष सामान्यतया बढ़ता रहता है। इसकी वजह यह है कि पूँजीपति वर्ग मज़दूरों को शायद ही कुछ देने की इच्छा रखते हैं।
    मार्क्स के अनुसार, "आर्थिक प्रक्रियाएँ सामान्यतया वर्ग संघर्ष को जन्म देती हैं यद्यपि यह भी राजनीतिक और सामाजिक स्थितियों पर निर्भर करता है।"

5. 'सामाजिक तथ्य' क्या हैं? हम उन्हें कैसे पहचानते हैं?
उत्तर- 'सामाजिक तथ्य' का संबंध सामूहिक प्रतिनिधित्व हैं जिनका उद्भव व्यक्तियों के संगठन से होता है।
  • दुर्खाइम की सबसे आवश्यक उपलब्धि उनका प्रदर्शन है कि समाजशास्त्र एक ऐसा शास्त्र है जो अपूर्व तत्वों, जैसे सामाजिक तथ्योंं का विज्ञान हो सकता है। लेकिन एक ऐसा विज्ञान जो अवलोकन आनुभविक इंद्रियानुभवी सत्यापनीय साक्ष्यों पर निर्धारित है।
  • दुर्खाइम ने इसे 'उद्गामी-स्तर' कहा जोकि जटिल सामूहिकता का जीवन स्तर है जहाँ सामाजिक प्रघटनाओं का उदय हो सकता है।
  • वे किसी व्यक्ति के लिए विशिष्ट नहीं होते हैं, परंतु सामान्य प्रकृति के होते हैं और व्यक्तियों से स्वतंत्र होते हैं।
  • आत्महत्या के प्रत्येक अध्ययन का विशिष्ट रूप से व्यक्ति तथा उसकी परिस्थितियों से संबंध है।
  • आत्महत्या पर दुर्खाइम के द्वारा किया गया अध्ययन नवीन आनुभविक आँकड़ों पर आधारित एक सबसे चर्चित उदाहरण है।

6. 'यांत्रिक' और ‘सावयवी' एकता में क्या अंतर है?
उत्तर- दुर्खाइम के अंतर्गत है कि सभी समाजो में कुछ विश्वास, व्यवहार के ढंग, मूल्य, विचार, संस्था तथा कानून बने होते हैं, जो समाज को संबंधों के बंधन से बाँध कर रखते हैं। इन तत्वों की उपस्थिति की वजह से समाज में संबंधों तथा एकता का अस्तित्व कायम रहता है।
उन्होंने सामाजिक एकता की प्रकृति के आधार समाज को वर्गीकृत किया जिसका समाज में अस्तित्व कायम है और जो निम्नलिखित हैं-
यांत्रिक एकतासावयवी एकता
कम विकसित समाज में यह प्रभुत्वसम्पन्न होता है।अत्यधिक विकसित समाजों में यह प्रभुत्वसम्पन्न होता है।
इसकी प्रकृति खण्डीय होती है।इसकी प्रकृति संगठित होती है।
इसके द्वारा सामाजिक संबंधों का बंधन कमज़ोर होता है।इसमें सामाजिक संबंधों का बंधन मज़बूत होता है।
कम जनसंख्या वाले क्षेत्रों में इसका प्रभाव ज़्यादा होता हैं।अत्यधिक जनसंख्या वाले क्षेत्रों में इसका प्रभाव कम होता है।
इसका स्वरूप कठोर एवं विशिष्ट होता है।यह अमूर्त एवं सामान्य होता है।

7. उदाहरण सहित बताएँ कि नैतिक संहिताएँ सामाजिक एकता को कैसे दर्शाती हैं?
उत्तर- नैतिक संहिताएँ सामाजिक एकता को निम्नलिखित प्रकार से दर्शाती हैं :
  • आचरण की संहिताओं में सामाजिकता को ढूँढा जा सकता था, जो व्यक्तियों पर सामूहिक समझौते के द्वारा थोपा गया था।
  • नैतिक संहिताएँ विशिष्ट सामाजिक परिस्थितियों को दर्शाता हैं।
  • नैतिक संहिताओं से वर्तमान सामाजिक परिस्थतियाँ का परिणाम निकाला जा सकता है। इसने समाजशास्त्र को प्राकृतिक विज्ञान के समान बना दिया है तथा इसका बृहत औचित्य समाजशास्त्र को एक कष्टदायी वैज्ञानिक संकाय के रूप में स्थापित करने के ज़्यादा निकट है।
  • सामाजिक एकता समूह के प्रतिमानों तथा उम्मीदों के अनुरूप व्यवहार करने के लिए व्यक्तियों पर नियंत्रित है।
  • अन्य तथ्यों की तरह नैतिक तथ्य भी सामाजिक परिघटनाएँ हैं। उनका निर्माण क्रिया के नियमों से हुआ है जो विशेष गुणों के द्वारा पहचाने जाते हैं। उनका अवलोकन, वर्णन और वर्गीकरण संभव है। और विशिष्ट कानूनों के द्वारा समझाया भी जा सकता है।
  • एक समाज की उपयुक्त नैतिक संहिता दूसरे समाज के लिए उपयुक्त नहीं होती है।
  • दुर्खाइम के अंतर्गत, सामाज एक सामाजिक तथ्य है। इसका अस्तित्व नैतिक समुदाय के रूप में व्यक्ति से ऊपर था।
  • व्यवहार के प्रतिमानों का अवलोकन कर उन प्रतिमानों, संहिताओं तथा सामाजिक एक्ताओं को पहचाना जा सकता है, जो उन्हें नियंत्रित करते हैं।
  • व्यक्तियों के सामाजिक व्यवहारों के प्रतिमानों का अध्ययन कर अन्य रूप से अदृश्य वस्तुओं का अस्तित्व; जैसे- मूल्य, विचार, प्रतिमान और इसी प्रकार अन्य को आनुभविक रूप से सत्यापित किया जा सकता है।

8. नौकरशाही की बुनियादी विशेषताएँ क्या हैं?
उत्तर- नौकरशाही की बुनियादी विशेषताएँ निम्नलिखित हैं :
  • नौकरशाहों के निश्चित कार्यालयी क्षेत्राधिकार होते हैं। इसका संचालन नियम, कानून तथा प्रशासनिक विधानों के माध्यम से होता है।
  • अधिकारी और कार्यालय श्रेणीगत सोपान पर आधारित हाते हैं। इस व्यवस्था के अंतर्गत उच्च अधिकारी निम्न अधिकारियों का निर्देशन करते हैं।
  • नौकरशाही में पदों की स्थितियाँ स्वतंत्र होती है।
  • कार्यान्वयन के लिए उच्च अधिकारी द्वारा अधीनस्थ वर्गों को आदेश स्थायी रूप में दिए जाते हैं, परंतु जिम्मेदारियों को परिसीमित कर उसका जिम्मा अधिकारियों को सौंप दिया जाता है।
  • कार्यालय में अपने असीमित कार्यालय समय के विपरीत कर्मचारियों से समग्र एकाग्रता की अपेक्षा की जाती है। इस प्रकार कार्यालय में एक कर्मचारी होता है।
  • नौकरशाही व्यवस्थाओं का प्रबधन लिखित दस्तावेजों के आधार पर चलाया जाता है। इन लिखित दस्तावेजों को फ़ाइलें भी कहते हैं। इन फ़ाइलों को रिकॉर्ड के रूप में सँभाल कर रखा जाता है।

9. मार्क्स तथा वैबर ने भारत के विषय में क्या लिखा है-पता करने की कोशिश कीजिए।
उत्तर- मार्क्स तथा वैबर ने भारत के विषय में निम्नलिखित बातें लिखी है :
  • मार्क्स के अंतर्गत, अर्थव्यवस्था लोगों के विचारों एवं विश्वासों का स्रोत है। वे इसी अर्थव्यवस्था के भाग हैं।
  • वैबर के अंतर्गत, सामाजिक विज्ञान का समग्र औचित्य सामाजिक क्रियाओं की समझ के लिए व्याख्यात्मक पद्धति का वृद्धि करना है।
  • मार्क्स का मानना था कि सामाजिक परिवर्तन के लिए वर्ग संघर्ष अत्यधिक महत्त्वपूर्ण ताकत है।
  • मार्क्स ने आर्थिक संरचना और प्रक्रियाओं पर अत्यधिक बल दिया। उनका विश्वास था कि वे प्रत्येक सामाजिक व्यवस्था के आधार हैं और मानव का इतिहास इसका साक्षी है।
  • सामाजिक दुनिया, मूल्य, भावना. पूर्वांग्रह, विचार और इसी प्रकार अन्य जैसे व्यक्तिनिष्ठ मानव के गुणों पर आधारित है।
  • सामाजिक विज्ञानों का केंद्रीय सरोकार सामाजिक कार्यों से है और कारण यह है कि मानव के कार्यों में व्यक्तिनिष्ठ अर्थ शामिल है, इसलिए सामाजिक विज्ञान में संबंधित जाँच की पद्धति को प्राकृतिक विज्ञान की पद्धति से भिन्न होना अनिवार्य है।
  • सामाजिक वैज्ञानिकों को 'समानुभूति समझ' का निरंतर अभ्यास करना है। परंतु यह जाँच वस्तुनिष्ठ तरीके से किया जाना अनिवार्य है।
  • समाजशास्त्रीयों मानना है कि वे दूसरों की विषयगत भावनाओं को परखने के बजाय केवल वर्णन करें।