भू-आकृतिक प्रक्रियाएँ-महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर

                                                              CBSE कक्षा 11 भूगोल (भाग-क)

पाठ 6 भू-आकृतिक प्रक्रियायें
महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर


अतिलघु प्रश्न. (1 अंक वाले)

  1. भू-आकृतिक प्रक्रियाओं का अर्थ स्पष्ट करो?
    उत्तर- धरातल के पदार्थो पर अंतर्जनित व बहिर्जनिक बलों द्वारा भौतिक दबाव व रासायनिक क्रियाओं के कारण भूतल में परिवर्तन करने वाली क्रियाओं को भू-आकृतिक प्रक्रियाएं कहते हैं।
  2. मृदा निर्माण की एक महत्वपूर्ण प्रक्रिया बताओ?
    उत्तर- अपक्षय मृदा निर्माण की महत्वपूर्ण प्रक्रिया है।
  3. विभिन्न भू-आकृतिक प्रक्रियाओं को नियन्त्रित करने वाले दो प्रमुख कारक कौन से है?
    उत्तर- तापमान व वर्षण ही भू-आकृतिक प्रक्रियाओं को नियन्त्रित करते है।
  4. बृहत संचलन के लिए कौन सी शक्ति सहायक होती है?
    उत्तर- गुरूत्वाकर्षण शक्ति, बृहत संचलन में सहायक होती है।
  5. मलवा अवधाव को स्पष्ट करो?
    उत्तर- मलवा अवधाव तीव्र संचालन का ही एक प्रकार घटित होता है। यह हिम अवधाव की तरह होता है तथा वनस्पति आवरण युक्त आर्द्र प्रदेशों में ही अधिकतर होता है।
  6. निक्षेपण क्या है?
    उत्तर- निक्षेपण अपरदन का परिणाम होता है। जब ढाल में कमी आ जाती है तो निक्षेपण शुरू हो जाता है।
  7. मृदा क्या है?
    उत्तर- मृदा धरातल पर प्राकृतिक तत्वों का समूह है जिसमें जीवित पदार्थ तथा पौधों को पोषित करने की क्षमता होती है।
  8. भू आकृतिक कारक क्या है?
    उत्तर- प्रकृति के तत्व जो धरातल के पदार्थो का अधिग्रहण तथा परिवहन करने में सक्षम है जैसे हिम, जल, वायु आदि उन्हे भू-आकृतिक कारक कहते है।
  9. पेडालाॅजी विज्ञान किससे सम्बंधित है ?
    उत्तर-
     पेडालाॅजी मृदा विज्ञान से संबंध रखता है |
  10. बहिर्जनिक प्रक्रियायें अपनी ऊर्जा कहां से प्राप्त करती है?
    उत्तर- बहिर्जनिक प्रक्रियायें अपनी ऊर्जा सूर्य द्वारा निर्धारित वायुमंडलीय ऊर्जा एवं धरातल की ढाल प्रवणता से प्राप्त करती है।
  11. बहिर्जनिक प्रक्रियायें पृथ्वी के भिन्न-भिन्न क्षेत्रें में भिन्न-भिन्न तरीकों से कार्य करती है। इसका क्या कारण है?
    उत्तर- क्योकि पृथ्वी पर पृथक-पृथक स्थानों पर तापक्रम तथा वर्षण की भिन्नता पाई जाती है।
  12. आनाच्छादन क्या है?
    उत्तर- विभिन्न बहिर्जनिक भू-आकृतिक प्रक्रियाओं जैसे अपक्षय, वृहत्क्षरण, संचलन, अपरदन, परिवहन, आदि के कारण धरातल की चट्टानों का ऊपरी आवरण हट जाता है इसे ही आनाच्छादन कहते है।
  13. अपक्षय किसे कहते है?
    उत्तर- अपक्षय उस यान्त्रिक, रसायनिक तथा जैविक प्रक्रिया को कहते है जिसके कारण शैले एक ही स्थान पर टूटती फूटती (अपघटित) है।
  14. रसायनिक अपक्षय क्या है?
    उत्तर- रसायनिक अपक्षय को एक उदाहरणों से समझा जा सकता है। नमक की एक डली को आर्द्र स्थान पर रखने से वह गल कर खत्म हो जाती है। लोहे को खुले व आर्द्र स्थान पर रखने से उसमें जंग लग जाता है। और धीरे -धीरे नष्ट होकर मिट्टी में मिल जाता है। नमक का गलना एवं लोहे में जंग लगना रसायनिक क्रियायें है यही प्रक्रिया चट्टानों के साथ होती है तो इसे रसायनिक अपक्षय कहते है।
  15. अपक्षय प्रक्रिया का महत्व क्या है?
    उत्तर- चट्टाने छोटे टुकड़ो में बंटकर मृदा निर्माण में सहायक होती है। अपक्षय चट्टानों में मूल्यवान खनिजों जैसे लोहा, मैंगनीज, तांबा आदि के संकेन्द्रण में सहायक है क्योकिं अपक्षय के कारण अन्य पदार्थो का निक्षालन हो जाता है और वे स्थानान्तरित हो जाते है एवं खनितज एक जगह इकट्ठे हो जाते है।
  16. वृहत् संचलन क्या है?
    उत्तर- शैलो को मलवा छोटे या बड़े रूप में गुरूत्वाकर्षण बल के कारण ढाल के सहारे मंद या तीव्र गति से स्थानान्तरित होता है तो इसे वृहत् संचलन कहते है।
  17. अपरदन की प्रक्रिया से क्या तात्पर्य है?
    उत्तर- प्रवाहित जल, भौमजल, हिमानी, वायु, लहरों एवं धाराओं द्वारा शैलों को काटना खुरचना एवं उससे प्राप्त मलवे या अवसाद को एक जगह से दूसरी जगह ले जाना अपरदन कहलाता है।
  18. तल संतुलन किसे कहते है?
    उत्तर- प्रकृति ने धरातल पर कही ऊंचे पहाड़ और कही गहरी घाटियाँ बनाई है। अपरदन के विभिन्न कारकों के माध्यम से उच्चावच के मध्य इस अंतर को कम करने को तल संतुलन कहते है।


CBSE कक्षा 11 भूगोल (भाग-क)
पाठ 6 भू-आकृतिक प्रक्रियायें

महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर


लघु प्रश्न (3 अंको वाले)

  1. जैविक क्रियाएं किस प्रकार मृदा निर्माण में सहायक है?
    उत्तर- जैविक क्रियाओं से उत्पन्न अपक्षय के द्वारा ही नयी सतहों का निर्माण होता है। चींटीं, दीमक, केंचुए, कृतंक इत्यादि कीटों का मृदा निर्माण में अत्याधिक महत्व है। ये मृदा को बार-बार ऊपर नीचे करते रहते है। केचुएं वाले रसायन मिट्टी का गठन करने में सहायक होते है। इन जीवों द्वारा बिल खोदने के कारण मृदा की सतहों में भी परिवर्तन होता है।
  2. चट्टानों के अपक्षय की रसायनिक प्रक्रिया कितने प्रकार की हो सकती है। समझाइये?
    उत्तर- रसायनिक अपक्षय निम्नलिखित प्रकार से हो सकते है-
    1. विलयन- चट्टानों में मौजूद कई प्रकार के खनिज जल में घुल जाते है जैसे नाइट्रेट सल्फेट एवं पौटेशियम। इस तरह अधिक वर्षा की जलवायु में ऐसे खनिजों से युक्त शैले अपक्षयित हो जाती है।
    2. कार्बोनेशन- वर्षा के जल में घुली हुयी कार्बनडाईआक्साइड से कार्बोनिक अम्ल का निर्माण होता है यह अम्ल चूना युक्त चट्टानों का घुला देता है।
    3. जलयोजन- कुछ चट्टाने जैसे कैल्शियम सल्फेट जल को सोख लेती है और फैल कर कमजोर हो जाती है और बाद में टूट जाती है।
    4. आक्सीकरण- लोहे पर जंग लगना आक्सीकरण का अच्छा उदाहरण है। चट्टानों के ऑक्सीजन गैस के सम्पर्क में आने से यह प्रक्रिया होती है। यह प्रक्रिया वायुमंडल एवं ऑक्सीजन युक्त जल के मिलने से होती है।
  3. भौतिक अपक्षय क्या है? यह कितने प्रकार का होता है?
    उत्तर- भौतिक अपक्षय के कारण चट्टाने छोटे-छोटे टुकड़ो में टूट जाती है जिनके लिये गुरूत्वाकर्षण बल, तापक्रम में परिवतर्न, शुष्क एवं आर्द्र परिस्थितियों का अदल-बदल कर आना जैसे कारक जिम्मेदार है। ये निम्नप्रकार से होता है।
    1. भार विहीनीकरण
    2. तापक्रम में परिवर्तन
    3. हिमकरण एवं तुषार वेजिंग
    4. लवण अपक्षय
    5. जैविक अपक्षय
  4. अपक्षय की निम्नलिखित प्रक्रियाओं को सचित्र समझाइये।
    (i) अपशल्कन
    (ii) संकुचन एवं विस्तारण
    (iii) हिमकरण।


    उत्तर-
    1. अपशल्कन- अपक्षय की इस प्रक्रिया में चट्टानों की परते प्याज के छिलके की तरह उतरती है ऐसा गुबंद आकार की भूआकृतियों में होता है इनके ऊपर की परत अपरदन के कारण हट जाती है और परतदार पट्टियाँ विकसित हो जाती है।
    2. संकुचन एवं विस्तारण- शैलों में मौजूद खनिज तापमान बढ़ने से फैलते है एवं तापमान कम होने से सिकुड़ते है इस प्रक्रिया से शैले कमजोर होकर टूटती है।
    3. हिमकरण तुषार वेजिंग- शैलो की दरारों में जल भर जाता है एवं तापमान गिरने से जल हिम में परिवर्तित हो जाता है। हिम बनने से आयतन बढ़ता है और शैलो पर दबाव बढ़ जाता है। इस प्रक्रिया की पुनरावृत्ति से शैले टूट जाती है।
  5. तीव्र संचलन प्रक्रिया क्या है यह कितने प्रकार से घटित होती है?
    उत्तर- आर्द्र जलवायु प्रदेशो में मंद या तीव्र वनस्पतिहीन ढालों पर जलयुक्त मिट्टी या गाद का तेजी से खिसकना तीव्र संचलन कहलाता है। यह प्रक्रिया कई तरीके से होती है-
    1. अवसर्पण- जब संतृप्त पदार्थ पहाड़ी ढालों पर सीढ़ी बनाते हुए सांप की तरह नीचे खिसकते है तो यह अवसर्पण कहलाता है।
    2. कीचड़ प्रवाह- बहुत अधिक मात्र में अपक्षय हुआ पदार्थ भारी वर्षा के कारण कीचड़ बन जाता है और तेजी से कीचड़ की नदी के रूप में ढालों से घाटियों की और बहने लगता है यह घटना बहुत विनाशकारी सिद्ध होती है।
    3. मलवा अवधाव- यह प्रक्रिया तीव्र ढालों पर होती है जिसमे मलवा (चट्टानों के टुकड़े) कीचड़ प्रवाह से भी तेज गति से नीचे आता है।
  6. अपक्षय मृदा निर्माण को किस तरह प्रभावित करते है?
    उत्तर- चट्टानों के अपक्षय से प्राप्त पदार्थ मृदा निर्माण के लिये आधार का कार्य करती है। इसमें पेड़ पौधे एवं जीव जन्तुओं के सड़े गले अंश मिलते है जिन्हें ह्यूमस कहा जाता है। इस मिश्रण में रंध्रो में जीवन के लिए आवश्यक गैस ये जल में धुले हुये पोषक खनिज भी मिल जाते है। इस तरह लम्बी समयावधि में मृदा मिश्रण होता है।
  7. मृदा निर्माण में सहायक प्रमुख कारक कौन से हैं। ये कारक किस तरह मृदा निर्माण में सहायक होते हैं?
    उत्तर- मृदा निर्माण निम्नलिखित कारकों से प्रभावित होता है-
    1. जलवायु- जलवायु मूल शैल के अपक्षय को प्रभावित करती है। अधिक वर्षा मिट्टी में ह्यूमस की मात्र बढ़ाती है। लेकिन भारी वर्षा के कारण मिट्टी की उपजाऊ तत्वों को नुकसान भी पहुँचता है।
    2. मूल पदार्थ- जिस प्रकार चट्टानों का अपक्षय होता है मिट्टी का प्रकार वैसा ही होता है उदाहरणार्थ द॰ भारत की मिट्टी वहां की आधार शैल के कारण काली है।
    3. उच्चावच- पहाड़ी भागों में मिट्टी की परत पतली होती है जबकि मैदानी भागों में मिट्टी की मोटाई अधिक होती है।
    4. जैविक क्रियायें- वनस्पति आवरण एवं सूक्ष्म जीवों की उपस्थिति मृदा को अधिक उपजाऊ बनाती है।
    5. समय- लम्बी कालावधि में बनी मिट्टी अधिक समृद्ध एवं उपजाऊ होती है।
  8. वे कौन से कारक है जो वृहत संचलन की सक्रियता को बढा देते है?
    उत्तर-
     वृहत संचलन की सक्रियता के पीछे अनेक कारक कार्य करते हैं। जोकि इस प्रकार हैं -
    1. प्राकृतिक और कृत्रिम साधनों द्वारा ऊपर के पदार्थों के टिकने के आधार का हटाना|
    2. ढालों की प्रवणता और ऊँचाई में बढोतरी |
    3. पदार्थों के प्राकृतिक या कृत्रिम भराव के कारण पैदा अतिभार।
    4. अत्यधिक वर्षा, संतृप्ति तथा ढाल से पदार्थों के स्नेहन द्वारा उत्पन्न अतिभार ।
    5. मूल ढाल की सतह पर पदार्थ अथवा भार का हटना।
    6. भूकोप आना,
    7. विस्फोट अथवा मशीनों का कंपन |
    8. प्राकृतिक वनस्पति की अंधाधुंध कटाई।
  9. बहिर्जनिक भू-आकृतिक प्रक्रियाएं एक क्षेत्र से दूसरे क्षेत्र में भिन्न क्यों होती है।
    उत्तर-
     इसके निम्नलिखित कारण हैं1.
    1. पृथ्वी के धरातल पर तापीय प्रवणता के कारक अलग-अलग जलवायु प्रदेश स्थित हैं। जोकि अंक्षाशीय, मौसमी तथा जल-थल विस्तार में भिन्नता के कारण पैदा हुए हैं।
    2. वनस्पति का घनत्व, प्रकार तथा वितरण जो विशेषतः वर्षा तथा तापक्रम पर निर्भर करता है, बहिर्जनिक भू-आकृतिक प्रक्रियाओं पर अप्रत्यक्ष असर डालता है।
    3. विभिन्न जलवायु प्रदेशों में विभिन्न जलवायविक तत्वों जैसे ऊंचाई में अन्तर सूर्यमुखी ढालों पर सूर्यविमुख ढालों की तुलना में ज्यादा सूर्यातप प्राप्ति के कारण स्थानीय भिन्नता का मिलना।
    4. वायु का वेग तथा दिशा, वर्षा की मात्रा एवं प्रकार, इसकी गहनता, वर्षण एवं वाषीकरण में संबंध, तापक्रम का स्तर दैनिक स्तर हिमकरण तथा पिघलन की आवृति, तृषार व्यापन की गहराई आदि में फर्क के कारण किसी भी जलवायिक प्रदेश के भीतर भू-आकृतिक प्रक्रियाएं अलग-अलग होती हैं।
    5. यदि जलवायविक कारक समान हो, तो बहिर्जनिक प्रक्रियाओं की गहनता शैलों के प्रकार तथा संरचना पर निर्भर करती है।
    6. भिन्न-भिन्न प्रकार की शैले अपनी संरचना में भिन्नता के कारण भू-आकृतिक प्रक्रियाओं के प्रति भिन्न-भिन्न प्रतिरोध क्षमता पेश करती है। एक खास शैल एक प्रक्रिया के प्रति प्रतिरोधपूर्ण तथा अन्य प्रक्रिया के प्रति प्रतिरेाधरहित हो सकती है।
  10. अन्तर्जनित और बहिर्जनिक दोनो ही बल पृथ्वी निर्माण के समय से अपना कार्य बहुत ही अनुशासित तरीके से करते आ रहे हैं, किन्तु वर्तमान में मानवीय हस्तक्षेप बढ़ने से इनकी गति में असामान्य वृद्धि हुई है क्यों ?
    उत्तर-
     जैसाकि हम जानते हैं अन्तर्जनित बल पृथ्वी पर उच्चावच सम्बन्धी विविधता उत्पन्न करते हैं जैसे: पर्वत, पठार, मैदान आदि भू-आकृतियों का निर्माण करना और बहिर्जनिक बल धरातल पर उत्पन्न इस भिन्नता को समान करते हैं, किंतु वर्तमान समय में मनुष्यों ने संसाधनों का अत्याधिक दोहन करना आरम्भ कर दिया है। परिणामस्वरूप-विश्व के अधिकांश भाग, बाढ़, भूकप, चक्रवात आदि त्रासदियों से जुझ रहे हैं। भारत भी इससे अछूता नही है। उत्तराखण्ड़ (केदारनाथ में आई बाढ़ हो या कश्मीर में आई बाढ़ या नेपाल में आया भूकंप, इन सब के लिए सीधे तौर पर मनुष्य ही उत्तरदायी है। क्योंकि, धरातल के भाग को बनने में बहुत लम्बी अवधि सैंकडों-हजारों वर्षों का समय लगता है। किन्तु मानव द्वारा इसके उपयोग, दुरूपयोग, कुप्रयोग के कारण संभाव्यता से अधिक तीव्रगति से ह्रास किया है। यदि उन प्रक्रियाओं जिन्होंने धरातल को रूप दिया है और अभी भी दे रही हैं उनसे साम्यता बना ली जाए तो निश्चित रूप से मानव द्वारा किये जा रहे हानिकारक प्रभावों को कम किया जा सकता है।
  11. मिट्टी के निर्माणकारी सक्रिय तथा निष्क्रिय कारकों में अंतर स्पष्ट करें।
    उत्तर-
     
    सक्रिय घटक (Active Factors)निश्क्रिय घटक (Passive Factors
    1. जलवायु तथा जैविक क्रियाएं सक्रिय घटक है।1. मूल पदार्थ, धरातल तथा समय निष्क्रिय घटक है।
    2. इन घटकों द्वारा मिट्टी में परिवर्तन क्रिया होती रहती है।ये घटक अपने आप में कोई परिवर्तन नहीं लाते |
    3. इन घटकों तथा अपघटन तथा विघटन होता रहता है।3. ये घटक कोई क्रिया नहीं करते।
    4. इन घटकों द्वारा मिट्टी निर्माण में कम समय लगता है।4. इन घटकों द्वारा मिट्टी निर्माण में बहुत अधिक समय लगता है।