कार्यपालिका - एनसीईआरटी प्रश्न-उत्तर

सीबीएसई कक्षा - 11 राजनीति विज्ञान
एनसीईआरटी प्रश्नोत्तर
पाठ - 4 कार्यपालिका

1. संसदीय कार्यपालिका का अर्थ होता है-
  1. जहाँ संसद हो वहाँ कार्यपालिका का होना
  2. संसद द्वारा निर्वाचित कार्यपालिका
  3. जहाँ संसद कार्यपालिका के रूप में काम करती है
  4. ऐसी कार्यपालिका जो संसद के बहुमत के समर्थन पर निर्भर हो।
उत्तर-
  1. ऐसी कार्यपालिका जो संसद के बहुमत के समर्थन पर निर्भर हो।

2. निम्नलिखित संवाद पढ़ें। आप किस तर्क से सहमत हैं और क्यों?
अमित
- संविधान के प्रावधानों को देखने से लगता है कि राष्ट्रपति का काम सिर्फ ठप्पा मारना है।
शमा- राष्ट्रपति प्रधानमंत्री की नियुक्ति करता है। इस कारण उसे प्रधानमंत्री को हटाने का भी अधिकार होना चाहिए।
राजेश- हमें राष्ट्रपति की ज़रूरत नहीं। चुनाव के बाद, संसद बैठक बुलाकर एक नेता चुन सकती है जों प्रधानमंत्री बने।
उत्तर- इन तीनों संवादों से यह ज्ञात होता है कि संसदीय व्यवस्था में राष्ट्रपति की स्थिति पर चर्चा की गई है।
1) प्रथम संवाद के अंतर्गत राष्ट्रपति को रबर स्टांप बताया गया है, यह संवाद विवादग्रस्त है। संविधान में राष्ट्रपति की व्यापक शक्ति का उल्लेख किया गया है। राष्ट्रपति पद गौरव और गरिमा का पद है।
2) दूसरा कथन प्रधानमंत्री की नियुक्ति पर राष्ट्रपति के अधिकारों को उजागर करता है। इस कथन से मैं सहमत हूँ, क्योंकि भारतीय संविधान में यह उपबंधित है कि प्रधानमंत्री की नियुक्ति देश का राष्ट्रपति करेगा। परंतु इस नियुक्ति के संबंध में वस्तुतः राष्ट्रपति के अधिकार नगण्य हैं। संसदीय प्रणाली के सिद्धांत के अंतर्गत राष्ट्रपति लोकसभा में बहुमत दल के नेता को प्रधानमंत्री नियुक्त करता है। लेकिन कुछ विशेष परिस्थिति में राष्ट्रपति को स्वैच्छिक शक्ति का प्रयोग करने का अधिकार प्राप्त है। उदाहरण ,यदि लोकसभा में किसी दल को स्पष्ट बहुमत प्राप्त न हो तो ऐसी परिस्थिति में राष्ट्रपति अपनी इच्छानुसार संसद के किसी भी सदन के सदस्य को प्रधानमंत्री नियुक्त कर सकता है। इस तरह हम यह कह सकते है की प्रधानमंत्री की नियुक्ति के संबंध में राष्ट्रपति को कुछ विशेषाधिकार प्राप्त हैं जिनका प्रयोग वह अपनी इच्छानुसार कर सकता हैं। इसी तरह उसे किसी विशेष परिस्थिति में प्रधानमंत्री को हटाने का अधिकार भी प्राप्त होना चाहिए ताकि वह परिस्थिति के अनुसार उसका प्रयोग कर सके।
3) तीसरे संवाद के अनुसार राष्ट्रपति की उपस्थिति व्यर्थ बताई गई है। परंतु इस संदर्भ में यह कहना उचित होगा कि आज जिस तरह छोटे-छोटे दल उभर रहे हैं और कई बार किसी भी दल को स्पष्ट बहुमत नहीं मिलता है तो ऐसी स्थिति में राष्ट्रपति की भूमिका महत्त्वपूर्ण हो जाती है। राष्ट्रपति अपने विशेषाधिकार का प्रयोग करते हुए संसद के किसी भी सदन के नेता को सरकार बनाने के लिए आमंत्रित कर सकता है।

3. निम्नलिखित को सुमेलित करें-
  1. भारतीय विदेश सेवा- जिसमें बहाली हो उसी प्रदेश में काम करती है।
  2. प्रादेशिक लोक सेवा- केंद्रीय सरकार के दफ्तरों में काम करती है जो या तो देश की राजधानी में होते हैं या देश में कहीं और।
  3. अखिल भारतीय सेवाएँ- जिस प्रदेश में भेजा जाए उसमें काम करती है, इसमें प्रतिनियुक्ति पर केंद्र में भी भेजा जा सकता है।
  4. केंद्रीय सेवाएँ- भारत के लिए विदेशों में कार्यरत।
उत्तर-
  1. भारतीय विदेश सेवा- भारत के लिए विदेशों में कार्यरत।
  2. प्रादेशिक लोक सेवा- जिसमें बहाली हो उसी प्रदेश में काम करती है।
  3. अखिल भारतीय सेवाएँ- जिस प्रदेश में भेजा जाए उसमें काम करती है। इसमें प्रतिनियुक्ति पर केंद्र में भी भेजा जा सकता है।
  4. केंद्रीय सेवाएँ- केंद्रीय सरकार के दफ्तरों में काम करती है जो या तो देश की राजधानी में होते हैं या देश में कहीं और।

4. उस मंत्रालय की पहचान करें जिसमें निम्नलिखित समाचार को जारी किया गया होगा। यह मंत्रालय प्रदेश की सरकार का है या केंद्र सरकार का और क्यों?
  1. एक सरकारी आदेश के अनुसार सन् 2004-05 में तमिलनाडु पाठ्यपुस्तक निगम कक्षा 7, 10 और 11 की नई पुस्तकें जारी करेगा।
  2. भीड़ भरे तिरूवल्लूर-चेन्नई खंड में लौह-अयस्क निर्यातकों की सुविधा के लिए एक नई रेल लूप लाइन बिछाई जाएगी। नई लाइन लगभग 80 कि.मी. की होगी। यह लाइन पुट्टुर से शुरू होगी और बंदरगाह के निकट अतिपट्टु तक जाएगी।
  3. रमयमपेट मंडल में किसानों की आत्महत्या की उप-विभागीय समिति ने पाया कि इस माह आत्महत्या करने वाले दो किसान फसल के मारे जाने से आर्थिक समस्याओं का सामना कर रहे थे।
उत्तर-
  1. यह समाचार राज्य मंत्रिमंडल द्वारा जारी किया गया है, जो राज्य सरकार के अधीन शिक्षा मंत्रालय के कार्यक्षेत्र में आता है। ये पुस्तकें इसलिए जारी करेगा क्योंकि सन् 2004-05 में नए सत्र का आरंभ होगा जिसमें तमिलनाडु पाठ्यपुस्तक निगम कक्षा 7, 10 और 11 में नई पुस्तकें होंगी।
  2. यह समाचार रेल मंत्रालय द्वारा जारी किया गया है। यह कार्य केंद्र सरकार के अंतर्गत रेल मंत्रालय द्वारा लौह-अयस्क निर्यातकों की सुविधा को ध्यान में रखकर किया गया है।
  3. यह समाचार भी राज्य मंत्रिमंडल के अधीन कृषि मंत्रालय द्वारा जारी किया गया है। यह विषय समवर्ती सूची में आता है। उस आधार पर केंद्र सरकार राज्य के माध्यम से किसानों की विभिन्न प्रकार की योजनाओं के द्वारा सहायता प्रदान कर सकती है।

5. प्रधानमंत्री की नियुक्ति करने में राष्ट्रपति-
  1. लोकसभा के सबसे बड़े दल के नेता को चुनता है।
  2. लोकसभा के बहुमत अर्जित करने वाले गठबंधन दलों में सबसे बड़े दल के नेता को चुनता है।
  3. राज्यसभा के सबसे बड़े दल के नेता को चुनता है।
  4. गठबंधन अथवा उस दल के नेता को चुनता है जिसे लोकसभा में बहुमत का समर्थन प्राप्त हो।
उत्तर-
  1. गठबंधन अथवा उस दल के नेता को चुनता है जिसे लोकसभा में बहुमत का समर्थन प्राप्त हो।

6. इस चर्चा को पढ़कर बताएँ कि कौन-सा कथन भारत पर सबसे ज़्यादा लागू होता है-
आलोक
- प्रधानमंत्री राजा के समान है। वह हमारे देश में हर बात का फैसला करता है।
शेखर- प्रधानमंत्री सिर्फ 'समान हैसियत के सदस्यों में प्रथम' है। उसे कोई विशेष अधिकार प्राप्त नहीं। सभी मंत्रियों और प्रधानमंत्री के अधिकार बराबर हैं।
बॉबी- प्रधानमंत्री को दल के सदस्यों तथा सरकार को समर्थन देने वाले सदस्यों का ध्यान रखना पड़ता है। के चयन में प्रधानमंत्री की बहुत ज़्यादा चलती है।
उत्तर- बॉबी द्वारा व्यक्त किया गया कथन भारत पर सबसे ज़्यादा लागू होता है। देश का प्रधानमंत्री बहुमत दल का नेता होने के साथ-साथ व्यवस्थापिका का प्रधान भी होता है। उसकी शक्ति असीम है।

7, क्या मंत्रिमंडल की सलाह राष्ट्रपति को हर हाल में माननी पड़ती है? आप क्या सोचते हैं? अपना उत्तर अधिकतम 100 शब्दों में लिखें।
उत्तर- 
संविधान के द्वारा संसदीय शासन प्रणाली के द्वारा राष्ट्रपति शासन अथवा कार्यपालिका का संवैधानिक प्रधान होता है। वास्तविक शक्ति प्रधानमंत्री एवं मंत्रिमंडल के हाथों में निहित रहती है। संविधान के अनुच्छेद 75(1) के अनुसार राष्ट्रपति को सलाह देने के लिए एक मंत्रिपरिषद् होगी जिसका प्रधान देश का प्रधानमंत्री होगा और राष्ट्रपति अपने अधिकारों का प्रयोग उसी की सलाह के अनुसार कार्य करेगा।
राष्ट्रपति किसी वीसी के सन्दर्भ में पुनः विचार के लिए बोल सकता है साथ ही मंत्रिपरिषद् द्वारा पुनर्विचार के बाद जो सलाह दी जाती है उसके अनुसार राष्ट्रपति कार्य करने के लिए मज़बूर होता है। इस प्रकार उपर्युक्त तथ्यों के आधार पर कहा जा सकता है कि राष्ट्रपति को हर हाल में मंत्रिमंडल की सलाह मानने के लिए बाध्य होना पड़ता है।

8. संसदीय-व्यवस्था ने कार्यपालिका को नियंत्रण में रखने के लिए विधायिका को बहुत-से अधिकार दिए हैं। कार्यपालिका को नियंत्रित करना इतना ज़रूरी क्यों है? आप क्या सोचते हैं?
उत्तर- 
भारतीय संविधान के द्वारा सुशासन के लिए व विकासशील लोकतंत्र के लिए शक्तियों का विभाजन किया गया है और इसके अंतर्गत संसदीय शासन की व्यवस्था के द्वारा सरकार के तीन प्रमुख अंग हैं-कार्यपालिका, विधायिका और न्यायपालिका। कार्यपालिका और विधायिका का निर्माण जनता द्वारा निर्वाचित प्रतिनिधियों के माध्यम से किया जाता है और इन्हीं प्रतिनिधियों के माध्यम से कार्यपालिका पर नियंत्रण किया जाता है। कार्यपालिका सरकार का सबसे महत्त्वपूर्ण अंग है जिसका प्रधान राष्ट्रपति होता है। संविधान के अंतर्गत कार्यपालिका को अनेक शक्तिया प्रदान की गई है । परंतु इसकी शक्ति को विधायिका के अधीन कर दिया गया है। इसके अंतर्गत एक मंत्रिपरिषद् होती है जिसका प्रधान देश का प्रधानमंत्री होता है। संविधान में यह स्पष्ट रूप से उल्लिखित है कि संसद में (साधारणतः लोकसभा) जिस राजनीतिक दल के नेता को स्पष्ट बहुमत होगा, उसी का नेता देश का प्रधानमंत्री नियुक्त होगा और फिर वही मंत्रिमंडल का निर्माण करेगा। जैसा कि पूर्व में ही बताया जा चुका है कि भारत में संसदात्मक शासन प्रणाली की स्थापना की गई है। इसलिए संसद को कार्यपालिका पर नियंत्रण रखने का अधिकार प्रदान किया गया है। इसके साथ ही विधायिका उसके अनेक अधिकारों के द्वारा से कार्यपालिका को नियंत्रित करती है। ऐसा करना आवश्यक भी है, क्योंकि कार्यपालिका देश के शासन का सबसे प्रमुख अंग है। इसकी शक्ति असीमित है। इसका प्रधान राष्ट्रपति होता है। चूँकि राष्ट्रपति जनता द्वारा निर्वाचित नहीं होता है अतः वह जनता के प्रति उत्तरदायी भी नहीं हो सकता है। यदि कार्यपालिका को विधायिका नियंत्रण में न रखे तो इसके निरंकुश होने की संभावना अत्यधिक हो जाती है। राष्ट्रपति तानाशाह बन सकता है। वह कोई भी असंवैधानिक कार्य कर सकता है। परंतु विधायिका का नियंत्रण होने से उसमें यह भय बना रहता है कि यदि ऐसा किया गया तो संसद अथवा विधायिका अविश्वास का प्रस्ताव पारित कर कार्यपालिका को भंग कर सकती है।

9. कहा जाता है कि प्रशासनिक-तंत्र के कामकाज में बहुत ज़्यादा राजनीतिक हस्तक्षेप होता है। सुझाव के तौर पर कहा जाता है कि ज़्यादा से ज़्यादा स्वायत्त एजेंसियाँ बननी चाहिए जिन्हें मंत्रियों को जवाब न देना पड़े।
  1. क्या आप मानते हैं कि इससे प्रशासन ज्यादा जन-हितैषी होगा?
  2. क्या इससे प्रशासन की कार्यकुशलता बढ़ेगी?
  3. क्या लोकतंत्र का अर्थ यह होता है कि निर्वाचित प्रतिनिधियों का प्रशासन पर पूर्ण नियंत्रण हो?
उत्तर-
  1. यह हमेशा से माना जाता रहा है की भारत एक लोक कल्याणकारी देश है, जहाँ प्रशासनिक तंत्र जनता और सरकार के मध्य कड़ी का काम करता है। सरकार द्वारा जनहित में बनाए गए कानून इसी तंत्र के माध्यम से जनता तक पहुँचते हैं। परंतु प्रशासनिक तंत्र अथवा नौकरशाही इतनी शक्तिशाली होती है कि जनसाधारण प्रशासनिक अधिकारियों तक नहीं पहुँच पाते हैं तथा नौकरशाही भी आम नागरिकों की माँगों और आशाओं के प्रति संवेदनशील नहीं होती है। परंतु लोकतंत्रीय ढंग से निर्वाचित सरकार नौकरशाही को नियत्रित करती है, जिससे कुछ समस्याओं को प्रभावी तरीके से हल किया जा सकता है। लेकिन यह भी माना जाता है की नौकरशाही राजनीतिज्ञों के हाथ ह का खिलौना बनकर रह जाती है। अतः तमाम समस्याओं के निदान के लिए यह सुझाव दिया जा सकता है कि स्वायत एजेंसियाँ स्थापित होनी चाहिए। इस तरह की एजेंसियाँ प्राय: सरकार अथवा राजनीतिज्ञ हस्तक्षेप से मुक्त रहती हैं।
  2. स्वायत एजेंसियाँ स्थापित होने से प्रशासन की कार्य कुशलता अवश्य बढ़ेगी। क्योंकि राजनीतिक हस्तक्षेप से इनका कार्य बहुत प्रभावित होता है और प्रशासनिक अधिकारी कोई भी कार्य स्वतंत्र एवं स्वच्छ वातावरण में नहीं कर पाते हैं। स्वायत्त एजेंसियों के स्थापित होने से ये अपना कार्य अधिक से अधिक कुशलता पूर्वक करेंगे।
  3. लोकतंत्र का मूल अर्थ जनता द्वारा चुनी गई सरकार द्वारा मन जाता है, जहाँ शासन का संचालन जनता की इच्छाओं एवं आकांक्षाओं के अनुरूप हो। परंतु प्रतिनिधियों का प्रशासन पर पूर्ण नियंत्रण हो, यह उचित नहीं है। क्योंकि प्रशासनिक तंत्र एक स्वतंत्र निकाय है। यह सरकार द्वारा अपनी नई नीतियों को क्रियात्मक रूप प्रदान करता है।
यदि यह राजनीतिज्ञों के नियंत्रण में हो जाएगा तो पूरी व्यवस्था चरमरा जाएगी और जनता की उपेक्षा होने लगेगी।

10. नियुक्ति आधारित प्रशासन की जगह निर्वाचन आधारित प्रशासन होना चाहिए-इस विषय पर 200 शब्दों में एक लेख लिखों।
उत्तर- 
इस प्रश्न के अंतर्गत यह खा जा सकता है कि नियुक्ति आधारित प्रशासन की जगह निर्वाचन आधारित प्रशासन होना सर्वथा अनुचित होगा। क्योंकि भारत जैसे बड़े लोकतांत्रिक देश, जहाँ कि जनसंख्या ही लगभग एक अरब से अधिक है और जहाँ कि लोकतांत्रिक व्यवस्था अभूतपूर्व लेकिन प्रशासनिक कार्य कुशलता की श्रेणी में विश्व के भ्रष्टतम देशों की श्रेणी में आता है, वहाँ निर्वाचन पद्धति को आधार बनाकर नियुक्ति करने का कोई उद्देश्य नहीं है। क्योंकि इससे सत्ता में भ्रष्ट नेताओं को, जो अपने-अपने क्षेत्र की जनता का अधिकारी बनाने का मौका मिल जाएगा। जिसके द्वारा वे प्रशासनिक मामले में अधिक से अधिक हस्तक्षेप करने लगेंगे। वस्तुतः ऐसा करना कतई सही नहीं होगा क्योंकि अपराध से ग्रस्त इस देश में अपराधी न सिर्फ खुली हवा में इन नेताओं और प्रशासनिक अधिकारियों की मिलीभगत से घूम सकेंगे बल्कि इससे अपराध का ग्राफ भी काफी बढ़ेगा।
दूसरी मुख्य बात यह है कि प्रशासनिक अधिकारियों की नियुक्ति एक स्वतंत्र निकाय के माध्यम से परीक्षाओं के द्वारा होने से प्रतिभागियों की विभागीय क्षमता और प्रशासनिक कार्य कुशलता को आँका जाता है। इसके साथ-साथ उनसे ये अपेक्षा भी की जाती है कि वे विपरीत से विपरीत परिस्थितियों में भी इस विशाल देश की जनता की भावनाओं और संवेदनाओं का आदर करते हुए अपनी कार्यक्षमता का परिचय दें और विषम से विषम परिस्थितियों का सामना अच्छे रूप से करें, जो निर्वाचन आधारित प्रशासन के द्वारा बिलकुल भी संभव नहीं है।