गजानन माधव मु गजानन माधव मुक्तिबोधक्तिबोध - पुनरावृति नोट्स

 सीबीएसई कक्षा - 12 हिंदी कोर आरोह

पाठ – 05
सहर्ष स्वीकारा है


पाठ के सार:-

  • कविता में जीवन के सुख-दुख, संघर्ष- अवसाद, उठा-पटक को समान रूप से स्वीकार करने की बात कही गई है।
  • स्नेह की प्रगाढ़ता अपनी चरम सीमा पर पहुँच कर वियोग की कल्पना मात्र से त्रस्त हो उठती है।
  • प्रेमालंबन अर्थात प्रियजन पर यह भावपूर्ण निर्भरता, कवि के मन में विस्मृति की चाह उत्पन्न करती है। वह अपने प्रिय को पूर्णतया भूल जाना चाहता है।
  • वस्तुतः विस्मृति की चाह भी स्मृति का ही रूप है। यह विस्मृति भी स्मृतियों के धुंधलके से अछूती नहीं है। प्रिय की याद किसी न किसी रूप में बनी ही रहती है।
  • परंतु कवि दोनों ही परिस्थितियों को उस परम् सत्ता की परछाई मानता है। इस परिस्थिति को खुशी-खुशी स्वीकार करता है। दुःख-सुख संघर्ष-अवसाद, उठा-पटक, मिलन-बिछोह को समान भाव से स्वीकार करता है।  प्रिय के सामने न होने पर भी उसके आस-पास होने का अहसास बना रहता है।
  • भावना की स्मृति विचार बनकर विश्व की गुत्थियां सुलझाने में मदद करती है। लेह में थोड़ी निस्संगता भी जरूरी है| अति किसी चीज की अच्छी नहीं। ‘वह’ यहाँ कोई भी हो सकता है दिवंगत माँ प्रिय या अन्य|