कार्यालयी पत्र -पुनरावृति नोट्स

 CBSE कक्षा 11 हिंदी (ऐच्छिक)

अभिव्यक्ति और माध्यम
कार्यालयी लेखन और प्रकिया
पुनरावृत्ति नोट्स


स्मरणीय बिन्दु-

  1. सरकारी पत्र औपचारिक पत्र की श्रेणी में आते हैं।
  2. प्रायः ये पत्र एक कार्यालय, विभाग अथवा मंत्रालय से दूसरे कार्यालय, विभाग या मंत्रालय को भेजे जाते हैं।
    पत्र के शीर्ष पर कार्यालय, विभाग या मंत्रालय का नाम व पता लिखा जाता हैं पत्र के बाएँ तरफ संख्या लिखी जाती हैं जिसे पत्र लिखा जा रहा है, उसका नाम पता भी बाएँ ओर लिखा जाता है। ‘सेवा में’ का प्रयोग कम होता जा रहा है। पत्र के अंत में बाएँ ओर प्रेषक का पता और तारीख दी जाती है और ‘भवदीय’ का प्रयोग कर नीचे भेजने वाले के हस्ताक्षर होते हैं।
  3. सरकारी कार्यालयों की जरूरतों को ध्यान में रखते हुए इन पात्रों को कई श्रेणियों में बाँटा गया है। हर श्रेणी के पत्र के लिए एक विशेष स्वरूप निर्धारित कर दिया गया है।
  4. मुख्य टिप्पणी (नोटिंग)- किसी भी विचाराधीन पत्र अथवा प्रकरण को निपटाने के लिए उस पर जो राय, मत, आदेश या निर्देश दिया जाता है उसे टिप्पणी कहते हैं टिप्पणी लिखने की प्रक्रिया को हम टिप्पण (नोटिंग) कहते हैं। टिप्पण मुख्यतः दो प्रकार के होते हैं- सहायक स्तर पर टिप्पण, अधिकारी स्तर पर टिपण।
  5. टिप्पण का उद्देश्य मामलों को नियमानुसार निपटाना है।
  6. आरंभिक टिप्पण में सहायक विचाराधीन मामले का संक्षिप्त ब्यौरा देते हुए उसका विवेचन करता है। कार्यालय में टिपण के कार्य अधिकतर सहायक स्तर पर होता है।
  7. टिप्पणी अपने आप में पूर्ण एवं स्पष्ट होनी चाहिए। टिप्पणी संक्षिप्त, विषय-संगत, तर्कसंगत और क्रमबद्ध होनी चाहिए। टिप्पणी सदैव अन्य पुरुष में लिखी जाती है।
  8. आनुषंगिक टिप्पण- सहायक टिप्पण को संबंधित अधिकारी को भेजा जाता है। अगर संबंधित अधिकारी उस टिपण से सहमत होता है तो टिपण के नीचे केवल हस्ताक्षर कर देता है। अथवा 'मैं उपर्युक्त टिप्पणी से सहमत हूँ’ लिखता है। टिप्पणी पर संबंधित अधिकारी का मत आनुषंगिक टिप्पणी कहलाता है। यदि अधिकारी है तो वह टिप्पणी को काटने, बदलने या हटाने का कार्य नहीं करता अपितु केवल अपनी असहमति व्यक्त करता है। आनुषंगिक टिप्पणी प्रायः संक्षिप्त होती है लेकिन असहमति की स्थिति में टिप्पणी बड़ी भी हो सकती है।
  9. स्मरण पत्र- इसे अनुस्मारक (रिमांइडर) भी कहा जाता है। जब किसी पत्र, ज्ञापन इत्यादि का उत्तर समय पर प्राप्त न हो तो याद दिलाने के लिए अनुस्मारक भेजा जाता है। इसे स्मरण पत्र भी कहते हैं। इसका प्रारूप तो औपचारिक पत्र की तरह होता है। पर आकार छोटा होता है यदि एक से अधिक अनुस्मारक भेजे जाते हैं तो उन्हें अनुस्मारक 1, 2, 3 इत्यादि लिखें।
  10. अर्धसरकारी पत्र- अर्ध सरकारी-पत्र में अनौपचारिकता का पुट होता है। इसमें मैत्री भाव होता है। यह पत्र तब लिखे जाते हैं जब लिखने वाला अधिकारी संबंधित अधिकारी को व्यक्तिगत स्तर पर जानता हो या परामर्श लेना चाहता हो। इसके लेखन के लिए लेटर पैड का प्रयोग होता है सबसे ऊपर बाएँ ओर प्रेषक का नाम, पता और पदनाम होता है। पत्र का प्रारंभ श्री/श्रीमान/प्रिय इत्यादि से हो सकता है। पत्र के अंत में ‘भवदीय’ के स्थान पर ‘आपका’ शब्द प्रयोग किया जाता है। तत्पश्चात् संबोधित अधिकारी का नाम, पदनाम और पूरा पता दिया जाता है।
  11. प्रेस विज्ञाप्ति (प्रेस रिलीज़)- कोई व्यक्ति या संस्थान किसी विषय या बैठक में जो निर्णय लेता है, उसे प्रेस विज्ञप्ति के माध्यम से सर्वसामान्य तक पहुँचाया जाता है।
  12. परिपत्र (सकुलर)- सरकारी या निजी संस्थान में जो निर्णय लिए जाते हैं उन्हें लागू करने के लिए अधीनस्थ कार्यालयों को परिपत्र जारी किया जाता है। जिसमें निर्णय को कार्यान्वित करते के निर्देश भी होते हैं।
  13. कार्यसूची- विभिन्न संस्थाओं और कार्यालयों में विभिन्न विषयों में विचार-विमर्श कर निर्णय में पहुँचने के लिए कई समितियों का गठन किया जाता है। इन समितियों में अध्यक्ष, सचिव के अतिरिक्त अन्य सदस्य भी होते हैं। जब किसी विषय पर विचार-विमर्श करना ही अथवा निर्णय लेना हो तो समिति के सब सदस्य एक निश्चित समय में पूर्व निश्चित स्थान पर बैठक का आयोजन करते हैं बैठक प्रारंभ होने से पहले विचारणीय मुद्दों की एक क्रमवार सूची बनाई जाती है जिसे कार्यसूची (ऐजेंडा) कहते हैं।
  14. कार्यसूची का निर्माण इसलिए किया जाता है ताकि केवल उन विषयों पर चर्चा की जाए जो विचारणीय हैं। इससे समय की तो बचत होती ही है साथ में विषय से भटकने की स्थिति नहीं आती।
  15. बैठक का संचालन सचिव करता है।
  16. कार्यवृत्त- कार्यसूची में दिए गए मुद्दों को सचिव बैठक में प्रस्तुत करता है समिति के अध्यक्ष की उपस्थिति में सभी सदस्य विचारणीय मुद्दों पर अपने-अपने विचार व्यक्त करते हैं। विचार-विमर्श के बाद निर्णय लेते हैं प्रत्येक मुद्दे पर किया गया विचार विमर्श एवं निर्णय ही कार्यवृत है।