प्राकृतिक संकट तथा आपदाएँ-पुनरावृति नोट्स

                                                                    सीबीएसई कक्षा - 11

विषय - भूगोल
पुनरावृत्ति नोट्स
पाठ - 7 प्राकृतिक संकट तथा आपदाएँ 


महत्त्वपूर्ण तथ्य-

  • प्रकृति और मानव का संबंध बहुत पास का है। मानव जीवन को प्रकृति ने बहुत अधिक प्रभावित किया है। प्रकृति हमें सब कुछ प्रदान करके खुशियां देती है इसके साथ ही इसका विकराल रूप भी हमे कभी-कभी देखने को मिलता है।सूखा, बाढ, बादलफटना, चक्रवात, धरती का धसंना,समुद्री तूफान, सूनामी, आकाल, पहाड़ों का खिसकना, ज्वालामुखी विस्फोट, भूकम्प, आदि। बहुत-सी प्राकृतिक आपदाओं से मनुष्य को समय-समय पर नुक्सान होता रहता है।
  • इन प्राकृतिक आपदाओं का मुनष्य पर प्रभाव ,हानियां तथा बचाव के उपाय, नुकसान को कम करने के उपायों के बारे में हम इस अध्याय में अध्ययन करेगें।
  1. आपदा प्रायः एक अनपेक्षित घटना होती है जो ऐसी ताकतों द्वारा घटित होती है, जो मानव के नियंत्रण में नहीं हैं। यह थोड़े समय में और बिना चेतावनी के घटित होती है। जिसकी वजह से मानव-जीवन का क्रियाकलाप अवरूद्ध होता है तथा बड़े पैमाने पर जान-माल का नुकसान होता है। अतः इससे निपटने के लिए हमें सामान्यतः दी जाने वाली वैधानिक आपातकालीन सेवाओं की अपेक्षा अधिक प्रयत्न करने पड़ते हैं।

  1. परिवर्तन प्रकृति का नियम है। यह एक लगातार चलने वाली प्रक्रिया है, जो विभिन्न तत्वों में, चाहे वह बड़ा हो या छोटा, पदार्थ हो या अपदार्थ अनवरत चलती रहती है। ये बदलाव तेज गति से भी आ सकते हैं, जैसे ज्वालामुखी विस्फोट, सुनामी, भूकंप और तूफान इत्यादि के माध्यम से।
  2. आपदाओं की उत्पति का संबंध मानव क्रियाकलापों से भी है। कुछ मानवीय गतिविधियाँ तो सीधे रूप से इन आपदाओं के लिए उत्तरदायी हैं। भोपाल गैस त्रासदी, चेरनोबिल नाभिकीय आपदा, युद्ध, क्लोरोफ्लोरो कार्बन गैसें वायुमंडल में छोड़ना तथा ग्रीन हाउस गैसें, ध्वनि तथा मिट्टी संबंधी पर्यावरण प्रदूषण आदि आपदाएँ इसके उदाहरण हैं।
  3. 1993 में ब्राजील में रियो डि जनेरो,भू-शिखर सम्मेलन तथा मई 1994 में थाॅकोहामा जापान में आपदा प्रबंध पर संगोष्ठी आदि आपदा पर नियंत्रण करने हेतु आवश्यक कदम हैं।
  4. राष्ट्रीय मौसम विज्ञान विभाग, भारत सरकार, भू-भौतिकी प्रयोगशाला, भारतीय भूगर्भीय सर्वेक्षण और इनके साथ कुछ समय पूर्व बने राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन संस्थान ने भारत में आए 1200 भूकंपों का गहन विश्लेषण किया तथा भारत को निम्नलिखित 5 भूकंपीय क्षेत्रों में बाँटा है-
    1. अति अधिक क्षति जोखिम क्षेत्र
    2. अधिक क्षति जोखिम क्षेत्र
    3. मध्यम क्षति जोखिम क्षेत्र
    4. निम्न क्षति जोखिम क्षेत्र
    5. अति निम्न क्षति जोखिम क्षेत्र।
  5. 1989 में संयुक्त राष्ट्र सामान्य असेंबली में आपदा के मुद्दे को उठाया गया और जापान के थाॅकोहामा नगर में मई 1994 में आपदा प्रबंध की विश्व कांफ्रेंस में इसे औपचारिकता प्रदान की गई और यह कुछ समय पश्चात याकोहामा रणनीति एवं अधिक सुरक्षित संसार के लिए कार्य योजना कहा गया।
  6. मानसूनी मौसम के समय चक्रवात 10° से 15° उत्तर अक्षांशों के मध्य पैदा होते हैं। बंगाल की खाड़ी में ज्यादातर चक्रवात अक्टूबर और नवंबर में बनते हैं। यहाँ ये चक्रवात 16° से 21° उत्तर तथा 92° पूर्व देशांतर से पश्चिम में पैदा होते हैं लेकिन जुलाई में ये सुंदर वन डेल्टा के करीब 18° उत्तर और 90° पूर्व देशांतर से पश्चिम में उत्पन्न होते हैं।
  7. बाढ़ विश्व में विस्तृत क्षेत्र में आती,जिसका रूप विनाशकारी होता है लेकिन, दक्षिण, दक्षिण-पूर्व और पूर्व एशिया के देशों विशेषकर चीन, भारत और बांग्लादेश में यह बार-बार होने वाली तबाही ज़्यादा हैं।
  8. भारत के विविध राज्यों में बार-बार आने वाली बाढ़ की वजह से जान-माल का बहुत नुकसान होता है। राष्ट्रीय बाढ़ आयोग ने देश में 4 करोड़ हैक्टेयर भूमि को बाढ़ प्रभावित क्षेत्र घोषित किया है।
  9. कुछ अनुमानों के अंतर्गत भारत में कुल भौगोलिक क्षेत्र का 19 प्रतिशत भाग तथा जनसंख्या का 12 प्रतिशत भाग हर वर्ष सूखे से ग्रस्त होता है। देश का लगभग 30 प्रतिशत क्षेत्र सूखे से प्रभावित हो सकता है, जिससे 5 करोड़ लोग इससे प्रभावित होते हैं।
  10. सूखे की तीव्रता के आधार पर सूखा प्रभावित क्षेत्रों को निम्नलिखित क्षेत्रों में बाँटा गया है-
    1. अत्यधिक सूखा प्रभावित क्षेत्र
    2. अधिक सूखा प्रभावित क्षेत्र
    3. मध्यम सूखा प्रभावित क्षेत्र।