बच्चे तथा खेल - पुनरावृति नोट्स

CBSE कक्षा 12 शारीरिक शिक्षा
पाठ - 5 बच्चे तथा खेल
पुनरावृत्ति नोट्स

मुख्य बिन्दु-
  1. गामक विकास तथा प्रभावित करने वाले कारक
  2. वृद्धि की विभिन्न अवस्थाओं के अनुसार व्यायाम के लिए सुझाव
  3. भार प्रशिक्षण को लाभ तथा हानियाँ
  4. उचित आसन की अवधारणा तथा लाभ
  5. अनुचित आसन को कारण
  6. आसन सम्बधी सामान्य विकृतियाँ-धनुषाकार टाँगे, चपटे पैर, गोल कंधे, आगे तथा पीछे का कूबड़, स्कोलिओसिस, घुटनों का टकराना,
  7. शारीरिक गतिधियाँ या क्रियाएँ, एक सुधारात्मक उपाय के रूप में,
  1. A. गामक विकास (Motor Development) (अभ्यास द्वारा गतिविधियों में यर्थाथता लाना, अर्थात गामक विकास से तात्पर्य जन्म से मृत्यु तक विभिन्न गतियों को विकास से है।
    गामक विकास (Motor Development) (यह जीवन चक्र के दौरान गतियो का प्रगतिशील विकास है जिससे जन्म से मृत्यु तक गतियो का विकास होता है।)
    - स्थूल गामक विकास (Macro muscular Motor Development)
    - शरीर की बड़ी मासपेशियों का विकास
    - बैठना, चलना, दौड़ना, चढ़ना पकड़ना व कूदना
    - सूक्ष्म गामक विकास (Micro muscular Motor Development)
    - शरीर की छोटी मासपेशियों (उगलियाँ, आँख व कान आदि) का विकास
    - लिखना, ड्राइंग, डिस्कस पोल, भाला  पकड़ना क्रिकेट को पकड़ना आदि
    B.
    बच्चों में गामक विकास (Motor Development in children)
    प्रारंभिक अवस्था
    2 से 6 वर्ष
    मध्य बाल्यावस्था
    7 से 10 वर्ष
    उत्तर बाल्यावस्था
    11 से 12 वर्ष
    अधिक तेजी से गामक विकास
    समान आयु के बच्चों के साथ प्रतिस्पर्धा की इच्छा जाग्रत होती है
    लैंगिक रूप से परिपक्व होने की शुरूआत होती है
    मूलभूत गतिविधियाँ- दौड़ना, कूदना और फेंकना
    मूलभूत गतिविधियाँ- मेलजोल, गतिविधियों के परिष्करण गति प्रवाह
    मूलभूत गतिविधियाँ- दौड़ना तथा कूदना, गुणात्मक तथा संख्यात्मक रणनीतियों का विकास होता है
    C. गामक विकास को प्रभावित करने वाले तत्व
    1. वंशानुक्रम (Heridity)
    2. पोषण (Nutrition)
    3. नींद (Sleep)
    4. टीकाकरण (Emunization)
    5. वातावरण (Environment)
    6. अवसर (Opportunity)
    7. प्रशिक्षण और अभ्यास (Training & Practise)
    8. मनोरंजन (Recreation)
    9. लिंग भेद (Gender)
    10. आसन विकृतियाँ (Posture Deformities)
    11. शारीरिक अक्षमता (Physically challenged)
    12. मोटापा (Obesity)
    13. सामाजिक कौशल (Social Skill)
    14. मानसिक स्वास्थ्य (Mental Health)
  2. वृद्धि की विभिन्न अवस्थाएँ
    1. शैशवावस्था (1-3 वर्ष)
    2. प्रारंभिक बाल्यावस्था (3-8 वर्ष)
    3. उत्तर बाल्यावस्था (8-12 वर्ष)
    4. किशोरावस्था (13-19 वर्ष)
    5. प्रौढ़ावस्था (19 वर्ष से अधिक)
    वृद्धि की विभिन्न अवस्थाओं के अनुसार व्यायाम के लिए सुझाव-
    1. शैशवास्था (Infancy) -
      • सिर नियंत्रित करने की, बैठने तथा घुटनो के बल चलने की प्रकिया को विकसित करने के व्यायाम
      • स्थूल गामक क्रियाओं को बढ़ावा देना
      • हाथ तथा पैरो को गतिमान करना तथा वस्तु तक पहुचने को व्यायाम,
      • फेकने, पकड़ने तथा बाल को मारने के व्यायाम
    2. प्रारंभिक बाल्यावस्था (3 से 8 वर्ष) Early childhood)-
      • गतिशील कौशलो (Movement skills) को विकसित करने की क्षमता वाले व्यायाम
      • सहभागिता पर जोर देना प्रतियोगीत पर नहीं
      • सूक्ष्म गामक विकास सम्बंधित व्यायाम
      • कम से कम एक घंटे तक मध्यम दर्जे के व्यायाम
      • मनोरंजक तथा सुखद विधियों द्वारा शारीरिक क्रियाएँ
      • साफ और सुरक्षित वातावरण
    3. उत्तर बाल्यावस्था (Later childhood) (8 से 12 वर्ष)-
      • शरीर नियंत्रित करने, शक्ति तथा समन्वय की विकसित करने के व्यायाम
      • सहनक्षमता सबधी क्रियाओं की नजरंदाज करना
      • खेलो के मूलभूत नियम सिखाना जैसे निष्पक्ष खेल, साधारण रणनीतियाँ
      • खेल प्रशिक्षण की अवधारणा का परिचय
      • सामाजिक चेतना विकसित करने के लिए टीम गेम संगठित करना
    4. किशोरावस्था (Adolescence) (13 से 19 वर्ष)
      • फुरतीली सघनता (Vigorous intensity) वाली शारीरिक क्रियाएँ
      • प्रतिदिन 60 मिनट से कई घंटे तक व्यायाम
      • मांसपेशीय शक्ति बढ़ाने वाली क्रियाएँ कम से कम सप्ताह मे तीन बार
      • अस्थियों की शक्ति तथा प्रतिरोध वाली क्रियाएँ जैसे- भार प्रशिक्षण
      • दौड़ना, तैरकी आदि क्रियाएँ सहनशक्ति बढ़ाने के लिए
    5. बच्चों पर व्यायाम के शरीर क्रियात्मक व शारीरिक लाभ
      • व्यायाम के शारीरिक लाभ (Physical benefit of exercises)
        1. शारीरिक स्वास्थ्य और शक्ति (Physical Health & Strength)
        2. मानसिक स्वास्थ्य (Mental Health)
        3. भावनात्मक अस्तित्व (Emotional well-being)
        4. सामाजिक प्रवीणता (Social skill)
        5. सकारात्मक स्कूल वातावरण (Positive School environment)
        6. प्ररेणात्मक व्यक्तित्व (Motivating personality)
        7. समाज विरोधी व्यवहार पर नियंत्रण (Controls anti-social behaviour)
      • व्यायाम के शारीरिक क्रियात्मक लाभ (physiological benefits of exercises)
        1. हृदय को मजबूती देना (Strengthening the heart)
        2. हड्डियों व मांसपेशीयो की मजबूती देना (Strengthening bones and muscles)
        3. मधुमेह पर नियंत्रण  (Controls Blood Sugar)
        4. नियमित रक्त चाप  (Regulate blood pressure)
        5. ऊर्जा शक्ति बढ़ाना  (Incenses energy levels)
        6. विषहरण (Detoxification)
        7. कोलस्ट्रोल स्तर को कम करना (Reduce cholesterol level)
  3. भार प्राशक्षण Weight Training
    यह एक साधारण प्रकार का भार प्रशिक्षण है जो शरीर की शक्ति और मासपेशीयों का विकास करता है, बार बेलस (Bar bells), डम्बलस आदि की सहायता से गुरूत्वाकर्षण बल का प्रयोग करते हुए किया जाता है।
    • भार प्रशिक्षण के लाभ
      1. Improve Posture and range of Motion
      2. मासपेशीय शक्ति (Muscles strength) अस्थि घनत्व (Bone density) सहनक्षमता (endurance) को बढ़ाता है।
      3. चोटों के खतरों से बचाता है।
      4. गामक प्रदर्शन मे सुधार।
      5. स्वस्थ रक्त चाप और कोलेस्ट्रोल स्तर को बढ़ावा देना।
      6. स्वस्थ भार बनाए रखना।
      7. आत्मविश्वास और आत्म सम्मान विकास करना।
      8. रोग प्रतिरोधक क्षमता मे सुधार।
      9. व्यायाम करने की आदते विकसित करना।
      10. संतुलन और तालमेल में सुधार।
    • भार प्रशिक्षण के हानियाँ
      1. चोट का डर।
      2. सुरक्षा की कमी।
      3. लचक में कमी।
      4. व्यायाम करते समय सहायक की आवश्यकता।
  4. (a) उचित आसन- शरीर की ऐसी अवस्था होती है जिसको बनाए रखने में कोई विशेष प्रयत्न नही करना पड़ता तथा ऐसी अवस्था में थकावट भी बहुत कम होती है।
    अ. बैठने की उचित मुद्रा:- कुल्हे या निंतब जहाँ तक संभव हो, कुर्सी के पीछे की ओर हो। सिर, कूल्हे, कंधे तथा मेरूदंड अपने प्राकृतिक वक्रों में होते हुए बिल्कुल सीधी रेखा में हों। टाँगें पैरो के लम्बरूप और जघाएँ क्षेतिज अवस्था में होनी चाहिए तथा दोनों पैर जमीन पर समतल होने चाहिए। सिर की स्थिति इस प्रकार की हो कि गर्दन की मांसपेशी को आगे और पीछे आराम मिल सके।

    ब. खड़े होने की सही मुद्रा:- खड़े होने की स्थिति में दोनों पैरों की एड़िया मिली हुई होनी चाहिए। पैरों के अंगूठों के बीच 8 से 10 से.मी. का अंतर होना चाहिए। सीना बाहर, पेट अंदर, घुटने सीधे, ठोड़ी अंदर, नजर सामने एवं दोनों पैरों पर बराबर भार होना चाहिए। गुरूत्व रेखा सिर, रीढ़ की हड्डी एवं एड़ियो से सीधी गुजरनी चाहिए।

    उचित आसन के लाभ:
    • अच्छा शारीरिक आभास
    • व्यक्तित्व में निखार
    • मांसपेशीय संस्थान की कार्य कुशलता में वृद्धि
    • अस्थि संस्थान पर सकारात्मक प्रभाव
    • रोगों तथा आसन संबंधी विकृतियों से छुटकारा
    • शारीरिक पुष्टि तथा गतियों में कार्य कुशलता
    • थकावट में कमी
    • मनोवैज्ञानिक संतुलन
    • आर्थिक महत्त्व
    • आत्म विश्वास में वृद्धि
  5. अनुचित आसन के कारण:
    1. जन्मजात
    2. बीमारियाँ
    3. कुपोषण
    4. दुर्घटना
    5. तंग कपड़े पहनना
    6. आराम की कमी
    7. आत्मविश्वास की कमी
    8. प्रभाव व नकल
    9. शैशवकाल में लापरवाही
    10. सही मुद्रा में कार्य न करना
    11. दोषपूर्ण फर्नीचर
    12. प्रदूषण
    13. मानसिक कारण
  6. सामान्य आसन सम्बन्धी विकृतियाँ
    • चपटे पैर
    • पीछे की ओर कूबड़
    • आगे की ओर कूबड़
    • धनुषाकार टांगे
    • गोल कंधे
    • घुटनों का टकराना
    • रीढ़ की हड्डी का एक और झुकना
  7. शारीरिक गतिविधियाँ व क्रियाएँ एक सुधारात्मक उपाय के रूप में।
    परिभाषा : ऐसी क्रियाएँ, तरीके आदि जिन के द्वारा हम शारीरिक आसन संबंधी विकृतियों को हम ठीक/सुधार सकते हैं उन्हें सुधारात्मक क्रियाएं कहा जाता है।