अंतरा - सूर्यकांत त्रिपाठी निराला - पुनरावृति नोट्स

 CBSE Class 12 हिंदी ऐच्छिक

पुनरावृति नोट्स
पाठ-2 गीत गाने दो मुझे / सरोज-स्मृति


(क) गीत गाने दो मुझे
गीत गाने दो ........................ पिफर सीचंने को।
मूल भाव - इस कविता में कवि ऐसे समय की ओर संकेत कर रहा है जब हर ओर निराशा ही निराशा ही निराशा व्याप्त है। वह निराशा में आशा का संचार करना चाहता है। 
व्याख्या बिन्दु:- कवि कहता है कि जीवन में निरंतर बढ़ती हुई पीड़ा अथवा दुःख को कम करने के लिए, उसे भुलाने के लिए उसे गीत गाने दो। गीत हृदय की अनुभूतियाँ है। ये वेदना की तीव्रता को भुला सकते हैं, दुःखो को कम कर सकते है। जीवन-मार्ग पर चलते हुए हर कदम पर चोट खाते-खाते और संघर्ष करते-करते होश वालों के भी होश छूट गए है। अर्थात् अब जीना आसान नहीं रह गया है। जीने के लिए जो भी था, मूल्यवान था, उसे छल-कपट से उन मालिकों ने रात के अंध्कार में संकट के समयद्ध लूट लिया, जिन पर भरोसा था। अब पीड़ा सहते सहते कंठ रूकने लगा है, ऐसा लगता है कि सामने काल आ रहा है। अब जीना कठिन हो गया है। लोग कुछ कह नहीं पा रहे हैं। इस निराशा भरे वातावरण में कवि गीत गाना चाहता है ताकि व्यथा को रोका जा सके। कवि कहता है कि संसार हार मानकर स्वार्थ और अविश्वास के जहर से भर गया है। संसार से सहानुभूति, करूणा, उदारता, सहयोग, भाईचारा, आदि भावनाएँ लुप्त हो चुकी हैं। अब लोग आपस में एक दूसरे को अपरिचित निगाहों से देख रहे हैं। मानवता हाहाकार कर रही हैं। लोगों में जीने की इच्छा मर चुकी है। संसार में एकता, समता, सहानुभूति तथा प्रेम की लौ बुझ गई है। कवि मानवता की बुझती लौ को पिफर से जलाने के लिए स्वयं जलना चाहता है। वह ऐसे गीत गाना चाहता है जो संसार में पफैली निराशा में आशा का संचार कर सके।

(ख) सरोज-स्मृति
देखा  विवाह ........................ तेरा  तर्पण।
मूल  भाव :-  ‘सरोज  स्मृति’  कविता  कवि  निराला  की  दिवंगत  पुत्राी  पर  केंद्रित  है।  इस  कविता  के माध्यम से निराला का जीवन-संघर्ष एक भाग्यहीन पिता का संघर्ष, समाज से उसके  संबंध् तथा पुत्री के  प्रति  बहुत कुछ  न  कर  पाने का  अकर्मण्यता  बोध्  भी प्रकट  हुआ  है।
कवि अपनी  स्वर्गीया  पुत्राी  सरोज को  संबोध्ति करते  हुए कहता  है कि  तेरा  विवाह  सभी प्रकार  की रूढ़ियों  से मुक्त सर्वथा नवीन पद्ध्ति  से हुआ था।  विवाह के समय कवि  माता-पिता  दोनों के  कर्तव्य निभा रहा था। कवि कहता  है कि पवित्रा कलश के जल से तेरा  स्नान कराया गया तब तू मुझे मंद मुस्कुराहट के  साथ  देख  रही थी।  ऐसा लगता  था  कि तेरे  होंठों में  बिजली की  चमक पफंसी  हो।  तुम्हारे हृदय में पति की सुंदर  छवि थी। यह बात तुम् हारे श्रृंगार में मुखरित हो रही थी। विवाह के समय तेरा विश्वास  तेरे  उच्छ्वासें  के  साथ-साथ  अंग-अंग  में झलक  रहा था  अर्थात्  तू अपने  विवाह के  समय पूर्ण आश्वस्त तथा प्रसन्न दिखाई दे रही थी। लज्जा व संकोच से झुकी हुई तेरी आँखों में एक नया प्रकाश उभर आया था, तेरे  होंठों पर स्वाभाविक कंपन था। उस समय मेरे वसंत की प्रथम गीति का प्यास  उस  मूर्ति  में  साकार  हो  उठी  थी।  कवि  कहता  है  मैंने  अपनी  कविताओं  में  सौदर्य  के  जिस  निराकार भाव को  अभिव्यक्त किया था, वह तुम् हारे  रूप-सौन्दर्य में साकार  हो उठा था। कविताओं में वही रस की धरा बनकर प्रवाहित होता रहता था। श्रृंगार के जिस गीत को मैंने अपनी स्वर्गीय पत्नी के साथ मिलकर गाया था, वह आज भी मेरे प्राणों में अनुरागपूर्ण उत्साह का  संचार कर रहा है। ऐसा लगता है कवि की पत्नी का आलौकिक सौन्दर्य आकाश से उतरकर पुत्राी सरोज के रूप में पृथ्वी पर आ गया हो।  तेरा  रूप सौन्दर्य  कामदेव की पत्नी  रति के  समान  अवर्णनीय था।  तेरा  विवाह  संपन्न  हो  गया। इस  विवाह  में  कोई  आत्मीय  जन  नहीं  थे,  न  ही  उन्हें  कोई  निमंत्राण  भेजा  गया  था।  विवाह  अत्यंत  सादगी के   साथ  सम्पन्न  हुआ।  विवाह में रात्रि  जागरण  नहीं  हुआ  न  ही  विवाह  गीत  गाए  गये,  न  कोई चहल-पहल हुई। सर्वत्रा एक मौन संगीत समाया हुआ था जो तुम् हारे नव जीवन में उतर आया था। कवि कहता है कि माँ  के  अभाव में मैंने  तुझे  वे सभी  शिक्षाएँ दी जो  माताएँ अपनी पुत्राी को  देती है। मैंने ही तेरी पुष्प सेज को  भी  तैयार की।  उस समय  कवि को  कण्व ऋषि  की पालित  पुत्राी शकुन्तला  की याद आ गई  वह  भी माँ  विहीन  थी।  किंतु  उस घटना तथा  यहाँ की  स्थिति में  अन्तर है।  नानी की  स्नेहमयी गोद में आ गई अर्थात तू नानी के पास आ गई। मामा-मामी का  भरपूर स्नेह मिला।  उन्होनें तुझ पर स्नेह की वर्षा उसी  प्रकार की जिस प्रकार बादल ध्रती पर जल बरसाते हैं। वे सदा तेरे  रक्षक और हित चिंतक बने  रहे। वे सदा तेरे कामों में लगे रहे।  तेरी माँ  उस कुल की लता थी,  जहाँ तू कली के  रूप में  खिली  तथा पफली-पूफली तथा तेरा  पालन-पोषण हुआ। अंत समय  तू  उसी गोद अर्थात् नानी की गोद में  आ गई  थी और तूने  सदा-सदा के  लिए मृत्यु  का  वरण कर अपनी आँखे  मूंद ली थी। कवि कहता  है कि मैं  तो सदैव  से भाग्यहीन था।  तू ही मेरा  एकमात्रा  सहारा  थी।  युग के  बाद जब तू मुझ से बिछुड़ गई तो दुःख  मेरे जीवन की कथा बन गयी। मेरे जीवन में सदैव दुःख  ही भरा  रहा कभी सुख देखाने को नहीं मिला। जीवन में मिले दुःखो और अभावों के कारण कवि अपनी पुत्राी के प्रति  कत्र्तव्यों  का  पालन  नहीं  कर  पाया।  वह  पश्चाताप  करते  हुए  कहता  है  कि  मेरे  कवि  कर्म  पर  वज्रपात हो  जाए तब भी मेरा  सिर  श्रद्धा से झुका  रहेगा। अपने  कत्र्तव्य का  पालन करते  हुए मेरे  समस्त सत्कार्य शीतकाल में पाला  पड़ने  से कमल की तरह  नष्ट हो  जाएं तब भी कोई चिंता  नहीं है। मैें अपने  विगत जीवन के सभी कार्यो का पफल तुझे अर्पित कर तेरा तर्पण कर रहा हूँ अर्थात् तेरा श्राद्ध कर रहा हूँ। तेरे  प्रति यही  मेरी श्रद्धांजलि  है।