बंधुत्व जाति तथा वर्ग आरंभिक समाज-पुनरावृति नोट्स
सीबीएसई कक्षा 12 इतिहास
पाठ – 03 बंधुत्व, जाति तथा वर्ग आरंभिक समाज (लगभग 600 ई.पू. से 60.0 ई.)
पुनरावृत्ति नोट्स
स्मरणीय बिन्दु-
- समकालीन समाज को समझने के लिए इतिहासकार प्रायः साहित्यिक परम्पराओं का उपयोग करते हैं।
- यदि इन ग्रंथों का प्रयोग सावधानी से किया जाए तो समाज में प्रचलित आचार-व्यवहार और रिवाज़ों का इतिहास लिखा जा सकता है।
- उपमहाद्वीप के सबसे समृद्ध ग्रंथों में से एक 'महाभारत' जैसे विशाल महाकाल के विश्लेषण से उस समय की सामाजिक श्रेणियों तथा आचार-व्यवहार के मानदंडो को जानने का प्रयास।
- 1919 में प्रसिद्ध संस्कृत विद्वान वी. एस. सुकथांकर के नेतृत्व में महाभारत का समालोचानत्मक संस्करण तैयार करने की परियोजना शुरू की गई। इस परियोजना को पूरा करने में सैतालीस वर्ष लगे।
- धर्मशास्त्रों व धर्मसूत्रों में चारों वर्णों के लिए आदर्श जीविका बताए गए हैं।
i. ब्राह्मण- अध्ययन, वेदो की शिक्षा, यज्ञ करना करवाना, दान देना और लेना। ii. क्षत्रिय युद्ध करना, लोगों की सुरक्षा करना, न्याय करना, वेद पढ़ना, यज्ञ करवाना, दान दक्षिणा देना। iii. वैश्य- वेद पढ़ना, यज्ञ करवाना, दान-दक्षिणा देना, कृषि गौ पालन और व्यापार कर्म iv. शुद्र- तीनों उच्च वर्णों की सेवा करना। - महाभारत की मुख्य कथावस्तु पितृवंशिकता के आदर्श को सुदृढ़ करती है। इस व्यवस्था में पुत्र पिता की मृत्यु के बाद उसके संसाधनों पर अधिकार जमा सकते थे।
- पैतृक संसाधनों पर पुत्रियों का कोई अधिकार नहीं था। गोत्र से बाहर इनका विवाह करना अपेक्षित था। इसे बहिर्विवाह पद्धति कहते हैं।
- नए नगरों के उद्भव से सामाजिक जीवन अधिक जटिल हुआ। इस चुनौती का जवाब, ब्राह्मणों ने समाज के लिए विस्तृत आचार संहिताएँ तैयार करके दिया जैसे- धर्मसूत्र, धर्मशास्त्र (मनस्मृति) आदि।
- ब्राह्मणीय पद्धति में लोगों को गोत्रों में वर्गीकृत किया गया है। प्रत्येक गोत्र एक वैदिक ऋषि के नाम पर होता था।
- गोत्रों के दो महत्वपूर्ण नियम:- विवाह के पश्चात स्त्रियों को पिता के स्थान पर पति के गोत्र का माना जाता था तथा एक ही गोत्र के सदस्य आपस में विवाह सम्बन्ध नहीं रख सकते थे।
- धर्मसूत्रों व धर्मशास्त्रों में चारों वर्गों के लिए आदर्श जीविका से जुड़े कई नियम मिलते हैं।
- ‘जाति’ शब्द इस काल की सामाजिक जटिलताएँ दर्शाता है। ब्राह्मणीय सिद्धांत में वर्ण की तरह जाति भी जन्म पर आधारित थी। किन्तु इनकी कोई निश्चित संख्या नहीं थी।
- वे जातियाँ जो एक ही जीविका अथवा व्यवस्था से जुड़ी थी उन्हें कभी-कभी श्रेणियों में भी संगठित किया जाता था।
- उपमहाद्वीप में पाई जाने वाली कुछ विविधताओं की वजह से कुछ ऐसे समुदाय (निषाद्, मलेच्छ) रहे हैं जिन पर ब्राह्मणीय विचारों का कोई प्रभाव नहीं पड़ा।
- ब्राह्मणों ने समाज के कुछ वर्गों को ‘अस्पृश्य’ घोषित कर (जैसे चाण्डाल) सामाजिक वैषम्य को और अधिक प्रखर बनाया।
- मनुस्मृति में चाण्डालों के कर्तव्यों की सूची मिलती है।
- मनुस्मृति के अनुसार पैतृक जायदाद का माता-पिता की मृत्यु के बाद सभी पुत्रों में समान रूप से बंटवारा किया जाना चाहिए किंतु ज्येष्ठ पुत्र को विशेष भाग का अधिकार था।
- धर्मशास्त्र और धर्मसूत्र विवाह के आठ प्रकारों की अपनी स्वीकृति देते हैं। इनमें से पहले चार उत्तम माने जाते थे और वाकियों की निंदित माना गया।
- ब्राह्मणीय सिद्धांत में वर्ण की तरह जाति भी जन्म पर आधारित थी, कितु वर्ण जहां मात्र चार थे वहीं जातियों की कोई निश्चित संख्या नहीं थी। वस्तुतः जहां कही भी ब्राह्मणीय व्यवस्था की नए समुदायों से आमना-सामना हुआ, यथा निषाद, सुवर्णकार, उन्हें चार वर्णों वाली व्यवस्था में समाहित करना संभव नहीं था, उनका जाति में वर्गीकरण कर दिया गया।
- ब्राह्मणीय वर्ण-व्यवस्था की आलोचनाएँ प्रारम्भिक बौद्ध धर्म में विकसित हुई। बोद्ध धर्म ने सामाजिक विषमता की उपस्थिति को स्वीकार किया किंतु यह भेद न तो नैसगिक थे और नहीं स्थायी। बौद्धो ने जन्म के आधार पर सामाजिक प्रतिष्ठा की अस्वीकार किया।
- नए नगरों के उद्भव से सामाजिक जीवन अधिक जटिल हुआ। नगरीय परिवेश में विचारों का भी आदान-प्रदान होता था। संभवतः इस वजह से आरंभिक विश्वासों और व्यवहारों पर प्रश्नचिन्ह लगाए गए।
- इतिहासकार किसी ग्रंथ का विश्लेषण करते समय अनेक पहलुओं पर विचार करते हैं जैसे ग्रंथ की भाषा, काल प्रकार ग्रंथ किसने लिखा, क्या लिखा गया और किनके लिए लिखा गया।
- महाभारत एक गतिशील ग्रंथ है, क्योंकि शताब्दियों तक इस महाकाव्य में अनेक पाठान्तर भिन्न-भिन्न भाषाओं में लिखें गए, क्षेत्र विशेष की कहानियाँ इसमें समाहित कर ली गयी। इसकी अनेक पुनव्याख्याएँ की गई। इस महाकाव्य ने मूर्तिकला, चित्रकला, नृत्यकला व नाटकों के लिए विषय वस्तु प्रदान की।
- स्त्रियाँ पैतृक संसाधन में हिस्सेदारी की मांग नहीं कर सकती थीं। परन्तु स्त्रीधन पर उनका स्वामित्व माना जाता था।
- इतिहासकार किसी ग्रंथ का विश्लेषण करते समय अनेक पहलुओं पर विचार करते हैं जैसे ग्रंथ की भाषा, प्रकार, ग्रंथों के श्रोताओं आदि का।
- संभवतः महाभारत की मूलकथा के रचियता भाट सारथी थे। ये युद्ध क्षेत्र में जाते थे और विजय की उपलब्धियों के बारे कविताएँ लिखते थे। किन्तु साहित्यिक परम्परा में इसके रचियता ऋषि व्यास माने जाते है।
- द्रौपदी से पांडवो का विवाह महाभारत की सबसे चुनौतीपूर्ण कथा है। यह बहुपति प्रथा का उदाहरण है, जिसका लेखकों ने विभिन्न तरीकों से स्पष्टीकरण देने का प्रयास किया है।
- सामाजिक इतिहास -महाभारत का उपयोग, सामाजिक इतिहास की समस्याएं, जाति वर्ग, कबिले आदि की पुनर्रचना हेतु अन्य स्त्रोत
- ऐतिहासिक पृष्ठ भूमि रचना के साधन -परिवर्तनो के प्रभाव
- अभिलेख, महाभारत के स्त्रोत तथा विषय
- बंधुता एव विवाह, परिवार, पितृवंषिक व्यवस्था, विवाह के नियम, स्त्री का गोत्र, माता का स्थान सामाजिक विशेषताएं, वर्ण व्यवस्था, अक्षत्रिय राजा, जाति, एकीकरण, अधीनता और संघर्ष