व्यवसाय की प्रकृति एवं उद्देश्य-पुनरावृति नोट्स

                                                                                   CBSE कक्षा 11 व्यवसाय अध्ययन

पाठ-1 व्यवसाय की प्रकृति एवं उद्देश्य
पुनरावृति नोट्स


व्यवसाय का अर्थ -
व्यवसाय का शाब्दिक अर्थ है - व्यस्त रहना ।
व्यवसाय के अंतर्गत वह आर्थिक क्रियाएं आती है
जो वस्तुओं और सेवाओं के विक्रय अथवा विनिमय, उत्पादन एवं वितरण से सम्बंधित हैं
ताकि लोगों की आवश्यकताओं  संतुष्ट करके
आय अथवा लाभ कमाया जा सके।

व्यवसाय की विशेषताएं-

  1. आर्थिक क्रिया :- व्यवसाय एक प्रकार की आर्थिक क्रिया हैं जो धन अथवा आजीविका कमाने के लिए की जाती है।
  2. उत्पादन एवं वितरण :- व्यवसाय में वे सभी क्रियाएं सम्मिलित हैं जो वस्तुओं एवं सेवाओं के उत्पादन अथवा वितरण से संबंधित होती है।
  3. वस्तुओं एवं सेवाओं का लेन-देन :- व्यवसाय के लिए वस्तुओं एवं सेवाओं का लेन-देन अति आवश्यक है। जिन वस्तुओं का निर्माण किया गया है अथवा वे क्रय करके प्राप्त की गई है उन्हें बेचना व्यवसाय का सार है।
  4. नियमित लेन-देन :- व्यवसाय में वस्तुओं व सेवाओं का क्रय-विक्रय नियति या बार-बार होना चाहिए। यदि ऐसा नहीं है तो वह व्यवसाय नहीं कहलाता |
  5. लाभ कमाने का उद्देशय :- प्रत्येक व्यवसाय का उद्देश्य लाभ कमाना होता है किसी भी व्यवसाय का कायम रहना उसकी लाभ कमाने की योग्यता पर निर्भर करता है। इसलिए व्यवसायकर्ता व्यवसाय का विक्रय की मात्रा बढ़ाकर या लागत कम करके अधिकतम लाभ कमाने का हर संभव प्रयास करता है।
  6. अनिश्चितता :- व्यवसाय करने से लाभ होगा अथवा हानि इस संबंध में अनिश्चितता रहती है।
  7. जोखिम का तत्व :- सभी व्यावसायिक क्रियाओं में कुछ जोखिम व अनिश्चितता का तत्व रहता है। ये जोखिम हड़ताल आग चोरी उपभोक्ताओं की रूचि में बदलाव इत्यादि से संबंधित हो सकते हैं।
  8. आर्थिक क्रियाएं
    व्यवसायपेशाव्यवसाय

    इसमें वस्तुओं एवं सेवाओं का उत्पादन धन कमाने के उद्देश्य से किया जाता है।
    - व्यापार
    - इलैक्ट्रोनिक सामान की बिक्री
    - मछली पकड़ना
    - बैंकिंग
    - परिवहन

    जब एक व्यक्ति विशिष्ट ज्ञान प्राप्त करके समाज को अपनी सेवाएं देता है तथा बदले में पेशेवर फीस प्राप्त करता है।
    - मेडिकल
    - कानूनी
    - चार्टड एकाउन्टेन्ट्स

    यह एक ऐसी आर्थिक क्रिया है जिसमें एक व्यक्ति दूसरों के लिए कार्य करता है और बदलमें में मजदूरी, वेतन या परिश्रमिक प्राप्त करता है
    - श्रमिक
    - प्रबन्धक्र
    - सेल्समैन

    व्यवसाय, पेशा तथा रोजगार में तुलना
    आधारव्यवसTयपेशारोजगार
    1. प्रारंभव्यवसाय निर्णय द्वारा या कोई कानूनी कार्यवाही पूरी करके शुरू किया जाता है।संबंधित अधिकारियों से प्रमाण पत्र लेकर प्रारंभ किया जाता है।इसमें नियुक्ति पत्र प्राप्त करना पड़ता है।
    2. कार्य की प्रकृतिइसमें वस्तुओं एवं सेवाओं का उत्पादन व लेन-देन आता है |अपनी विशिष्ट सेवाओं को व्यक्तियों को प्रदान करना |जो काम मालिक सौप दे वहीँ पूरा करना |
    3. योग्यताएंइसमें किसी औपचारिक योग्यता का होना जरुरी नहीं है |औपचारिक योग्यता का होना जरुरी है |मालिक द्वारा जो योग्यताएं निर्धारित की जाएं |
    4. लाभ अथवा पारिश्रमिक पूंजी निवेशइसमें लाभ प्राप्त होता है |पेशेवर फीस प्राप्त होती है |मजदूरी या वेतन आदि प्राप्त होता है |
    5. पूंजी निवेशव्यवसाय के अधर एवं स्वरूप के अनुसार पूंजी की आवश्यकता होती है |कार्यालय की स्थापना के लिए सिमित पूंजी की आवयश्यकता |पूंजी की आवश्यकता नहीं होती |
    6. जोखिमअधिक होता है |कम होता है |नहीं होता है |
    7. आधार संहिता आचार संहिता का पालन करना होता है |स्वामी द्वारा बनाए गए नियम महत्वपूर्ण होता हैं |
    8. हितहस्तांतरणकुछ औपचारिकताओं के साथ संभवसंभव नहीं |संभव नहीं |

व्यवसाय क उद्देश्य:-
व्यवसाय के उद्देश्य से अभिप्राय उस प्रयोजन से है जिसके व्यवसाय की स्थापना करी जाती है व उसे चलाया जाता है। सही उद्देश्य का चुनाव व्यवसाय की सफलता के लिए अनिवार्य है।
व्यवसाय के उद्देश्य बहुआयामी है। इन्हें मुख्यतः दो वर्गों में विभाजित किया जा सकता है (1) आर्थिक उद्देश्य (2) सामाजिक उद्देश्य
व्यावसायिक उद्देश्य
आर्थिक उद्देश्य

- लाभ कामना
- ग्राहकों का सृजन
- नव प्रवर्तन
- साधनोंका अनुकूnलतम उपयोग
- उत्पादकता में सुधार
सामाजिक उद्देश्य
- उचित दामों पर अच्छी किस्म की वस्तुएँ उपलब्ध कराना
- उचित व्यापारिक कार्यवाहियों को अपनाना
- रोजगार के अवसर पैदा करना कर्मचारी कल्याण
- कर्मचारी कल्याण
- समाज के विकास में योगदान

  1. आर्थिक उद्देश्य
    व्यवसाय के आर्थिक उद्देश्य निम्नलिखित है :-
    1. लाभ कमाना - आय के व्यय पर अधिक्य को लाभ कहते हैं। लाभ कमाना व्यवसाय का एक महत्वपूर्ण उद्देश्य है। यह केवल व्यवसाय के जीवित रहने के लिए ही आवश्यक नहीं है। अपितु उसके विकास और विस्तार के लिए भी आवश्यक हैं।
    2. ग्राहकों का सूजन - व्यवसाय का दूसरा आर्थिक उद्देश्य ग्राहकों का सूजन करना है। एक व्यवसाय तभी जीवित रह सकता है जब वह उचित वस्तुओं व सेवाओं को प्रदान करके उनकी आवश्यकताओं को संतुष्ट करें। अर्थात् ग्राहकों का सृजन व उनकी संतुष्टि व्यवसाय का महत्वपूर्ण उद्देश्य है।
    3. नव प्रवर्तन - नव प्रवर्तन से अभिप्राय कुछ नया करने से है जैसे नए उत्पाद का निर्माण पुराने उत्पाद के उपयोग के नए तरीके बनाना, उत्पादन तथा विपणन के तरीकों में सुधार करना नए बाजार की खोज करना इत्यादि। आज के प्रतियोगिता पूर्ण समय में व्यवसाय की सफलता में नवप्रवर्तन अनिवार्य है।
    4. साधनों का अनुकूलतम उपयोग - व्यवसाय में मनुष्य, मशीनों व सामग्री के प्रयोग की आवश्यकता होती है जिन्हें दुर्लभ साधन माना जाता है। प्रत्येक व्यवसाय से यह अपेक्षा की जाती है कि वह इन साधनों का श्रेष्ठतम् उपयोग करेगा।
    5. उत्पादकता में सुधार - व्यवसाय के विभिन्न स्रोतों व साधनों का पूर्ण स्प से उपयोग करने से उत्पादकता में सुधार किया जाना आवश्यक है।
  2. सामाजिक उद्देश्य
    व्यवसाय समाज का अभिन्न अंग है। वह समाज के साधनों का प्रयोग करता है। समाज के सदस्यों को वस्तुओं व सेवाएं बेचकर लाभ कमाता है, इसलिए यह उसका दायित्व बन जाता है कि समाज के लिए कुछ करे। व्यवसाय के महत्वपूर्ण सामाजिक उद्देश्य निम्नलिखित हैं।
    1. उचित दामों पर अच्छी किस्म की वस्तुएं उपलब्ध कराना - व्यवसाय का प्रथम सामाजिक उद्देश्य उपभोक्ताओं को लगातार उच्च किस्म की वस्तुएँ, पर्याप्त मात्रा में तथा उचित मूल्य पर उपलब्ध कराना है।
    2. उचित व्यापारिक कार्यवायिों को अपनाना - व्यवसाय को सदैव जैसे-जमाखोरी कालाबाजारी आदि से बचना चाहिए। इसे भ्राम विाापन तथा नबली माल बेचने जैसी अनुचित व्यापारिक कार्यवाहियों में भी संलिप्त नहीं होना चाहिए।
    3. रोजगार के अवसर पैदा करना - प्रत्येक व्यवसाय को समाज के लिए रोजगार के नये अवसर पैदा करने के लिए अपनी क्रियाओं का विस्तार करना चाहिए। इसमें विकलांग लोगों का विशेष ध्यान रखना चाहिए।
    4. कर्मचारी कल्याण - व्यवसाय को अपने कर्मचारियों के कल्याण को बढ़ावा देना चाहिए। उचित मजदूरी प्रदान करने के अलावा, व्यवसाय को आवास, परिवहन एवं चिकित्सा सुविधाओं का भी प्रबन्ध करना चाहिए ।
    5. समाज के विकास में योगदान - व्यवसाय जिस समाज में जन्म लेता है और फलता-फूलता है उसके विकास में उसे निश्चित रूप में कुछ योगदान देना चाहिए। पुसतकालय, चिकित्सालय, शैक्षिणक संस्था आदि स्थापित करके वह अपने इस उद्देश्य को पूरा कर सकता है।

व्यवसाय में लाभ की भूमिका
व्यवसाय की स्थापना लाभ कमाने के उद्देश्य से ही जाती है। व्यवसाय में इसकी अहम भूमिका है जिसे निम्नलिखित तथ्यों से समझा जा सकता है:-

  1. लम्बे समय तक जीवित रहने के लिए - लाभ ही व्यवसाय को लम्बे समय तक चलते रहने में सहायक होता है। लाभ के अभाव में व्यवसाय का औचित्य ही समाप्त हो जाता है।
  2. व्यवसाय के विकास और विस्तार के लिए - सभी व्यवसायी अपने व्यवसाय का विकास और विस्तार करना चाहते हैं। इसके लिए उन्हें अतिरिक्त पूंजी की आवश्यकता होती है। संचित लाभ पूंजी का एक अच्छा स्रोत है। जिस व्यवसाय में जितना अधिक लाभ होता है उतना ही अधिक लाभ का पुनः विनियोग संभव होता है और परिणामत: उस व्यवसाय की उतना ही अधिक विकास और विस्तार की संभावनाएं होती है।
  3. कुशलता वृद्धि के लिए - लाभ वह शक्ति है जो मालिक व कर्मचारी-दोनों को ही अच्छा काम करने के लिए प्रेरित करती है। अच्छे लाभ की परिस्थिति में ही कर्मचारी को बेहतर वेतन तथा मालिक को ज्यादा लाभ मिलने की संभावना होती है। अत: इससे व्यवसाय की कुशलता में वृद्धि होती है ।
  4. प्रतिष्ठा व पहचान बनाने के लिए - समाज में व्यवसाय की प्रतिष्ठा व पहचान बनाने के लिए व्यवसायी को सभी संबंधित पक्षकारों को संतुष्ट करना होता है। इसके लिए उसे ग्राहकों को उचित कीमत पर अच्छी किस्म की वस्तुएं उपलब्ध करानी होगी। कर्मचारी वर्ग को उचित पारिश्रमिक देना होगा, अंशधारियों को पर्याप्त लाभावंश देना होगा। तथा इन सब कार्यों के लिए उचित लाभ की आवश्यकता होती है।

उद्योग का अर्थ
ये समस्त क्रियाएँ जिनके माध्यम से कच्चे माल को तैयार माल में परिवर्तित किया जाता है तथा वे सेवाएँ जो व्यवसाय को निर्बाध गति से चलाने में मदद करती है उद्योग कहलाती है। जैसा कि चित्र में दिखाया गया है उद्योगों को हम दो भागों में बांटते हैं :-

  1. प्राथमिक उद्योग - प्राथमिक उद्योग में वे क्रियाएं आती हैं जिनके द्वारा प्राकृतिक संसाधनों का प्रयोग करके अन्य उद्योगों के लिए कच्चा माल उपलब्ध किया जाता है। प्राकृतिक उद्योग दो प्रकार के होते हैं।
    1. निष्कषणं उद्योग
      इसमें वे उद्योग सम्मिलित किए जाते हैं जो पृथ्वी या पृथ्वी के तल या समुद्र तल से विभिन्न प्रकार के पदार्थ निकालने से संबंध रखते हैं।
      उदाहरण : कृषि, खानों से विभिन्न पदार्थ निकालना, मछली पकड़ना इत्यादि |
    2. जननिक उद्योग
      इसमें वनस्पति एवं पशुओं की विशिष्ट नस्लों में सुधार एवं उनकी संख्या को बढ़ाया जाता है।
      उदाहरण : पशुपालन, मुर्गी पालन, बागवानी अादि |
  2. द्वितीयक या गौण उद्योग - इन उद्योगों में प्राथमिक उद्योगों से जो पदार्थ प्राप्त किये जाते हैं। उनको नई वस्तुओं का निर्माण करने के लिए इस्तेमाल किया जाता है। जैसे कपास प्राथमिक उद्योग की क्रिया है और उससे कपड़ा गौण उद्योग की। गौण उद्योग दो प्रकार के होते हैं-
    1. निर्माण उद्योग - ये उद्योग कच्चे माल को पक्के माल में परिवर्तित करते हैं जैसे गन्ने से चीनी निर्माणी उद्योग को पुनः चार भागों में बांटा जा सकता है।
      प्राथमिक उद्योग
      विश्लेषणात्मकप्राविधिकसम्मिश्रण उद्योगसंयोग उद्योग
      इसक अंतर्गत एक वस्तु से अनेक प्रकार की वस्तुओं का उत्पादन किया जातावह उद्योग जिनमें कच्चे माल को विभिन्न उत्पादन प्रक्रिया से निकालकर उपयोगी वस्तुएं तैयार की जाती है। उदाहरण -कच्चे लोहे से इस्पात, चीनी व कागज उद्योग आदि ।यहाँ अनेक कच्चे पदार्थों को मिलाकर एक नया उपयोगी पदार्थ तैयार किया जाता है। उदाहरण - चूना, पत्थर, जिन्सम व कोयले को मिलाकर सीमेंट तैयार करना, साबुन, उर्वरक आदि।इसमें विभिन्न उद्योगों द्वारा निर्मित को जोडकर नई-नई उपयोगी वसतुओं का निर्माण किया जाता है।
      उदाहरणा—घडि यौं, टेलीविजन, कम्प्यूटर,
      कार अादि ।
    2. रचनात्मक उद्योग - इन उद्योगों द्वारा उत्पादित वस्तुओं का प्रयोग करके रचनात्मक कार्य किये जाते है जैसे सीमेंट, लोहा, ईट, लकड़ी इत्यादि का इस्तेमाल करके भवन सड़के, बांध, पुल आदि बनाये जाते हैं।
    3. तृतीय अथवा सेवा क्षेत्र - इन उद्योगों में उन सेवाओं को शामिल किया जाता है जो व्यवसाय को नियमित गति से चलने में सहायता करती है जैसे, यातायात, बैंक, बीमा, विज्ञापन, संग्रहण आदि।

वाणिज्य का अर्थ एवं कार्य - वाणिज्य उन सभी क्रियाओं का समूह है जो वस्तुओं एवं सेवाओं को उत्पादकों से उपभोक्ताओं तक पहुंचाने से संबंधित है। उत्पादक तथरा उपभोक्ता की वस्तु विनिमय संबंधी सभी कठिनाईयाँ वाणिज्य द्वारा दूर की जाती है। वाणिज्य के कार्य निम्नलिखित है :-

  1. व्यक्तियों से संबंधित बाधा को दूर करना - उत्पादको व उपभोक्ताओं के बीच यह बाधा दूर करने के लिए थोक व्यापारी, फुटकर व्यापारी व एजेंटों आदि को सम्मिलित किया जाता है।
  2. स्थान संबंधी बाधा को दूर करना - परिवहन के विभिन्न साधनों द्वारा दूर किया जाता है।
  3. समय सम्बन्धी बाधा दूर करना- भंडारग्रह या संग्रहण के द्वारा किया जाता है |
  4. वित्त की बढ़ा को दूर करना बैंक अथवा वित्तीय संस्थाओं द्वरा हाल की जाती है |
  5. जोखिम की बाधा को दूर करना - बीमा की सहायता से की जाती है।
  6. सूचना की बाधा को दूर करना - विज्ञापन द्वारा उपभोक्ताओं के ज्ञान की बाधा को दूर किया जा सकता है।
    बाधाएंसमाधान
    व्यक्तियों की बाधाव्यापार
    स्थान की बाधापरिवहन एवं संदेशवाहन
    समय की बाधासंग्रहण
    जोखिम की बाधाबीमा
    वित्त की बाधाबैंकिंग
    सूचना की बाधाविज्ञापन

व्यापार का अर्थ एवं प्रकार - जब वस्तुओं और सेवाओं का क्रय-विक्रय लाभ कमाने के उद्देश्य से किया जाता है तो इसे व्यापार कहा जाता है। व्यापार दो प्रकार का होता है -

  1. देशी व्यापार - इस व्यापार में देश की सीमाओं के अंदर ही वस्तुओं का क्रय-विक्रय किया जाता है। देशी व्यापार को दो भागों में बांट सकते हैं।
    1. थोक व्यापार - यह विशिष्ट प्रकार की वस्तुओं को अधिक मात्रा में क्रय एवं विक्रय करने से संबंधित है।
    2. फुटकर व्यापार - फुटकर व्यापार वस्तुओं को विक्रय थोड़ी मात्रा में करता है और ग्राहकों को थोड़ी मात्रा में नकद व उधार बेचता है।
  2. विदेशी व्यापार - यह व्यापार दो या दो से अधिक देशों के बीच किया जाता है। विदेशी व्यापार के प्रकार निम्नलिखित है :
    1. आयात व्यापार - जब एक देश का व्यापारी दूसरे देश के व्यापारी से माल क्रय करता है।
    2. निर्यात व्यापार - जब माल एक देश के व्यापारी द्वारा दूसरे देश के व्यापारियों को बेचा जाता है। तब माल बेचने वाले व्यापारी के देश के लिए निर्यात व्यापार कहलायेगा।
    3. पुनः निर्यात व्यापार - जब एक देश द्वारा माल किसी अन्य देश से आयात करके किसी तीसरे देश को निर्यात कर दिया जाता है। उदाहरण के लिए जैसे भारतीय फर्म ने श्रीलंका से समान मंगवाकर नेपाल को नियति कर दिया।

व्यापार की सहायक क्रियाएँ - ऐसी सभी क्रियाएँ जो व्यापार में आने वाली विभिन्न बाधाओं को दूर करने के लिए की जाती है, व्यपार की सहायक क्रियाएँ कहलाती है। व्यापार की सहायक क्रियाएं निम्नलिखित है :

  1. परिवहन एवं संदेशावाहन - वस्तुओं को उत्पादन स्थान से उपभोक्ता स्थान तक पहुंचाने में बाधा उत्पन्न होती है जिसे परिवहन द्वारा दूर किया जा सकता है। इस बाधा का दूसरा पहलू यह भी है कि उत्पादक व क्रेता दूर-दूर स्थानों पर होते हैं। तो वस्तुओं के सौंदे करने में बाधा आती है। इस समस्या का समाधान संदेशवाहन जैसे टेलीफोन डाकघर सेवाएं, इंटरनेट आदि द्वारा किया जाता है।
  2. बैंकिग - उद्योगों व व्यावसायिक फर्मा को समय-समय पर वित्त की आवश्यकता पड़ती है क्योंकि वित्त के अभावा में व्यापार करना कठिन हो जाता हे। इस बाधा को बैंकिग की सहायता से दूर किया जा सकता है।
  3. बीमा- जब वस्तुओं को एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाया जाता है तब मार्ग में सामान लाने-ले जाने या संग्रहण के समय वस्तुओं के चोरी हो जाने या टूट-फूट जाने का खतरा रहता है। इसका समाधान बीमा की सहायता से किया जा सकता है।
  4. संग्रहण- कुछ वस्तुएं ऐसी होती है जिनके उत्पादन और उपभोग के बीच कुछ समय का अंतर होता है अतः तैयार माल को उसके उत्पादन समय से उपभोग समय तक संग्रह करके रखना पड़ता है। इस समस्या का भंडारग्रहों की सहायता से दूर किया जा सकता है।
  5. विज्ञापन - आज बढ़ती हुई प्रतियोगिता को देखते हुए उत्पादन बड़े पैमाने पर किया जाता है। ग्राहकों को अपनी और आकर्षित करने के लिए अतः उत्पादित माल को शीर्घ और नियमित बिक्री करने के लिए विज्ञापन की सहायता ली जाती है।

व्यवसायिक जोखिम का अर्थ- इसका अभिप्राय अनिश्चितताओं के कारण व्यवसाय में अपर्याप्त लाभ अथवा हानि की संभावना ।
व्यावसायिक जोखिम - भविष्य अनिश्चित होता है और वह अनिश्चितता जोखित को जन्म देती है। व्यवसाय के संदर्भ में जोखिम के उदाहरण इस प्रकार दिए जा सकते हैं जैसे ग्राहकों की रूचि में बदलाव, श्रमिकों की हड़ताल, बाढ़ या भूकप इत्यादि।
व्यावसायिक जोखिमों की प्रकृति :

  1. जोखिम अनिश्चितताओं का परिणाम - सभी व्यवसायिक जोखिम अनिश्चितताओं के कारण उत्पन्न होते हैं, जैसे कि हड़ताल, मूल्यों में परिवर्तन, मांग का गलत अनुमान, सूखा इत्यादि।
  2. जोखिम से बचा नहीं जा सकता - जोखिमों के जाल से निकलना व्यवसायी के लिए संभव नहीं है क्योंकि व्यवसाय भविष्य के लिए किया जाता है और भविष्य अनिश्चित है। जोखिमों को समाप्त नहीं किया जा सकता है।
  3. जोखिम की मात्रा व्यवसाय के आकार के अनुसार - जोखिम की मात्रा छोटे आकार के व्यवसाय के लिए कम और बड़े आकार के व्यवसाय में अधिक होती है।
  4. जोखिम का प्रतिफल लाभ - व्यवसाय में जोखिम उठाने के बदले जो कुछ व्यवसायी को मिलता है वह उसका लाभ होता है। जिन व्यवसायों में जोखिम नहीं होता उसमें लाभ भी नहीं होता। जितना अधिक जोखिम होता है उतने अधिक लाभ की संभावना होती है।

व्यावसायिक जोखिमों के कारण

  1. प्राकृतिक कारण - इसके अन्तर्गत वे कारण आते हैं जिन पर मनुष्य का कोई वश नहीं चलता जैसे, तूफान, भूचाल आदि।
  2. मानवीय कारण - मानव की असावधानी हड़ताल बेईमानी या जल्दबाजी के कारण ये जोखिम उत्पन्न होते हैं।
  3. आर्थिक कारण - मांग व मूल्यों में उतार-चढ़ाव, कड़ी प्रतियोगिता, फैशन में परिवर्तन, तकनीकी परिवर्तन से संबंधित होते हैं।
  4. अन्य कारण - उपरोक्त कारणों के अतिरिक्त वे सभी कारण आते है जिनसे व्यावसायिक जोखिम उत्पन्न होते है जैसे कि राजनीतिक कारण, यान्त्रिक कारण, अकुशल व्यावसायिक प्रबन्धक इत्यादि।

व्यवसाय प्रारंभ करते समय ध्यान रखने योग्य बाते :-

  1. व्यवसाय का चुनाव - एक व्यवसायी को भलीभाँति सोचकर ही व्यवसाय का चुनाव करना चाहिए। उसे यह निर्णय लेना होता है कि वह ट्रेडिंग, निर्माणी तथा सेवा में से किस प्रकार का व्यापार करना चाहता है।
  2. व्यवसाय का पैमाना - व्यवसाय के चयन के बाद उसके आकार का निर्णय लिया जाता है। इसको निर्धारित करते समय पूंजी की उपलब्धि, जोखिम तत्व, प्रबन्धकीय क्षमता आदि का ध्यान रखना चाहिए।
  3. व्यवसाय के प्रारूप का चयन - यदि छोटे पैमाने पर व्यवसाय करना है तो एकाकी व्यवसाय उपयुक्त रहता है अन्यथा साझेदारी या कम्पनी में से चयन करना होगा।
  4. व्यवसाय के स्थान का चुनाव - यह निर्णय बहुत सोच, समझ कर लेना चाहिए। निर्णय लेते समय कुछ बातों का ध्यान अवश्य रखना चाहिए, जैसे कच्चे माल की सुविधा श्रमिक सस्ते व पर्याप्त मात्रा में यातायात व बैंकिग सुविधाएं इत्यादि ।
  5. वित्त की व्यवस्था करना - पूंजी की मात्रा का निर्धारण करना चाहिए इसके बाद इसे प्राप्ति के स्त्रोतों का निर्धारण करना चाहिए।
  6. भौतिक सुविधाएँ - एक नया उपक्रम शुरू करने से पहले वस्तुओं के उत्पादन के लिए मशीनों एवं उपकरणों का चुनाव करना भी एक नाजुक समस्या है।
  7. संयंत्र की स्थापना - मशीनों को क्रय करने के बाद इन्हें कारखानों के भवन में लगाने की योजना बनाई जाती है।
  8. कार्यबल - व्यवसाय को चलाने के लिए बहुत से कर्मचारियों की आवश्यकता होती है जिसमें कुशल एवं अकुशल श्रमिक तथा प्रबंधकीय कर्मचारी शामिल होते हैं। उपक्रम के लिए सही व्यक्तियों का चुनाव करना आवश्यक है।
  9. कर नियोजन - व्यवसाय अथवा व्यवसाय के आकार का निर्णय लेते समय कर संबंधी विभिन्न कानूनों को भी ध्यान में रखना चाहिए।
  10. व्यवसाय आरंभ करना - उपरोक्त समस्त कार्यवाही पूरी करने के बाद व्यवसाय प्रारंभ करने की बारी आती है। इसके लिए संगठनात्मक ढांचा तैयार किया जाएगा।