फ़िराक़ गोरखपुरी - पुनरावृति नोट्स

 सीबीएसई कक्षा - 12 हिंदी कोर आरोह

पाठ – 09
गज़ल


पाठ के सार - पाठ में फिराक की एक गज़ल भी शामिल है। रूबाइयों की तरह ही फिराक की गजलों में भी हिंदी समाज और उर्दू शायरी की परंपरा भरपूर है। इसका अद्भुत नमूना है यह गज़ल। यह गज़ल कुछ इस तरह बोलती है कि जिसमें दर्द भी है, एक शायर की ठसक भी है और साथ ही है काव्य -शिल्प की वह ऊँचाई जो गज़ल की विशेषता मानी जाती है।

नौरस अर्थात नया रस! गुंचे अर्थात कलियों में नया-नया रस भर आया है। रस के भर जाने से कलियाँ विकसित हो रही हैं। धीरे-धीरे उनकी पंखुड़ियाँ अपनी बंद गाँठें खोल रही हैं। कवि के शब्दों में नवरस ही उनकी बंद गाँठें खोल रहा है।

रंग और सुगंध दो पक्षी हैं जो कलियों में बंद हैं तथा उड़ जाने के लिए अपने पंख फड़फड़ा रहे हैं। यह स्थिति कलियों के फूल बन जाने से पूर्व की है जो फूल बन जाने की प्रतीक्षा में हैं। ‘पर तौलना’ एक मुहावरा है जो उड़ान की क्षमता आँकने के लिए प्रयोग किया जाता है।

रात्रि का सन्नाटा भी कुछ कह रहा है। इसलिए तारे पलकें झपका रहे हैं। लगता है कि प्रकृति का कण-कण कुछ कह रहा है। वियोग की स्थिति में प्रकृति भी संवाद करती प्रतीत होती है।

कवि जीवन से संतुष्ट नहीं है। भाग्य से शिकायत का भाव इन पंक्तियों में झलकता है। हम और किस्मत दोनों शब्द एक ही व्यक्ति अर्थात फ़िराक के लिए प्रयुक्त हैं। हम और किस्मत में अभेद है यही विशेषता है। मुहावरों का प्रयोग -किस्मत का रोना-निराशा का प्रतीक।

परदा खोलना - भेद खोलना, सच्चाई बयान करना | सरल अभिव्यक्ति भाषा में प्रवाहमयता है परदा शब्दों की पुनरावृत्तियाँ मोहक हैं। शायर ने दुनिया के इस दस्तूर का वर्णन किया है कि लोग दूसरों को बदनाम करते हैं परंतु वे नहीं जानते कि इस तरह वे अपनी दुष्ट प्रकृति को ही उद्धाटित करते हैं।

कवि के अंदर प्रेम का भाव गहरा है| उसमे विवेक भी है और दीवानापन भी| अपने प्रेम को पाने के लिए वह किसी भी तरह का सौदा करने के लिए तैयार होता है।

कवि के अंदर एक तरफ प्रेम का भाव भरा पूरा है तो दूसरी तरफ उसे दुनियादारी की भी चिंता है| वह अपने प्रेमिका के दुख में शामिल होना तो चाहता है पर दुनिया के डर से चुपके चुपके रो लेता है।

“फ़ितरत का कायम है --- जितना खो ले हैं।”

ईश्वर की प्राप्ति सर्वस्व लुटा देने पर होती है। प्रेम के संसार का भी यही नियम है। स्वयं को खो कर ही प्रेम प्राप्ति की जा सकती है।

बाहरी चमक दमक में लोग अकसर अंधे हो जाते हैं। शायर के शेरों की चमक के पीछे उसके हृदय की पीड़ा बोलती है इसका ज्ञान केवल शायर की है। दुनिया अनदेखा करती है।

ऐसे में तू --- जग खोले हैं।

शराब की महफिल में शराबी को देर रात याद आती है कि आसमान में मनुष्य के पापों का लेखा-जोखा होता है। जैसे आधी रात के समय फरिश्ते लोगों के पापों के अध्याय खोलते हैं वैसे ही रात के समय शराब पीते हुए शायर को महबूबा की याद ही आती है मानो महबूबा फरिश्तों की तरह पाप स्थल के आस पास ही है।

सदके फ़िराक--इन पंक्तियों में फ़िराक कहते हैं कि उनकी शायरी में मीर की शायरी की उत्कृष्टता ध्वनित हो रही है।


पाठ – 09
रुबाइयाँ

पाठ के सार - उर्दू शायरी की रिवायत के विपरीत फिराक गोरखपुरी के साहित्य में लोक जीवन एवं प्रकृति की झलक मिलती है। सामाजिक संवेदना वैयक्तिक अनुभूति बन कर उनकी रचनाओं में व्यक्त हुई है। जीवन का कठोर यथार्थ उनकी रचनाओं में स्थान पाता है। उन्होंने लोक भाषा के प्रतीकों का प्रयोग किया है। लाक्षणिक प्रयोग उनकी भाषा की विशेषता है। फ़िराक की रुबाईयों में घरेलू हिंदी का रूप दिखता है।

रुबाई उर्दू और फ़ारसी का एक छंद या लेखन शैली है जिसमें चार पंक्तियाँ होती हैं। इसकी पहली दूसरी और चौथी पंक्ति में तुक (काफ़िया) मिलाया जाता है तथा तीसरी पंक्ति स्वच्छंद होती है।

बच्चे को चाँद का टुकड़ा कहा गया है जो माँ के लिए बहुत प्यारा होता है। गोद-भरी शब्द-प्रयोग माँ के वात्सल्यपूर्णआनंदित उत्साह को प्रकट करता है। यह अत्यंत सुंदर दृश्य बिंब है। सूनी गोद के विपरीत गोद का भरना माँ के लिए असीम सौभाग्य का सूचक है| इसी सौभाग्य का सूक्ष्म अहसास माँ की तृप्ति दे रहा है। जब माँ बच्चे को बाहों में लेकर हवा में उछालती है इसे लोका देना कहते हैं| छोटे बच्चों को यह खेल बहुत अच्छा लगता है| हवा में उछालने (लोका देने) से बच्चा माँ का वात्सल्य पाकर प्रसन्न होता है और खिलखिला कर हँस पड़ता है। बच्चे की किलकारियाँ माँ के आनंद को दुगना कर देती हैं।

माँ ने अपने बच्चे को निर्मल जल से नहलाया उसके उलझे बालों में कंघी की। माँ के स्पर्श एवं नहाने के आनंद से बच्चा प्रसन्न हो कर बड़े प्रेम से माँ को निहारता है। प्रतिदिन की एक स्वाभाविक क्रिया से कैसे माँ-बच्चे का प्रेम विकसित होता है और प्रगाढ़ होता चला जाता है इस भाव को इस रुबाई में बड़ी सूक्ष्मता के साथ प्रस्तुत किया गया है।

कवि ने बालक की निर्मलता एवं पवित्रता को जल की निर्मलता के माध्यम से अंकित किया है “के छलके-छलके निर्मल जल से”- | छलकना शब्द जल की ताजा बूंदों का बालक के शरीर पर छलछलाने का सुंदर दृश्य बिंब प्रस्तुत करता है।

सावधानी से बच्चे को चोट पहुँचाए बिना उसे कपड़े पहनाने से माँ के मातृत्व की कुशलता बिंबित होती है।

“किस प्यार से देखता है। बच्चा मुँह को” -पंक्ति में माँ-बच्चे का वात्सल्य बिंबित हुआ है। माँ से प्यार-दुलार स्पर्श-सुख, नहलाए जाने के आनंद को अनुभव करते हुए बच्चा माँ को प्यार भरी नजरों से देख कर उस सुख की अभिव्यक्ति कर रहा है। यह सूक्ष्म भाव अत्यंत मनोरम बन पड़ा है। संपूर्ण रुबाई में दृश्य बिंब है।

  • दृश्य बिंब:- बच्चे को गोद में लेना , हवा में उछालना स्नान कराना घुटनों में लेकर कपड़े पहनाना।
  • श्रव्यबिंब:- बच्चे का खिलखिला कर हँस पड़ना।
  • स्पर्श बिंब:- बच्चे को स्नान कराते हुए स्पर्श करना।

दीवाली में पुताई और सजावट से घर साफ और सुंदर हो जाते हैं । घरों में रोशनी दिए के कारण तो होती ही है पर बच्चे के चेहरे की दमक से घर में प्रकाश वैसे ही फैल जाता है | चीनी मिट्टी के खिलौने की चमक बच्चे को खुश कर देती है।

चौथे रुबाई में बालक की हठ करने की विशेषता अभिव्यक्त हुई है। बच्चे जब जिद पर आ जाते हैं तो अपनी इच्छा पूरी करवाने के लिए नाना प्रकार की हरकतें किया करते हैं ज़िदयाया शब्द लोक भाषा का विलक्षण प्रयोग है इसमें बच्चे का ठुनकनातुनकना पाँव पटकना, रोना अदि सभी क्रियाएँ शामिल हैं। माँ बच्चे को बहलाना जानती है और उसके लिए तो बच्चा ही चाँद है | दर्पण में चाँद को उतारना माँ की समझदारी दर्शाती है।

राखी के चमकीले तारों को लच्छे कहा गया है। रक्षाबंधन के कच्चे धागों पर बिजली के लच्छे हैं। सावन में रक्षाबंधन आता है। सावन का जो संबंध झीनी घटा से है, घटा का जो संबंध बिजली से है वही संबंध भाई का बहन से होता है। सावन में बिजली की चमक की तरह राखी के चमकीले धागों की सुंदरता देखते ही बनती है।