चुनाव और प्रतिनिधित्व - एनसीईआरटी प्रश्न-उत्तर

सीबीएसई कक्षा - 11 राजनीति विज्ञान
एनसीईआरटी प्रश्नोत्तर
पाठ - 3 चुनाव और प्रतिनिधित्व

1. निम्नलिखित में कौन प्रत्यक्ष लोकतंत्र के सबसे नजदीक बैठता है?
  1. परिवार की बैठक में होने वाली चर्चा
  2. कक्षा-संचालक (क्लास-मॉनीटर) का चुनाव
  3. किसी राजनीतिक दल द्वारा अपने उम्मीदवार का चयन
  4. मीडिया द्वारा करवाये गये जनमत-संग्रह
उत्तर- ii कक्षा-संचालक (क्लास-मॉनीटर) का चुनाव

2. इनमें कौन-सा कार्य चुनाव आयोग नहीं करता?
  1. मतदाता-सूची तैयार करना
  2. उम्मीदवारों का नामांकन
  3. मतदान-केंद्रों की स्थापना
  4. आचार-संहिता लागू करना
  5. पंचायत के चुनावों का पर्यवेक्षण
उत्तर- v. पंचायत के चुनावों का पर्यवेक्षण

3. निम्नलिखित में कौन-सी बात राज्य सभा और लोक सभा के सदस्यों के चुनाव की प्रणाली में समान है?
  1. 18 वर्ष से ज्यादा की उम्र का हर नागरिक मतदान करने के योग्य है।
  2. विभिन्न प्रत्याशियों के बारे में मतदाता अपनी पसंद को वरीयता क्रम में रख सकता है।
  3. प्रत्येक मत का समान मूल्य होता है।
  4. विजयी उम्मीदवार को आधे से अधिक मत प्राप्त होने चाहिए।
उत्तर- i. 18 वर्ष से ज्यादा की उम्र का हर नागरिक मतदान करने के योग्य हैं।

4. फर्स्ट पास्ट द पोस्ट प्रणाली में वही प्रत्याशी विजेता घोषित किया जाता है जो-
  1. सर्वाधिक संख्या में मत अर्जित करता है।
  2. देश में सर्वाधिक मत प्राप्त करने वाले दल का सदस्य ही।
  3. चुनाव-क्षेत्र के अन्य उम्मीदवारों से ज्यादा मत हासिल करता है।
  4. 50 प्रतिशत से अधिक मत हासिल करके प्रथम स्थान पर आता है।
उत्तर- iii. चुनाव क्षेत्र के अन्य उम्मीदवारों से ज्यादा मत हासिल करता है।

5. पृथक निर्वाचन-मंडल और आरक्षित चुनाव-क्षेत्र के बीच क्या अंतर है? संविधान निमार्ताओं ने पृथक निर्वाचन-मंडल को क्यों स्वीकार नहीं किया?
उत्तर- पृथक निर्वाचन-मंडल : इसके अंतर्गत किसी जाति-विशेष के प्रतिनिधि के चुनाव में केवल उसी वर्ग के लोग मतदान कर सकते हैं। भारत में अंग्रेज़ों के शासन काल में 1909 के एक्ट द्वारा मुसलमानों के लिए यह व्यवस्था लागू थी।
आरक्षित चुनाव-क्षेत्र : इसके अंतर्गत चुनाव में सीट जिस वर्ग के लिए आरक्षित है, प्रत्याशी उसी वर्ग-विशेष अथवा समुदाय का होगा परंतु मतदान का अधिकार समाज के सभी वर्गों को प्राप्त होगा।
भारतीय संविधान निर्माताओं ने पृथक निर्वाचन-मंडल को इसलिए स्वीकार नहीं किया क्योकि यह एक विभाजनकारी व्यवस्था थी। यह राष्ट्र की एकता एवं अखंडता को नष्ट करने में सहायक सिद्ध हो रही थी और पूरे देश को जाति के आधार पर विभाजित कर रही थी। इस व्यवस्था में प्रत्याशी अपने समुदाय के हितों को व्यवस्था में प्रत्याशी समाज के सभी वर्गों के हितों को महत्त्व देता है और पूरे समाज के विकास पर बल देता है। इसलिए भारतीय संविधान निर्माताओं ने पृथक निर्वाचन-मंडल व्यवस्था में व्याप्त दोषों को देखते हुए देश विभाजन के साथ ही इस व्यवस्था को भी अस्वीकार कर दिया और आरक्षित चुनाव क्षेत्र की व्यवस्था करते हुए संयुक्त मतदाता की नीति को लागू किया।

6. निम्नलिखित में कौन-सा कथन गलत है? इसकी पहचान करें और किसी एक शब्द अथवा पद को बदलकर, जोड़कर अथवा नये क्रम में सजाकर इसे सही करें।
  1. एक फर्स्ट-पास्ट-द-पोस्ट प्रणाली ('जो सबसे आगे वही जीते प्रणाली') का पालन भारत के हर चुनाव में होता है।
  2. चुनाव आयोग पंचायत और नगरपालिकाओं के चुनावों का पर्यवेक्षण नहीं करता।
  3. भारत का राष्ट्रपति किसी चुनाव आयुक्त को नहीं हटा सकता।
  4. चुनाव आयोग में एक से ज्यादा चुनाव आयुक्त की नियुक्ति अनिवार्य है।
उत्तर- iii. भारत के राष्ट्रपति को यह अधिकार है कि वह चुनाव आयुक्त को उसके पद से हटा दे।

7. भारत की चुनाव-प्रणाली का लक्ष्य समाज के कमजोर तबके की नुमाइंदगी को सुनिश्चित करना है। लेकिन अभी तक हमारी विधायिका में महिला सदस्यों की संख्या 10 प्रतिशत तक भी नहीं पहुँचती। इस स्थिति में सुधार के लिए आप क्या उपाय सुझायेंगे?
उत्तर- भारतीय संविधान में आरक्षण की व्यवस्था समाज में विशेष पिछड़े वर्गों को ऊपर उठाकर समाज में समरसता लाने के लिए एक साधन के रूप में की गई है। किसी भी वर्ग की आरक्षण प्रदान करने के लिए आवश्यक है कि वह वर्ग सामाजिक और शैक्षिक दृष्टि से पिछड़ा हो तथा उसे राज्याधीन पदों पर पर्याप्त प्रतिनिधित्व न प्राप्त हो। महिलाओं की स्थिति अत्यंत दयनीय है, चाहे वह देश की विधायिका हो अथवा राज्यों की विधान सभाएँ। जनसंख्या के अनुपात में इनकी स्थिति बहुत खराब है, जो शोचनीय विषय है। विधायिका जहाँ देश का कानून बनता है, वहाँ इतनी बड़ी जनसंख्या की उपेक्षा करना, राष्ट्र के विकास में बाधा उत्पन्न करता हैं। गौरतलब है कि भारतीय संविधान में समानता के अधिकार पर बल दिया गया है और स्त्री-पुरुष में किसी तरह का कोई भेदभाव नहीं किया गया है। इसलिए वर्तमान स्थिति को देखते हुए यह जरूरी है की महिलाओं को उनकी जनसंख्या के अनुपात में आरक्षण प्रदान कर देश के कानून निर्माण में उन्हें भी भागीदार बनाया जाए। तभी कोई समाज अथवा राष्ट्र पूर्णरूप से विकसित एवं समृद्ध होता है।

8. एक नये देश के संविधान के बारे में आयोजित किसी संगोष्ठी में वक्ताओं ने निम्नलिखित आशाएँ जतायीं। प्रत्येक कथन के बारे में बतायें कि उनके लिए फर्स्ट-पास्ट-द-पोस्ट (सर्वाधिक मत से जीत वाली प्रणाली) उचित होगी या समानुपातिक प्रतिनिधित्व वाली प्रणाली?
  1. लोगों को इस बात की साफ-साफ जानकारी होनी चाहिए कि उनका प्रतिनिधि कौन है ताकि वे उसे निजी तौर पर जिम्मेदार ठहरा सकें।
  2. हमारे देश में भाषायी रूप से अल्पसंख्यक छोटे-छोटे समुदाय हैं और देश भर में फैले हैं, हमें इनकी ठीक-ठीक नुमाइंदगी को सुनिश्चित करना चाहिए।
  3. विभिन्न दलों के बीच सीट और वोट को लेकर कोई विसंगति नहीं रखनी चाहिए।
  4. लोग किसी अच्छे प्रत्याशी को चुनने में समर्थ होने चाहिए। भले ही वे उसके राजनीतिक दल को पसंद न करते हों।
उत्तर- उपरोक्त कथनों में
  1. इसके के लिए समानुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली उचित होगी।
  2. इसके के लिए फर्स्ट-पास्ट-द-पोस्ट प्रणाली उचित होगी।
  3. इसके के लिए समानुपातिक प्रतििनिधत्व प्रणाली उचित होगी।
  4. इसके के लिए फर्स्ट-पास्ट-द-पोस्ट प्रणाली उचित होगी।

9. एक भूतपूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त ने एक राजनीतिक दल का सदस्य बनकर चुनाव लड़ा। इस मसले पर कई विचार सामने आये। एक विचार यह था कि भूतपूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त एक स्वतंत्र नागरिक है। उसे किसी राजनीतिक दल में होने और चुनाव लड़ने का अधिकार है। दूसरे विचार के अनुसार, ऐसे विकल्प की संभावना कायम रखने में चुनाव आयोग की निष्पक्षता प्रभावित होगी। इस कारण भूतपूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त को चुनाव लड्ने की अनुमति नहीं देनी चाहिए। आप इसमें किस पक्ष से सहमत हैं और क्यों?
उत्तर- भारत विश्व का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देश है , भारत में लोकतंत्र सफल एवं सुचारु रूप से चलाने के लिए समय-समय पर चुनाव कराने की व्यवस्था की गई है। चुनाव आयोग द्वारा चुनाव कराने का कार्य सम्पन्न किया जाता हैं। चुनाव आयोग के द्वारा स्थानीय निकायों के चुनाव को संचालित नहीं किया जाता है। वर्तमान चुनाव आयोग बहु-सदस्यीय है जिसमें एक मुख्य चुनाव आयुक्त तथा दो अन्य चुनाव आयुक्त हैं। देश में चुनाव निष्पक्ष और स्वतंत्र वातावरण में हों, यह चुनाव आयोग के लिए एक चुनौतीपूर्ण कार्य होता है। निष्पक्ष चुनाव लोकतंत्र की सफलता की आवश्यक शर्त है। चुनाव प्रणाली को पारदर्शी बनाने में मुख्य चुनाव आयुक्त की भूमिका महत्त्वपूर्ण होती है। मुख्य चुनाव आयुक्त एवं अन्य चुनाव आयुक्त छह वर्ष का कार्यकाल पूरा होने पर सेवानिवृत्त हो जाते हैं।
इस सन्दर्भ में यह कहा जा सकता है की मुख्य चुनाव आयुक्त को चुनाव लड़ने की अनुमति देनी चाहिए या नहीं, इसमें पहला कथन उचित एवं सही है। मुख्य चुनाव आयुक्त को चुनाव लड़ने की अनुमति मिलनी चाहिए, क्योंकि वह भी देश का एक स्वतंत्र नागरिक है। इस विषय पर किसी को कोई आपत्ति नहीं होनी चाहिए। वे सारे अधिकार उसे भी प्राप्त होते हैं, जो एक साधारण नागरिक की प्राप्त होते हैं। हालाँकि राजनीतिक दल का सदस्य बनकर चुनाव लड़ने से जनसाधारण में यह भ्रम उत्पन्न हो जाता हैं कि इससे चुनाव की निष्पक्षता प्रभावित होगी। परंतु ऐसी कोई बात नहीं होती। उसकी स्वतंत्रता एवं निष्पक्षता पर मुख्य चुनाव आयुक्त अपना कार्यकाल पूरा करके ही चुनाव लड़ता है। उसके पास एक लंबा कार्य-अनुभव तथा व्यावहारिक ज्ञान होता है। वह अपने बहुमूल्य सुझावों के माध्यम से राष्ट्र के विकास में महत्त्वपूर्ण योगदान दे सकता है। इसलिए भूतपूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त को चुनाव लड़ने की अनुमति देनी चाहिए।

10. भारत का लोकतंत्र अब अनगढ़ 'फर्स्ट पास्ट द पोस्ट' प्रणाली को छोड़कर समानुपातिक प्रतिनिध्यात्मक प्रणाली को अपनाने के लिए तैयार हो चुका है' क्या आप इस कथन से सहमत हैं? इस कथन के पक्ष अथवा विपक्ष तर्क दें।
उत्तर- भारत में संविधान निर्माण के समय , इस विषय पर विवाद उत्पन्न हो गया जिसके परिणामस्वरूप स्थिति का अवलोकन करते हुए भारत के चुनाव में 'फर्स्ट पास्ट द पोस्ट' अर्थात् सर्वाधिक मत से विजय वाली प्रणाली को स्वीकार्य किया गया। समानुपातिक प्रणाली के प्रयोग केवल सूची जारी करते हैं और अपने उतने ही प्रत्याशियों को इस प्राथमिक सूची में चुन लेते हैं, जितनी सीटों का कोटा उन्हें उपलब्ध कराया जाता है। 1989 के उपरांत देश में बहुदलीय गठबंधन की कार्यप्रणाली प्रचलन में आई। 'जो सबसे आगे, वही जीते' प्रणाली को स्वीकार्य करने का कारण यह है कि यह एक सरल प्रणाली है। परंतु आज 'जो सबसे आगे, वही जीते' प्रणाली में भी कई दोष देखने को मिलने लगे हैं। बहुदलीय व्यवस्था होने के कारण गठबंधन की सरकार बनाई जाती है। इसके साथ ही जो दल को उतनी सीटें नहीं मिलतीं। 1984 के आम चुनाव से इसकी पुष्टि होती है। इस चुनाव में कांग्रेस ने 48 प्रतिशत वोट प्राप्त कर 415 सीटें प्राप्त कीं, जबकि भाजपा ने 7.4% मत प्राप्त कर 2 सीटें प्राप्त की। इस प्रकार इस प्रणाली में जहाँ मतों के अनुपात में सीटें नहीं मिलतीं, वहीं एक निर्वाचन क्षेत्र में कई उम्मीदवार होने के कारण विजयी उम्मीदवार यदि 30 प्रतिशत मत प्राप्त करता है तो 10% मत हारने वाले उम्मीदवार में विभाजित हो जाते हैं। इस प्रकार विजयी उम्मीदवार उस जनता का प्रतिनिधित्व करता है जो अल्पमत में हैं। जहाँ तक इस प्रणाली के प्रतिनिध्यात्मक प्रणाली को स्वीकारने की बात है तो मैं इस कथन से सहमत नहीं हूँ। इसके विपक्ष में दो तर्क इस प्रकार हैं।
  1. जटिल प्रक्रिया- समानुपातिक प्रतििनिधत्व प्रणाली एक जटिल प्रक्रिया है। कम पढ़े-लिखे तथा अशिक्षित व्यक्ति की इसमें रुचि कम होगी। भारत जैसे विशाल लोकतंत्र में इसे अपनाया उचित नहीं होगा।
  2. मतदाता और प्रतिनिधि के मध्य संपर्क का अभाव- इस प्रणाली के अंतर्गत जनता और प्रतिनिधि का संपर्क नहीं बनता। इसमें निर्वाचक क्षेत्र बहुसदस्यीय होते हैं जिनका कार बड़ा होता है। इस प्रणाली में प्रतिनिधि राष्ट्रहित की अपेक्षा स्वहित को अधिक महत्त्व देते हैं।