अंतरा - असगर वजाहत - पुनरावृति नोट्स

 CBSE Class 12 हिंदी ऐच्छिक

पुनरावृति नोट्स
पाठ-17 शेर, पहचान, चार हाथ, साझा


(क)  शेर
कथा-परिचय

‘शेर’  असगर  वजाहत  की  प्रतीकात्मक  और  व्यंग्यात्मक  लघुकथा  है।  शेर  व्यवस्था  का  प्रतीक  है।  जंगल के  जानवर  सामान्य जनता के  प्रतीक  है।  शेर  के  पेट  में  जंगल के  सभी  जानवर  किसी न  किसी लालच में  समाते  जा  रहे  है।  व्यवस्था  भी  किसी  न  किसी  प्रकार  सभी  को  अपने  जाल  में  फँसा  लेती  है।
स्मरणीय  बिन्दु

  • आदमी सत्ता के जाल से बचने के  लिए जंगल में जाता है किंतु वहाँ भी सत्ता का प्रतीक शेर विद्यमान है।  सभी जानवर किसी न किसी प्रलोभन के कारण शेर के मुख  में समाते जा रहे है ।
  • गधे  को  यह  प्रलोभन  दिया  गया  है  कि  शेर  के  मुँह  में  घास  का  मैदान  है,  लोमड़ी  को  यह  बताया गया  है  कि  वहाँ  रोजगार  का  दफ्ऱतर  है  तथा  कुतों  से  यह  कहा  गया  है  कि  शेर  के  मुँह  में प्रवेश करना  ही  निर्वाण का  एकमात्रा  मार्ग  है।
  • लेखक  सच्चाई  का  पता  लगाने  के  लिए  शेर  के  कार्यालय  जाता  है।  जिस  प्रकार  सत्ता  के पक्षध्र  सत्ता का गुणगान करते  है उसी प्रकार कार्यालय के कर्मचारी  शेर की तरफदारी करते हैं।  लेखक उनसे  शेर के  मुँह में  रोजगार के दफ्ऱतर होने की असलियत पूछने  तथा उसका  सबूत माँगने  पर  वे कहते  है  कि  - ‘मानव  जीवन  में  प्रमाण  से  अध्कि  विश्वास  महत्वपूर्ण  है।’  लेखक कहता  है कि  जितने  भी ठग  और मक्कार लोग  होते  है  वे  अपनी बात  का  कोई प्रमाण  नहीं दे  सकते  क्योंकि  वे झूठे  होते  है।  इसलिए  वे  लोगों  से  बिना  सबूत  दिए, केवल ऐसे  ही विश्वास करने का आग्रह करते  है। जब लोग इन पर विश्वास करने लगते  है तो वे उनके  विश्वास का अनुचित  लाभ  उठाते हैं।  शेर  के  आफिस के  कर्मचारी  भी  यही कर  रहे  हैं।
  • शेर  का  मुँह  तथा  रोजगार  के  दफ्ऱतर  के  बीच  यह  अन्तर  है  कि  शेर  का  मुँह  तो  मात्रा  एक  छलावा है।  रोजगार  का  दफ्ऱतर  रोजगार  प्राप्ति  का  एक  माध्यम  है।  शेर  के  मुँह  में  जाने  से  लोगों  को धेखा  मिलता  है  जबकि रोजगार  दफ्ऱतर  के माध्यम  से  लोगों को  रोजगार मिलता  है।

(ख)  पहचान
कथा  परिचय
पहचान के माध्यम से लेखक बताना चाहता है कि राजा को अंधी, बहरी और गूँगी प्रजा पसंद होती है  जो  बिना कुछ  देखे,  सुने  और बोले  राजा  के  आदेशों  का  पालन  करती  रहे।
स्मरणीय बिंदु

  • राजा  देश शान्ति,  उत्पादन  और तरक्की का हवाला  देते  हुए आँखे, कान और मुँह  बंद करने  के आदेश देता है। परन्तु वास्तव में उसका उद्देश्य था कि लोग राजा के निरंकुश एवं स्वार्थपूर्ण कार्यो  को  न  देख  सकें।  वे  किसी  की  बाते  सुनकर  सत्ता  का  विरोध्  न  कर  सके  तथा  राजा के  विरूद्ध आवाज न उठाएँ।
  • यदि  जनता  राज्य की  स्थिति  को  अनदेखा  करती है,  उसकी  ओर  ध्यान  नहीं देती  तो  शासक वर्ग निरंकुश  हो जाता है। शासक की व्यक्तिगत उन्नति तो खूब होती  है परन्तु राज्य की प्रगति रूक जाती है। यदि राज्य की जनता, राज्य की स्थिति के प्रति सचेत नही रहती है तो शासक वर्ग राज्य के  संसाध्नों का  प्रयोग  अपने  व्यक्तिगत  हित के  लिए करता  है तथा  राज्य की  स्थिति में  सुधर  और विकास  में  उसकी  कोई  रूचि  नही  होती  है।
  • खैराती,  रामू  और  छिद्दू  जागरूक एवं  सचेत  जनता  के  प्रतीक  है।  राजा के  आदेश  पर आँखे  बंद करके  वे  भी  सामान्य  जनता  के  समान  हो  गए।  कुछ  समय  बाद  राज्य  की  प्रगति  देखाने  की  इच्छा से उन्होनें जब आँखे खोली तो उन्हें सर्वत्रा सत्ता की शक्ति ही दिखाई दी। उन्हें सामने केवल राजा ही दिखाई दिया, प्रजा वहाँ नही थी। चारो और सत्ता का ही प्रभुत्व था, जनता का कोई अस्तित्व  नहीं  था।  सत्ता  इतनी  शक्तिशाली  हो  चुकी  थी  कि  बदलाव  की  कोई  गुंजाइश  नही  थी।

(ग)  चार  हाथ
कथा-परिचय

  • ‘चार  हाथ’  पूंजीपतियों  द्वारा  मजदूरों  के  शोषण  से  उजागर  करती  है।  पूंजीपति  अपने  लाभ  में  वृद्धि के नए-नए तरीके अपनाते है। वह अपने लाभ के  लिए मजदूरों का शोषण करता है और कई बार उनके स्वाभिमान को भी ठेस पहुँचाता है। मजदूर अपनी निर्धनता और मजबूरी के कारण विरोध की  स्थिति में नहीं होते  है। मजदूर  विवशता के कारण आधी मज़दूरी में भी काम करने को  राजी हो जाते  है।

स्मरणीय  बिन्दु

  • एक  मिल मालिक ने अपना मुनाप़फा बढ़ाने  के  लिए,  मिल के  मजदूरों को  चार हाथ लगाने की योजना  बनाई। इस काम में वैज्ञानिकों का  शोध् असफल होने पर उसने यह कार्य स्वयं करने का  निश्चय  किया।
  • मिल मालिक ने कटे  हुए हाथ मजदूरों के फिट करने चाहे पर वह असफल रहा। फिर उसने लकड़ी तथा उसके बाद लोहे के हाथ फिट करने  चाहे, परन्तु इस प्रयास में बहुत से मजदूर मर गए।
  • चार हाथ  न लग पाने की स्थिति में मिल  मालिक की समझ में यह बात आयी कि मजदूरों का  वेतन  आध  कर  दो  और  दुगने  मजदूर  काम  पर  रख  लो  तो  मुनाफा  वैसे  ही  दुगुना  हो  जाएगा। यह कार्य  भी मजदूरों के चार हाथ लगाने जैसा  ही होगा।

(घ)  साझा
कथा-परिचय
उद्योगों पर कब्जा जमाने के  बाद पूँजीपतियों की नजर किसानों की जमीन और उत्पाद पर जमी है। गाँव का  प्रभुत्वशाली  वर्ग भी पूँजीपत्तियों का  सहयोग करता  है।  वह  किसान को साझा खेती करने  का झाँसा  देता  है  और उसकी  सारी  पफसल  हड़प  लेता  है।
स्मरणीय  बिन्दु

  • ‘हाथी’  जो कि पूँजीपति  वर्ग का  प्रतीक  है, उसने  किसान के  समक्ष साझे की खेती का  प्रस्ताव रखा। किसान ने इंकार कर दिया क्योंकि साझे की खेती के विषय में उसके कटु अनुभ व थे। साझे की खेती से उसका भरण-पोषण नहीं होता है, अकेले खेती करने में उसको डर लगता है  इसलिए अब  वह खेती  करना  नहीं चाहता  है।
  • हाथी अपनी बातों में फँसाकर उसे खेती के लिए राजी कर लिया तथा फसल के बँटवारे के समय  किसान  की  सारी  फसल  हड़प  ली।