आंतरिक व्यापार-पुनरावृति नोट्स

                                                                              CBSE कक्षा 11 व्यवसाय अध्ययन

पाठ-9 आंतरिक व्यापार
पुनरावृति नोट्स


व्यापार - लाभ प्राप्ति के उद्देश्य से वस्तुओं के क्रय-विक्रय की प्रक्रिया को व्यापार कहा जाता है।
आंतरिकत व्यापार - जब वस्तुओं एवं सेवाओं का क्रय-विक्रय एक ही देश की सीमाओं के अंदर किया जाता है तो इसे आंतरिक व्यापार कहते हैं।
आतरिक व्यापार की विशेषताएं -

  • कोई सीमा शुल्क नहीं लगाया जाता
  • वस्तुओं का स्वतंत्र आना जाना
  • देश की सरकारी मुद्रा में भुगतान

आंतरिक व्यापार को दो भागों में बांटा जा सकता है।

  1. थोक व्यापार
  2. फुटकर व्यापार

थोक व्यापार:- पुनः विक्रय अथवा मध्यवर्ती प्रयोग के लिए बड़ी मात्रा में वस्तुओं एवं सेवाओं के क्रय-विक्रय को थोक व्यापार कहा जाता है। थोक व्यापारी निर्माताओं एवं फुटकर व्यापारियों के बीच एक महत्वपूर्ण कड़ी है।
थोक व्यापार की विशेषताएं :-

  • निर्माताओं से बड़ी मात्रा में वस्तुओं का क्रय
  • विशेष वस्तुओं में व्यापार
  • वस्तुओं को छोटी-छोटी मात्रा में फुटकर व्यापारी को बेचना
  • निर्माताओं एवं फुटकर व्यापारियों के बीच महत्वपूर्ण कड़ी

थोक व्यापारियों की निर्माताओं को सेवाएं:-

  1. थोक व्यापारी, निर्माताओं से भारी मात्रा में वस्तुएं खरीदते हैं जिसके कारण निर्माता बड़े पैमाने पर उत्पादन करते हैं जिससे उन्हें बड़े पैमाने के लाभ प्राप्त होते हैं।
  2. थोक व्यापारी वस्तुओं का क्र-विक्रय अपने नाम से करते हैं तथा विभिन्न जोखिम जैसे कीमतों में कमी, चोरी, खराब होने की सम्भावना आदि वहन करता है।
  3. थोक व्यापारी निर्माताओं से नकद क्रय करते हैं अत: वह उन्हें वित्तीय सहायता प्रदान करते हैं।
  4. थोक व्यापारी निर्माताओं को ग्राहकों की रुचि बाजार की स्थिति आदि के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी देते हैं।
  5. थोक व्यापारी, फुटकर व्यापारियों को वस्तुएं बेचते हैं जो उन्हें उपभोक्ताओं को बेचेते हैं अतः वे निर्माताओं को विपणन क्रियाओं के भार से मुक्त कर देते हैं।
  6. थोक व्यापारी माल को बड़ी मात्रा में खरीदकर अपने गोदामों में रख लेते हैं अत: निर्माताओं को संग्रहण की आवश्यकता नहीं पड़ती।
  7. थोक विक्रेता माल का उत्पादन होते ही उसे खरीद लेते हैं, इस प्रकार थोक विक्रेता उत्पादन की निरंतरता में सहायक होता है।
  8. थोक व्यापारी का उत्पादकों को बड़ी मात्रा में वस्तुओं के आदेश देने का उत्पादन का पैमाना बढ़ जाता है।

थोक व्यापारियों की फुटकर व्यापारियों को सेवाएं

 

  1. थोक व्यापारी, फुटकर व्यापारियों को विभिन्न उत्पादकों की वस्तुओं को उपलब्ध कराते हैं जो उन्हें उपभोक्ताओं को बेचते हैं।
  2. थोक व्यापारी विज्ञापन तथा अन्य विक्रय संवर्धन क्रियाओं के माध्यम से उपभोक्ताओं को वस्तु क्रय करने के लिए प्रेरित करते हैं अतः वे फुटकर व्यापारियों को विपणन में सहायता करते हैं।
  3. थोक व्यापारी द्वारा फुटकर व्यापारियों को उधार की सुविधाएं दी जाती हैं।
  4. थोक व्यापारी फुटकर व्यापारियों को छोटी-छोटी मात्राओं में वस्तुएं बेचते हैं अतः फुटकर व्यापारियों को मूल्य में गिरावट, संग्रहण, छीजन आदि से होने वाला नुकसान का जोखिम नहीं उठाना पड़ता।
  5. थोक व्यापारी अपने विशिष्ट ज्ञान के द्वारा फुटकर व्यापारियों को नए उत्पादों, उनकी उपयोगिता, गुणवत्ता, मूल्य आदि सम्बन्धी सूचनाएं प्रदान करते हैं।

फुटकर व्यापार
थोक विक्रेताओं से बड़ी मात्रा में माल का क्रय कर के उन्हें अंतिम उपभोक्ताओं को थोड़ी-थोड़ी मात्रा में बेचने को फुटकर व्यापार कहा जाता है।
फुटकर व्यापार की विशेषताएं

  • थोक विक्रेताओं से विभिन्न वस्तुएँ क्रय करना
  • अनेक वस्तुओं में व्यापार
  • थोड़ी-थोड़ी मात्रा में उपभोक्ताओं को वस्तुएँ बेचना
  • मध्यस्थों की श्रृंखला की अंतिम कड़ी

फुटकर व्यापारियों की उत्पादकों एवं थोक विक्रेताओं को सेवाएं

  1. फुटकर व्यापारी, उत्पादकों एवं थोक विक्रेताओं के उत्पादकों को अंतिम उपभोक्ताओं को उपलब्ध कराते हैं।
  2. फुटकर व्यापारी, उत्पादकों एवं थोक विक्रेताओं को ग्राहक की रुचि, पसंद एवं रूझानों से अवगत कराते हैं।
  3. फुटकर व्यापारी उपभोक्ताओं को छोटी-छोटी मात्राओं में माल बेचते हैं जिससे निर्माता एवं थोक विक्रेता व्यक्तिगत विक्रय के भार से मुक्त हो जाते हैं तथा अन्य महत्वपूर्ण क्रियाओं पर ध्यान केन्द्रित कर सकते हैं।
  4. फूटकर व्यापारी विभिन्न विधियों का प्रयोग करके वस्तुओं के संवर्धन में सहायता करते हैं।
  5. फुटकर व्यापारी, उत्पादकों को बड़े पैमाने पर उत्पादन करने में सहायता करते हैं जिससे उन्हें बड़े पैमाने की बचत प्राप्त हो सके।

फुटकर व्यापारियों की उपभोक्ताओं को सेवाएं

  1. फुटकर व्यापारी, उपभोक्ताओं को विभिन्न वस्तुएं नियमित रूप से उपलब्ध कराते हैं।
  2. उनके द्वारा उपभोक्ताओं को नये उत्पादों की सूचना दी जाती है।
  3. उनके द्वारा विभिन्न किस्म की वस्तुएं उपलब्ध कराई जाती है जिससे ग्राहकों को चयन के अधिक अवसर मिलते हैं।
  4. इनके द्वारा ग्राहकों को बिक्री के बाद की विभिन्न सेवाएं उपलब्ध कराई जाती हैं जैसे घर पर सुपुर्दगी, ग्राहकों की ओर ध्यान देना आदि।
  5. इनके द्वारा ग्राहकों को उधार की सुविधा भी दी जाती है जिससे उपभोक्ता अधिक खरीदारी करके अपने जीवन-स्तर को ऊंचा उठा सके।
  6. ये अधिकांश आवासीय क्षेत्रों के समीप होते हैं जिससे ग्राहकों को अपनी आवश्यकता की वस्तुओं को खरीदना सुविधाजनक हो जाता है।

फुटकर व्यापार क प्रकार
व्यापार के निशिचत स्थान के आधार पर फुटकर व्यापारियों को निम्न दो प्रकारों में बांटा जाता है।

  1. भ्रमणशील फुटकर विक्रेता
  2. स्थायी दुकानदार

भ्रमणशील फुटकर विक्रता
ये वे फुटकर व्यापारी है जो किसी स्थायी स्थान से व्यापनार नहीं करते हैं। यह अपने सामान के साथ ग्राहकों की तलाश में गली-गली एवं एक स्थान से दूसरे स्थान पर घूमते रहते हैं। इनकी निम्नलिखित विशेषताएं होती हैं -

  1. ये छोटे व्यापारी होते हैं जिनके पास सीमित साधन होते हैं।
  2. इनके द्वारा प्रतिदिन उपयोग में आने वाली उपभोक्ता वस्तुओं जैसे फल, सब्जियां आदि का व्यापार किया जाता है।
  3. इनके द्वारा ग्राहकों को उनके घर पर वस्तुएं उपलब्ध कराई जाती है।
  4. इनका मुख्य व्यापारिक नियत स्थान नहीं होता है इसलिए यह माल का स्टॉक मुख्यतः घर में रखते हैं।

भारत में निम्नलिखित भ्रमणशील फुटकर व्यापारी होते हैं

  1. फेरी वाले : ये छोटे व्यापारी होते हैं जो वस्तुओं को साईकिल, हाथ-ठेली, साईकिल रिक्शा या अपने सिर पर रखकर तथा जगह-जगह घूमकर, ग्राहकों के घर पर जाकर माल का विक्रय करते हैं। इनके द्वारा कम मूल्य वस्तुएं जैसे - खिलौने, फल-सब्जियां आदि बेची जाती है। फेरी वालों का मुख्य लाभ उपभोक्ताओं के लिए सुविधाजनक होना है।
  2. सर्वाधिक बाजार व्यापारी : ये छोटे फुटकर व्यापारी होते हैं जो विभिन्न स्थानों पर निश्चित दिन को दुकान लगाते हैं जैसे प्रति मंगलवार या शनिवार आदि। इनके द्वारा एक ही प्रकार का सामान बेचा जाता है जैसे - खिलौने, क्रॉकरी का सामान आदि। यह मुख्यतः कम आय वाले ग्राहकों के लिए माल बेचते हैं।
  3. पटरी विक्रेता : ये छोटे विक्रेता होते हैं जो ऐसे स्थानों पर पाए जाते हैं जहां लोगों का भारी आवागमन रहता है जैसे बस स्टैंड, रेलवे स्टेशन आदि। इनके द्वारा साधारण रूप में उपयोग में आने वाली वस्तुओं को बेचा जाता है जैसे - स्टेशनरी का सामान, समाचार-पत्र आदि। ये अपने बिक्री के स्थान को आसानी से नहीं बदलते |
  4. सस्ते दर की दुकान : ये छोटे फुटकर विक्रेता होते हैं जिनकी स्वतंत्र अस्थायी दुकान होती है इनके द्वारा उपभोक्ता वस्तुओं में व्यापार किया जाता है तथा यह व्यापार संभावनाओं के आधार पर अपना क्षेत्र बदलते हैं।

स्थायी फुटकर दुकानदार :
ये वह फुटकर विक्रेता होते हैं जिनके विक्रय के लिए स्थायी रूप से संस्थान होते हैं।
स्थायी फुटकर विक्रता की विशेषताएं :

  • अधिक संसाधन
  • विभिन्न वस्तुओं का व्यापार
  • ग्राहकों में अधिक साख
  • ग्राहकों को अनेकों सेवाएँ देना जैसे गारंटी प्रदान करना, मरम्मत, उधार बिक्री अादि ।

आकार के आधार पर स्थायी दुकानदारों को दो प्रकार में बांटा जाता है।

  1. छोटे फुटकर विक्रेता
    इनके अंतर्गत निम्नलिखित फुटकर व्यापारी आते हैं।
    1. जनरल स्टोर : ये स्थानीय बाजार एवं आवासीय क्षेत्रों में स्थित होते हैं जो उपभोक्ताओं को प्रतिदिन आवश्यकता वाली वस्तुओं की बिक्री करते हैं। जैसे की स्टेशनरी, परचून की दुकान आदि।
    2. विशिष्टकृत भंडार : इनके द्वारा एक ही प्रकार की वस्तुओं की बिक्री मे विशेषता प्राप्त की जाती है जैसे केवल पुरुषों के वस्त्रों की दुकान, महिलाओं के पर्स की दुकान आदि।
    3. गली में स्टाल : ये विक्रेता गली के एक कोने मुख्यतः मुहाने पर या भीड़-भाड़ वाले क्षेत्रों में होते हैं तथा सस्ती उपभोक्ता वस्तु जैसे सिगरेट, पान, पेय पदार्थ आदि बेचते हैं।
    4. पुरानी वस्तुओं की दुकान : इन विक्रेताओं द्वारा पुरानी वस्तुओं जिनका पहले ही उपयोग किया जा चुका होता है उनकी बिक्री की जाती है जैसे - पुस्तकें, कपड़े आदि।
  2. बड़े स्थायी फुटकर दुकानदार
    इसके अन्तर्गत निम्नलिखित व्यापारियों को सम्मिलित किया है :
    1. विभागीय भंडार : एक विभागीय भंडार एक बड़ी इकाई होती है जो विभिन्न प्रकार के उत्पादों को एक ही छत के नीचे विभिन्न विभागों में बांट कर बिक्री करती है। इनके द्वारा ग्राहकों की लगभग सभी आवश्यकताओं को पूरा करने की कोशिश की जाती है। इनकी निम्नलिखित विशेषताएं होती है :
      1. ये शहर के केन्द्र में स्थित होते हैं ताकि अधिक ग्राहकों की मांग की सन्तुष्टि कर सकें।
      2. इनके द्वारा ग्राहकों को विभिन्न सुविधाएं जैसे जलपानगृह, विश्रामगृह, टेलीफोन बुथ आदि सुविधाएं प्रदान की जाती है।
      3. इन्हें संयुक्त पूंजी कम्पनी के रूप में स्थापित किया जाता है तथा इनका प्रबंध निर्देशक मंडल द्वारा किया जाता है।
      4. इनके द्वारा माल को सीधे उत्पादक से क्रय किया जाता है तथा ग्राहकों को बेचा जाता है। जिसके कारण उनके बीच अनावश्यक मध्यस्थ उत्पन्न नहीं होते |
      5. इनमें माल का क्रय केन्द्रीय व्यवस्था से होते है जबकि विक्रय विभिन्न विभागों के माध्यम से किया जाता है।
      6. ये उच्च श्रेणी के ग्राहकों को अधिकतम सेवाएँ प्रदान करते हैं जिनके लिए मूल्य द्वितीय महत्व की बात होती है।

विभागीय भांडारक लाभ

  1. ये केन्द्रीय स्थलों पर स्थित होते हैं जिसके कारण बड़ी संख्या में ग्राहक आकर्षित होते हैं।
  2. इनके द्वारा एक ही छत के नीचे विभिन्न वस्तुएं उपलब्ध कराई जाती है जिससे ग्राहकों की अधिकतम मांगों को सन्तुष्ट किया जा सके।
  3. इनके द्वारा ग्राहकों को विभिन्न आकर्षक सेवाएं उपलब्ध कराई जाती है जैसे जलपानगृह, विश्रामगृह, टेलीफोन आदि।
  4. इनके द्वारा विज्ञापनों आदि पर काफी खर्च किया जा सकता है जिससे इनकी बिक्री में वृद्धि हो सकती है।
  5. ये बड़े पैमाने पर वस्तुओं को बेचने के लिए उत्पादक से क्रय करते हैं जिससे इन्हें बड़े पैमाने पर परिचालन के लाभ मिलते हैं।

विभागीय भडार की सीमाएं

  1. इनका आकार बहुत बड़ा होता है। परिणाम स्वरूप ग्राहकों पर व्यक्तिगत ध्यान देना संभव नहीं होता।
  2. इनके द्वारा अनेक आकर्षक सेवाएं उपलब्ध कराई जाती है जिसके कारण इनकी परिचालन लागत काफी अधिक होती है।
  3. ऊंची परिचालन लागत एवं बड़े पैमाने पर कार्य करने के कारण इनकी हानि की संभावना अधिक होती है।
  4. ये केन्द्रीय स्थलों पर स्थित होते हैं अत: तुरन्त आवश्यकता पड़ने पर किसी वस्तु को खरीदना आसान नहीं होता।

श्रृंखला भंडार अथवा बहुसंख्यक दुकानें
इस व्यवस्था के अन्तर्गत एक जैसी दिखाई देने वाली कई दुकानें देश के विभिन्न भागों में विभिन्न स्थानों पर खोली जाती है जिनको एक ही संगठन चलाता है तथा जिन पर मानकीय एवं ब्रांड की वस्तुएं बेची जाती है। जैसे बाटा, रेमण्ड्स आदि के शोरूम |

श्रृंखला भंडार की विशेषताएँ -

  • फुटकर इकाइयों के लिए उत्पादन/क्रय करना मुख्यालय में केन्द्रित
  • मुख्यालय द्वारा सभी शाखाओं का नियंत्रण
  • वस्तुओं का एक ही मूल्य व विक्रय नकद
  • प्रधान कार्यालय निरोक्षकों की नियुक्ति करता है।

श्रृंखला भंडार के लाभ

  1. केन्द्रीयकृत क्रय अथवा उत्पादन के कारण इन्हें बड़े पैमाने की बचत के लाभ प्राप्त होते हैं।
  2. इनके द्वारा सीधे ग्राहकों को वस्तुएं बेची जाती है अतः वस्तुओं की बिक्री में मध्यस्थों को समाप्त कर दिया जाता है।
  3. इनके द्वारा नकद विक्रय किया जाता है अत: अशोध्य ऋण की सम्भावना नहीं होती है।
  4. यदि वस्तुओं की मांग एक स्थान पर नहीं होती तो उन्हें उस स्थान पर भेज दिया जाता है जहां उनकी मांग होती है।
  5. एक दुकान की हानि की पूर्ति दूसरी दुकानों के लाभ से हो जाती है अतः संगठन का कुल जोखिम कम हो जाती है।
  6. क्रय का केन्द्रीकरण मध्यस्थों की समाप्ति, बड़े पैमाने पर बिक्री आदि के कारण परिचालन लागत कम होती है।

श्रृंखला भण्डार की हानियां

  1. इन दुकानों द्वारा सीमित वस्तुओं में व्यापार किया जाता है। अत: उपभोक्ताओं को चयन के सीमित अवसर ही प्राप्त होते हैं।
  2. इनके अन्तर्गत कार्यरत कर्मचारियों को प्रधान कार्यालय से प्राप्त आदेशों का पालन करना होता है जिसे उनकी पहल क्षमता समाप्त हो जाती है।
  3. प्रेरणा तथा पहल क्षमता के अभाद में कर्मचारियों में उदासीनता आ जाती है जिससे व्यक्तिगत सेवा का अभाव हो जाता है।
  4. इन दुकानों में बेची जाने वाली वस्तुओं की मांग में यदि कमी आ जाए तो संगठन को भारी हानि हो सकती है क्योंकि केन्द्रीय भंडार में बड़ी मात्रा में बिना बिका माल बच जाता है।

डाक आदेश व्यवसाय
ये ऐसे फुटकर व्यवसाय होते हैं जो डाक द्वारा वस्तुओं का विक्रय करते हैं। इस प्रकार के व्यापार में विक्रेता तथा क्रेता का प्रत्यक्ष व्यक्तिगत संपर्क नहीं होता है। व्यापारी अखबारों अथवा पत्रिकाओं में विज्ञापन, परिपत्र अनुसूची के माध्यम से क्रेताओं से सम्पर्क स्थापित करते हैं। विज्ञापन में वस्तुओं से सम्बन्धित सभी सूचनाएं दी जाती है जैसे मूल्य, सुपुर्दगी की शर्त आदि।
इसके अंतर्गत भुगतान प्राप्ति के निम्नलिखित विकल्प होते हैं :

  • वस्तुओं को मूल्य देय डाक के माध्यम से भेजा जाता है जिसमें भुगतान प्राप्ति के बाद ही माल को ग्राहकों को दिया जाता है।
  • ग्राहकों को अग्रिम रूप से पूर्ण भुगतान करने को कहा जा सकता है।
  • माल को बैंक के माध्यम से भेजा जाता है तथा पूर्ण भुगतान के बाद ही माल ग्राहक को सुपुर्द किया जाता है।

डाक आदेश व्यवसाय को लाभ

  1. इसके अन्तर्गत भवन तथा अन्य आधारगत ढांचे पर भारी व्यय की आवश्यकता नहीं होती है। अतः इसे कम पूंजी से प्रारम्भ किया जा सकता है।
  2. इस व्यवसाय में विक्रेता तथा क्रेता के बीच मध्यस्थों की आवश्यकता नहीं होती जिससे दोनों को लाभ होता है।
  3. डाक द्वारा केवल नकद आधार पर ही माल बेचा जाता है अत: अशोध्य ऋणों की संभावना नहीं होती।
  4. इस पद्धति से हर उस क्षेत्र तक माल भेजा जा सकता है जहां डाक सेवाएं उपलब्ध हैं।
  5. इसके अन्तर्गत ग्राहकों को उनके घर पर माल की सुपुर्दगी की जाती है जो कि उनके लिए सुविधाजनक होता है।

डाक आदेश व्यवसाय की सीमाएं

  1. इस व्यवसाय के क्रेता तथा विक्रेता के बीच व्यक्तिगत सम्पर्क नहीं होता जिससे उनके बीच भ्रम तथा अविश्वास पैदा होने की संभावना रहती है।
  2. इस प्रणाली में ग्राहकों को उधार सुविधा उपलब्ध नहीं होती।
  3. डाक द्वारा व्यवसाय में ग्राहकों को सूचित करने के लिए विज्ञापन और अन्य प्रवर्तन विधियों पर बहुत अधिक व्यय करना पड़ता है।
  4. डाक द्वारा आदेश प्राप्त करने तथा उनके क्रियान्वयन में अधिक समय लगता है।
  5. इस प्रणाली में बिक्री के बाद की सेवाएं प्रदान नहीं की जाती है जो कि ग्राहकों की सन्तुष्टि के लिए बहुत महत्वपूर्ण होती है।
  6. इस प्रकार के व्यापार में बेईमान व्यापारियों द्वारा धोखा दिए जाने की अधिक संभावना रहती है।
  7. डाक आदेशव्यापार की सफलता डाक सेवाओं पर निर्भर करती है। यदि डाक सेवाएं प्रभावी न हों तो यह व्यवसाय सफल नहीं हो सकता।

विक्रय मशीने :
ये सिक्कों से चलने वाली मशीनें होती हैं जिनके द्वारा दूध, सॉफ्ट ड्रिक, समाचार-पत्र आदि की बिक्री की जाती है। इस अवधारणा का नवीनतम उदाहरण आटोमेटिक टैलर मशीन (एटीएम) है जिसकी सहायता से बिना बैंक गए किसी भी समय पैसे निकाले जा सकते हैं। इन मशीनों की सहायता से कम मूल्य की एक समान आकार और भार की वस्तुओं को बेचा जा सकता है। लेकिन ऐसी मशीनों को लगाने पर प्रारंभिक व्यय तथा इनके रख-रखाव तथा मरम्मत पर भारी व्यय करना पड़ता है तथा ग्राहक वस्तु को क्रय करने से पहले उसका निरीक्षण नहीं कर सकते हैं।

आन्तरिक व्यापार में प्रयोग होने वाले प्रमुख प्रपत्र :

  1. बीजक: उधार क्रय के लिए विक्रेता से प्राप्त खरीदे गये माल के विवरण को बीजक कहते हैं। बीजक में विक्रेता का नाम, पता, खरीदे गये माल का लिखा होता है। इसे बिल या मीमों भी कहते हैं।
  2. प्रोफामा बीजक : प्रेषक द्वारा प्रेषणी को भेजे गये माल को विवरण को प्रोफार्मा बीजक कहते हैं। इसके अन्तर्गत माल की मात्रा, मूल्य व किये गये खचों की जानकारी दी जाती है क्योंकि प्रेषण बिक्री नहीं है और न ही प्रेषणी क्रेता। यह केवल सूचना है । इसे अंतरिम बीजक भी कहते हैं।
  3. डेबिट नोट : इसका अभिप्राय: ऐस पत्र या नोट से है जो क्रेता द्वारा विक्रेता को यह सूचित करने लिए भेजा जाता है कि उसका खाता पत्र में लिखी गई राशि से माल वापस करने के कारण डेबिट कर दिया गया है।
  4. क्रेडिट नोट : इसका अभिप्राय: ऐसे पत्र या नोट से है जो विक्रेता द्वारा क्रेता को यह सूचित करने के लिए भोजा जाता है कि उस का खाता पत्र में लिखी गई राशि से उसका माल वापसी का दावा स्वीकार करते हुए क्रेडिट कर दिया गया है। इसकी दो प्रतियां तैयार की जाती है। एक क्रेता को भेजते हैं, दूसरी अपने कार्यालय में रखते हैं।
  5. वाहन रसीद : इसका अभिप्राय: एक ऐसी रसीद से है जो माल को एक स्थान से दुसरे स्थान पर भेजने के लिए यातायात कम्पनी द्वारा माल की स्वीकृति हेतु जारी की जाती है।
  6. रेलवे रसीद : इसका अभिप्राय एक ऐसी रसीद से है जो माल को एक स्टेशन से दूसरे स्टेशन भेजने के लिए रेलवे द्वारा माल की स्वीकृति हेतु जारी की जाती है।

व्यापारीक मदें : व्यापार में प्रयोग होने वाली मुख्य मदें निम्न हैं:

  1. सुपुर्दगी पर नगदी : इसका अभिप्राय: व्यवहार के उस प्रकार से है जिसके अन्तर्गत माल का भुगतान सुपुर्दगी के समय किया जाता है।
  2. जहाज पर मूल्य : इसक अभिप्रायः क्रेता व विक्रेता के मध्य होने वाले उस अनुबंध से है जिसमें माल के वाहन तक सुपुर्दगी देने के सारे व्यय विक्रेता द्वारा वहन किये जाते हैं।
  3. लागत बीमा व भाड़ा : इसका अभिप्राय: व्यापारिक व्यवहारों में प्रयोग होने वाली उस मद से है जिसके अन्तर्गत वस्तुओं के मूल्य में केवल लागत ही नहीं बल्कि बीमा व भाड़ा व्यय भी शामिल होते हैं।
  4. ई.व.ओ.ई. : इसका अभिप्राय: उस मद से है जिसका प्रयोग प्रपत्रों में यह कहने के लिए किया जाता है, कि जो गलती हुई है और जो चीजें छूट गई हैं उन्हें भी ध्यान में रखा जायेगा।

आंतरिक व्यापार के प्रोत्साहन में चैम्बर ऑफ कॉमर्स एण्ड इण्डस्ट्रीज की
भूमिका

चैम्बर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री विभिन्न उद्योगों तथा व्यापारों से जुड़े लोगों का स्वैच्छिक संगठन है। विभिन्न क्षेत्रों, राष्ट्रों में रहने वाले पेशेवर विशेषज्ञ जैसे चार्टड एकाउन्टेन्टस, ब्रोकर बैंकर्स भी इसके सदस्य होते हैं। इसके मुख्य उद्देश्य व्यावसायिक समुदाय के हितों की देख-रेख करना तथा क्षेत्रीय स्तर पर व राष्ट्रीय स्तर पर उद्योग व वाणिज्य के विकास को बढ़ावा देना है। इसके मुख्य कार्य निम्नलिखित हैं :

  1. ये संघ समय-समय पर व्यवसायों तथा अर्थ व्यवस्था से संबंधित आंकड़े एकत्रित करते हैं तथा आंकड़ों के आधार पर अनेक सूचनाएं सदस्यों को प्रदान करते हैं।
  2. ये अपने सदस्यों को विभिन्न प्रकार की तकनीकी, कानूनी तथा अन्य महत्वपूर्ण सूचनाएं व सलाहें देते हैं।
  3. ये व्यावसायिक समुदाय के हितों को प्रोत्साहन देने के लिए औद्योगिक मेले एवं प्रदर्शनियां आयोजित करते हैं।
  4. ये क्षेत्रीय औद्योगिक तथा आर्थिक विकास के मामले में सरकार को सलाह भी देते हैं
  5. ये अपने सदस्यों के शिक्षण तथा प्रशिक्षण की व्यवस्था भी करते हैं।
  6. ये निर्यातकों को उद्गम स्थान पर प्रमाण-पत्र भी जारी करते हैं।
  7. ये सरकार के समक्ष, व्यावसायिक समुदाय के प्रवक्ता के रूप में कार्य करते हैं। समुदाय की आवश्यकताओं तथा शिकायतों को सरकार के समक्ष प्रस्तुत करते हैं।
  8. सम्मेलनों व सेमिनारों के आयोजन द्वारा ये सदस्यों को विचारों के आदान-प्रदान के लिए मंच प्रदान करते हैं।
  9. ये व्यापार एवं उद्योग में होने वाले झगड़ों का मध्यस्थता द्वारा निबटारा करने का प्रबन्ध करते हैं।