अंतरा - विष्णु खरे - पुनरावृति नोट्स

 CBSE Class 12 हिंदी ऐच्छिक पुनरावृति नोट्स

पाठ-5 सत्य / एक कम


(क) एक कम
1947 के बाद........................रह सकते हो।
मूलभाव:- इस कविता में कवि विष्णु खरे ने स्वतंत्राता की बाद की भारतीय जीवन शैली पर प्रकाश डाला है। स्वतंत्राता के बाद लोगों ने राष्ट्रीय भावना तथा सामाजिकता को छोड़कर भ्रष्ट तरीके अपनाएं और अमीर हो गए, किंतु रह गए ईमानदार लोग जो चाय, रोटी और पैसो के लिए दूसरों के सामने हाथ पफैलाने को मजबूर हैं।
व्याख्या बिन्दु :- उनका मानना है कि हमारे सेनानियों ने आजादी से पू र्व एक सच्चे, सुखी तथा शांतिप्रिय समाज की कल्पना की और इस हेतु आत्म बलिदान भी किया था। किंतु स्वतंत्राता प्राप्ति के बाद क्या उनका स्वप्न साकार हो सका? अमीर बनने की होड़ में लोगों ने अपने स्वाभिमान, आत्मा की आवाज, अपने सम्मान तथा मानवीय मूल्यों ;आपसी विश्वास, भाईचारा, सामूहिकता तथा समन्वय की भावनाद्ध के स्थान पर धेखाध्ड़ी, आपसी खींचतान तथा परस्पर वैमनस्य की भावना को अपना लिया है। लोग अशोभनीय तरीको का सहारा लेकर मालामाल, आत्मनिर्भर तथा गतिशील हो गए है यह सभ्य समाज को मान्य नही है। लोग निर्लज्ज और पतित हो गए है। इस कविता में कवि बेईमानों के बीच जी रहे एक ईमानदार व्यक्ति ;कोढ़ी, कंगाल, भिखारी के माध्यम सेद्ध के प्रति सहानुभूति प्रकट कर रहा है। वह स्वयं को तथा भिखारी को ईमानदार के रूप में प्रस्तुत करके कुछ न कर पाने की स्थितियों में ऐसे लोगों के जीवन संघर्ष कम से कम एक व्यवधन को कम करने का प्रयास कर रहा है तथा भ्रष्टाचारियों को बेपर्दा करके एक सभ्य, शिष्ट, ईमानदार तथा प्रगतिशील समाज का निर्माण करने की प्रेरणा दे रहा है।
(ख) सत्य
जब हम सत्य........................इंद्रप्रस्थ लौ टते हुए।
मूलभाव:- ‘सत्य’ कविता में कवि ने पौराणिक संदर्भो एवं पात्रों के द्वारा जीवन में सत्य के महत्व को स्पष्ट करना चाहा है। कवि कहना चाहता है कि हम जैसे समाज में जीवन यापन कर रहे है, उसमें सत्य की पहचान करने में तथा उसे पाने में कितने असमर्थ सिद्ध हो रहे हैं, यह बताना उतना ही कठिन है, जितना सत्य को पकड़ पाना।
व्याख्या बिन्दु:- कवि कहता है कि सत्य केवल पुकारने से प्राप्त नहीं हो सकता, इसे प्राप्त करने के लिए कठोर तप और साध्ना करनी पड़ती है, उसके प्रति निष्ठावान होना पड़ता है। उसे अनुभव करना व पहचानना पड़ता है। कविता में विदुर सत्य का प्रतीक हैं और युध्ष्ठििर सत्य के प्रति निष्ठावान व्यक्ति का। सत्य को पाने के लिए ही युध्ष्ठििर विदुर को पुकार रहे थे। महाभारत का यह प्रसंग बताता है कि सत्य कटु और नग्न होता है उसका सामना होने पर मन विचलित होने लगता है। सत्य के प्रति मन में निष्ठा होनी चाहिए तभी सत्य का साक्षात्कार होने पर उसका आलोक, उसकी शक्ति हमारी आत्मा में समाहित हो सकेगी। कवि कहता है कि सत्य कभी दिखाता है और कभी ओझल जाता है। सत्य का रूप वस्तु-स्थिति, घटनाओं और पात्रों के अनुसार बदलता रहता है। जो एक व्यक्ति के लिए सत्य है, आवश्यक नहीं कि दूसरे व्यक्ति के लिए भी वह सत्य ही हो। इसीलिए सत्य की पहचान और उसकी पकड़ अत्यंत कठिन होती है। युध्ष्ठििर सत्य के प्रति दृढ़ संकल्पी थे, इसी कारण वे सत्य को प्राप्त कर सके। सत्य और संकल्प का संबंध् आवश्यक है। दृढ़ संकल्प शक्ति से ही सत्य को आत्मा की शक्ति के रूप में पहचाना जा सकता है। संकल्प के अभाव में सत्य को नहीं पाया जा सकता।