सामाजिक आन्दोलन - पुनरावृति नोट्स
CBSE कक्षा 12 समाजशास्त्र
[खण्ड-2] पाठ - 8 सामाजिक आन्दोलन
पुनरावृत्ति नोट्स
[खण्ड-2] पाठ - 8 सामाजिक आन्दोलन
पुनरावृत्ति नोट्स
मुख्य बिंदु-
- सामाजिक आन्दोलन- ये समाज को एक आकार देते है। 19वीं सदी में कुछ सुधार आन्दोलन हुए जैसे-जाति व्यवस्था के विरूद्ध, लिंग आधारित, भेदभाव के विरूद्ध, राष्ट्रीय आज़ादी की आन्दोलन आदि।
- सामाजिक आन्दोलन के लक्षण
- लम्बे समय तक निरंतर सामुहिक गतिविधियों की आवश्यकता।
- सामाजिक आन्दोलन प्रायः किसी जनहित के मामले में परिवर्तन के लिए होते हैं। जैसे आदिवासिओं का जंगल पर अधिकार, विस्थापित लोगों का पुनर्वास।
- सामाजिक परिवर्तन लाने को लिए।
- सामाजिक आन्दोलन के विरोध में प्रतिरोधी अन्दोलन जन्म लेते हैं, जैसे सती प्रथा के विरूद्ध आन्दोलन के खिलाफ धर्म सभा बनी; जिसने अंग्रजो से सती प्रथा खत्म करने के विरूद्ध कानून न बनाने की मांग की।
- सामाजिक आन्दोलन विरोध के विभिन्न साधन विकसित करते है-मोमबत्ती या मशाल जुलूस, नुक्कड़ नाटक, गीत।
सामाजिक परिवर्तन सामाजिक आंदोलन (अ) निरंतरता (अ) विशिष्ट उद्देश्य (ब) संस्कृतिकरण, पश्चिमीकरण (ब) लोगों का निरंतर सामाजिक प्रयास सती प्रथा विरोधी आंदोलन आदि।
- सामाजिक आन्दोलन के सिद्धांत-
- सापेक्षिक वचन का सिद्धान्त
- सामाजिक संघर्ष तब उत्पन्न होता है जब सामाजिक समूह अपनी स्थिति खराब समझता है।
- मनोवैज्ञानिक कारण जैसे क्षोभ व रोष।
- सीमाए:- सामुहिक गतिविधि के लिए वंचन का आभास आवश्यक है लेकिन एक प्रर्याप्त कारण नहीं है
- दि लोजिक ऑफ कलैक्टिव एक्शन:- सामाजिक आन्दोलन में स्वयं का हित चाहने वाले विवेकी व्यक्तिगत अभिनेताओं का पुर्ण योग है। व्यक्ति कुछ प्राप्त करने लिए इनमे शामिल होगा उसे इसमें जोखिम भी कम हो और लाभ अधिक।
सीमाएं:- सामाजिक आन्दोलन की सफलता संसाधनों व योग्यताओं पर निर्भर करती है। - संसाधन गतिशीलता का सिद्धांत- सामाजिक आन्दोलन नेतृत्व, संगठनात्मक क्षमता तथा संचार सुविधाओं का एकत्र करना इसकी सफलता का जरिया है।
सीमाएं:- प्राप्त संसाधनों की सीमा में वंचित नहीं, नए प्रतीक व पहचान की रचना भी कर सकती हैं।
- दि लोजिक ऑफ कलैक्टिव एक्शन:- सामाजिक आन्दोलन में स्वयं का हित चाहने वाले विवेकी व्यक्तिगत अभिनेताओं का पुर्ण योग है। व्यक्ति कुछ प्राप्त करने लिए इनमे शामिल होगा उसे इसमें जोखिम भी कम हो और लाभ अधिक।
- सापेक्षिक वचन का सिद्धान्त
- सामाजिक आंदोलनों के प्रकार-
- प्रतिदानात्मक आन्दोलन :- व्यक्तियों की चेतना तथा गतिविधियों में परिवर्तन लाते है। जैसे केरल के इजहावा समुदाय के लोगो ने नारायण गुरू के नेतृत्व मे अपनी सामाजिक प्रथाओं को बदला।
- सुधारवादी आन्दोलन :– सामाजिक तथा राजनीतिक विन्यास को धीमे व प्रगतिशील चरणों द्वारा बदलना। जैसे - 1960 के दशक में भाषा के आधार पर राज्यों का पुनर्गठन व सूचना का अधिकार।
- क्रांन्ति आन्दोलन - सामाजिक सम्बन्धों में आमूल परिवर्तन करना तथा राजसत्ता पर अधिकार करना। जैसे- बोल्शेविक क्रान्ति जिसमें रूस में जार को अपदस्थ किया।
- सामाजिक अन्दोलन के अन्य प्रकार-
- पुराना सामाजिक आन्दोलन (आजादी पूर्व)- नारी आन्दोलन, सती प्रथा के विरूद्ध आन्दोलन, बाल विवाह, जाति प्रथा के विरूद्ध। राजनीतिक दायरे में होते थे।
- नया सामाजिक आन्दोलन- जीवन स्तर को बदलने व शुद्ध पूर्यावरण के लिए।
- बिना राजनीतिक दायरे के होते हैं तथा राज्य धर दबाव ड़ालते है।
- अन्तर्राष्ट्रीय है।
- पारिस्थितिकीय अन्दोलन:-
उदाहरण- चिपको आन्दोलन- उत्तरांचल में वनों को काटने से रोकने तथा पर्यावरण का बचाव करने के लिए स्त्रियाँ पेड़ों से चिपक गई तथा पेड़ काटने नहीं दिये। इस प्रकार यह आन्दोलन आर्थिक, पारिस्थितिकीय व राजनीतिक बन गया। - वर्ग आधारित आन्दोलन-
किसान आन्दोलन- 1858-1914 के बीच स्थानीयता, विभाजन व विभिन्न शिकायतों से सीमित होने की ओर प्रवृत हुआ।
- 1859-62 मील की खेती के विरोद्ध में
- 1857-दक्षिण का विद्रोह जो साहुकारो के विरोद्ध में
- 1928-लगान विरोद्ध बारदोली, सूरत में
- 1920-ब्रिटिश सरकार की वन नीतियों के विरुद्ध
- 1920-1940 - अल इंडिया किसान सभा
स्वतंत्रता के समय दो मुख्य किसान आंदोलन हुए
- 1946-1947 तिभागा आन्दोलन- यह संघर्ष पट्टेदारी के लिए हुआ।
- 1946-1951 तेलंगाना आन्दोलन- यह हैदराबाद की सांमती दशाओं के विरुद्ध था।
स्वतंत्रा के बाद दो बड़े सामाजिक आंदोलन हुए
- 1967 नक्सली आन्दोलन- यह आंदोलन भूमि को लेकर हुआ था।
- नए किसानों का आंदोलन - कामगारों का अन्दोलन -
- 1860 में कारखानो में उत्पादन का कार्य शुरू हुआ। कच्चा माल भारत से ले जाकर, इंग्लैड में निर्माण किया जाता था।
- बाद में ऐसे कारखानों को मद्रास, बंबई और कलकत्ता स्थापित किया गया।
- कामगारों ने अपनी कार्य दशाओं के लिए विरोध किया।
- मजदूर संघों का उदय - 1918 मे शुरूआत
- 1920 में एटक की स्थापना हुई (ऑल इंडिया ट्रेड यूनियन कांग्रेस-एटक)
- कार्य के घंटों की अवधि को घटाकर 10 घंटे कर दिया गया।
- 1926 में मजदूर संघ अधिनियम पारित हुआ जिसने मज़दूर संघों के पंजीकरण कि प्रावधान किया, और कुछ नियम बनाए।
- 1975-77 आपातकाल मे मजदूर संघों पर रोक लगा दी गई। - नया किसान् आन्दोलन्-
- 1970 मे पंजाब व तमिलनाडू में शुरू हुआ।
- दल रहित थे।
- क्षेत्रीय आधार पर संगठित थे।
- कृषक के स्थान पर किसान जुड़े थे (किसान उन्हें कहा जाता है जो कि वस्तुओं के उत्पादन और खरीद दोनों में बाज़ार से जुड़े होते हैं।)
- राज्य विरोधी व नगर विरोधी थे।
- लाभ प्रद कीमते, कृषि निवेश की कीमते, टैक्स व उधार की वापिसी की माँगें थी।
- सड़क व रेल मार्ग का रोकना।
- महिला मुद्दों को शामिल किया गया। - जाति अधारित अन्दोलन-
- दलित आन्दोलन - दलित शब्द मराठी, हिन्दी, गुजराती व अन्य भाषाओं के रूप मे पहचान प्राप्त करने का संघर्ष है। दलित समानता, आत्मसम्मान, अस्पृश्यता उन्मूलन के लिए संघर्ष कर रहे हैं।
- मध्यप्रदेश में चमारों का सतनामी आन्दोलन
- पंजाब में अदिधर्म आन्दोलन
- महाराष्ट्र में महार आन्दोलन
- आगरा में जाटवों की गतिशीलता
- दक्षिण भारत में ब्राह्मण विरोधी अन्दोलन - पिछड़े वर्ग का आन्दोलन-
- पिछड़े जातियों, वर्गों का राजनीतिक इकाई के रूप मे उदय
- औपनिवेशिक काल में राज्य अपनी संरक्षित का वितरण जाति अधारित करते थे
- लोग सामाजिक तथा राजनीतिक पहचान के लिए जाति में रहते है।
- आधुनिक काल में जाति अपनी कर्म कांडी विषय वस्तु छोड़ने लगी तथा राजनीतिक गतिशीलता के पंथनिरपेक्ष हो गई है। - उच्चजाति का आन्दोलन - दलित व पिछड़ी के बढ़ते प्रभाव से उच्च जातियों ने उपेक्षित महसूस किया।
- दलित आन्दोलन - दलित शब्द मराठी, हिन्दी, गुजराती व अन्य भाषाओं के रूप मे पहचान प्राप्त करने का संघर्ष है। दलित समानता, आत्मसम्मान, अस्पृश्यता उन्मूलन के लिए संघर्ष कर रहे हैं।
- जन जातीय अन्दोलन- जनजातीय आंदोलनों में से कई मध्य भारत में स्थित है। जैसे छोटे नागपुर व संथाल परगना में स्थित संथाल, हो, मुंडा, ओराव, मीणा आदि।
- झारखन्ड-
- बिहार से अलग होकर 2000 में झारखन्ड राज्य बना।
- आन्दोलन की शुरूआत विरसा मुण्डाने की थी।
- ईसाई मिशनरी ने सक्षरता का अभियान चलाया।
- दिक्कुओं - (व्यापारी व महाजन) के प्रति घृणा।
- आदिवासीयों का अलग थलग किया जाना।
- आन्दोलन के मुख्याख्रिन्दु व मुद्दे:
- भूमि का अदिग्रहण
- ऋणों की वसूली
- वनों का राष्ट्रीकरण
- पुनर्वास न किया जाना
- पूर्वीतर राज्यों के आन्दोलन - वन भूमि से लोगों का विस्थापन तथा पारिस्थितिकीय मुद्दे।
- झारखन्ड-
- महिलाओं को अन्दोलन-
- 1970 के दशक में भारत मे महिला आन्दोलन का नवीनीकरण हुआ।
- महिला आन्दोलन स्वायत थे तथा राजनीतिक दलो से स्वतन्त्र थे।
- महिलाओं के प्रति हिंसा के बारे मे अभियान चलाए।
- स्कूल के प्रार्थना पत्र में माता पिता दोनो के नाम शामिल।
- यौन उत्पीड़न व दहेज के विरोध मे।
- कुछ महिला संगठनों के नाम- विन्स इंडिया एसोसिएशन (1971), ऑल इंडिया विमंश कांफ्रेंस (1926)