धर्मनिरपेक्षता - पुनरावृति नोट्स

CBSE कक्षा 11 राजनीति
पाठ - 8 धर्मनिरपेक्षता
पुनरावृति नोटस

स्मरणीय बिंदु:-
  • आज के दौर में धर्मनिरपेक्षता का सिद्धान्त सभी समाजों में स्वीकार्य है। इसके अनुसार धर्म को व्यक्तिगत मामला माना गया है। राज्य इसमें कोई हस्तक्षेप नहीं करता।
  • राज्य द्वारा सभी धर्मो को आदर देना तथा धर्म प्रभावी समूहों को राजनीति व सत्ता से स्वतंत्र व अलग रखना पंथनिरपेक्षता कहलाता है।
  • स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान ही भारत में भारत में धर्मनिरपेक्षता की अवधारणा बलवती होती चली गयी।
  • यह विडंबना ही थी कि मुख्यतः धर्मनिरपेक्ष तरीके से चले स्वतंत्रता आंदोलन की परिणती धर्म के आधार पर देश-विभाजन के रूप में हुई।
  • स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद बने भारतीय संविधान का स्वरूप पूर्णतः धर्मनिरपेक्ष था हालांकि इसमें कहीं भी धर्मनिरपेक्ष शब्द का प्रयोग नहीं हुआ था।
  • भारत का संविधान किसी एक धर्म को राष्ट्रीय धर्म का दर्जा नहीं देता। यह सर्वधर्म समभाव की नीति को मान्यता देता है।
  • भारतीय समाज में अनेक धर्मो को मानने वाले लोग है जैसे हिन्दू, मुस्लिम, सिख, ईसाई आदि। ये किसी पंथ विशेष में आस्था रखते है, अपने धर्मगुरू से प्रभावित होते है, अलग-अलग धार्मिक ग्रंथों में आस्था रखते है तथा पूजा-पाठ की विभिन्न विधियों का प्रयोग करते है। संविधान सभी को पूर्ण धार्मिक स्वतंत्रता प्रदान करता है।
  • भारतीय संविधान में सन् 1976 में 42 वें संशोधन द्वारा प्रस्तावना में पंथनिरपेक्ष शब्द जोड़ दिया गया।
  • धर्म और राज्यसत्ता के बीच संबंध विच्छेद धर्मनिरपेक्ष राज्यसत्ता के लिए जरूरी है, मगर केवल यही पर्याय नहीं है। धर्मनिरपेक्षता अंतः धार्मिक वर्चस्व यानि धर्म के अन्दर छुपे वर्चस्व के विरोध के साथ-साथ अंतर धार्मिक वर्चस्व का भी विरोध करता है।
धर्म निरपेक्षता का अर्थ है:-
  • बिना किसी भेदभाव के सभी धर्मों को अपना धर्म मानने व प्रचार करने की स्वतंत्रता अर्थात् जब राज्य धर्म को लेकर कोई भेद-भाव न करें।
  • भारत विभिन्नताओं का देश है लोकतन्त्र को बनाए रखने के लिए सभी को समान अवसर प्रदान करने का कार्य कठिन है इस लिए भारतीय संविधान के 42वें संशोधन के द्वारा पंथ निरपेक्षता शब्द को जोड़ा गया। संविधान के घोषणा पत्र में धार्मिक वर्चवाद का विरोध करना, धर्म के अन्दर छिपे वर्चस्व का विरोध करना तथा विभिन्न धर्मों के बीच तथा उनके अन्दर समानता को बढ़ावा देना आदि की घोषणा करता है।
धर्मों के बीच वर्चस्ववादः
  • हर भरतीय नागरिक को देश के किसी भी भाग में आजादी और प्रतिष्ठा के साथ रहने का अधिकार है फिर भी भेदभाव के अनेक उदाहरण पाए जाते है जिससे धर्मों के बीच वर्चस्वाद बढ़ा क्योंकि स्वयं के धर्म को श्रेष्ठ मानते हैं।
    1. 1984 के सिख दंगो में हजारों सिख मरे गए
    2. कश्मीर से कश्मीरी पंडितों को निकाल दिया |
    3. 2002 में गुजरात में अनेक मुसलमान मरे गए तथा स्थान छोड़ कर चले गए |
धर्म के अन्दर वर्चस्ववाद:-
  • मंदिरों में महिलाओं तथा दलितों का प्रवेश वर्जित
  • अनेक मस्जिदों में महिलाओं का नमाज वर्जित
धर्म निरपेक्ष राज्यः
  • वह राज्य जहां सरकार की तरफ से किसी धर्म को अधिकारिक (कानूनी) मान्यता न दी गई हो।
  • सर्व धर्म समभाव की अवधारणा को महत्व।
  • धार्मिक समूह के वर्चस्व को रोकना
  • धार्मिक संस्थाओं एवं राज्यसत्ता की संस्थाओं के बीच स्पष्ट अंतर होना चाहिए। तभी शांति, स्वतंत्रता और समानता स्थापित हो पाएगी।
  • किसी भी प्रकार के धार्मिक गठजोड़ से परहेज |
  • ऐसे लक्ष्यों व सिद्धान्तों के प्रति प्रतिबद्ध होने चाहिए जो शांति, धार्मिक स्वतंत्रता, धार्मिक उत्पीड़न, भेदभाव और वर्जनाओं से आजादी को महत्व दें।
धर्मनिरपेक्षता का यूरोपीय मॉडल:-
  • धर्म और राज्य का एक दूसरे के मामले में हस्तक्षेप न करने की अटल नीति
  • राज्य समर्थित धार्मिक सुधार के लिए कोई जगह नहीं
  • अमेरिकी मॉडल-धर्म और राज्य सत्ता के संबंधविच्छेद को पारस्परिक निषेध के रूप में समझा जाता है। राजसत्ता धर्म के मामले में व धर्म राजसत्ता के मामले में हस्तक्षेप नहीं करेंगे ।
  • ये संकल्पना स्वतंत्रता और समानता की व्यक्तिवादी ढंग से व्याख्या करती है।
  • धर्मनिरपेक्षता में राज्य समर्थित धार्मिक सुधार के लिये कोई जगह नहीं है।
धर्मनिरपेक्षता का भारतीय मॉडल:-
  • अंतर धार्मिक सहिष्णुता से प्रभावित
  • अंतः धार्मिक वर्चस्व का पुरूतोर विरोध
  • अल्पसंख्यक समुदायों के अधिकारों की सुनिश्चितता
  • राज्य समर्थित धार्मिक सुधार
  • भारतीय धर्म निरपेक्षता केवल धर्म और राज्य के बीच संबंध विच्छेद पर बल नहीं देता।
  • अप्लसंख्यक तथा सभी व्यक्तियों को धर्म अपनाने की आजादी देता है।
  • भारतीय राज्य धार्मिक अत्याचार का विरोध करने हेतु धर्म के साथ निषेधात्मक संबंध भी बना सकता है।
  • भारतीय संविधान ने अल्पसंख्यकों को खुद अपनी समस्याएं खोजने का अधिकार है तथा राज्यसत्ता के द्वारा सहायता भी मिल सकती हैं।
  • भारतीय संविधान की प्रस्तावना में 42वें संशोधन 1976 के बाद पंथ निरपेक्ष शब्द जोड़ दिया है।
  • मौलिक अधिकारों में धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार, समानता का अधिकार शिक्षा व सांस्कृति का अधिकार सभी धर्मों को समान अवसर प्रदान करते हैं।
धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकारः-
  • अनुच्छेद 24 से 28 तक
भारतीय धर्मनिरपेक्षता की आलोचनाएं:-
  1. अनु0 25
    1. भारत में रहने वाला प्रत्येक व्यक्ति किसी धर्म को मान सकता है |
    2. विश्वास कर सकता है |
    3. प्रचार कर सकता है |
  2. अनु0 26 धार्मिक मामलों के प्रबंधन की स्वतंत्रता की व्यवस्था की गई है |
  3. अनु0 27 किसी व्यक्ति को ऐसा कोई कर देने के लिए मजबूर नहीं किया जाएगा जो किसी धर्म को बढ़ाने के काम आए |
  4. अनु0 28 सरकारी शिक्षण संस्थाओं में धार्मिक शिक्षा पर रोक लगाईं गई है |
  • धर्म विरोधियों के अनुसार धर्म निरपेक्षता धर्म विरोधी है तथा धार्मिक पहचान के लिए खतरा पैदा करती है। पश्चिमी से आयातित है। अल्पसंख्यक अधिकारों की पैरवी करती है। अल्पसंख्यकवाद का आरोप मढ़ा जाता है। वोट बैंक की राजनीति को बढ़ावा देती है। अतिशय हस्तक्षेपकारी क्योंकि भारतीय धर्मनिरपेक्षता राज्यसक्ता समर्थित धार्मिक सुधार की इजाजत देती है।
असंभव परियोजना:-
  • धर्म निरपेक्षता की नीति बहुत कुछ करना चाहती है परन्तु यह परियोजना सच्चाई से दूर है जो असम्भव है।
  • अनेक आलोचनाओं के बाद भी भारत की धर्म निरपेक्षता की नीति भविष्य की दुनिया का प्रतिबिम्ब प्रस्तुत करती हैं। भारत में महान प्रयोग किए जा रहें है। जिसे पूरा विश्व चाव से देखता है। यूरोप अमेरिका तथा मध्यपूर्व के कुछ देश धर्म संस्कृति की विविधता से भारत जैसे दिखने लगे है।