जैव-विविधता एवं संरक्षण-पुनरावृति नोट्स

                                                                   सीबीएसई कक्षा - 11

विषय - भूगोल
पुनरावृत्ति नोट्स
पाठ - 16 जैव-विविधता एवं संरक्षण


महत्त्वपूर्ण तथ्य-

  • आज जो जैव-विविधता हम देखते है, वह 2.5 से 3.5 अरब वर्ष के विकास का परिणाम है।
  • मानव के आने से जैव-विविधता में तीव्रता से कमी आने लगी, क्योंकि किसी एक या अन्य प्रजाति का जरूरत से ज़्यादा इस्तेमाल होने की वजह से, वह समाप्त होने लगती है।
  • जैव-विविधता दो शब्दों के मेल से बना है, बायो का अर्थ है-जीव तथा डाईवर्सिटी का अर्थ है - विविधता। साधारण शब्दों में किसी निश्चित भौगोलिक क्षेत्र में पाए जाने वाले जीवो की संख्या और उनकी विविधता को जैव-विविधता कहते है।
  1. पृथ्वी पर किसी प्रजाति की औसत आयु 10 से 40 लाख वर्ष होने का अनुमान है। ऐसा भी माना जाता है कि लगभग 99 प्रतिशत प्रजातियाँ, जो कभी पृथ्वी पर रहती थीं, आज लुप्त हो चुकी हैं।
  2. पृथ्वी पर जैव विविधता एक जैसी नहीं पाई जाती। उष्ण कटिबंधीय प्रदेशों में जैव विविधता ज़्यादा होती है। जैसे-जैसे हम ध्रुवीय प्रदेशों की ओर बढ़ते हैं, प्रजातियों की विविधता तो कम होती जाती है, लेकिन जीवधारियों की संख्या ज़्यादा होती जाती है।
  3. जीवन-निर्माण के लिए जीन एक मूलभूत इकाई है। किसी प्रजाति में जीन की विविधता ही आनुवांशिक जैव विविधता है।
  4. मानव आनुवांशिक रूप से 'होमोसेपियन्स' प्रजाति से संबंधित है, जिसमें कद, रंग और अलग दिखावट जैसे शारीरिक लक्षणों में बहुत विविधता है। आनुवांशिक विविधता इसकी वजह है।  अनेक प्रजातियों के विकास व फलने-फूलने के लिए आनुवांशिक विविधता अधिक ज़्यादा है।
  5. जैव विविधता ने मानव-संस्कृति के विकास में बहुत सहयोग दिया है एवं इस तरह, मानव-समुदायों ने भी आनुवंशिक, प्रजातीय व पारिस्थितिक स्तरों पर प्राकृतिक विविधता को बनाए रखने में बड़ा योगदान दिया है।
    जैव विविधता के स्तर
    1. आनुवांशिक जैव विविधता
    2. पारितंत्रीय जैव विविधता
    3. प्रजातीय जैव विविधता
  6. पारितंत्र में अनेक प्रजातियाँ कोई न कोई क्रिया करती हैं। पारितंत्र में कोई भी प्रजाति बिना वजह न तो विकसित हो सकती है और न ही बनी रह सकती है।
  7. प्रत्येक जीव अपनी ज़रूरत पूरी करने के साथ-ही-साथ दूसरे जीवों के पनपने में भी सहायक होता है।
  8. पारितंत्री क्रियाएँ मानव-जीवन हेतु आवश्यक क्रियाएँ हैं। पारितंत्र में जितनी ज़्यादा भिन्नता होगी प्रजातियों के प्रतिकूल स्थितियों में भी रहने की संभावना और उनकी उत्पादकता भी उतनी ही  ज़्यादा होगी। प्रजातियों की क्षति से तंत्र के बने रहने की क्षमता भी कम हो जाएगी।
  9. मानव-जीवन के प्रारम्भ होने से पहले, पृथ्वी पर जैव विविधता किसी भी अन्य काल से अधिक थी।
  10. मानव के आने से जैव विविधता में तीव्रता से कमी आने लगी, क्योंकि किसी एक या अन्य प्रजाति का जरूरत से अधिक इस्तेमाल होने के कारण, वह लुप्त होने लगी। अनुमान के अंतर्गत संसार की कुल प्रजातियों की संख्या 20 लाख से 10 करोड़ तक है, लेकिन एक करोड़ ही इसका सही अनुमान है।
  11. सभी मनुष्यों के लिए दैनिक जीवन में जैव विविधता एक महत्वपूर्ण संसाधन है। जैव विविधता को संसाधनों के उन भंडारों के रूप में भी समझा जा सकता है, जिनकी उपयोगिता भोज्य पदार्थ, औषधियाँ और सौंदर्य प्रसाधन आदि बनाने में है।
  12. पिछले कुछ दशकों से जनसंख्या वृद्धि के कारण, प्राकृतिक संसाधनों का उपभोग अधिक होने लगा है। इससे संसार के विभिन्न भागों में प्रजातियों तथा उनके आवास स्थानों में तेजी से कमी हुई है।
  13. उष्ण कटिबंधीय क्षेत्र, जो विश्व के कुछ क्षेत्र का मात्र एक-चौथाई भाग है, यहाँ संसार की तीन-चौथाई जनसंख्या रहती है। इस व्यापक जनसंख्या की आवश्यकताओ को पूरा करने के लिए संसाधनों का ज़्यादा दोहन एवं वनोन्मूलन हुआ है। उष्ण कटिबंधीय वर्षा वाले वनों में पृथ्वी की लगभग 50% प्रजातियाँ मिलती हैं तथा प्राकृतिक आवासों का विनाश पूरे जैवमंडल के लिए हानिकारक सिद्ध हुआ है।
  14. प्राकृतिक आपदाएँ, जैसे-ज्वालामुखी उद्गार, सूखा, भूकंप, बाढ़ आदि पृथ्वी पर पाई जाने वाली प्राणिजात और वनस्पति जात को क्षति पहुँचाते हैं तथा इसके कारण संबंधित प्रभावित प्रदेशों की जैव-विविधता में परिवर्तन आता है।
  15. प्राकृतिक संसाधनों व पर्यावरण संरक्षण की अंतर्राष्ट्रीय संस्था ने संकटापन्न पौधों व जीवों की प्रजातियों को उनके संरक्षण के उद्देश्य से तीन वर्गों में विभाजित किया है-
    1. भेद्य प्रजातियाँ
    2. दुर्लभ प्रजातियाँ।
    3. संकटापन्न प्रजातियाँ
  16. मानव के अस्तित्व हेतु जैव-विविधता बहुत महत्वपूर्ण है। जीवन का हर रूप एक-दूसरे पर इतना निर्भर है कि किसी एक प्रजाति पर संकट आने से दूसरों में असंतुलन की स्थिति उतपन्न हो जाती है। यदि पौधों और प्राणियों की प्रजातियाँ संकट में होती हैं, तो इससे पर्यावरण में गिरावट उत्पन्न होती है और अन्ततोगत्वा मनुष्य का अपना अस्तित्व भी खतरे में पड़ सकता है।
  17. ब्राजील के रियो-डी-जेनेरो में सन् 1992 में हुए जैव-विविधता के सम्मेलन में लिए गए संकल्पों का भारत अन्य 155 देशों सहित हस्ताक्षरी हैं।
  18. भारत सरकार ने प्राकृतिक सीमाओं के अंदर तरह की प्रजातियों को बचाने, संरक्षित करने और विस्तार करने हेतु, वन्य जीव सुरक्षा अधिनियम 1972 पारित किया है, जिसके अंतर्गत नेशनल पार्क, पशुविहार स्थापित किए गए तथा जीवमंडल आरक्षित घोषित किए गए।
  19. वे देश जो उष्ण कटिबंधीय क्षेत्र में स्थित हैं, उनमें संसार की सर्वाधिक प्रजातीय विविधता पाई जाती है। उन्हें 'महा विविधता केंद्र' कहा जाता है। इन देशों की संख्या 12 है और उनके नाम हैं : मैक्सिको, कोलंबिया, इक्वेडोर, पेरू, ब्राज़ील, डेमोक्रेटिक रिपब्लिक ऑफ़ कांगो, मेडागास्कर, चीन, भारत, मलेशिया, इंडोनेशिया और आस्ट्रेलिया। इन देशों में समृद्ध महा विविधता के केंद्र स्थित हैं। ऐसे क्षेत्र, जो अधिक संकट में है, उनमें संसाधनों को उपलब्ध कराने के लिए अंतर्राष्ट्रीय संरक्षण संघ ने जैव-विविधता हॉट स्पॉट क्षेत्र के रूप में निर्धारित किया है।
  20. हॉट स्पॉट उनकी वनस्पति के आधार पर परिभाषित किए गए हैं। पादप महत्वपूर्ण हैं, क्योंकि ये ही किसी पारितंत्र की प्राथमिक उत्पादकता को निर्धारित करते हैं।यह देखा जाता है कि ज्यादातर हॉट स्पॉट में रहने वाली प्रजाति भोजन,कृषि भूमि और इमारती, लकड़ी जलाने के लिए लकड़ी, आदि के लिए वहाँ पाए जाने वाले समृद्ध पारितंत्रों पर ही निर्भर है। उदाहरण ,मेडागास्कर में जहाँ पाए जाने वाले कुल पौधों व जीवों में से 85 प्रतिशत पौधे व जीव संसार में अन्यत्र कहीं भी नहीं पाए जाते।