पर्यावरण और प्राकृतिक संसाधन - पुनरावृति नोट्स
CBSE Class 12 राजनीति विज्ञान
पुनरावृति नोटस
पाठ-8 पर्यावरण और प्राकृतिक संसाधन
पुनरावृति नोटस
पाठ-8 पर्यावरण और प्राकृतिक संसाधन
स्मरणीय बिन्दु-
- पर्यावरण = परि + आवरण (वह आवरण जो वनस्पति तथा जीवन + जन्तुओं को ऊपर से ढके हुए हैं।)
- संसाधन = मनुष्य के उपयोग के साधन
- प्राकृतिक संसाधन :- प्रकृति द्वारा प्रदत्त मनुष्य के उपयोग के साधन
विश्व राजनीति में पर्यावरण की चिंता-
- घटता कृषि योग्य क्षेत्र तथा घटती कृषि भूमि की उर्वरता।
- घटते मत्स्य भण्डार, जल प्रदूषण के कारण व जल की कमी।
- घटते जल स्रोत तथा अनाज उत्पादन, प्रदूषण के कारण |
- घटते वनों से जैव विविधता को हानि तथा प्रजातियों का विनाश।
- घटती समुद्र पर्यावरण की गुणवत्ता समुद्रीय तटीय इलाकों में मनुष्यों की सघन बसाहट।
- बढ़ती वैश्विक तापमान के कारण बढ़ता समुद्र जल तल।
- बढ़ता ओजोन परत का छेद परिस्थितिकी तंत्र व मनुष्य के स्वास्थ्य पर खतरा।
पर्यावरण की जागरूकता तथा सम्मेलन-
सम्मेलन का नाम | वर्ष | स्थान | प्रस्ताव |
1. क्लब ऑफ रोम | 1972 | रोम | ‘लिमिट टू ग्रोथ’ (बढ़ती जनसंख्या से प्राकृतिक संसाधनों का विनाश) |
2. संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण | 1975 | रोम | सदस्य देशों के पर्यावरण की रक्षा, कार्यक्रम भूमि गुणवत्ता बरकरार, मरुस्थल का प्रसार रोकना |
3. स्टॉक होम सम्मेलन (प्रथम महत्वपूर्ण सम्मेलन) | 1972 | स्टॉक होम (स्वीडन) | मानवीय पर्यावरण घोषणा, कार्य योजना परमाणु शस्त्रा परीक्षण प्रस्ताव, विश्व पर्यावरण दिवस प्रस्ताव |
4. नैरोबी घोषणा | 1982 | नैरोबी | विलुप्त वन्य जीव व्यापार, प्राकृतिक संसाधन व सम्पदा, समुद्र प्रदूषण के प्रावधान |
5. बर्ट लैण्ड रिपोर्ट | 1987 | बर्ट लैण्ड | ‘आवर कॉमन फ्यूचर’ विकास की वर्तमान प्रक्रिया टिकाऊ नहीं। |
6. पृथ्वी सम्मेलन | 1992 | रियोडी जेनेरो (ब्राजील) | (अजेण्डा-21) - जलवायु परिवर्तन, जैव विविधता, वानिकी के नियम, पर्यावरण रक्षा, साक्षी जिम्मेदारी टिकाऊ विकास, उत्तर दक्षिण विवाद। |
7. विश्व जलवायु | 1997 | नई दिल्ली | पर्यावरण संरक्षण में सभी वर्ग शामिल परिवर्तन बैठक हों तथा व्यावहारिक सोच हो। |
8. क्योटो प्रोटोकाल | 1997 | जापान | औद्योगिक देश ग्रीन हाऊस गैस उत्सर्जन कम करें |
9. ब्यूनस आयर्स बैठक | 1998 | अर्जेंटीना | क्योंटो प्रोटोकॉल की समीक्षा, विलासिता व आवश्यकता में अंतर हो। |
10. जोहान्सबर्ग पृथ्वी सम्मेलन | 2002 | जोहान्सबर्ग (द. अफ्रीका) | जल स्वच्छता, वैकल्पिक ऊर्जा, जैव विविधता, पर्यावरण संरक्षण |
11. भूमण्डलीय जलवायु परिवर्तन सम्मेलन | 2007 | बाली (इंडोनेशिया) | ग्रीन हाऊस गैस उत्सर्जन कम, धनी देश गरीब देशों को साफ सुथरी तकनीक दे। जलवायु परिवर्तन कोष बने |
जिम्मेदारी साझी, भूमिकायें अलग-अलग-
- उत्तरी गोलार्द्ध के विकसित देशों का तर्क - पर्यावरण रक्षा सबकी जिम्मेदारी, इसके लिए विकास कार्यों पर प्रतिबन्ध लगाना सबका समान दायित्व है।
- दक्षिण गोलार्द्ध के विकासशील देशों का तर्क- विकास प्रक्रिया के दौरान विकसित देशों ने पर्यावरण प्रदूषित किया है इसकी क्षतिपूर्ति भी वे ही करें। विकासशील देशां के सामाजिक आर्थिक विकास को ध्यान में रखा जाये।
- अमरीका और चीन प्राकृतिक संसाधनों का दोहन करने वाले सबसे बड़े देश है जबकि अफगानिस्तान और मालवी जैसे दश इस सूची में सबसे नीचे आते हैं. इस बीच चीन ने पहली बार ये माना है कि ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन के मामले में अब वो अमेरिका के बराबर आ गया है. मगर साथ ही चीन ये भी दोहराना नहीं भूला कि प्रति व्यक्ति उत्सर्जन के हिसाब से अगर देखेंगे तो वो अमेरिका से कहीं पीछे है. उधर डब्ल्यूडब्लूए संगठन के प्रमुख एमेका अन्योकू ने कहा कि चादर से लंबे पैर फैलाने के नतीजे हम पिछले कुछ महीनों की घटनाओं में देख चुके हैं और वित्तीय संकट से हुआ नुकसान प्राकृतिक संसाधनों को हो रहे नुकसान के आगे कुछ नही रह जाएगा।
साझी संपदा की सुरक्षा के संबंध में तीन प्रयास अंतराष्ट्रीय सुरक्षा के लिए किय गये है :-
- रियो घोषणा पत्र (1992) - धरती की परिस्थितिकी तंत्र की सुरक्षा के लिए विभिन्न देश आपस में सहयोग करेंगे।
- UNFCCC (1992) – इस संधि को स्वीकार करने वाले देश अपनी क्षमता के अनुरूप पर्यावरण अपक्षय में अपनी हिस्सेदारी के आधार पर साझी परंतु अलग-अलग जिम्मेदारियाँ निभाते हुए पर्यावरण की सुरक्षा करेगें।
- क्योटो प्रोटोकॉल (1997):- इसके अंतगत औद्योगिक देशों के लिए ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन को कम करने के लिए लक्ष्य निर्धारित किए गए हैं।
पर्यावरण संरक्षण तथा भारत-
- प्राकृतिक संतुलन की संस्कृति - पीपल, तुलसी, गाय, सांप, बन्दर की पूजा
- विश्व पर्यावरण संरक्षण प्रयासों में भागीदारी
- ऊर्जा संरक्षण अधिनियम-2001
- पुनर्नवीकृत ऊर्जा प्रयोग बढ़ावा
- स्वच्छ इंजन, प्राकृतिक गैस प्रदूषण रहित तकनीक पर जोर (नेशनल आटो - फयूल पालिसी)
- बायो डीजल की योजना
- परमाणु ऊर्जा को बढ़ावा
- राज्य प्रदूषण नियंत्राण बोर्ड
- क्योटों प्रोटोकॉल पर हस्ताक्षर 2002 में
- 2003 के बिजली अधिनियम में पुनर्नवा ऊर्जा के इस्तेमाल को बढ़ावा।
- 2005 में जी-8 देशों की बैठक में विकसित देशों द्वारा की जा रही ग्रीन हाउस गैसों के उत्सजन में कमी पर जोर।
- भारत SAARC के मंच पर सभी राष्ट्रों द्वारा पर्यावरण की सुरक्षा पर एक राय बनाना चाहता है।
- भारत में पर्यावरण की सुरक्षा एवं संरक्षण के लिए 2010 में राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण (NGT) की स्थापना की गई।
- भारत विश्व का पहला देश है जहाँ अक्षय उजां के विकास के लिए अलग मन्त्रालय है।
- कार्बन डाई ऑक्साइड उत्सर्जन में प्रति व्यक्ति कम योगदान (अमेरिका 16 टन, जापान 8 टन, चीन 06 टन तथा भारत 01.38 टन।
मूलवासी :- वे लोग जो किसी देश में बहुत पहले से रहते आये हों परन्तु बाद में दूसरे देश के लोग वहां आकर इन लोगों को अपने अधीन कर लिया हो। मूलवासी अपना जीवन विशिष्ट सामाजिक आर्थिक सांस्कृतिक रीति रिवाजों के साथ बिताते हैं।
1975 में मूलवासियों का संगठन World Council of Indiagneous बना। 1980 में उसने अपनी सरकारों से मांग की कि-
- मूलवासी कौम के रूप में मान्यता
- अन्य वर्गों के साथ समानता
- अपनी संस्कृति की सुरक्षा का अधिकार दें।
- अपने स्थान व उत्पाद के स्वामी हों।
- विकास के कारण विस्थापित न किये जायें।
वर्तमान संदर्भ-
- वर्ल्ड वाइल्ड फंड (डब्ल्यूडब्लयूएफ) यानी विश्व वन्य प्राणी कोष ने अपनी ताजा रिपोर्ट में कहा है कि अगर दुनिया भर में प्राकृतिक संसाधनों को मौजूदा रफ्तार से ही इस्तेमाल करने का चलन जारी रहा तो अगले तीस साल में इस जरूरत को पूरा करने के लिए दोगुना अधिक संसाधनों की जरूरत होगी।
- द लिविंग प्लैनेट नामक ताजा रिपोर्ट में पर्यावरणविदों ने चेतावनी दी है कि प्राकृतिक संसाधनों का यह संकट मौजूदा वित्तीय संकट से कहीं ज्यादा गंभीर होगा. रिपोर्ट के मुताबिक हालांकि अभी दुनिया का पूरा ध्यान आर्थिक उथल-पुथल पर लगा है मगर उससे भी बड़ी एक बुनियादी मुश्किल हमारे सामने आ रही है औश्र वो है प्राकृतिक संसाधनों की भारी कमी की. इस अध्ययन का तर्क है कि शेयर बाजार में हुए 20 खरब डॉलर के नुकसान की तुलना अगर आप हर साल हो रहे 45 खरब डॉलर मूल्य के प्राकृतिक संसाधनों के नुकसान से करें तो ये आर्थिक संकट का ऑकड़ा बौना साबित होता है। रिपोर्ट के मुताबिक दुनिया की तीन चौथाई आबादी पानी, हवा और मिट्टी का बेतहाशा इस्तेमाल कर रही है। इसके अलावा जंगल जितनी तेजी बढ़ नही रहे हैं उससे ज्यादा तेजी से काटे जा रहे है, समुद्र में जितनी तेजी से मछलियां बढ़ नहीं रही है उससे ज्यादा तेजी से मारी जा रही है. डब्लयूडब्लयूए के प्रवक्ता कॉलिन बटफील्ड का कहना है कि आम लोग बदलाव के अभियान में भाग लेकर एक बड़ा अन्तर पैदा कर सकते है।
पर्यावरण की सुरक्षा को लेकर विभिन्न देशों की सरकारों के अतिरिक्त विभिन्न भागों में सक्रिय पर्यावरणीय कार्यकताओ ने अन्तर्राष्ट्रीय एवं स्थानीय स्तर पर कई आंदोलन किये है जैसे :-
- दक्षिणी देशों मैक्सिकों, चिले, ब्राजील, मलेशिया, इण्डोनेशिया, अफ्रीका और भारत क वन आंदोलन।
- ऑस्ट्रेलिया में खनिज उद्योगों के विरोध में आन्दोलन।
- थाइलैंण्ड, दक्षिण-अफ्रीका, इण्डोनेशिया, चीन तथा भारत में बड़े बाँधों के विरोध में आंदोलन जिनमें भारत का नर्मदा बचाओ आंदोलन प्रसिद्ध है।
संसाधनों की भू-राजनीति :- यूरोपीय देशों के विस्तार का मुख्य कारण अधीन देशों का आर्थिक शोषण रहा है। जिस देश के पास जितने संसाधन होगें उसकी अर्थव्यवस्था उतनी ही मजबूत होगी।
- इमारती लकड़ी :- पश्चिम के देशों ने जलपोतो के निर्माण के लिए दूसरे देशों के वनों पर कब्जा किया ताकि उनकी नौसेना मजबूत हो और विदेश व्यापार बढ़े।
- तेल भण्डार :- विश्व युद्ध के बाद उन देशों का महत्व बढ़ा जिनके पास यूरेनियम और तेल जैसे संसाधन थे। विकसित देशों ने तेल की निबांध आपूर्ति के लिए समुद्री मागों पर सेना तैनात की।
- जल :- पानी के नियन्त्रण एवं बँटवारे को लेकर लड़ाईयाँ हुई। जार्डन नदी के पानी के लिए चार राज्य दावेदार है इजराइल, जार्डन, सीरिया एवम् लेबनान।
चीन अमेरिका जिम्मेदार-
बटफील्ड ने कहा ‘‘आर्थिक संकट के मामले में हमने देखा है कि अगर नेता चाहे तो वैश्विक स्तर पर वे मिलजुलकर काम कर सकते है और जल्दी कर सकते है, व्यापक संसाधन जुटा सकते है, हम चाहते है कि इसका इस्तेमाल दरसल वित्तीय संकट से भी बड़े और दीर्घकालिक संकट से निबटने में किया जाता है।
- विश्व राजनीति के दायरे को बढ़ा दिया गया है, जिसमें गरीबी और महामारी जैसे विषयों के साथ-साथ पर्यावरण और प्राकृतिक संसाधनों जैसे विषयों को भी शामिल किया गया है।
- पर्यावरण के ह्रास से उत्पन्न समस्याओं की ओर विश्व का ध्यान आकर्षित किया है, जिससे आने वाले समय में वैश्विक पर्यावरण का संरक्षण किया जा सके।
- संयुक्त राष्ट्र संघ की विश्व विकास रिपोर्ट (2006) के अनुसार विकासशील देशों की एक अरब बीस करोड़ जनता को स्वच्छ जल नहीं मिलता, वहीं साफ-सफाई नहीं है, 30 लाख बच्चे प्रतिवर्ष मौत का शिकार होते हैं।
- जैव-विविधता की हानि का कारण भी पर्यावरण का ह्रास ही है।
- ओजोन परत में छेद होने से मनुष्य के स्वास्थ्य पर खतरा मंडरा रहा है।
- समुद्र तटीय क्षेत्रों पर प्रदूषण के बढ़ने से समुद्री पर्यावरण की गुणवत्ता में भारी गिरावट आई है।
- कृषि योग्य भूमि चारागाहों, मत्स्य भंडार और जलाशयों में भारी मात्रा में कमी आई है।
- 1992 में संयुक्त राष्ट्र संघ का पर्यावरण और विकास के मुद्दे पर केंद्रित एक सम्मेलन ब्राजील के रियो डी जेनेरियो में हुआ, जिसे पृथ्वी सम्मेलन कहा गया।
- पृथ्वी सम्मेलन में 170 देशों, हजारों स्वयंसेवी संगठन तथा अनेक बहुराष्ट्रीय निगमों ने भाग लिया।
- साझी संपदा उन संसाधनों को कहते हैं, जिन पर किसी एक का नहीं बल्कि पूरे समुदाय का अधिकार होता है। 'वैश्विक संपदा' या 'मानवता का साझी विरासत' कहा जाता है।
- सांझी संपदा :- साझी संपदा उन संसाधनो को कहते हैं जिन पर किसी एक का नहीं बल्कि पूरे समुदाय का अधिकार होता है। जैसे संयुक्त परिवार का चूल्हा, चारागाह, मैदान, कुआँ या नदी। इसी तरह विश्व के कुछ हिस्से है जिन पर किसी एक देश का अधिकार नहीं है बल्कि उनका प्रबंधन साझे तौर पर अंतराष्ट्रीय समुदाय द्वारा किया जाता है। इन्हें ‘वैश्विक संपदा' या ‘मानवता की साझी विरासत' कहा जाता है। इसमें पृथ्वी का वायुमंडल अंटार्कटिका, समुद्री सतह और बाहरी अंतरिक्ष शामिल है इस दिशा में कुछ महत्वपूर्ण समझौते जैसे अंटार्कटिका संधि (1959) मांट्रियल न्यायाचार (1987) और अंटार्कटिका पर्यावरणीय न्यायाचार (1991) हो चुके है।
- वैश्विक साझी संपदा की सुरक्षा को लेकर भी विकसित एवं विकासशील देशों का मत भिन्न है। विकसित देश इसकी सुरक्षा की जिम्मेदारी सभी देशों में बराबर बाँटने के पक्ष में है। परन्तु विकासशील देश दो आधारों पर विकसित देशों की इस नीति का विरोध करते है, पहला यह कि साझी संपदा को प्रदूषित करने में विकसित देशो की भूमिका अधिक है दूसरा यह कि विकासशील देश अभी विकास की प्रक्रिया में है। अत: साझी संपदा की सुरक्षा के संबंध में विकसित देशों की जिम्मेवारी भी अधिक होनी चाहिए तथा विकासशील देशों की जिम्मेदारी कम की जानी चाहिए।
- पर्यावरण ह्रास का जिम्मेदार कौन है-विकसित देश या विकासशील देश। यह अभी भी प्रश्न बना हुआ है।
- कार्बन डाइऑक्साइड, मीथेन और हाड्रो-फ्लोरो कार्बन जैसी गैसों की मात्रा पर्यावरण में बढ़ती जा रही है। ग्लोबल वार्मिंग की परिघटना में विश्व का तापमान निरन्तर बढ़ रहा है जो विश्व के लिए प्रलयकारी साबित होगा।
- भारत, चीन और अन्य विकासशील देशों को क्योटो प्रोटोकॉल की बाध्यताओं से छूट दी गई है, क्योंकि औद्योगीकरण के दौर में ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन में इनका कोई खास योगदान नहीं है।
- भारत सरकार विभिन्न कार्यक्रमों के जरिए पर्यावरण के संबंध में वैश्विक प्रयासों में मदद कर रही है।
- दक्षिण देशों मैक्सिको, चिली, ब्राजील, मलेशिया, इंडोनेशिया, महादेशीय अफ्रीका और भारत के वन आंदोलनों पर बहुत अधिक दबाव है।
- बीसवीं सदी की विश्व अर्थव्यवस्था तेल पर निर्भर करती है।
- किसी भी देश के 'मूलवासी' आज भी उस देश की संस्थाओं के अनुरूप आचरण करने से ज्यादा अपनी परंपरा, सांस्कृतित रिवाज तथा अपने खास सामाजिक, आर्थिक ढरें पर जीवन-यापन करना पसंद करते हैं।
अन्य महत्वपूर्ण तथ्य
- पृथ्वी सम्मेलन-1992
- वैश्विक मामलों पर एक विद्वत समूह 'क्लब ऑफ़ रोम' ने 1972 में 'लिमिट्स टू ग्रोथ' पुस्तक प्रकाशित की।
- पृथ्वी सम्मेलन ब्राजील के रियो डी जनेरियो में हुआ।
- UNEP-संयुक्त राष्ट्रसंघ पर्यावरण कार्यक्रम।
- वैश्विक संपदा की सुरक्षा से संबंधित कुछ महत्वपूर्ण समझौते-अंटार्कटिका संधि (1959), मौण्ट्रियल न्यायाचार (प्रोटोकॉल 1987) और अंटार्कटिका पर्यावरणीय न्यायाचार (1991) है।
- अंटार्कटिक महाद्वीप 1 करोड़ 40 लाख वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ है।
- स्थलीय हिम का 90 प्रतिशत हिस्सा और धरती पर मौजूद स्वच्छ जल का 70 प्रतिशत भाग, इस महाद्वीप में मौजूद है।
- अंटार्कटिका महाद्वीप पर-ब्रिटेन, अर्जेन्टीना, चिली, नार्वे, फ्रांस, आस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड द्वारा अंटार्कटिका प्रदेश पर अपने वैधानिक अधिकार का दावा करते हैं, परन्तु अधिकांश लोग इसे विश्व संपदा मानते हैं।
- आवर कॉमन फ्यूचर नामक बार्टलैंड रिपोर्ट प्रकाशित हुई थी–1987.
- पृथ्वी सम्मेलन में 170 देश, हजारों स्वयंसेवी संगठन तथा अनेक बहुराष्ट्रीय निगमों ने भाग लिया।
- जलवायु के परिवर्तन से संबंधित संयुक्त राष्ट्र संघ के नियमाचार अर्थात यूनाइटेड नेशंस फ्रेमवर्क कन्वेशन ऑन क्लाइमेट चेज-UNFCCC 1992.
- एक अन्तर्राष्ट्रीय समझौता है-क्योटो प्रोटोकॉल।
- भारत ने क्योटो प्रोटोकॉल पर हस्ताक्षर किए-2002 में।
- अंटार्कटिका के ऊपर ओजोन परत पर छेद की खोज हुई-1980 के दशक के मध्य में।
- उत्तरी गोलार्द्ध-विकसित देश।
- दक्षिणी गोलार्द्ध-विकासशील देश।
- यू०एन०एफ०सी०सी०सी० (UNFCCC)-यूनाइटेड नेशन्स फ्रेमवर्क कन्वेंशन ऑन क्लाइमेंट चेंज।
- खनिज उद्योग पृथ्वी पर मौजूद सबसे ताकतवर उद्योगों में से एक है।
- विश्व का बाँध विरोधी आंदोलन दक्षिणी गोलार्द्ध में चलाया जा रहा है।
- दक्षिणी गोलार्द्ध के देशों में तुकों से लेकर थाइलैंड और दक्षिणी अफ्रीका तक तथा इंडोनेशिया से लेकर चीन तक बड़े बाँधों को बनाने की होड़ लगी हैं।
- खाड़ी क्षेत्र विश्व के कुल तेल उत्पादन का 30 प्रतिशत मुहैया कराता है।
- सऊदी अरब के पास विश्व के कुल तेल भंडार का एक-चौथाई हिस्सा मौजूद है।
- सऊदी अरब विश्व में सबसे बड़ा तेल उत्पादक देश है।
- इराक का तेल भंडार सऊदी अरब के बाद दूसरे नंबर पर है।
- वे देश जिनमें वन आंदोलनों पर बहुत दबाव हैं-(i) मैक्सिको (ii) चिली (iii) ब्राजील (iv) मलेशिया (v) इंडोनेशिया (vi) भारत।
- भारत में बाँधा विरोधी तथा पर्यावरण बचाव संबंधी एक आंदोलन-नर्मदा आंदोलन।
- भारत में वन संपदा एवं वृक्षों के हितो में चलाया जा रहा आंदोलन-चिपको आंदोलन।
- फिलीपिन्स के कोरडिलेरा क्षेत्र में मूलवासी रहते है-28 लाख |
- चिली में मादुशे में मूलवासी हैं- 10 लाख।
- बांग्लादेश के चटगांव पर्वतीय क्षेत्र में आदिवासी बसे हैं-6 लाख।
- उत्तरी अमरीका में मूलवासियों की संख्या है-3 लाख 50 हजार।
- पनामा नहर के पूरब में कुना नामक मूलवासी हैं-50 हजार।
- उत्तरी सोवियत में मूलवासी हैं-10 लाख।
- आस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड और ओसियाना क्षेत्र के बहुत से द्वीपीय देशों में हजारों सालों से पॉलिनोरीया, मैलनोरीया और माइक्रोनोरीया वंश के मूलवासी रहते हैं।
- भारत, दक्षिण अमरीका, अफ्रीका, दक्षिण-पूर्व एशिया में रहने वाले मूलवासियों की आदिवासी या जनजाति कहा जाता है।
- वर्ल्ड काउंसिल ऑफ इंडिजिनस पीपल का गठन हुआ-1975 में।