सामाजिक न्याय - एनसीईआरटी प्रश्न-उत्तर

सीबीएसई कक्षा - 11 राजनीति विज्ञान
एनसीईआरटी प्रश्नोत्तर
पाठ - 4 सामाजिक न्याय

1. हर व्यक्ति को उसका प्राप्य देने का क्या मतलब है? हर किसी को उसका प्राप्य देने का मतलब समय के साथ-साथ कैसे बदला?
उत्तर- हर व्यक्ति को उसका प्राप्य देने का मतलब यह है कि वह व्यक्ति क्या पाने का अधिकारी है तथा उसे वह दे देना ही न्याय है।
हर व्यक्ति को प्राप्य देने का मतलब समय के अनुसार बदलता रहा है। प्राचीन काल में समाज के नियमो के विपरीत कार्य करने वालो को दण्ड दिया जाता था और भलाई करने वालों को पुरस्कृत किया जाता था। अर्थात् गलत व्यक्ति का प्राप्य दंड और सही व्यक्ति का प्राप्य पुरस्कार था, लेकिन यह विचार कि न्याय में हर व्यक्ति को उसका वाजिब हिस्सा देना शामिल है, आज भी न्याय की हमारी समझ का महत्त्वपूर्ण अंग बना हुआ है। न्याय की अवधारणाओं में आज यह एक महत्त्वपूर्ण बिंदु है कि मनुष्य होने के नाते हर व्यक्ति का प्राप्य क्या है। जर्मन दार्शनिक इमैनुएल कांट के अनुसार हर मनुष्य की गरिमा होती है। अगर सभी व्यक्तियों की गरिमा स्वीकृत है, तो उनमें से हर एक का प्राप्य यह होगा कि उन्हें अपनी प्रतिभा के विकास तथा लक्ष्य की पूर्ति के लिए अवसर प्राप्त हो। न्याय के लिए जरूरी है कि हम तमाम व्यक्तियों को समुचित तथा बराबर महत्त्व दें।

2. अध्याय में दिए गए न्याय के तीन सिद्धांतों की संक्षेप में चर्चा करो। प्रत्येक को उदाहरण के साथ समझाइये।
उत्तर- आधुनिक समाज में यह महत्वपूर्ण मांग है की समाज में सभी लोगों को समान महत्त्व दिया जाए। लेकिन यह निर्णय करना मुश्किल है कि हर व्यक्ति को उसका प्राप्य कैसे दिया जाए।
इस संबंध में तीन सिद्धांत दिए गए हैं, जो अग्रलिखित हैं-
  1. समकक्षों के साथ समान बरताव का सिद्धांत- सभी मनुष्यो में होने के नाते सभी व्यक्तियों में कुछ समान चारित्रिक विशेषताएँ होती हैं। अतः वे समान अधिकार और समान बरताव के अधिकारी हैं।
    • व्यक्तियों के आवश्यक अधिकार इस प्रकार है उनमें जीवन, स्वतंत्रता और संपत्ति के अधिकार शामिल हैं। इसमें समाज के अन्य सदस्यों के साथ समान अवसरों के उपभोग करने का सामाजिक अधिकार तथा मताधिकार जैसे राजनीतिक अधिकार भी शामिल हैं।
    • समकक्षों के साथ समान बर्ताव के सिद्धांत का मतलब है कि लोगों के साथ वर्ग, जाति, नस्ल या लिंग के आधार पर भेदभाव नहीं किया जाए। उन्हें उनके काम और कार्यकलापों के आधार पर जाँचा जाना चाहिए, न कि इस आधार पर कि वे किस समुदाय के सदस्य हैं। यदि स्कूल में पुरुष शिक्षक को महिला शिक्षक से अधिक वेतन मिलता है तो यह अनुचित है।
  2. विशेष ज़रूरतों का विशेष ख्याल रखने का सिद्धांत- इस सिंद्धांत के द्वारा सामाजिक न्याय को बढ़ावा दिया जाता है। यह समान बरताव के सिद्धांत का विस्तार करता है, क्योंकि समकक्षों के साथ समान बरताव के सिद्धांत में यह अंतर्निहित है, कि जो लोग कुछ महत्त्वपूर्ण संदर्भों में समान नहीं हैं, उनके साथ भिन्न ढंग से बर्ताव किया जाए। उदाहरणार्थ, विकलांगता वाले लोगों को कुछ खास मामलों में असमान तथा विशेष सहायता के योग्य समझा जा सकता है। संविधान में अनुसूचित जातियों /अनुसूचित जनजातियों के लोगों के लिए सरकारी नौकरियों में तथा शैक्षणिक संस्थानों में दाखिले के लिए आरक्षण का प्रावधान इसी सिद्धांत के अंतर्गत हुआ है।
  3. समानुपातिक न्याय का सिद्धांत- किसी विशेष स्थिति में हर व्यक्ति के साथ समान बरताव अन्याय हो सकता है। उदाहरणत: परीक्षा में शामिल होने वाले सभी विद्यार्थियों को बराबर अंक दे देना बिलकुल गलत होगा। प्रत्येक विद्यार्थी को उसकी मेहनत और कार्यकौशल के आधार पर अंक मिलने चाहिए तभी उनके साथ न्याय होगा। इसलिए, समाज में न्याय के लिए समान बरताव के सिद्धांत का समानुपातिकता के सिद्धांत के साथ संतुलन बैठाना ज़रूरी है।

3. क्या विशेष ज़रूरतों का सिद्धांत सभी के साथ समान बरताव के सिद्धांत के विरुद्ध है?
उत्तर- लोगों की मुलभुत ज़रूरतों का ध्यान में रखने का सिद्धांत समान बर्ताव के सिद्धांत के विरुद्ध नहीं हैं ,लेकिन उसका विस्तार करता हैं क्योंकि समकक्षों के साथ समान बर्ताव के सिद्धांत में यह अंतर्निहित है, कि जी लोग कुछ महत्त्वपूर्ण संदर्भों में समान नहीं हैं, उनके साथ अलग ढंग से बर्ताव किया जाए। जैसे यदि विकलांगता वाले लोगों को कुछ खास मामलें में असमान तथा मुख्य मदद दी जाती है, तो यह यह न्यायसंगत होगा।

4. निष्पक्ष और न्यायपूर्ण वितरण को युक्तिसंगत आधार पर सही ठहराया जा सकता है। रॉल्स ने इस तर्क को आगे बढ़ाने में 'अज्ञानता के आवरण' के विचार का उपयोग किस प्रकार किया?
उत्तर- उदारवादी विचारकप में जॉन रॉल्स एक महान विचारक माने जाते है। उनके द्वारा निष्पक्ष और न्यायपूर्ण वितरण को उचित ठहराया गया है और इस संदर्भ में अज्ञानता के आवरण के विचार का उपयोग किया है। रॉल्स के अनुसार समाज में अपने संभावित स्थान और हैसियत के बारे में हर व्यक्ति बिलकुल अनभिज्ञ होगा। अर्थात् उसे अपने विषय में कोई जानकारी नहीं होगी। अज्ञानता की हालत में हर आदमी अपने खुद के हितों को ध्यान में रखकर फैसला करेगा। चूँकि कोई नहीं जानता कि वह कौन होगा और उसके लिए क्या लाभप्रद होगा, इसलिए हर कोई सबसे बुरी स्थिति के मद्देनजर समाज की कल्पना करेगा। खुद के लिए सोच-विचारकर सकने वाले व्यक्ति के सामने यह स्पष्ट रहेगा कि जो जन्म से सुविधा-संपन्न हैं, वे कुछ विशेष अवसरों का उपभोग करेंगे। लेकिन यदि उनका जन्म वंचित समुदाय में होता है, तब वैसी स्थिति में रॉल्स का कहना है कि जब व्यक्ति स्वम को इस स्थिति में रखकर सोचेगा तब वह अवश्य ही ऐसे समाज के बारे में सोचेगा जो कमज़ोर वर्ग के लिए यथोचित अवसर सुनिश्चित कर सके। वह व्यक्ति अवश्य ही संगठन के ऐसे नियमों की सिफारिश करेगा जिससे यथार्थ में पिछड़े वर्ग को लाभ पहुँचे। व्यक्ति के इस प्रयास से दिखेगा कि शिक्षा, स्वास्थ्य, आवास जैसे महत्त्वपूर्ण संसाधन समाज के सभी लोगों की प्राप्त हों-चाहें वे उच्च वर्ग के हों या कमज़ोर वर्ग के।
'अज्ञानता के आवरण' वाली स्थिति की विशेषता है कि यह लोगों को विवेकशील बनाए रखती है। उनसे उनके हिट में कार्य करने की उपेक्षा की जाती है। हालाँकि प्रासंगिक बात यह है कि जब वे 'अज्ञानता के आवरण' में रहकर चुनते हैं तो वे पाएँगे कि सबसे बुरी स्थिति में ही सोचना उनके लिए लाभकारी होगा।
अज्ञानता का कल्पित आवरण ओढ़ना उचित कानूनों तथा नीतियों की प्रणाली तक पहुँचने का पहला कदम है इससे यह प्रकट होगा कि विवेकशील मनुष्य न केवल सबसे बुरे संदर्भ के मद्देनजर चीजों को देखेंगे बल्कि वे यह भी सुनिश्चित करने की कोशिश करेंगे कि उनके द्वारा निर्मित नीतियाँ समग्र समाज के लिए लाभप्रद हों।

5. आमतौर पर एक स्वस्थ और उत्पादक जीवन जीने के लिए व्यक्ति की न्यूनतम बुनियादी ज़रूरतें क्या मानी गई हैं? इस न्यूनतम को सुनिश्चित करने में सरकार की क्या जिम्मेदारी है?
उत्तर- आमतौर पर एक स्वस्थ और उत्पादक जीवन जीने के लिए व्यक्ति की न्यूनतम बुनियादी ज़रूरतें आवश्यक मानी गई हैं। अनेक सरकारों तथा विश्व स्वास्थ्य संगठन जैसे अंतर्राष्ट्रीय संगठनों ने लोगों की बुनियादी जरूरतों की गणना के लिए विविध तरीके अपनाए हैं। लेकिन सामान्यतः इस पर सहमति है कि स्वस्थ रहने के लिए आवश्यक पोषक तत्वों की बुनियादी मात्रा,शिक्षा ,आवास, शुद्ध पेयजल की आपूर्ति, और न्यूनतम मजदूरी इन बुनियादी स्थितियों के महत्त्वपूर्ण हिस्से होंगे।
मनुष्य की न्यूनतम बुनियादी ज़रूरतों को सुनिश्चित करने में सरकार की अहम् भूमिका होती है, जो इस प्रकार हैं-
  1. किसी भी देश की सरकार के लिए यह आवश्यक कर्तव्य है की वः अपने बेरोजगार नागरिको को बेरोजगारी भत्ता उनकी मुलभुत जरूरतों के लिए प्रदान करे।
  2. बेरोजगारी सामाजिक अभिशाप है। जब तक सरकार इसको समाप्त नहीं करती तब तक लोग अपनी बुनियादी आवश्यकताएँ पूरी करने में अक्षम होंगे। अतः सरकार का दायित्व है कि वह प्रत्येक व्यक्ति को उसकी योग्यता और आवश्यकता के अनुसार काम दे।
  3. किसानो की दशा अच्छीं बनाने के लिए बैंक महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं। वे गरीब और छोटे किसानों को सस्ती दरों पर ऋण मुहैया करा सकते हैं।
  4. सुदूर ग्रामीण इलाकों में शिक्षा के प्रचार-प्रसार के लिए सरकार को चाहिए कि वह वहाँ विद्यालयों की स्थापना कराए और उनमें शिक्षकों की नियुक्ति करे ताकि उन इलाकों के सभी बच्चे स्कूल जा सकें।

6. सभी नागरिकों को जीवन की न्यूनतम बुनियादी स्थितियाँ उपलब्ध कराने के लिए राज्य की कार्रवाई को निम्न में से कौन-से तर्क से वाजिब ठहराया जा सकता है?
  1. गरीब और ज़रूरतमंदों को निःशुल्क सेवाएँ देना एक धर्म कार्य के रूप में न्यायोचित है।
  2. सभी नागरिकों को जीवन का न्यूनतम बुनियादी स्तर उपलब्ध करवाना अवसरों की समानता सुनिश्चित करने का एक तरीका है।
  3. कुछ लोग प्राकृतिक रूप से आलसी होते हैं और हमें उनके प्रति दयालु होना चाहिए।
  4. सभी के लिए बुनियादी सुविधाएँ और न्यूनतम जीवन स्तर पर सुनिश्चित करना साझी मानवता और मानव अधिकारों की स्वीकृति है।
उत्तर-
  1. सभी नागरिकों को जीवन का मुलभुत बुनियादी स्तर उपलब्ध करवाना अवसरों की समानता सुनिश्चित करने का एक तरीका है।
  1. सभी के लिए बुनियादी सुविधाएँ तथा न्यूनतम जीवन स्तर सुनिश्चित करना सांझी मानवता तथा मानव अधिकारों की स्वीकृति है।