सामाजिक संस्थाओं को समझना - पुनरावृति नोट्स

CBSE कक्षा 11 समाजशास्त्र
पाठ-3 सामाजिक संस्थाओं को समझना
पुनरावृत्ति नोट्स

स्मरणीय बिन्दु-
  • सामाजिक संस्थाओं को सामाजिक आस्थाओं, मूल्यों, मानकों तथा समाज की जरूरतों को पूरा करने हेतु निर्मित संबंधों की भूमिका के जटिल ताने-बाने के रूप में देखा जाता है।
  • महत्त्वपूर्ण सामाजिक संस्थाएँ हैं-
    • अनौपचारिक
      • नातेदारी
      • परिवार
      • विवाह
    • औपचारिक
      • शिक्षा
      • कानून
    • संस्था = यह स्थापिज या कम से कम कानून या प्रथा द्वारा स्वीकृत नियमों के अनुसार कार्य करती है और उसके नियमित तथा निरंतर कार्यचालन को इन नियमों काम जाने बिना समझा नहीं जा सकता। संस्थाएँ व्यक्तियों पर प्रतिबंध के साथ ही व्यक्तियों को अवसर भी प्रदान करती हैं।
    • मूल परिवार को औद्योगिक समाज की आवश्यकताएँ पूरी करने वाली एक सर्वोत्तम साधन पूर्ण इकाई के रूप में देखा जा सकता है। ऐसे परिवार में घर का एक सदस्य से बाहर कार्य करता है तथा दूसरा सदस्य घर व बच्चों की देख-रेख करता है।
  • विभिन्न समाजों में परिवार के विभिन्न स्वरूप पाए जाते हैं-
    1. आवास / स्थान के आधार पर
      • मातृस्थानिक
      • पितृस्थानिक
    2. अधिकार और प्रभाव के आधार
      • मातृतंत्रात्मक
      • पितृतंत्रात्मक
    3. वंश के आधार पर
      • मातृवंशीय
      • पितृवंशीय
    • जन्म का परिवार एवं प्रजनन का परिवार
    • एक परिवार तथा संयुक्त परिवार
  • महिला प्रधान घर / परिवार :
    पुरुषो के शहरी क्षेत्रों में चले जाने के बाद महिलाओं को हल चलाना पड़ता है एवं खेती के कार्यों का प्रबंध करना पड़ता है। काफ़ी समय वे अपने परिवार की एकमात्र भरण-पोषण करने वाली एकमात्र सदस्य बन जाती है। ऐसे परिवारों को महिला-प्रधान घर कहा जाता है। उदाहरण-उरी आंध्र प्रदेश में कोलम जनजाति समुदाय।
  • परिवार लिंगवादी होती है :
    • आधुनिक समय में भी यह माना जाता है कि लड़का वृद्धावस्था में अभिभावकों की मदद करेगा तथा लड़की विवाह करके दूसरे घर चली जाएगी इस प्रकार लड़कियों की अपेक्षा की जाती है एवं इस कारण ही कन्या भ्रूण हत्या को बढ़ावा मिल रहा है। 2001 की जनगणना के अंतर्गत, प्रति हजार लड़कों पर 927 लड़कियाँ हैं। समृद्ध राज्यों जैसे- हरियाणा, महाराष्ट्र, पंजाब तथा पश्चिमी उत्तर प्रदेश में हालात बहुत दयनीय है।
    • परिवार प्रत्यक्ष नातेदारी संबंधों से जुड़े संबंधों से जुड़ते व्यक्तियों का एक समूह है। नातेदारी बंधन व्यक्तियों के मध्य के वह सूत्र होते हैं जो या तो विवाह द्वारा से वंश परस्पर के माध्यम से रकम संबंधियों को जोड़ते हैं।
    • रक्त द्वारा से बने नातेदारों को समरक्त नातेदार / रक्तमूलक नातेदार और विवाह द्वारा से बने नातेदारों को वैवाहिक नातेदार / विवाहमूलक नातेदार दहकते हैं।
  • विवाह संस्था
    • विवाह को दो व्यस्क (स्त्री / पुरुष) व्यक्तियों के मध्य लैगिक संबंधों की सामाजिक स्वीकृति तथा अनुमोदन के रूप में परिभाषित किया जाता है।
    • विवाह के विभिन्न स्वरूप :
      • एक विवाह (यह विवाह संबंध एक व्यक्ति को एक समय में एक ही साथी रखने तक सीमित रखता है।)
      • बहु-विवाह (यह विवाह संबंध एक व्यक्ति को एक समय में एक ही साथी रखने तक अनुमति प्रदान करता है।)
        • बहु-पत्नी विवाह (यह एक ऐसी विवाह पद्धति है जिसके अंतर्गत एक व्यक्ति एक से ज़्यादा पत्निया रख सकता है)
        • बहु-पति विवाह ( यह एक ऐसी विवाह पद्धति है जिसके अंतर्गत एक महिला एक से ज़्यादा पत्निया रख सकता है)
    • अंतर्विवाह- इस विवाह में व्यक्ति उसी सांस्क्रतिक समूह में विवाह करता है जिसका वह पहले से ही सदस्य है। उदाहरण- जाति।
    • बहिर्विवाह- इस विवाह में व्यक्ति अपने समूह से बाहर विवाह करता है। उदाहरण- गोत्र, जाति और नस्ल।
  • विवाह से संबंधित समस्याएँ:-
    • विधवा पुनर्विवाह
    • दहेज
    • बाल विवाह
  • कार्य और आर्थिक जीवन :
    कार्य को शारीरिक एवं मानसिक परिश्रमों के माध्यम से किए जाने वाले ऐसे सवैतनिक या अवैतिनिक कार्यों के रूप में परिभाषित कर सकते हैं जिनका औचित्य मानव की जरूरत पूरी करने के लिए वस्तुओं तथा सेवाओं का उत्पादन करना है।
  • आधुनिक समाजों की अर्थव्यवस्था की विभिन्न आवश्यक विशेषताएँ है :
    • पूँजीपति उद्योगपतियों के कारखाने।
    • विशिष्ट कार्य के अनुसार वेतन।
    • प्रबंधक द्वारा कार्यों का निरिक्षण।
    • श्रमिक की उत्पादकता बढ़ाना और अनुशासन बनाए रखना।
    • अत्याधिक जटिल श्रम में विभाजन।
    • कार्य के स्थान में परिवर्तन।
    • औद्योगिक प्रौद्योगिकी में विकास।
    • परस्पर आर्थिक का
    • असीमित विस्तार।
  • कार्य रूपांतरण :
    • औद्योगिक प्रक्रियाएँ सरल संक्रियाओं में वर्गीकरण।
    • थोक उत्पादन हेतु थोक बाजारों की महत्वपूर्णता।
    • उत्पादन की प्रक्रिया में नव परिवर्तन, स्वचालित उत्पादन की कड़ियों का निर्माण।
    • उदार उत्पादन तथा कार्य विकेंद्रीकरण।
  • राजनीति संस्थाओं का संबंध समाज के दो आवश्यक पहलू है:
    • शक्ति- शक्ति व्यक्तियों सा समूहों के माध्यम से दूसरों के विरोध करने के बावजूद अपनी इच्छा पूरी करने की योग्यता है।
    • सत्ता- शक्ति का उपयोग सत्ता के माध्यम से किया जाता है। सत्ता शक्ति का वह रूप है जिसे वैध होने के रूप में स्वीकार किया जाता है।
    • राजविहीन समाज ऐसा समाज जिसमें सरकार की औपचारिक संस्थाओं का अभाव हो।
    • राज्य की संकल्पना, राज्य वहाँ विद्यमान होता है जहाँ सरकार का एक राजनीतिक तंत्र एक निश्चित क्षेत्र पर शासन करता है।
  • आधुनिक राज्य प्रभुसत्ता, नागरिकता तथा अवसर राष्ट्रवादी विचारों द्वारा परिभाषित है-
    • प्रभुसत्ता- प्रभुसत्ता का तातपर्य, एक निश्चित भौगोलिक क्षेत्र पर एक राज्य के अविवादित शासन से है।
  • नागरिकता के अधिकार :
    • नागरिक अधिकार- भाषण व धर्म की स्वतंत्रता का अधिकार।
    • राजनीतिक अधिकार- चुनाव में सम्मिलित होने का अधिकार।
    • सामाजिक अधिकार- समाज कल्याण, बेरोजगारी भत्ता, स्वास्थ्य लाभ तथा न्यूनतम मजदूरी निर्धारित करने के अधिकारी।
  • धर्म :
    इमाइल दुर्खीम के अंतर्गत, "धर्म पवित्र वस्तुओं से संबंधित अनेक विश्वासों अनेक विश्वासों और व्यवहारों की एक ऐसी संगठित व्यवस्था है जो व्यक्तियों को एक नैतिक समुदाय की भावना में बाँधती है जो उसी प्रकार विश्वासों और व्यवहारों को अभिव्यक्ति करते हैं।"
  • सभी धर्मों की समान विशेषताए :
    • अनुष्ठान/समारोह
    • विश्वासकर्ताओं का एक समुदाय
    • प्रतीकों का समुच्चय, श्रद्धा/सम्मान की भावनाएँ
    • धर्म के साथ संबद्ध अनुष्ठान विभिन्न तरह के होते हैं-
      • गुणगान करना
      • भजन करना
      • उपवास रखना
      • विशेष प्रकार का भोजन करना
      • प्रार्थना करना
    • सामाजिक शक्तिया निरंतर एवं अनिवार्यतः धार्मिक संस्थाओं को प्रभावित करती है। धार्मिक अनुष्ठान प्रायः व्यक्तियों के माध्यम से अपने दैनिक जीवन में किए जाते है। धर्म एक पवित्र क्षेत्र है। जो बात सब में समान है वह है श्रद्धा की भावना, पवित्र स्थानों या स्थितियों की पहचान तथा विभिन्न प्रति सम्मान की भावना।
  • परिवार :
    व्यक्तियों का एक समूह, जो विवाह, रक्त या दत्तक-ग्रहण (Adoption) के बंधनों से बँधे होते हैं और एक एकल गृह का निर्माण करते हैं एवं पति और पत्नी, माता और पिता, बेटा और बेटी, भाई और बहन के अपने सामाजिक अधिकारों के संदर्भ में एक-दूसरे से अंतःक्रिया और अन्तःसंवाद करते हैं, जिससे एक समान संस्कृति का जन्म होता है।
  • परिवार की विशेषताएँ:
    1. नाम पद्धति/नामतंत्र
    2. आर्थिक व्यवस्था
    3. यौन-संबंध
    4. विवाह का स्वरूप
  • परिवार के कार्य :
    • आवश्यक कार्यः
      1. बच्चों का जन्म और लालन-पालन
      2. घर की व्यवस्था
      3. यौन इच्छाओं की पूर्ति
    • गैर-आवश्यक कार्यः
      1. शिक्षा
      2. सामाजिक
      3. मनोवैज्ञानिक
      4. आर्थिक
      5. धार्मिक
  • परिवार का वर्गीकरण :
  • आकार के अंतर्गत परिवार को विभाजित किया जा सकता है:
    1. एकल परिवार
    2. संयुक्त परिवार
    3. विस्तृत परिवार
  • संयुक्त परिवार के अभिलक्षण :
    1. कम से कम तीन पीढ़ी के सदस्य एक साथ रहते हैं।
    2. समान कर्तव्य
    3. समान निवास स्थल
    4. समान सम्पत्ति
    5. समान पूर्वज/पुरखा
    6. समान रसोईघर
    7. परिवार का मुखिया - 'कर्ता' और परिवार के अन्य सदस्यों पर उसकी सत्ता
    8. पारंपरिक व्यवसाय
  • नातेदारी का आधार :
    1. अपनापन
    2. रक्त संबंध
    3. विभाजन
    4. बंधन
    5. लिंग
    6. पीढ़
  • नातेदारी की आवश्यकता :
    1. जनजातीय एवं ग्रामीण समाजों में उत्पादन तथा खपत, राजनैतिक शक्ति और सत्ता, नातेदारियों के द्वारा निर्धारित किए जाते हैं।
    2. विवाह और पारिवारिक उत्सवों के अवसर पर नातेदारी की सबसे ज़्यादा आवश्यकता है।
    3. नातेदारी के माध्यम से यह निश्चय किया जाता है कि 'कौन किससे विवाह कर सकता हैं' और 'कहाँ एवं कौन-सा वैवाहिक संबंध वर्जित (Taboo) है।'
    4. नातेदारी के अंतर्गत ही संबंधित गोत्र, कुल आदि का निर्धारण होता है।
    5. नातेदारी के अंतर्गत सभी संस्कारों और धार्मिक व्यवहारों में सदस्यों के अधिकारों एवं दायित्वों को आधारित किया गया है।
    6. नातेदारी भाईचारे की भावना पर जोर देती हैं।
  • सामाजिक संस्था क्या है : यह समाज की संरचना है, जो विशेषतः सुव्यवस्थित प्रतिमानों के माध्यम से लोगों की जरूरतों करने हेतु संस्थापित किया गया है।
  • शिक्षा :
    शिक्षा के दो भाग है-
    1. अनौपचारिक- शिक्षण संस्थान, स्कूल, कॉलेज।
    2. औपचारिक- पार्क, समाज, घर, पड़ोस।
  • शिक्षा के कार्य :
    • ज्ञान बाँटना।
    • जानकारी का विस्तार।
    • व्यक्तित्व निर्माण तथा चरित्र–गठन।
    • व्यक्तियों के अच्छे जीवन हेतु आधार तैयार करती है।
    • एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में संस्कृति का संरक्षण और संचार करती है।
    • शिक्षा व्यवसायिक और स्थानीय गतिशीलता; जैसे-अच्छे कार्य हेतु प्रवसन इत्यादि में मदद करती है।
    • व्यक्ति का समाज के साथ एकीकरण करना-समाजीकरण।
    • पर्यावरण तथा पास-पड़ोस से हमारा परिचय कराना।
    • व्यक्तियों को अंतःशक्ति (Potential) का अहसास करने और सार्थक ढंग से समाज के प्रति योगदान में मदद करता हैं।
    • किसी देश के सर्वागीण विकास में मदद (आर्थिक, राजनीतिक, सामाजिक) करती है।
    • प्रदर्शन की वजह से व्यक्तियों की स्वभाविक सोच और तर्कशक्ति को विकसित करती है। इससे उपयुक्त निर्णय लेने में मदद मिलती हैं।
  • अर्थव्यस्था के प्रकार;
    1. पूँजीवाद-माँग और पूर्ति केअंतर्गत, मुख्तय: लाभ हेतु संपति का निजी स्वामित्व।
    2. समाजवादी-सरकार के नियंत्रण एवं स्वामित्व में हर वस्तु-PSU (Public Sector Units) के क्षेत्र में केवल सरकार मूल्य, उत्पादन तथा वितरण के साधनों को नियंत्रित करती है।
    3. प्रजातांत्रिक (Democratic)-मिश्रित अर्थव्यवस्था कीमत बाज़ार के माध्यम आधारित की जाती है।
    4. भूमंडलीकरण-स्थानीय अर्थव्यवस्था का वैश्विक/भूमंडलीय अर्थव्यवस्था के साथ एकीकरण।
    5. उदारीकरण-भूमंडलीकरण का आर्थिक परिदृश्य।
      • कम्पनियों का निजीकरण।
      • तकनीकी, उपयोगी वस्तुएँ, कामगार, पूँजी इत्यादि के अंतर्गत प्रतिबंधों को हटाया जाना।
      • शुल्क इत्यादि हटाना।
  • राजनैतिक संस्थाएँ :
    1. शक्ति लोगों के व्यवहार को प्रभावित या नियंत्रित करने की क्षमता है।
    2. 'सत्ता' (Authority) शब्द सामान्यतया शक्ति हेतु इस्तेमाल किया जाता है, जिसे सामाजिक संरचना के माध्यम कानूनी तौर पर मान्य समझा जाता है।
    3. शक्ति को दोषपूर्ण या अन्यायपूर्ण समझा जा सकता है,लेकिन मनुष्य एवं सामाजिक प्राणियों के संदर्भ में शक्ति का इस्माल स्थानीय रूप से स्वीकार किया गया है।
    4. यद्यपि शक्ति को मानवीय कार्य पर प्रतिबंध के रूप में देखा जा सकता है तथापि यह कार्य की संभव बना देता है। किसी भी उपस्थित समाज में यह एक जटिल सामरिक स्थिति है।