लता मंगेशकर - पुनरावृति नोट्स

 कक्षा 11 हिंदी कोर

पुनरावृति नोट्स
पाठ - 1 भारतीय गायिकाओं में बेजोड़ : लता मंगेशकर


पाठ का सारांश - इस पाठ में लेखक ने स्वर सम्राज्ञी लता मंगेशकर की गायकी पर बेबाक टिप्पणी की है। यह पाठ मूल रूप से हिंदी में लिखा गया है। यह रचना भाषा की सांगीतिक धरोहर है। यह शास्त्रीय संगीत और फिल्मी संगीत को एक धरातल पर ला रखने का साहस है। यह ऐसी परख है जो न शास्त्रीय है और न सुगम। यह बस संगीत है। लता मंगेशकर के 'गानपन' के बहाने लेखक ने शास्त्रीय संगीत और चित्रपट संगीत के संबंधों पर भी अपना मत प्रकट किया है।

लेखक बताता है कि बरसों पहले वह बीमार था, उस समय एक दिन उसे रेडियो पर अद्वतीय स्वर सुनाई दिया। यह स्वर उसके अंतर्मन को छू गया। गाना समाप्त होने पर गायिका का नाम घोषित किया गया-लता मंगेशकर नाम सुनकर वह हैरान रह गया। उसे लगा कि प्रसिद्ध गायक दीनानाथ मंगेशकर की अजब गायकी ही उनकी बेटी की आवाज में प्रकट हुई है। यह शायद 'बरसात' फिल्म से पहले का गाना था। लता के पहले प्रसिद्ध गायिका नूरजहाँ का चित्रपट संगीत में अपना जमाना था, परंतु लता उससे आगे निकल गई।

लेखक का मानना है कि लता के बराबर की गायिका कोई नहीं हुई। लता ने चित्रपट संगीत को लोकप्रिय बनाया। आज बच्चों के गाने का स्वर बदल गया है। यह सब लता के कारण हुआ है। चित्रपट संगीत के विविध प्रकारों को आम आदमी समझने लगा है तथा गुनगुनाने लगा है। लता ने नयी पीढ़ी के संगीत को संस्कारित किया तथा आम आदमी में संगीत विषयक अभिरुचि पैदा करने में योगदान दिया।

आम श्रोता शास्त्रीय गायन व लता के गायन में से लता की ध्वनि मुद्रिका को पसंद करेगा। आम आदमी को राग के प्रकार, ताल आदि से कोई मतलब नहीं होता। उसे केवल मस्त कर देने वाली मिठास चाहिए। लता के गायन में वह गानपन सौ फीसदी मौजूद है।

लता के गायन की एक और विशेषता है-स्वरों की निर्मलता। नूरजहाँ के गानों में मादकता थी, परंतु लता के स्वरों में कोमलता और मुग्धता है। यह अलग बात है कि संगीत दिग्दर्शकों ने उसकी इस कला का भरपूर उपयोग नहीं किया है। लता के गाने में एक नादमय उच्चार है। उनके गीत के किन्हीं दो शब्दों का अंतर स्वरों के आलाप द्वारा सुंदर रीति से भरा रहता है। दोनों शब्द एक-दूसरे में विलीन होते प्रतीत होते हैं।

लेखक का मानना है कि लता के करुण रस के गाने ज्यादा अच्छे नहीं हैं, उसने मुग्ध श्रृंगार की अभिव्यक्ति करने वाले मध्य या द्रुतलय के गाने अच्छे तरीके से गाए हैं। अधिकतर संगीत दिग्दर्शकों ने उनसे ऊँचे स्वर में गवाया है

लेखक का मनना कि शास्त्रीय संगीत व चित्रपट संगीत में तुलना करना निरर्थक है| शास्त्रीय संगीत में गंभीरता स्थायी भाव है, जबकि चित्रपट संगीत में तेज लय व चपलता प्रमुख होती है। चित्रपट संगीत व ताल प्राथमिक अवस्था का होता है और जास्त्रीय संगीत में परिष्कृत रूप। चित्रपट संगीत में आधे तालों, आसान लय, सुलभता व लोच की प्रमुखता आदि विशेषताएँ होती हैं। चित्रपट संगीत गायकों को शास्त्रीय संगीत की उत्तम जानकारी अवश्य होनी चाहिए। लता के पास यह ज्ञान भरपूर है। लता के तीन-साढ़े तीन मिनट के गान और तीन-साढ़े तीन घंटे की शास्त्रीय महफिल का कलात्मक व आनंदात्मक मूल्य एक जैसे हैं। उसके गानों में स्वर, लय व शब्दार्थ का संगम होता है। गाने की सारी मिठास, सारी ताकत उसकी रंजकता पर आधारित होती है और रंजकता का संबंध रसिक को आनंदित करने की सामथ्र्य से है।

लता का स्थान अव्वल दरजे के खानदानी गायक के समान है। किसी ने पूछा कि क्या लता शास्त्रीय गायकों की तीन घंटे की महफिल जमा सकती है? लेखक उसी से प्रश्न करता है कि क्या कोई प्रथम श्रेणी का गायक तीन मिनट में चित्रपट का गाना इतनी कुशलता और रसोत्कटता से गा सकेगा? शायद नहीं। खानदानी गवैयों ने चित्रपट संगीत पर लोगों के कान बिगाड़ देने का आरोप लगाया है। लेखक का मानना है कि चित्रपट संगीत ने लोगों के कान सुधारे हैं।

लेखक कहता है कि हमारे शास्त्रीय गायक आत्मसंतुष्ट वृत्ति के हैं। वे कर्मकांड को आवश्यकता से अधिक महत्व देते हैं, जबकि चित्रपट संगीत लोगों को अभिजात्य संगीत से परिचित करवा रहा है। लोगों को सुरीला व भावपूर्ण गाना चाहिए। यह काम चित्रपट संगीत ने किया है। उसमें लचकदारी है। उस संगीत की मान्यताएँ मर्यादाएँ, झंझटें आदि निराली हैं। यहाँ नवनिर्माण की गुंजाइश है। इसमें शास्त्रीय रागदारी के अलावा लोकगीतों का भरपूर प्रयोग किया गया है। संगीत का क्षेत्र विस्तृत है। ऐसे चित्रपट संगीत की बेताज सम्राज़ी लता है। उसकी लोकप्रियता अन्य पाश्र्व गायकों से अधिक है। उसके गानों से लोग पागल हो उठते हैं। आधी शताब्दी तक लोगों के मन पर उसका प्रभुत्व रहा है। यह एक चमत्कार है जो आँखों के सामने है।