अपठित काव्यांश - महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर
सीबीएसई कक्षा -12 हिंदी कोर
महत्वपूर्ण प्रश्न
अपठित काव्यांश-बोध
अपठित काव्यांश का नमूना- निर्धारित अंक:
1. तुम भारत, हम भारतीय है, तुम माता, हम बेटे,
किसकी हिम्मत है कि तुम्हें दुष्टता-दृष्टि से देखे।
ओ माता, तुम एक अर्ब से अधिक भुजाओं वाली,
सबकी रक्षा में तुम सक्षम, हो अदम्य बलशाली।
भाषा, वेश, प्रदेश भिन्न हैं, फिर भी भाई-भाई,
भारत की साझी संस्कृति में पलते भारतवासी।
सुदिनी में हम एक साथ हँसते, गाते, सोते हैं,
दुर्दिन में भी साथ-साथ जागते, पौरुष धोते हैं।
तुम हो शस्य-श्यामला, खेतों में तुम लहराती हो,
प्रकृति प्राणमयी, साम-गानमयी, तुम न किसे भाती हो।
तुम न अगर होती तो धरती वसुधा क्यों कहलाती?
गंगा कहाँ बहा करती, गीता क्यों गई जाती?
प्रश्न- (क) साझी संस्कृति का क्या भाव है?
(ख) भारत को अदम्य बलशाली क्यों कहा गया है?
(ग) सुख-दुःख के दिनों में भारतीयों का परस्पर सहयोग कैसा होता है?
(घ) साम-गानमयी का क्या तात्पर्य है?
(ङ) ‘ओ माता, तुम एक अर्ब से अधिक भुजाओं वाली’ में कौन-सा अलंकार है?
उत्तर- (क) भाषा, वेश, प्रदेश भिन्न होते हुए भी सभी के सुख-दुःख एक हैं।
(ख) भारतीय की एक अर्ब से अधिक जनता अपनी मजबूत भुजाओं से सबकी सुरक्षा करने में समर्थ है।
(ग) भारतीयों का व्यवहार आपसी सहयोग और अपनेपन से भरा है सब संग-संग हँसते-गाते हैं और संग-संग कठिनाइयों से जूझते हैं।
(घ) सुमधुर संगीत से युक्त।
(ङ) रूपक।
2. माना आज मशीनी युग में, समय बहुत महँगा है लेकिन
तुम थोड़ा अवकाश निकाली, तुमसे दो बातें करनी हैं।
उम्र बहुत बाकी है लेकिन, उम्र बहुत छोटी भी तो है
एक स्वप्न मोती का हैं तो, एक स्वप्न रोटी भी तो है
घुटनों में माथा रखने से पोखर पार नहीं होता है:
सोया है विश्वास जगा लो, हम सब को नदिया तरनी है!
तुम थोड़ा अवकाश निकाली, तुमसे दो बातें करनी हैं!
मन छोटा करने से मोटा काम नहीं छोटा होता है,
नेह-कोष को खुलकर बाँटों, कभी नहीं टोटा होता है,
आँसू वाला अर्थ न समझे, तो सब ज्ञान व्यर्थ जाएँगे:
मत सच का आभास दबा लो, शाश्वत आग नहीं मरनी है !
तुम थोड़ा अवकाश निकालो, तुमसे दो बातें करनी हैं।
प्रश्न- (क) मशीनी युग में समय महँगा होने का क्या तात्पर्य है ? इस कथन पर आपकी क्या राय है?
(ख) ‘मोती का स्वप्न’ और ‘रोटी का स्वप्न’ से क्या तात्पर्य है ? दोनों किसके प्रतीक हैं?
(ग) ‘घुटनों में माथा रखने से पोखर पार नहीं होता है’-पंक्ति का भाव स्पष्ट कीजिए।
(घ) मन और स्नेह के बारे में कवि क्या परामर्श दे रहा है और क्यों ?
(ङ) सच का आभास क्यों नहीं दबाना चाहिए ?
उत्तर- (क) इस युग में व्यक्ति समय के साथ बँध गया है। उसे हर घंटे के हिसाब से मजदूरी मिलती है। हमारी राय में यह बात सही है।
(ख) ‘मोती का स्वप्न’ का तात्पर्य वैभव युक्त जीवन की आकांक्षा से है तथा ‘रोटी का स्वप्न’ का तात्पर्य जीवन की मूल जरूरतों को पूरा करने से है। दोनों अमीरी व गरीबी के प्रतीक हैं।
(ग) इसका अर्थ है कि मानव निष्क्रिय होकर आगे नहीं बढ़ सकता। उसे परिश्रम करना होगा तभी उसका विकास हो सकता है।
(घ) मन के बारे में कवि का मानना है कि मनुष्य को हिम्मत रखनी चाहिए। हौसला खोने से कार्य या बाधा खत्म नहीं होती। स्नेह भी बाँटने से कभी कम नहीं होता। कवि मनुष्य को मानवता के गुणों से युक्त होने के लिए कह रहा है।
(ङ) सच का आभास इसलिए नहीं दबाना चाहिए, क्योंकि इससे वास्तविक स्मास्याएँ समाप्त नहीं हो जातीं हैं।
3. जिसमें स्वदेश का मान भरा
आजादी का अभिमान भरा
जो निर्भय पथ पर बढ़ आए
जो महाप्रलय में मुस्काए
जो अंतिम दम तक रहे डटे
दे दिए प्राण, पर नहीं हटे
जो देश-राष्ट्र की वेदी पर
देकर मस्तक हो गए अमर
ये रक्त-तिलक-भारत-ललाट !
उनको मेरा पहला प्रणाम !
फिर वे जो आँधी बन भीषण
कर रहे आज दुश्मन से रण
बाणों के पवि-संधान बने
ज्वालामुख-हिमवान बने
हैं टूट रहे रिपु के गढ़ पर
बाधाओं के पर्वत चढ़कर
जो न्याय नीति को अर्पित हैं
भारत के लिए समर्पित हैं
कीर्तित जिससे यह धरा धाम
उन वीरों को मेरा प्रणाम
श्रद्धानत कवि का नमस्कार
दुर्लभ है छंद-प्रसून हार
इसको बस वे ही पाते हैं
जो चढ़े काल पर आते हैं
हुंकृति से विश्व कँपाते हैं
पर्वत का दिल दहलाते हैं
रण में त्रिपुरांतक बने शर्व
कर ले जो रिपु का गर्व खर्च जो
जो अग्नि-पुत्र, त्यागी, अकाम
उनको अर्पित मेरा प्रणाम !
प्रश्न- (क) कवि किन वीरों को प्रणाम करता है ?
(ख) कवि ने भारत के माथे का लाल चंदन किन्हें कहा है?
(ग) दुश्मनों पर भारतीय सैनिक किस तरह वार करते हैं?
(घ) काव्यांश का उपयुक्त शीर्षक लिखिए।
(ङ) कवि की श्रद्धा किन वीरों के प्रति है ?
उत्तर- (क) कवि उन वीरों को प्रणाम करता है, जिनमें स्वदेश का मान भरा है तथा जो साहस और निडरता से अंतिम दम तक देश के लिए संघर्ष करते हैं।
(ख) कवि ने भारत के माथे की लाल चंदन (तिलक) उन वीरों को कहा है, जिन्होंने देश की वेदी पर अपने प्राण न्योछावर कर दिए।
(ग) दुश्मनों पर भारतीय सेनिक आँधी की तरह भीषण वार करते हैं तथा आग उगलते हुए उनके किलों को तोड़ देंते हैं।
(घ) शीर्षक- वीरों को मेरा प्रणाम।
(ङ) कवि की श्रद्धा उन वीरों के प्रति है, जो मृत्यु से नहीं घबराते, अपनी हुंकार से विश्व को कैंपा देते हैं तथा जिनके साहस और वीरता की कीर्ति धरती पर फैली हुई है।
4. मनमोहनी प्रकृति की जो गोद में बसा है।
सुख स्वर्ग-सा जहाँ है, वह देश कौन-सा है।।
जिसके चरण निरंतर रत्नेश धो रहा है।
जिसका मुकुट हिमालय, वह देश कौन-सा है।।
नदियाँ जहाँ सुधा की धारा बहा रही हैं।
सींचा हुआ सलोना, वह देश कौन सा है।।
जिसके बड़े रसीले, फल कंद नाज, मेवे।
सब अंग में सजे हैं, वह देश कौन-सा है।।
जिसके सुगंध वाले, सुंदर प्रसून प्यारे।
दिन-रात हँस रहे हैं, वह देश कौन-सा है।।
मैदान, गिरि, वनों में, हरियाली महकती।
आनंदमय जहाँ हैं, वह देश कौन-सा हैं।।
जिसके अनंत वन से धरती भरी पड़ी है।
संसार का शिरोमणि, वह देश कौन-सा हैं।।
सब से प्रथम जगत मैं जो सभ्य था यशस्वी।
जगदीश फां दुलारा, वह देश कौन-सा है।।
प्रश्न- (क) मनमोहिनी प्रकृति की गोद में कौन-सा देश बसा हुआ है और उसका पद प्रक्षालन कौन कर रहा होता है?
(ख) भारत की नदियों की क्या विशेषता है?
(ग) भारत के फूलों का स्वरूप कैसा है?
(घ) जगदीश का दुलारा देश भारत संसार का शिरोमणि कैसे है?
(ङ) काव्यांश का सार्थक एवं उपयुक्त शीर्षक लिखिए।
उत्तर- (क) मनमोहिनी प्रकृति की गोद में भारत देश बसा हुआ है। इस देश का पद प्रक्षालन समुद्र कर रहा होता है।
(ख) भारत की नदियों की विशेषता है कि इनका जल अमृत के समान है तथा ये देश को निरंतर सींचती रहती है।
(ग) भारत के फूल सुंदर व प्यारे हैं। वे दिन-रात हँसते रहते हैं।
(घ) नाना प्रकार के वैभव एवं सुख-समृद्धि से युक्त भारत देश जगदीश का दुलारा तथा संसार-शिरोमणि है. क्योंकि यहीं पर सबसे पहले सभ्यता विकसित हुई और संसार में फैली।
(ङ) शीर्षक- वह देश कौन-सा है?
5. जब-जब बाँहें झुकीं मेघ की, धरती का तन-मन ललका है,
जब-जब मैं गुज़रा पनघट से, पनिहारिन का घट छलका है।
सुन बाँसुरिया सदा-सदा से हर बेसुध राधा बहकी है,
मेघदूत को देख यक्ष की सुधियों में केसर बहकी है।
क्या अपराध किसी का है फिर, क्या कमज़ोरी कहूँ किसी की,
जब-जब रंग जमा महफ़िल में जोश रुका कब पायल का है।
जब-जब मन में भाव उमड़ते, प्रणय श्लोक अवतीर्ण हुए हैं,
जब जब प्यास जमी पत्थर में, निर्झर स्रोत विकीर्ण हुए हैं।
जब-जब गूँजी लोकगीत की धुन अथवा आल्हा की कड़ियाँ,
खेतों पर यौवन लहराया, रूप गुजरिया का दमका है।
प्रश्न- (क) मेघों के झुकने का धरती पर क्या प्रभाव पड़ता है और क्यों ?
(ख) राधा कौन थी ? उसे ‘बेसुध’ क्यों कहा है ?
(ग) मन के भावों और प्रेम-गीतों का परस्पर क्या संबंध है ? इनमें कौन किस पर आश्रित है ?
(घ) काव्यांश में झरनों के अनायास फूट पड़ने का क्या कारण बताया गया है ?
(ङ) आशय स्पष्ट कीजिए- खेतों पर यौवन लहराया , रूप गुजरिया का दमका है।
उत्तर- (क) मेघों के झुकने पर धरती का तन-मन ललक उठता है, क्योंकि मेघों से बारिश होती है और इससे धरती पर खुशियाँ फैलती हैं।
(ख) राधा कृष्ण की आराधिका थी। वह कृष्ण की बाँसुरी की मधुर तान पर मुग्ध थी। वह हर समय उसमें ही खोई रहती थी। इस कारण उसे बेसुध कहा गया है।
(ग) प्रेम का स्थान मन में है। जब मन में प्रेम उमड़ता है, तो कवि प्रेम-गीतों की रचना करता है। प्रेम-गीत मन के भावों पर आश्रित होते हैं।
(घ) जब-जब पत्थरों के मन में प्रेम की प्यास जागती हैं, तब-तब उसमें से झरने फूट पड़ते हैं।
(ङ) इसका अर्थ है कि खेतों में हरी-भरी फसलें लहलहाने पर कृषक-बालिकाएँ प्रसन्न हो जाती हैं। उनके चेहरे खुशी से दमक उठते हैं।
6. मेघ आए बड़े बन-ठन के सँवर के।
आगे-आगे नाचती-गाती बयार चली,
दरवाज़े-खिड़कियाँ खुलने लगीं गली-गली।
पाहुन ज्यों आए हों गाँव में शहर के।
मेघ आए बड़े बन-ठन के सँवर के।।
पेड़ झुक झाँकने लगे गरदन उचकाए,
आँधी चली, धूल भागी घाघरा उठाए,
बूढ़े पीपल ने आगे बढ़कर जुहार की।
बरस बाद सुधि लीन्हीं-
बोली अकुलाई लता ओट हो किवार की।।
प्रश्न- (क) ‘पाहुन’ किसे कहा गया है और क्यों?
(ख) मेघ किस रूप में और कहाँ आए?
(ग) मेघ के आने पर गाँव में क्या-क्या परिवर्तन दिखाई देने लगे?
(घ) पीपल को किसके रूप में चित्रित किया गया है? उसने क्या किया?
(ङ) ‘लता’ कौन है? उसने क्या शिकायत की?
उत्तर- (क) मेघ को पाहुन कहा गया है, क्योंकि वे बहुत दिन बाद लौटे हैं और ससुराल में पाहुन की भाँति उनका स्वागत हो रहा है।
(ख) मेघ मेहमान की तरह सज-सँवरकर गाँव में आए।
(ग) मेघ के आने पर गाँव के घरों के दरवाजे व खिड़कियाँ खुलने लगीं। पेड़ झुकने लगे, आँधी चली और धूल ग्रामीण बाला की भाँति भागने लगी।
(घ) पीपल को गाँव के बूढ़े व्यक्ति के रूप में चित्रित किया गया है। उसने नवागंतुक का स्वागत किया।
(ङ) ‘लता’ नवविवाहिता है, जो एक वर्ष से पति की प्रतीक्षा कर रही है। उसे शिकायत है कि वह (बादल) पूरे एक साल बाद लौटकर आया है।
7. रोटी उसकी, जिसका अनाज, जिसकी ज़मीन, जिसका श्रम है;
अब कौन उलट सकता स्वतंत्रता का सुसिद्ध, सीधा क्रम है।
आज़ादी है अधिकार परिश्रम का पुनीत फल पाने का,
आज़ादी है अधिकार शोषणों की धज्जियाँ उड़ाने का।
गौरव की भाषा नई सीख, भिखमंगों-सी आवाज़ बदल,
सिमटी बाँहों को खोल गरुड़, उड़ने का अब अंदाज़ बदल।
स्वाधीन मनुज की इच्छा के आगे पहाड़ हिल सकते हैं;
रोटी क्या? ये अंबरवाले सारे सिंगार मिल सकते हैं।
प्रश्न- (क) आज़ादी क्यों आवश्यक है?
(ख) सच्चे अर्थों में रोटी पर किसका अधिकार है?
(ग) कवि ने किन पंक्तियों में गिड़गिड़ाना छोड़कर स्वाभिमानी बनने को कहा है?
(घ) कवि व्यक्ति को क्या परामर्श देता है?
(ङ) आज़ाद व्यक्ति क्या कर सकता है?
उत्तर- (क) परिश्रम का फल पाने तथा शोषण का विरोध करने के लिए आज़ादी आवश्यक है।
(ख) सच्चे अर्थों में रोटी पर उनका अधिकार है, जो अपनी ज़मीन पर श्रम करके अनाज पैदा करता है।
(ग) ‘गौरव की भाषा नई सीख, भिखमंगो-सी आवाज़ बदल।’ पंक्ति में गिड़गिड़ाना छोड़ स्वाभिमानी बनने को कहा गया है।
(घ) कवि व्यक्ति को स्वतंत्रता के साथ जीवन जीने और उसके बल पर सफलता पाने का परामर्श देता है।
(ङ) जो व्यक्ति आज़ाद है, वह शोषण का विरोध कर सकता है, पहाड़ हिला सकता है तथा आकाश से तारे तोड़कर ला सकता है।
8. अचल खड़े रहते जो ऊँचा शीश उठाए तूफानों में,
सहनशीलता, दृढ़ता हँसती जिनके यौवन के प्राणों में।
वही पंथ बाधा को तोड़े बहते हैं जैसे हों निझर,
प्रगति नाम को सार्थक करता यौवन दुर्गमता पर चलकर।
आज देश की भावी आशा बनी तुम्हारी ही तरुणाई,
नए जन्म की श्वास तुम्हारे अंदर जगकर है लहराई।
आज विगत युग के पतझर पर तुमको नव मधुमास खिलाना,
नवयुग के पृष्ठों पर तुमको है नूतन इतिहास लिखाना।
उठो राष्ट्र के नवयौवन तुम दिशा-दिशा का सुन आमंत्रण,
जगो, देश के प्राण जगा दो नए प्राप्त का नया जागरण।
आज विश्व को यह दिखला दो हममें भी जागी तरुणाई,
नई किरण की नई चेतना में हमने भी ली औगड़ाई।।
प्रश्न- (क) मार्ग की रुकावटों को कौन तोड़ता है और कैसे ?
(ख) नवयुवक प्रगति के नाम को कैसे सार्थक करते हैं ?
(ग) ‘विगत युग के पतझर’ से क्या आशय है?
(घ) कवि देश के नवयुवकों का आह्वान क्यों कर रहा है?
(ङ) कविता का मूल संदेश अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर- (क) मार्ग की रुकावटों को वे तोड़ते हैं जो संकटों से घबरा बिना उनका सामना करते हैं। ऐसे लोग अपनी सहनशीलता और दृढ़ता से जीवन में आने वाले संकट रूपी तूफ़ानों का निडरता से मुकाबला करते हैं और विजयी होते हैं।
(ख) जिस प्रकार झरना अपने बेग से अपने रास्ते में आने वाली चट्टानों और पत्थरों को तोड़कर आगे निकल जाता है, उसी प्रकार नवयुवक भी बाधाओं को जीतकर आगे बढ़ते हैं और प्रगति के नाम को सार्थक करते हैं।
(ग) ‘विगतयुग के पतझर’ का आशय है- बीती हुआ वह समय जब देश के लोग विशेष सफलता और उपलब्धियाँ अर्जित न कर पाए।
(घ) कवि देश के नवयुवकों को आह्वान इसलिए कर रहा है क्योंकि नवयुवक उत्साह, साहस, उमंग से भरे हैं। उनके स्वभाव में निडरता है, वे बाधाओं से हार नहीं मानते हैं। उनका यौवन देश की आशा बना हुआ है। वे देश को प्रगति के पथ पर ले जाने में समर्थ हैं।
(ङ) कवि नवयुवकों का आह्वान वार रहा है कि वे देश को प्रगति के पथ पर अग्रसर करने के लिए आए। उनका यौवन दुर्गम पथ पर विपरीत परिस्थितियों में उन्हें विजयी बनाने में सक्षम है। देशवासी उन्हें आशाभरी निगाहों से देख रहे हैं। अब समय आ गया है कि वे अपने यौवन की ताकत दुनिया को दिखला दें।
9. ले चल माँझी मझधार मुझे, दे-दे बस अब पतवार मुझे।
इन लहरों के टकराने पर आता रह-रहकर प्यार मुझे।।
मत रोक मुझे भयभीत न कर, मैं सदा कँटीली राह चला।
पथ-पथ मेरे पतझारों में नव सुरभि भरा मधुमास पला।
फिर कहाँ डरा पाएगा यह, पगले जर्जर संसार मुझे।
इन लहरों के टकराने पर, आता रह-रहकर प्यार मुझे।।
मैं हूँ अपने मन का राजा, इस पार रहूँ, उस पार चलूँ
मैं मस्त खिलाड़ी हूँ ऐसा, जी चाहे जीतें, हार चलूँ।
मैं हूँ अबाध, अविराम, अथक, बंधन मुझको स्वीकार नहीं।
मैं नहीं अरे ऐसा राही, जो बेबस-सा मन मार चलूँ।।
कब रोक सकी मुझको चितवन, मदमाते कजरारे घन की,
कब लुभा सकी मुझको बरबस, मधु-मस्त फुहारें सावन की।
जो मचल उठे अनजाने ही अरमान नहीं मेरे ऐसे-
राहों को समझा लेता हूँ, सच जीत सदा अपने मन की
इन उठती-गिरती लहरों का कर लेने दो श्रृंगार मुझे,
इन लहरों के टकराने पर आता रह-रहकर प्यार मुझे।।
प्रश्न- (क) ‘अपने मन का राजा’ होने के दो लक्षण कविता से चुनकर लिखिए।
(ख) किस पंक्ति में कवि पतझड़ को भी बसंत मान लेता है ?
(ग) कविता का केंद्रीय भाव दो-तीन वाक्यों में लिखिए।
(घ) कविता के आधार पर कवि-स्वभाव की दो विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
(ङ) आशय स्पष्ट कीजिए-कब रोक सकी मुझको चितवन, मदमाते कजरारे घन की।
उत्तर- (क) ये दो लक्षण निम्नलिखित हैं-
(1) कवि कहीं भी रहे उसे हार-जीत की परवाह नहीं रहती है।
(2) उसे किसी प्रकार का बंधन स्वीकार नहीं है।
(ख) यह पंक्ति है-
पथ-पथ मेरे पतझारों में नव सुरभि भरा मधुमास पला।
(ग) इस कविता में कवि जीवनपथ पर चलते हुए भयभीत न होने की सीख देता है। वह विपरीत परिस्थितियों में मार्ग बनाने, आत्मनिर्भर बनने तथा किसी भी रुकावट से न रूकने के लिए कहता है।
(घ) कवि का स्वभाव निर्भीक, स्वाभिमानी तथा विपरीत दशाओं को अनुकूल बनाने वाला है।
(ङ) इसका अर्थ है कि किसी सुंदरी का आकर्षण भी पथिक के निश्चय को नहीं डिगा सका।
10. क्षमामयी तू दयामयी है, क्षेममयी है,
सुधामयी, वात्सल्यमयी, तू प्रेममयी है,
विभवशालिनी, विश्वपालिनी दुखहर्नी है,
भयनिवारिणी, शांतिकारिणी, सुखकर्नी है,
हे शरणदायिनी देवि तू करती सबका त्राण है।
हे मातृभूमि,सन्तान हम, तू जननी, तू प्राण है।
प्रश्न- (क) इस काव्यांश में किसे संबोधित किया गया है ? उसे क्षमामयी क्यों कहा गया है ?
(ख) वात्सल्य किसे कहते हैं ? मातृभूमि ‘ वात्सल्यमयी ’ कैसे है ?
(ग) मातृभूमि को ‘ विभवशालिनी ’ और ‘ विश्वपालिनी ’ क्यों कहा गया है ?
(घ) शरणदायिनी कौन है ? यह भूमिका वह कैसे निभाती है ?
(ङ) कवि देश और देशवासियों में परस्पर क्या संबंध मानता है ?
उत्तर- (क) इस काव्यांश में मातृभूमि को संबोधित किया गया है। मातृभूमि मानव की गलतियों को सदैव क्षमा करती है। इस कारण उसे क्षमामयी कहा गया है।
(ख) बच्चे के प्रति माँ के प्रेम को वात्सल्य कहते हैं। मातृभूमि मनुष्य की देखभाल माँ की तरह करती है। इसी कारण वात्सल्यमयी कहा गया है।
(ग) मातृभूमि से हमें अनेक संसाधन मिलते हैं। इन संसाधनों से मनुष्य का विकास होता है। पृथ्वी से ही अन्न, फल आदि। मिलते हैं। इस कारण मातृभूमि को ‘विभवशालिनी’ व ‘विश्वपालिनी’ कहा जाता है।
(घ) शरणदायिनी मातृभूमि है। सभी प्राणी इसी पर आवास बनाते हैं।
(ङ) कवि कहता है कि देशवासी के कार्य देश को महान बनाते हैं तथा देश ही उनकी रक्षा करता है तथा नागरिकों का अपना नाम देता है।