अंतरा - नागार्जुन - पुनरावृति नोट्स

 CBSE कक्षा 11 हिंदी (ऐच्छिक)

अंतरा काव्य खण्ड
पाठ-8 नागार्जुन वर्मा (बादल को घिरते देखा है)
पुनरावृत्ति नोट्स


कवि परिचय-

  • नागार्जुन का जन्म बिहार के तरौनी जिला में हुआ था। नागार्जुन का वास्तविक नाम वैद्यनाथ मिश्र था। प्रारम्भिक शिक्षा संस्कृत पाठशाला तथा उच्च शिक्षा वाराणसी तथा कोलकाता में हुई।

रचनाएँ-

  • काव्य कृतियाँ- युगधारा, पथराई आँखे, तालाब की मछलियाँ, सतरंगे पंखों वाली, तुमने कहा था, रत्नगर्भा, पुरानी जूतियों का कोरस, हजार-हजार बाँहों वाली आदि।
  • उपन्यास- बलचनामा, जमनिया का बाबा, कुंभी पाक, उग्रतारा, रविनाथ की चाची, वरुण को बेटे आदि।

सम्मान- विलक्षण प्रतिमा के धनी नागार्जुन को अनेक पुरस्कारों से सम्मानित किया गया।

  1. साहित्य अकादमी पुरस्कार
  2. भारत भारती पुरस्कार
  3. मैथिली शरण गुप्त पुरस्कार
  4. राजेन्द्र प्रसाद पुरस्कार
  5. हिन्दी अकादमी दिल्ली का शिखर सम्मान आदि।

काव्यगत विशेषताएं- नागार्जुन प्रगतिशील काव्यधारा के साहित्यकार रहे हैं।

  1. कविताओं में बांग्ला, संस्कृत, अरबी, फारसी तथा मैथिली आदि भाषा के शब्दों का प्रयोग किया गया है।
  2. भाषा सहज, सरल व चित्रात्मक है।
  3. काव्य में खड़ी बोली का भी प्रयोग है।
  4. तत्सम-तद्भव शब्दों का प्रयोग मिलता है।
  5. काव्य में धार-दार व्यंग्य का वर्णन किया गया है।
  6. काव्य की विशेषता छंदबद्ध तथा छदमुक्त हैं।

पाठ-परिचय-

  • नागार्जुन द्वारा रचित 'बादल को घिरते देखा' कविता में प्रकृति का चित्रण किया गया है। यह कविता नागार्जुन की कविता संग्रह ‘युगधारा' से ली गई है। वर्षा ऋतु के आने पर सम्पूर्ण प्रकृति में जो परिवर्तन आता है उसका कवि ने छः दृश्य द्वारा वर्णन किया है। इसी प्रकृति से सम्बन्धित मनोभावों को विविध बिम्बों के माध्यम द्वारा अभिव्यक्त किया है। वे छः दृश्य कुछ इस प्रकार हैं-पावस की उमस को शान्त करते हुए मानसरोवर में तैरते हंस, चकवा-चकवी का प्रणय मिलन, हिमालय की गोद में सुवास को खोजते हिरन, हिमालय की चोटियों पर बादल का गरजना, और तूफान, मनोरम अँगुलियों को वंशी पर फिरते किन्नर और किन्नरियाँ। ये सभी चित्र बहुत ही आकर्षक, मनोरम तथा हृदयस्पर्शी होने के साथ-साथ कविता को मनोरंजक और रोचक बनाते हैं। यदि देखा जाए तो ऐसा लगता है कि कवि ने कालिदास की परम्परा को आगे बढ़ाया है।

मूलभाव-

  • नागार्जुन के कविता संग्रह ‘युगधारा’ से लिया गया है। कविता में प्रकृति चित्रण का सुन्दर उदाहरण है। वर्षा ऋतु आने पर सारी प्रकृति जैसे अपनी विरहाग्नि शान्त करती नजर आती है। इसी भाव को कवि ने विविध बिम्बों से व्यक्त किया है। कविता में हिमालय की पहाड़ियों, दुर्गम बर्फीली घाटियों, झीलों, झरनों तथा देवदारु के जंगलों के बीच दुर्लभ वनस्पतियों जीव-जन्तुओं, गगनचुम्बी कैलाश पर्वत पर मेघा किन्नर-किन्नरियों के विलास पूर्ण जीवन का अत्यन्त आकर्षण वर्णन किया है।
  • कवि बताता है कि जब स्वच्छ और धवल चोटियों पर वर्षा कालीन बादल छा जाते हैं तो सम्पूर्ण प्रकृति उल्लास से भर जाती है। मानसरोवर के सुनहरे कमलों पर ओस-कण मोतियों के समान झलकते हैं पावस की उमस से व्याकुल समतल प्रदेशों से आकर हंस झीलों में तैरते हुए कमल डंडियों को खोजते हैं। रात की विरह पीड़ा से व्याकुल चकवा-चकवी सवेरा होते ही अपनी प्रणय-क्रीडा में मग्न हो जाते हैं। सैकड़ों हजारों फुट दुर्गम बर्फीली घाटी में अपनी ही नाभि से उठने वाली मादक सुगन्ध को न पाने पर युवा हिरन को खीझते हुए देखा है।
  • पर्वतों पर छाई घटा कालीदास की रचना मेघदूत की याद दिला देती है। कवि ने भीषण जाड़ों में मेघों को झंझावत (तेज हवायें) को आपसे भिड़ते हुए देखा है। पर्वतीय शोभा पर मुग्ध कवि को किन्नर-किन्नरियों का विलासपूर्ण जीवन याद आ जाता है। वे मस्ती के वातावरण में द्राक्षासव (मदिरा) तथा संगीत का आनन्द उठाते दिखाई देते हैं।