राष्ट्रीय आय तथा संबद्ध समाहार - नोट्स

CBSE कक्षा 12 अर्थशास्त्र
पाठ - 2 राष्ट्रीय आय का लेखांकन

पुनरावृत्ति नोट्स

स्मरणीय बिन्दु-
वस्तुएँ- अर्थशास्त्र में वस्तुएँ वे सभी भौतिक पदार्थ (मानव निर्मित) तथा सेवाएँ होती हैं जिनका कोई बाज़ार मूल्य होता है। वस्तुएँ दृश्य मदें होती हैं जैसे पुस्तक, पेन, वस्त्र आदि।
सेवाएँ- वह आर्थिक क्रिया जो अदृश्य है, भण्डार नहीं की जा सकती तथा इसमें स्वामित्व नहीं होता। जैसे बैंकिंग, इंश्योरेंस, डाक सेवा आदि।
उपभोक्ता वस्तुएँ- वे अंतिम वस्तुएँ जो प्रत्यक्ष रूप से उपभोक्ता की मानवीय आवश्यकताओं की पूर्ति करता है। उपभोक्ता द्वारा क्रय की गई वस्तुएँ और सेवाएँ उपभोक्ता वस्तुएँ हैं।
पूँजीगत वस्तुएँ- ये वे अंतिम वस्तुएँ हैं जो उत्पादन में सहायक होती हैं तथा आय सृजन के लिए प्रयोग की जाती हैं। उत्पादन प्रक्रिया में ये पूरी तरह समाप्त नहीं होती।
निवेश- एक निश्चित समय में पूँजीगत व्स्तुएओन के स्टॉक में वृद्धि निवेश कहलाता है। इसे पूँजी निर्माण भी कहते हैं।
मूल्यह्रास- सामान्य टूट-फूट या अप्रचलन के कारण अचल परिसंपत्तियों के मूल्य में गिरावट को मूल्यह्रास या अचल पूँजी का उपभोग कहते हैं। मूल्यह्रास, स्थायी पूँजी के मूल्य को उसकी अनुमानित आयु (वर्षों में) से भाग करके ज्ञात किया जाता है।
सकल निवेश- एक निश्चित समयावधि में पूँजीगत वस्तुओं के स्टॉक में कुल वृद्धि सकल निवेश कहलाती है। इसमें मूल्यह्रास शामिल होता है।
निवल निवेश- एक अर्थव्यवस्था में एक निश्चित समयावधि में पूँजीगत वस्तुओं के स्टॉक में शुद्ध वृद्धि निवल निवेश कहलाता है। इसमें मूल्यह्रास शामिल नहीं होता है।
निवल निवेश = सकल निवेश - घिसावत (मूल्यह्रास)
हस्तांतरण भुगतान- यह एक पक्षीय भुगतान होते हैं जिनके बदले में कुछ नहीं मिलता है। बिना किसी उत्पादन सेवा के प्राप्त आय। जैसे वृद्धावस्था पेशन, कर, छात्रवृत्ति आदि।
पूँजीगत लाभ- पूँजीगत सम्पत्तियों तथा वित्तीय सम्पत्तियों के मूल्य में वृद्धि, जो समय बीतने के साथ होती है, यह क्रय मूल्य से अधिक मूल्य होता है। यह सम्पत्ति की बिक्री के समय प्राप्त होता है।
कर्मचारियों का पारिश्रमिक: श्रम साधन द्वारा उत्पादन प्रक्रिया में प्रदान की गई साधन सेवाओं के लिए किया गया भुगतान (नगर व वस्तु) कर्मचारियों का पारिश्रमिक कहलाता है। इसमें वेतन, मजदूरी, बोनस, नियोजकों द्वारा सामाजिक सुरक्षा में योगदान शामिल होता है।
परिचालन अधिशेष: उत्पादन प्रक्रिया में श्रम को कर्मचारियों का पारिश्रमिक का भुगतान करने के पश्चात् जो राशि बचती है। यह किराया, ब्याज व लाभ का योग होता है।
चालू कीमत पर राष्ट्रीय आय व स्थिर कीमत पर राष्ट्रीय आय
(National Income at Current Prices & Constant Prices)
  • चालू कीमतों पर राष्ट्रीय आय जब किसी वर्ष में उत्पादित अंतिम पदार्थ व सेवाओं का मूल्य, उसी वर्ष की बाज़ार कीमतों पर आँका जाता है तो उसे चालू कीमतों पर राष्ट्रीय आय कहते हैं।
  • स्थिर कीमतों पर राष्ट्रीय आय जब किसी वर्ष में उत्पादित अंतिम पदार्थ व सेवाओं का मूल्य, आधार वर्ष की कीमतों पर आँका जाता हैं, तो उसे स्थिर कीमतों पर राष्ट्रीय आय कहते हैं।
मध्यवर्ती वस्तुएँ व अंतिम वस्तुएँ (Intermediate Goods & Final Goods)
  • मध्यवर्ती वस्तुएँ वे वस्तुएँ हैं जो एक लेखा वर्ष में (i) उत्पादन में कच्चे माल के रूप में उपयोग के लिए या (ii) पुनः बिक्री के लिए खरीदी जाती हैं, मध्यवर्ती वस्तुएँ कहलाती हैं।
  • अंतिम वस्तुएँ वे वस्तुएँ हैं जो (i) उपभोक्ताओं द्वारा उपभोग के लिए या (ii) उत्पादकों द्वारा निवेश के लिए उपलब्ध होती हैं अंतिम वस्तुएँ कहलाती हैं।
  • राष्ट्रीय आय की गणना में केवल अंतिम वस्तुओं का मूल्य शामिल किया जाता है। मध्यवर्ती वस्तुओं का नहीं, क्योंकि ये पहले ही अंतिम वस्तु में शामिल होती है।
प्रवाह एवं स्टॉक अवधारणाएँ (Flows & Stoks Concepts)
  • प्रवाह चर, प्रवाह एक ऐसी मात्रा है जिसे समय अवधि जैसे-घंटे, दिन, सप्ताह, मास, वर्ष आदि के आधार पर मापा जाता है। प्रवाह के उदाहरण हैं-व्यय, बचत, पूँजी, निर्माण, पूँजीह्रास, ब्याज, मुद्रा की पूर्ति में परिवर्तन।
  • स्टॉक एक ऐसी मात्रा है जो किसी निश्चित समय बिंदु पर मापी जाती है। स्टॉक के उदाहरण है-संपत्ति, विदेशी ऋण, ऋण की मात्रा, उपस्कर आदि-आदि।
आर्थिक (घरेलू) सीमा (Domestic Territory)
आर्थिक सीमा से अभिप्राय 'किसी देश की सरकार द्वारा प्रशासित उस भौगोलिक सीमा से है जिसमें व्यक्ति, वस्तु तथा पूँजी का प्रवाह निवधि रूप से होता है।
आर्थिक सीमा क्षेत्र
  1. राजनैतिक, समुद्री व हवाई सीमा।
  2. विदेशों में स्थित दूतावास, वाणिज्य दूतावास, सैनिक प्रतिष्ठान, राजनयिक भवन आदि।
  3. जहाज तथा वायुयान जो दो देशों के बीच आपसी सहमति से चलाए जाते हैं।
  4. मछली पकड़ने की नौकाएँ तेल व गैस निकालने वाले याँ तथा तैरने वाले प्लेटफार्म जो देशवासियों द्वारा चलाए जाते हैं।
देश के सामान्य निवासी (Normal Residents of a Country)
एक देश के निवासी से आशय (उस व्यक्ति या संस्था) से हैं जो सामान्यतः उस देश में रहता है जिसमें उसके आर्थिक हित केंन्द्रित होते हैं।
अचल पूँजी का उपभोग या मूल्यह्रास (Consumption of Fixed Capital or Depreciation)
सामान्य टूट-फूट व प्रायश्चित अप्रचलन के कारण अचल परिसंपत्तियों के मूल्य में गिरावट को स्थायी पूँजी का उपभांग कहत हैं।
साधन लागत और बाज़ार कीमत (FC + शुद्ध अप्रत्यक्ष कर NIT = MP)
(Factor Cost & Market Price)
  • उत्पादन के साधनों की किसी वस्तु के उत्पादन में योगदान देने के बदले में जो कुछ भुगतान किया जाता हैं उसे साधन लागत कहते हैं।
  • बाज़ार कीमत-जिस कीमत पर एक वस्तु बाज़ार में खरीदी या बेची जाती है, वह वस्तु की बाज़ार कीमत कहलाती हैं।
विदेशों से शुद्ध साधन आय (Net Factor Income from Abroad)
देश के सामान्य निवासियों द्वारा शेष विश्व की प्रदान की गई साधन सेवाओं से आय घटा (-) शेष विशेष द्वारा उन्हें प्रदान की गई सेवाओं से आय को विदेशों से शुद्ध साधन आयें कहते हैं।
उत्पादन का मूल्य और मूल्य वृद्धि (Value of Output & Value added)
एक लेखा वर्ष में उद्यम द्वारा उत्पादित सभी पदार्थ व सेवाओं का बाजार मूल्य, उत्पादन का मूल्य माना जाता है।
उत्पादन का मूल्य = बेचीं गई इकाई × बाज़ार कीमत + स्टॉक में परिवर्तन
साधन भुगतान (आय और अंतरण भुगतान आय) (Factor Income & Transfer Income)
  • उत्पादन में साधन सेवाएँ देने के बदले उत्पादन के साधनों को जो भुगतान किया जाता है उसे साधन भुगतान या साधन आय कहते हैं। जैसे-लगान, मजदूरी, ब्याज, लाभ साधन आय हैं।
  • वे भुगतान उत्पादन में योगदान दिए बिना प्राप्त होते हैं, अंतरण भुगतान या अंतरण आय कहलाती है। अंतरण छात्रवृत्ति, बेरोजगारी भत्ता, अकाल-भूकंप-बाढ़ आदि में सहायता। भुगतान को राष्ट्रीय आय में शामिल किया जाता है जबकि अंतरण भुगतान को शामिल नहीं किया जाता है।
आय के चक्रीय प्रवाह (Circular Flows of Income)
अर्थव्यवस्था के प्रमुख क्षेत्रों (जैसे परिवार, फर्म, सरकारी क्षेत्र) के बीच मुद्रा और पदार्थ व सेवाओं के निरंतर प्रवाह को आय का चक्रीय प्रवाह कहते हैं।
उत्पाद विधि (Output Method)
उत्पाद विधि को औद्योगिक उद्यगम विधि या मूल्यवृद्धि विधि भी कहा जाता है। यह विधि है जो एक लेखा वर्ष के दौरान एक अर्थव्यवस्था में प्रत्येक उत्पादन उद्यम द्वारा की गई मूल्य वृद्धि की योग के रूप में नाप है।
दोहरी गणना की समस्या (Problem of Double Counting)
राष्ट्रीय आय की गणना करते समय जब एक वस्तु के मूल्य की गणना एक से अधिक बार की जाती है, तो इसे दोहरी गणना की समस्या कहा जाता हैं।
आय विधि (Income Method)
आय विधि के अन्तर्गत राष्ट्रीय आय का मापन उत्पादन के साधनों (भूमि, श्रम, पूँजी, उद्यम) को लगान, मजदूरी ब्याज लाभ के रूप में किये गए भुगतान के आधार पर करती है।
व्यय विधि (Expenditure Method)
व्यय विधि राष्ट्रीय आय की गणना की तीसरी विधि है इस विधि का 'उपभोग-निवेश शेष' भी कहा जाता है। इसके अंतर्गत एक लेखा वर्ष में अर्थव्यवस्था के समस्त अंतिम व्ययों को जोड़ करके राष्ट्रीय आय की गणना की जाती है।
निजी आय (Private Income)
निजी आय से अभिप्राय उस आय से है जो निजी क्षेत्र को एक लेखा वर्ष में देश-विदेश के सभी स्थानों से प्राप्त कारक आय तथा सरकार और शेष विश्व से प्राप्त वर्तमान हस्तांतरण भुगतानों का जोड़ है।
वैयक्तिक आय (Personal Income)
वैयक्तिक आय किसी देश के व्यक्तियों व परिवारों को एक लेखा वर्ष में सभी स्रोतों से वास्तव में प्राप्त कारक आय तथा वर्तमान हस्तांतरण भुगतान का जोड़ है।
राष्ट्रीय प्रयोज्य आय (National Disposable Income)
राष्ट्रीय प्रयोज्य आय से अभिप्राय किसी देश की बाजार कीमत पर उस निवल आय से है जो देश को खर्च करने के लिए उपलब्ध होती है।
वैयक्तिक प्रयोज्य आय (Personal Disposable Income)
वैयक्तिक प्रयोज्य आय वह आय है जिसे लोग अपनी इच्छानुसार खर्च कर सकते हैं अथवा बचाकर रख सकते हैं, वैयक्तिक प्रयोज्य आय कहलाता है।
घरेलू समाहार
  • बाज़ार कीमत पर सकल घरेलू उत्पाद (GDPMP): एक वर्ष की अवधि में देश के भौगोलिक सीमा के अन्तर्गत उत्पादित समस्त अंतिम वस्तुओं एवं सेवाओं के बाजार मूल्यों के योग को बाजार कीमत पर सकल घरेलू उत्पाद कहते हैं।
  • बाजार कीमत पर निवल देशीय उत्पाद (NDPMP):
    NDPMP = GDPMP - मूल्यह्रास
  • देशीय आय (NDPFC): एक देश की घरेलू सीमा में एक लेखा वर्ष में उत्पादन कारकों की आय का योग, जो कारकों द्वारा प्रदान की गई सेवाओं के बदले प्राप्त होती है की दशीय आय कहते हैं।
    NDPFC = GDPMP - मूल्यह्रास - निवल अप्रत्यक्ष कर।
राष्ट्रीय समाहार
  • बाजार कीमत पर सकल राष्ट्रीय उत्पाद (GNPMP): एक देश को सामान्य निवासियों द्वारा एक वर्ष में देश की घरेलू सीमा व विदेशों में उत्पादित अंतिम वस्तुओं व सेवाओं के बाजार मूल्यों के योग को GNPMP कहते हैं।
    बाजार कीमत पर निवल राष्ट्रीय उत्पाद (NNPMP)- NNPMP = GNPMP - मूल्यह्रास
  • राष्ट्रीय आय (NNPFC): एक देश के सामान्य निवासियों द्वारा एक लेखा वर्ष में देश की घरेलू सीमा व शेष विश्व से अर्जित साधन आय का योग राष्ट्रीय आय कहलाती है।
    NNPFC = NDPFC + NFIA = राष्ट्रीय आय
  • क्षरण: आय के चक्रीय प्रवाह से निकाली गई राशि (मुद्रा के रूप में) की क्षरण कहते हैं; जैसे कर, बचत तथा आयात को क्षरण कहते हैं।
  • भरण: आय के चक्रीय प्रवाह में डाली गई राशि (मुद्रा की मात्रा) को भरण कहते हैं; जैसे निवेश, सरकारी व्यय, निर्यात।
  • वर्धित मूल्य (मूल्यवृद्धि): किसी उत्पादन इकाई द्वारा निश्चित समय में किए गए उत्पादन को मूल्य तथा प्रयुक्त मध्यवर्ती उपभोग को मूल्य का अंतर वर्धित मूल्य कहलाता है।
  • दोहरी गणना की समस्या: 'राष्ट्रीय आय आकलन में जब किसी वस्तु का मूल्य एक से अधिक बार गणना की जाती है उसे दोहरी गणना कहते हैं। इससे राष्ट्रीय आय अधिमूल्यांकन दर्शाता है। इसलिए इसे दोहरी गणना की समस्या कहते हैं।
कुछ महत्वपूर्ण समीकरण
  • सकल = निवल (शुद्ध) + मूल्यह्वास (स्थायी पूँजी का उपभोग)
  • राष्ट्रीय = घरेलू + विदेशों से प्राप्त निवल साधन आय।
  • बाजार कीमत = साधन लागत + निवल अप्रत्यक्ष कर (NIT)
  • निवल अप्रत्यक्ष कर (NIT) = अप्रत्यक्ष कर - सहायिकी (आर्थिक सहायता)
  • विदेशों से शुद्ध साधन आय (कारक) = विदेशों से साधन आय - विदेशों से साधन आय
राष्ट्रीय आय अनुमानित (मापने) करने की विधियाँ
आय विधि
  • प्रथम चरण
    साधन लागत पर निवल घरेलू उत्पाद/निवल घरेलू साधन आय (NDPFC) = कर्मचारियों का पारिश्रमिक + प्रचालन अधिशेष + स्वयं नियोजितों की मिश्रित आय।
  • द्वितीय चरण
    साधन लागत पर निवल राष्ट्रीय उत्पाद / राष्ट्रीय आय = साधन लागत पर निवल घरेलू उत्पाद + विदेशों से प्राप्त निवल साधन आय।\
    NNPFC = NDPFC + NFIA
उत्पाद विधि / वर्धित मूल्य विधि
  • प्रथम चरण
    बाजार कीमत पर सकल घरेलू उत्पाद = प्राथमिक क्षेत्र द्वारा सकल वर्धित मूल्य + द्वितीयक क्षेत्र द्वारा सकल वर्धित मूल्य + तृतीयक क्षेत्र द्वारा सकल वर्धित मूल्य।
    या
    बाजार कीमत पर सकल घरेलू उत्पाद (GDPMP) = बिक्री + स्टॉक में परितर्वन - मध्यवर्ती उपभोग।
  • द्वितीय चरण
    बाजार कीमत पर निवल घरेलू उत्पाद NDPMP = बाजार कीमत पर सकल घरेलू उत्पाद GDPMP - मूल्यह्रास।
  • तृतीय चरण
    साधन लागत पर निवल घरेलू उत्पाद (NDPFC) = बाजार कीमत पर निवल घरेलू उत्पाद (NDPMP) - शुद्ध अप्रत्यक्ष कर (NIT)
  • चतुर्थ चरण
    साधन लागत पर निवल राष्ट्रीय उत्पाद / राष्ट्रीय आय (NNPFC) = साधन लागत पर निवल घरेलू उत्पाद (NDPFC) + विदेशों से प्राप्त निवल साधन आय (NFIA)
व्यय विधि
  • प्रथम चरण
    बाजार कीमत पर सकल घरेलू उत्पाद = निजी अंतिम उपयोग व्यय + सरकारी अंतिम उपयोग व्यय + सकल घरेलू पूंजी निर्माण + शुद्ध/निवल निर्यात्
    GDPMP = C + G + I + (X - M)
  • द्वितीय चरण
    बाजार कीमत पर निवल घरेलू उत्पाद (NDPMP) = बाजार कीमत पर सकल घरेलू उत्पाद (GDPMP) - मूल्यह्रास।
  • तृतीय चरण
    साधन लागत पर निवल घरेलू उत्पाद (NDPFC) = बाजार कीमत पर निवल घरेलू उत्पाद (NDPMP) - शुद्ध अप्रत्यक्ष कर (NIT)
  • चतुर्थ चरण
    साधन लागत पर निवल राष्ट्रीय उत्पाद/राष्ट्रीय आय (NNPFC) = साधन लागत पर निवल घरेलू उत्पाद (NDPFC) + विदेशों से प्राप्त निवल साधन आय (NFIA)
विदेशों से प्राप्त निवल साधन आय (NFIA)
देश के सामान्य निवासियों द्वारा विदेशों को प्रदान की गई साधन सेवाओं से प्राप्त आय तथा विदेशों को दी गई साधन आय के बीच के अंतर को विदेशों से प्राप्त निवल साधन आय कहते हैं। इसके निम्न घटक होते हैं-
  1. कर्मचारियों का निवल पारिश्रमिक
  2. सम्पत्ति तथा उद्यमवृत्ति से निवल आय तथा
  3. विदेशों से निवासी कम्पनियों की शुद्ध प्रतिधारित आय।
चालू हस्तांतरण- वह गैर-अर्जित आय जो देने वाले (Doner) के चालू आय में से निकलता है और प्राप्त करने वाले (Recipient) के चालू आय में जोड़ा जाता है, उसे चालू हस्तांतरण आय कहते हैं।
पूंजीगत हस्तांतरण- वह गैर-अर्जित आय जो देने वाले के धन तथा पूँजी से निकलता है तथा प्राप्त करने वाले के धन तथा पूँजी में शामिल होता है, उसे पूंजीगत हस्तांतरण कहते हैं।
मूल्यवर्घिट या उत्पाद विधि के अनुसार घटकों का संक्षिप्त सार
  • प्राथमिक क्षेत्र द्वारा मूल्यवर्धित (= उत्पाद का मूल्य - मध्यवर्ती उपभोग)
  • द्वितीयक क्षेत्र द्वारा मूल्यवर्धित (= उत्पाद का मूल्य - मध्यवर्ती उपभोग)
  • तृतीयक क्षेत्र द्वारा मूल्यवर्धित उत्पाद का मूल्य मध्यवर्ती उपभोग
उत्पादन का मूल्य
  • बिक्री + स्टॉक में परिवर्तन
  • बाजार कीमत × बेचीं गई मात्रा + स्टॉक में परिवर्तन
    टिप्पणी:- स्टॉक में परिवर्तन = अंतिम स्टॉक - प्रारंभिक स्टॉक
व्यय विधि के अनुसार बाज़ार कीमत पर सकल घरेलू उत्पाद के घटकों का संक्षितसार
  • निजी अंतिम उपयोग व्यय
  • सरकारी अंतिम उपभोग व्यय
  • सकल घरेलू पूँजी निर्माण
    • सकल सार्वजनिक निवेश
    • सकल आवासीय निर्माण निवेश
    • सकल व्यावसायिक निवेश
    • इनवेन्ट्री निवेश
  • शुद्ध निर्यात
सकल घरेलू उत्पाद एवं कल्याण
  • सामान्यतः सकल घरेलू उत्पाद एवं कल्याण में प्रत्यक्ष संबंध होता है। उच्चतर GDP का अर्थ है वस्तुओं एवं सेवाओं के अधिक उत्पादन का होना। इसका तात्पर्य है कि वस्तुओं एवं सेवाओं की अधिक उपलब्धता। परन्तु इसका अर्थ यह निकालना कि लोगों का कल्याण पहले से अच्छा है, आवश्यक नहीं है। दूसरे शब्दों में, उच्चतर GDP का तात्पर्य लोगों के कल्याण में वृद्धि का होना, आवश्यक नहीं है।
    GDP दो प्रकार का होता है।
    • वास्तविक GDP: एक देश क भौगोलिक सीमा क अंतर्गत एक वर्ष की अवधि में उत्पादित सभी अंतिम वस्तओं एवं सेवाओं का, यदि मूल्यांकन आधार वर्ष की कीमतों (स्थिर कीमतों) पर किया जाता है तो उसे वास्तविक सकल घरेलू उत्पाद कहते हैं। इसे स्थिर कीमतों पर सकल घरेलू उत्पाद भी कहते हैं। यह केवल उत्पादन मात्रा में परिवर्तन के कारण परिवर्तित होता हैं इसे आर्थिक विकास का एक सूचक माना जाता है।
    • मौद्रिक GDP: एक देश को भौगोलिक सीमा को अंतर्गत एक वर्ष की अवधि में उत्पादित सभी अंतिम वस्तुओं एवं सेवाओं का, यदि मूल्यांकन चालू वर्ष की कीमतों (चालू कीमतों) पर किया जाता है तो उसे मौद्रिक GDP कहते हैं। इसे चालू कीमतों पर GDP भी कहते हैं। यह उत्पादन मात्रा तथा कीमत स्तर दोनों में परिवर्तन से प्रभावित होता है। इसे आर्थिक विकास का एक सूचक नहीं माना जाता है।
      मौद्रिक GDP का वास्तविक GDP में रूपांतरण
      वास्तविक GDP = मौद्रिक GDP / कीमत सूचकांक × 100
      चूँकि कीमत सूचकांक चालू कीमत अनुमानों को घटाकर स्थिर कीमत अनुमान के रूप में लाने हेतु एक अपस्फायक की भूमिका अदा करता है। इसलिए इसे सकल घरेलू उत्पाद अपस्फायक कहा जाता है।
  • कल्याण: इसका तात्पर्य लोगों के भौतिक सुख-सुविधाओं से है। यह अनेक आर्थिक एवं गैर-आर्थिक कारकों पर निर्भर करता है। आर्थिक कारक जैसे राष्ट्रीय आय, उपभोग का स्तर आदि और गैर-आर्थिक कारक जैसे पर्यावरण प्रदूषण, कानून व्यवस्था, सामाजिक अशांति आदि। वह कल्याण जो आर्थिक कारकों पर निर्भर करता है उसे आर्थिक कल्याण तथा जो गैर-आर्थिक कारकों पर निर्भर करता है उसे गैर आर्थिक कल्याण कहा जाता है। दोनों के योग को सामाजिक कल्याण कहा जाता है।
निष्कर्ष


  • दोनों में अर्थात् GDP एवं कल्याण में प्रत्यक्ष सम्बन्ध है परन्तु यह संबंध निम्नलिखित कारणों से अपूर्ण एवं अधूरा है। GDP को आर्थिक कल्याण के सूचक के रूप में सीमाएँ निम्न हैं-
    1. बाह्यताएँ: इससे तात्पर्य व्यक्ति या फर्म द्वारा की गई उन क्रियाओं से है जिनका बुरा (या अच्छा) प्रभाव दूसरों पर पड़ता है लेकिन इसके लिए उन्हें दण्डित (लाभान्वित) नहीं किया जाता।
      उदाहरण- कारखानों का धुँआ (नकारात्मक बाह्यताएँ) तथा फ्लाईओवर का निर्माण (सकारात्मक बाह्यताएँ)।
    2. GDP की संरचना: यदि GDP में वृद्धि, युद्ध सामग्री के उत्पादन में वृद्धि के कारण हैं तो GDP में वृद्धि से कल्याण में वृद्धि नहीं होगी।
    3. GDP का वितरण: GDP में वृद्धि से कल्याण में वृद्धि नहीं होगी यदि आय का असमान वितरण है, अमीर अधिक अमीर हो जाएंगे तथा गरीब अधिक गरीब हो जाएंगे।
    4. गैर-माद्रिक लेन-देन: GDP में कल्याण को बढ़ाने वाले गैर मौद्रिक लेन-देन को शामिल नहीं किया जाता है।
  •