वित्तीय बाज़ार-पुनरावृति नोट्स

                                                                                  CBSE कक्षा 12 व्यवसाय अध्ययन

(भाग-2) पाठ-10 वित्त बाज़ार
पुनरावृति नोट्स


  • परिचय:-
    वित्तीय बाज़ार वित्तीय सम्पत्तियों जैसे अंश, बाण्ड आदि के सृजन एवं विनिमय करने वाला बाज़ार होता है। यह बचतों को गतिशील बनाता है तथा उन्हें सर्वाधिक उत्पादक उपयोगो की ओर ले जाता है। यह बचतकर्ताओं तथा उधार प्राप्तकर्ताओं के बीच एक कड़ी के रूप में कार्य करता हैतथा उनके बीच कोषों को गतिशील बनाता है। यह व्यक्ति/संस्था जिसके माध्यम से कोषों का (अलाट) आंबटन किया जाता है उसे वित्तीय मध्यस्थ कहते है। वित्तीय बाज़ार दो ऐसे समूहों के बीच एक मध्यस्थ की भूमिका निभाते है जो निवेश तथा बचत का कार्य करते हैं। वित्तीय बाज़ार सर्वाधिक उपयुक्त निवेश हेतु उपलब्ध कोषों का आंबटन करते है।
    घरेलू बचतकर्ताबैंक एवं वित्तीय संस्थाएँव्यावसायिक फर्मे (निवेशक)
  • वित्तीय बाज़ार के कार्य:-
    • बचतों को गतिशील बनाना तथा उन्हें उत्पादक उपयोग में सरणित करना:- वित्तीय बाज़ार बचतों को बचतकर्ता से निवेशकों तक अंतरित करने को सुविधापूर्ण बनाता है। अतः यह अधिशेष निधियो को सर्वाधिक उत्पादक उपयोग में सरणित करने में मदद करते हैं।
    • कीमत निर्धारण में सहायक:- वित्तीय बाज़ार बचतकर्ता तथा निवेशकों को मिलता है। बचतकर्ता कोषों की पूर्ति करते है जबकि निवेश कोषों की मांग करते है किसके आधार पर वित्तीय सम्पत्तियों की कीमत का निर्धारण होता है।
    • वित्तीय सम्पत्तियों को तरलता प्रदान करना:- बाज़ार द्वारा वित्तीय सम्पत्तियों के क्रय-विक्रय को सरल बनाया जाता है। इसके माध्यम से वित्तीय सम्पत्तियों को कभी भी खरीद या बेचा जा सकता है।
    • लेन-देन की लागत को घटाना:- वित्तीय बाज़ार, प्रतिभूतियों के विषय में महत्वपूर्ण सूचनाएं उपलब्ध कराते हैं जिससे समय, प्रयासों एवं धन की बचत होती है। परिणामस्वरूप लेन-देन की लागत घट जाता है।
  • मुद्रा बाज़ार:-
    यह छोटी अवधि की निधियों का बाज़ार है जिसकी परिपक्वता अवधि एक वर्ष तक की होती है। इस बाज़ार के प्रमुख प्रतिभागी भारतीय रिजर्व बैंक, व्यापारिक बैंक, गैर बैंकिग वित्त कम्पनियाँ, राज्य सरकारें, म्युचुअल फंड आदि है। मुद्रा बाज़ार के महत्वपूर्ण प्रलेख निम्नलिखित है:-
  1. राजकोष / कोषगार प्रपत्र (ट्रेजरी बिल):- इन्हें केन्द्रीय सरकार की तरफ से भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा जारी किया जाता है जिनकी परिपक्व अवधि एक वर्ष से कम होती है। इन्हें अंकित मूल्य से कम पर जारी किया जाता है परन्तु भुगतान के समय अंकित मूल्य दिया जाता है। राजकोष बिल 25000 रु के न्यूनतम मूल्य और इसके बार बहुगुणन में प्राप्त होते है। यह एक विनिमय साध्य प्रलेख होते हैं जिनकी स्वतन्त्रतापूर्ण हस्तान्तरण किया जा सकता है। इन्हें सुरक्षित निवेश समझा जाता है, इन पर कोई ब्याज नही दिया जाता बल्कि कटौती पर जारी किये जाते हैं।
  2. वाणिज्यिक (तिजारती) पत्र:- यह एक अल्पकालिक आरक्षित वचन पत्र होता है जिन्हें विशाल एवं उधार पात्रता कम्पनियों द्वारा अल्पकालिक आरक्षित बाज़ार दर से कम दर पर नकधि उगाहने के लिए जारी किया जाता है। इनकी परिपक्वता अवधि प्राय 15 दिन से लेकर एक वर्ष तक होती है तथा ये विनिमय साध्य एवं हस्तान्तरणीय होते हैं। इनक प्रयोग कार्यशील पूँजी की आवश्यकता, मौसमी आवश्यकताओ तथा ब्रिज फाइनेंनसिंग के लिए करा जाता है।
  3. शीघ्रवधि द्रव्य (मांग मुद्रा):- यह एक लघुकालिक मांग पर पुनर्भुगतान वित्त है जिसकी परिपक्वता अवधि एक दिन से 15 दिन तक की होती है तथा अंतर बैंक अंतरण के लिए उपयोग किया जाता है जिससे भारतीय रिजर्व बैंक के अनुसार रिजर्व अनुपात बनाया जा सके। शीघ्रवधि द्रव्य ऋण पर जो ब्याज दिया जाता है उसे शीघ्रावधी दर कहा जाता है।
  4. बचत /जमा प्रमाण पत्र:- यह एक धारक प्रमाणपत्र होता है जो बेचनीय होती है तथा जिसे वाणिज्यिक बैंकों एवं विकास वित्त संस्थानों द्वारा जारी किया जाता है। इनके द्वारा अल्पवधि के लिए बड़ी राशि प्राप्त की जा सकती है। इनकी समता अवधि 91 दिन से एक वर्ष होती है।
  5. वाणिज्यिक बिल:- यह एक विनिमय प्रपत्र होता है जो व्यावसायिक फर्मो की कार्य पूँजी की आवश्यकता के लिए वित्तीयन में प्रयुक्त होता है। इनका प्रयोग उधार क्रय विक्रय की दशा में किया जाता है। इसे विक्रेता द्वारा क्रेता पर लिखा जाता है तथा इसे व्यापारिक / वाणिज्यिक विपत्र कहते है इसे देय तिथि से पहले बट्टे पर बैंक से भुनाया जा सकता है।
  • पूँजी बाज़ार:-
    यह दीर्घकालिक निधियो जैसे ऋणपत्रों तथा अंशपत्रों को बाज़ार है जो एक लम्बे समय के लिए जारी की जाती हैं इसके अंतगर्त विकास बैंक, वाणिज्यिक बैंक तथा स्टॉक एक्सचेंज समाहित होते हैं पूँजी बाज़ार को दो भागो में बांटा जा सकता है। (1) प्राथमिक बाज़ार (2) द्वितीय बाज़ार।
  • प्राथमिक बाज़ार:-
    इसे नए निर्गमन बाज़ार के रूप में भी जाना जाता है। यहाँ केवल नई प्रतिभितियों को निर्गमित किया जाता है जिन्हें पहली बार जारी किया जाता है। इस बाज़ार में निवेश करने वालो में बैंक, वित्तीय संस्थाएँ, बीमा कम्पनियां, म्युचुअल फण्ड एवं व्यक्ति होते है। इस बाज़ार का कोई निर्धारित भौगोलिक स्थान नही होता है।
  • प्राथमिक बाज़ार में प्रतिभूतियोंं को निर्गमित करने की विधियाँ:-
    1. (प्रॉसपैक्टस) विवरण पत्रिका के माध्यम से प्रस्ताव:- इसके अंतर्गत विवरण पत्रिका जारी करके जनता से अंशदान आमंत्रित किया जाता है। एक विवरण पत्रिका पूँजी उगाहने के लिए निवेशकों से प्रत्यक्ष अपील करती है जिसके लिए अखबारों एवं पत्रिकाओ के माध्यम से विज्ञापन जारी किए जाते है।
    2. विक्रय के लिए प्रस्ताव:- एक विधि के अंतर्गत निर्गमन गृहों या ब्रोकर्स जैसे माध्यको के द्वारा प्रतिभूतियोंं की ब्रिकी के लिए प्रस्तावित किया जाता है। कम्पनी द्वारा ब्रोकर्स को सहमती मूल्य पर प्रतिभूतियोंं को बेचा जाता है। जिन्हें वे निवेशक जनता को अधिक मूल्य पर पुनः विक्रय करते है।
    3. निजी व्यवस्था:- एक कम्पनी द्वारा संस्थागत निवेशकों तथा कुछ चयनित वैयक्तिक निवेशकों को प्रतिभूतियोंं का आंबटन करने की प्रक्रिया को निजी नियोजन कहा जाता है।
    4. अधिकार निर्गमन:- यह एक विशेषाधिकार है जो विद्यमान शेयर धारकों को पहले से क्रय किए हुए शेयर्स के अनुपात में नए शेयरों को खरीदने का अधिकार देता है।
    5. ई-आरंभिक सार्वजनिक निर्गमन:- यह स्टॉक एक्सचेंज की ऑन-लाइन प्रणाली के माध्यम से प्रतिभूतियाँ जारी करने की विधि है। स्टॉक एक्सचेंज की ऑन-लाइन प्रणाली के माध्यम से जनता को पूँजी को प्रस्तावित करने वाली कम्पनी को स्टॉक एक्सचेंज से एक ठहराव करना होता है जिसे ई-आरंभिक सार्वजनिक प्रस्ताव कहते है। इसके लिए सेबी से साथ पंजीयत दलालों को आवेदन स्वीकार करने हेतु नियुक्त किया जाता है।
  • द्वितीयक बाज़ार:-
    इसे स्टॉक एक्सचेंज या स्टॉक बाज़ार के नाम से भी जाना जाता है। जहाँ विद्यमान प्रतिभूतियोंं का क्रय एवं विक्रय किया जाता है। यह बाज़ार निर्धारित स्थान पर स्थित होता है तथा यहाँ प्रतिभूतियों का क्रय विक्रय किया जाता है। यहाँ प्रतिभूतियों की कीमत को उनकी मांग एवं पूर्ति के द्वारा तय किया जाता है।
  • प्राथमिक बाज़ार तथा द्वितीयक बाज़ार में अन्तर:-
    क्र.सं.आधारप्राथमिक बाज़ारद्वितीयक बाज़ार
    1.प्रतिभूतियांकेवल नई प्रतिभूतियोंं को निर्गमित किया जाता है।विद्यमान प्रतिभूतियोंं को निर्गमित किया जाता है।
    2.प्रतिभूतियोंं की कीमतकम्पनी के प्रबन्ध के द्वारा प्रतिभूतियोंं की कीमत निर्धारित की जाती हैप्रतिभूतियोंं की कीमत उनकी मांग तथा पूर्ति के द्वारा निर्धारित की जाती है।
    3.क्रय व विक्रययहाँ केवल प्रतिभूतियोंं को क्रय किया जाता है।यहाँ प्रतिभूतियोंं का क्रय एवं विक्रय दोनों होते हैं।
    4.माध्यमयहाँ कम्पनी द्वारा सीधे या मध्यस्थ के माध्यम से प्रतिभूतियोंं को बेचा जाता है।यहाँ निवेश प्रतिभूतियोंं के स्वामिल्व बदलते है।
  • स्टॉक एक्सचेंज / शेयर बाज़ार
    स्टॉक एक्सचेंज एक ऐसा संस्थान है जो विद्यमान प्रतिभूतियोंं के क्रय एवं विक्रय हेतु एक मंच उपलब्ध कराता है। इसके माध्यम से प्रतिभूतियोंं जैसे अंश, ऋण पत्र आदि को मुद्रा में परिवर्तित किया जा सकता है। स्टॉक एक्सचेंज के मुख्य कार्य निम्नलिखित है।
    1. विद्यमान प्रतिभूतियोंं एक द्रवता एवं विनियोग उपलब्ध कराना:- स्टॉक एक्सचेंज द्वारा प्रतिभूतियोंं के क्रय एवं विक्रय हेतु तैयार एवं सतत् बाज़ार उपलब्ध कराया जाता है।
    2. प्रतिभूतियोंं का मूल्यन:- स्टॉक एक्सचेंज निरन्तर मूल्यांकन द्वारा प्रतिभूतियोंं से सम्बन्धित विभिन्न सूचनाएं उपलब्ध कराता है जिससे उनके मूल्यन में सहायता मिलती है। प्रतिभूतियों की कीमत क्रेता तथा विक्रेता द्वारा उनकी मांग पूर्ति की शक्तियों द्वारा तय की जाती है।
    3. लेन-देन की सुरक्षा:- शेयर बाज़ार की सदस्यता बेहतर प्रकार से नियंत्रित होती है तथा यहाँ विद्यमान कानूनी ढांचे के अनुसार ही कार्य होता है जो निष्पक्ष लेन-देन सुनिश्चित करता है।
    4. आर्थिक विकास में योगदान:- शेयर बाज़ार के माध्यम से बचतों को गतिशील बनाया जाता है तथा उन्हें सर्वाधिक उत्पादक निवेश पथों से सरणित किया जाता है। अतः यह पूँजी निर्माण एवं आर्थिक विकास में योगदान देता है।
    5. इक्विटी संप्रदाय का प्रसार:- शेयर बाज़ार जनता को प्रतिभूतियोंं में निवेश के बारे में शिक्षित करता है जिससे इक्विटी संप्रदाय का प्रसार होता है।
    6. सट्टेबाज़ी के लिए अवसर उपलब्घ कराना:- शेयर बाज़ार कानूनी प्रावधान के अंतर्गत प्रतिबंधित एवं नियंत्रित तरीके से सट्टा संबंधी क्रियाकलापों के लिए पर्याप्त अवसर उपलब्ध करता है।
      बाम्बे स्टॉक एक्सचेंज (बी.एस.ई) व नेशनल स्टॉक एक्सचेंज भारत के दो मुख्य स्टॉक एक्सचेंज है।
  • स्टॉक एक्सचेंज में लेनदेन की प्रक्रिया:-
    1. दलाल का चयन करना:- स्टॉक एक्सचेंज पर लेन-देन करने से लिए सर्वप्रथम दलाल का चयन किया जाता है जो की स्टॉक एक्सचेंज का सदस्य होना चाहिए क्योंकि स्टॉक एक्सचेंज पर लेनदेन हेतु वही अधिककृत होते है।
    2. डीपाजटरी के पास डिमांड खाता खोलना।
    3. आदेश देना:- दलाल के द्वारा निवेशक प्रतिभूतियोंं के क्रय-विक्रय का आदेश दिया जाता है।
    4. आदेश निष्पादन:- दलाल के द्वारा निवेशक के आदेश के अनुसार प्रतिभूतियोंं का क्रय-विक्रय किया जाता है।
      कोई भी व्यवहार निपटने में (T+2) अर्थात्, लेन-देन के दो दिन में निपटाया जाता है।
  • पूँजी बाज़ार तथा मुद्रा बाज़ार में अन्तर:-
    क्र.सं.आधारपूँजी बाज़ारमुद्रा बाज़ार
    1.सहभागीवित्तीय संस्थाएँ, बीमा कम्पनियाँ, बैंक, अंतर्राष्टीय निवेशक तथा व्यक्ति निवेशकभारतीय रिजर्व बैंक, व्यापारिक बैंक, गैर बैंकिग वित्त कम्पनियों, राज्य सरकारें , म्युचुअल फण्ड
    2.मुख्य प्रपत्रसमता अंश, बाण्ड, ऋण पत्र, पूर्वाधिकारी अंशकोषागार प्रपत्र, वाणिज्यिक पत्र मांग, मुद्रा, जमा प्रमाण पत्र, वाणिज्यिक बिल
    3.निवेश राशिनिवेश हेतु बहुत बड़ी राशि की आवश्यकता नही होती है।मुद्रा बाज़ार में लेने-देने हेतु, बहुत बड़ी राशि की आवश्यकता होती है।
    4.परिपक्वता अवधिमध्य तथा दीर्घ अवधि के कोषों में व्यवहार किया।अल्प अवधि वाले कोषों में व्यवहार किया जाता है
    5.तरलतामुद्रा बाज़ार के मुकाबले कम तरलता होती है।पूँजी बाज़ार के मुकाबले अधिक तरलता होती है।
    6.संभावित प्रतिफलअधिक आय प्राप्त।पूँजी बाज़ार के मुकाबले कम आय।
    7.सुरक्षा / जोखिमअधिक जोखिम होता है।कम जोखिम होता है।
  • डिपोजिटरी सेवाएँ:-
    अंशो के भौतिक रूप में हस्तान्तरण से सम्बन्धी कठिनाइयों को ध्यान में रखते हुए सेबी ने नई पद्धति का विकास किया जिसके अंतर्गत शेयरों की ट्रेडिंग इलैक्ट्राॅनिक रूप में ही हो सकती हैं। डिपोजिटरी सेवा एवं डीमैट खाता इसके आधार हैं:-
  • डिपोजिटरी सेवाएँ:-
    डिपोजिटरी एक संस्था अथवा संगठन है जो निवेशकों की प्रतिभूतियोंं को इलेक्ट्रॉनिक रूप में रखती है, जिसमे व्यापर किया जाता है। प्रतिभूतियोंं के उदाहरण है शेयर, डिबेंचर, म्युचुअर फण्ड आदि।
    एक डिपोजिटरी द्वारा प्रदान की गई सेवाओं को डिपोजिटरी सविर्सेज कहते हैं। नेशनल सिक्योरिटीज डिपोजिटरी लिमिटेड (एन.एस.डी.एल) और सेंट्रल डिपोजिटरी सर्विसेज लिमिटेड (सी.डी.एस.एल) वर्तमान में भारत में दो डिपोजिटरी है।
  • डिपोजिटरी द्वारा प्रदान की गई सेवाएँ निम्नलिखित:-
    1. डीमेटिरियलाईजेशन (संक्षित में डीमैट) प्रतिभूतियोंं के भौतिक प्रमाण पत्र को इलेक्ट्रॉनिक रूप में परिवर्तित करना।
    2. रीमैटिरियलाइजेशन (संक्षिप्त में रीमैट) : - डीमैट के विपरीत, अर्थात इलेक्ट्रॉनिक प्रतिभूतियोंं से भौतिक प्रमाण पत्र प्राप्त करना है।
    3. प्रतिभूतियोंं के स्वामित्व का सुविधाजनक हस्तांतरण।
    4. डिपोजिटरी से जुड़े स्कन्द विपणि (Stock Exchange) पर किए ट्रेडो का निपटान।
  • ऑनलाइन ट्रेडिग में पक्षकार
    भारत में आजकल कम्पनी के अंशो का क्रय विक्रय आन लाइन पेपर सहित हो गया है। डिपोजिटरी सेवा इसी पद्धति का नाम है। इस पद्धति के अंतर्गत अंशो के स्वामित्व का हस्तान्तरण बिना भौतिक सपुर्दगी के केवल बुक लेखन के माध्यम से होता है। एक निवेशक को अपना डी-मैट खाता खुलवाना पड़ता है। जिसके माध्यम से वह अंशो का व्यवहार करता है। इसके चार पक्षकार होते है:-
    1. डिपोजिटरी:- वह संस्थान जहाँ निवेशक अपने अंशो की इलेक्ट्राॅनिक रूप में रखता है। इस समय भारत के ये दो संस्थान है। 1. एन.एस.डी.एल 2. सी.एस.डी.एल।
    2. डिपोजिटरी पार्टिसिपेंट:- यह निवेशोको के खाते खोलता है। उसके अंशो का हिसाब रखता है। आमतौर पर बैंक डिपोजिटरी पार्टिसिपेट को काम करते है।
    3. निवेशक:- वह व्यक्ति जो अंशो में व्यवहार करता है, उसके नाम का रिकॉर्ड रखा जाता है।
    4. अंश जारीकर्ता कम्पनी:- वह संगठन जो प्रतिभूतियोंं जारी करती है। यह कम्पनी अंशधरियों की एक सूची डिपोजिटरी के पास भेजती है।
  • डिपोजिटरी सविर्सेज का लाभ:-
    1. किसी भी स्टॉक एक्सचेंज पर किसी भी कम्पनी के शेयरों की बिक्री ख़रीद
    2. समय की बचत
    3. बिना किसी कागजी कार्यवाही के प्रतिभूतियों का व्यापार
    4. सुविधाजनक व्यापार
    5. लेन-देन में पारदर्शिता
    6. सुरक्षा प्रमाणपत्र की कोई जालसाजी नहीं
    7. शेयर बाज़ार में निवेशक की भौतिक उपस्थिति की आवश्यकता नहीं
    8. सुरक्षा प्रमाण पत्र की विकृति एवं नुकसान का जोखिम नहीं।
  • डीमैट खाता:-
    डीमैट खाता डीमेटिरियलाइजेशन खाते का संक्षिप्त नाम है। डीमैट खाते से अभिप्राय एक खाते है, जो एक भारतीय नागरिक इलेक्ट्रॉनिक रूप से सूचीबद्ध प्रतिभूतियों में व्यापर करने के लिए डिपोजिटरी भागीदार (बैंक, शेयर दलालों आदि) के पास खोला जाता है, जिसके द्वारा वह विभिन्न कम्पनियों की प्रतिभूतियों (अंशो, ऋण पत्रों आदि को इलेक्ट्रॉनिक रूप में रख सकता है।
    इस प्रक्रिया के अंतर्गत अंश प्रमाण पत्र को भौतिक रूप इलेक्ट्रॉनिक रूप में बदला जाता है और उतने ही संख्या में अंश डीमैट खाते में जमा क्र दिये जाते है। डीमैट खाते तक पहुँच के लिए एक इंटरनेट पासवर्ड तथा एक व्यवहार पासवर्ड आवश्यक होता है। प्रतिभूतियोंं का हस्तांतरण या खरीद उसके बाद ही की जा सकती है। डीमैट खाते पर प्रतिभूतियोंं की खरीद या ब्रिकी स्वचालित ढंग से हो जाती है, एक बाद व्यवहारों की संतुष्टि हो जाए व पूरे हो जाएँ।
  • डीमैट खाते के लाभ:-
    1. कागजी कार्यवाही में कमी होती है।
    2. अंशो के हस्तांतरण के समय चोरी, देरी, क्षति होना आदि समस्याए समाप्त हो जाती है।
    3. अंशो के हस्तांतरण के व्यवहार करने पर स्टाम्प ड्यूटी नहीं लगती।
    4. अंशो की विषयम संख्या धारण की समाप्ति।
    5. प्रतिभूतियोंं के सेटलमेंट जल्दी होती है।
    6. इस पद्धति से विदेशी निवेशक आकर्षित होते हैं तथा विदेशी निवेश में वृद्धि होती है।
    7. एक अकेला डीमैट खाता समता व ऋण पत्रों दोनों में निवेश रख सकता है।
    8. व्यापारी कहीं से भी काम कर सकते हैं।
    9. बोनस/विघटना/विलय आदि से बने शेयरों के लिए डीमैट खाते में स्वचालित क्रेडिट
    10. प्रतिभूतियोंं का तुरन्त हस्तांतरण।
    11. निक्षेपागार के पास रिकॉर्ड किया, पते का परिवर्तन उन सभी कम्पनियों में रजिस्टर हो जाता है जिनमें निवेशक प्रतिभूतियाँ रखता है, प्रत्येक कम्पनी के साथ अलग से पत्र-व्यवहार करने की आवश्यकता नहीं होती।
  • डीमैट खाता खोलने की प्रक्रिया:-
    यह खाता वैसे ही खोला जाता है जैसे बैंक खाता। निर्दिष्ट खाता खोलने के फर्म निक्षेपागार भागीदार के पास उपलब्ध होते है जिसे भरना आवश्यक होता है। मुवाक्किल तथा निक्षेपागार द्वारा मानक समझोतों पर हस्ताक्षर होते है जिसमें दोनों पक्षों के अधिकार तथा अनिवार्यताएँ होती हैं। फार्म के साथ, मुवाक्किल को खाताधारक के फोटोग्राफ, आवास के सबूत की सत्यापित प्रतिलिपि तथा पहचान का सबूत पेश करना आवश्यक होता है।
  • भारतीय प्रतिभूति एवं विनियमन बोर्ड (सेबी):-
    भारत सरकार ने सेबी की स्थापना 12 अप्रैल 1988 को एक प्रशासकीय निकाय के रूप में थी। जिसके द्वारा प्रतिभूति बाज़ार के नियमित एवं स्वस्थ वृद्धि तथा निवेशकों की संरक्षा को बढ़ावा प्रदान हो सके। 30 जनवरी 1992 को सेबी को एक अध्यादेश के द्वारा वैधानिक निकाय का दर्जा दिया गया तथा बाद में संसद के अधिनियम के रूप में सेबी अधिनियम के रूप में सेबी अधिनियम 1992 में बदल दिया गया। सेबी के मुख्य उद्देश्य निम्नलिखित है।
    1. शेयर बाज़ार तथा प्रतिभूति उधोग को विनियमित करना ताकि क्रमबद्ध ढंग से उनकी क्रियाशीलता को बढ़ावा मिले।
    2. निवेशकों को संरक्षण प्रदान करना तथा उनके अधिकारों एवं हितों की रक्षा करना है।
    3. व्यापार दुराचरों को रोकना तथा पूँजी बाज़ार को अधिक प्रतिस्पर्द्धी एवं पेशेवर बनाना।
    4. मध्यस्थों जैसे दलालों, मर्चेन्ट बैंकर्स आदि के लिए आयात सहिंता विकसित तथा उन्हें विनियमित करना।
  • सेबी के कार्य : -
    • विनियामक कार्य:- इनका आशय ऐसे कार्यों से है जो स्टॉक एक्सचेंजों के नियमन एवं नियन्त्रण के उद्देश्य से लिये जाते है।
    • विकासात्मक कार्य:- इनका आशय ऐसे कार्यों से है जिससे स्टॉक एक्सचेंजों के कार्यों को बढ़ावा तथा उनका हितों की सुरक्षा करने के प्रयास किए जाते है।
    • संरक्षणात्मक कार्य:- इसके अंतर्गत उन सभी कार्यों को शामिल किया जाता है जिनके द्वारा निवेशकों के हितों की सुरक्षा करने के प्रयास किए जाते है।
  • सेबी के कार्य

    विनियामक कार्यविकास कार्यसंरक्षणात्मक कार्य
    (1) नियम एवं अधिनियम बनाना।(1) मध्यस्थों को प्रशिक्षण देना।*(1) आन्तरिक लेनदेनों को रोकना।
    (2) मध्यस्थें का पंजीयन करना।(2) शोध कार्य करना।(2) प्राथमिकता आबंटन को रोकना।
    (3) कम्पनियों के अधिग्रहण का विनियमन करना।(3) निवेशकों का शिक्षित करना।**(3) अनुचित व्यापार व्यवहारों को रोकना।
    (4) सामूहिक निवेश योजनाओं तथा म्युचुअल फंडो का पंजीकरण।(4) इंटरनेट ट्रेडिंग के लिए पंजीयन स्कन्ध दलालों की आज्ञा देना।(4) विनियोजकों का सरंक्षण करना।
    (5) आंतरिक व्यापार एवं नियंत्रणकारी बोलियों पर नियन्त्रण।(5) लोचदार अभिगम अपनाकर पूँजी बाज़ार की विकास का कार्य।***(5) कीमत रिगिग को रोकना।
    (6) अधिनियम अनुसार अधिशुल्क या कोई अन्य प्रभार लगाना। (6) प्रतिभूति बाज़ार से सम्बन्धित नियम अधिनियम बनाना।
  • *(1) आन्तरिक मूल्यों में लेनदेन को रोकना:- सेबी ने अंशो के भीतरी व्यापार पर रोक लगा रखी है। आन्तरिक व्यक्ति वे होते है जो कम्पनी से जुड़े होते है। निदेशक, प्रवर्तक आदि कम्पनी के आन्तरिक व्यक्ति होते हैं। इन व्यक्तियों के अपनी उच्च स्थिति पर आसीन होने के कारण कम्पनी की प्रतिभूतियोंं को प्रभावित करने वाली सूचनाओं का ज्ञान होता है। चूँकि वे कम्पनी के भीतरी व्यक्ति होते हैं तथा यदि वे इन सूचनाओं का उपयोग अपने निजी लाभ के लिए करते हैं तो इसे भीतरी व्यापार कहते हैं।
    उदाहरण:- एक कम्पनी के संचीनक को यह पता है की कम्पनी की आगमी वार्षिक सभा में बोनस अंशों की घोषणा की जायगी। निश्चित है की ऐसा होने पर कम्पनी के अंशों का मूल्य बढ़ जायेगा। वह बाज़ार से तुरन्त दो हजार अंश क्रय कर लेता है और अनुचित लाभ कमा लेता है। सेबी का कार्य यह है की ऐसे व्यवहारों पर रोक लगाए। सेबी आन्तरिक लेनदेनों पर कठोर नियन्त्रण लगाता है तथा कठोर कार्यवाही करता है।
  • **(2) अनुचित व्यापार व्यवहारों को रोकना:- सेबी का सबसे महत्वपूर्ण कार्य ऐसे सभी व्यवहारों को रोकना है जिनसे निवेशकों को धोखा दिये जाने या उनके साथ कपट किए जाने की संभावना पनपती हो जैसे की प्रतिभूतियोंं के बाज़ार मूल्यों मं सट्टेबाज़ी।
  • ***(3) कीमत विद्रूपण को रोकना:- अपने एकाकी लाभ के लिए प्रतिभूतियोंं की बाज़ार कीमत को बढाकर या घटाकर उसकी विद्रूपण करने पर सेबी रोक लगाता है।