जैनेंद्र कुमार - पुनरावृति नोट्स

 सीबीएसई कक्षा - 12 हिंदी कोर आरोह

पाठ – 12
बाज़ार दर्शन


पाठ के सार- पाठ का सारांश- बाजार-दर्शन पाठ में बाजारवाद और उपभोक्तावाद के साथ-साथ अर्थनीति एवं दर्शन से संबंधित प्रश्नों को सुलझाने का प्रयास किया गया है। बाजार का जादू तभी असर करता है जब मन खाली हो। बाजार के जादू को रोकने का उपाय यह है कि बाजार जाते समय मन खाली ना हो, मन में लक्ष्य भरा हो। बाजार की असली कृतार्थता है जरूरत के वक्त काम आना बाजार को वही मनुष्य लाभ दे सकता है जो वास्तव में अपनी आवश्यकता के अनुसार खरीदना चाहता है जो लोग अपने पैसों के घमंड में अपनी पर्चेजिंग पावर को दिखाने के लिए चीजें खरीदते हैं वे बाजार को शैतानी व्यंग्य शक्ति देते हैं। ऐसे लोग बाजारूपन और कपट बढ़ाते हैं। पैसे की यह व्यंग्य शक्ति व्यक्ति को अपने सगे लोगों के प्रति भी कृतघ्र बना सकती है। साधारण जन का हृदय लालसा, ईर्ष्या और तृष्णा से जलने लगता है। दूसरी ओर ऐसा व्यक्ति जिसके मन में लेश मात्र भी लोभ और तृष्णा नहीं है, संचय की इच्छा नहीं है वह इस व्यंग्य-शक्ति से बचा रहता है। भगतजी ऐसे ही आत्मबल के धनी आदर्श ग्राहक और बेचक हैं जिन पर पैसे की व्यंग्य-शक्ति का कोई असर नहीं होता। अनेक उदाहरणों के द्वारा लेखक ने यह स्पष्ट किया है कि एक ओर बाजार, लालची, असंतोषी और खोखले मन वाले व्यक्तियों को लूटने के लिए है वहीं दूसरी ओर संतोषी मन वालों के लिए बाजार की चमक-दमक, उसका आकर्षण कोई महत्त्व नहीं रखता।