यायावर साम्राज्य-प्रश्न-उत्तर

                                                                     कक्षा 11 इतिहास

एनसीईआरटी प्रश्न-उत्तर
पाठ 5 यायावर साम्राज्य


संक्षेप में उत्तर दीजिए -

1. मंगोलों के लिए व्यापार इतना महत्वपूर्ण क्यों था?

उत्तर - मंगोलों के लिए व्यापार महत्वपूर्ण था क्योकि स्टेपी क्षेत्रों में संसाधनों की कमी के कारण मंगोलों और मध्य-एशियाई यायावरों को व्यापार और वस्तु-विनिमय के लिए उनके पड़ोसी चीनवासियों के पास जाना पड़ता था। यह व्यवस्था दोनों पक्षों के लिए लाभकारी थी। यायावर कबीलेवासी खेती से मिले उत्पादों तथा लोहे के उपकरणों को चीन से लाते थे और घोड़े, फ़र व स्टेपी में पकड़े गए शिकार का आदान-प्रदान करते थे। उन्हें वाणिज्यिक क्रियाकलापों में बहुत तनाव का सामना करना पड़ता था। इस वजह से दोनों पक्ष ज़्यादा-से-ज़्यादा लाभ कमाना चाहते थे। जलवायु के मात्रा ज़्यादा ठंडी या गरम होने के कारण स्टेपी प्रदेशों में खेती करना केवल कुछ ही ऋतुओं में संभव था, परंतु मंगोलों ने सुदूर पश्चिम के तुकों के विपरीत कृषि कार्य नहीं किया। इसलिए खाद्य उत्पादों तथा लोहे के उपकरणों के लिए उन्हें चीन जाना पड़ता था। इस प्रकार एक पशुपालक एवं आखेटक समाज का जीवन व्यापार के अभाव में असंभव था।


2. चंगेज खान ने यह क्यों अनुभव किया कि मंगोल कबीलों को नवीन सामाजिक और सैनिक इकाइयों में विभक्त करने की आवश्यकता है?

उत्तर - चंगेज खान ने यह अनुभव किया कि मंगोल कबीलों को नवीन सामाजिक और सैनिक इकाइयों में विभक्त करने की आवश्यकता है क्योकि मंगोलों एवं अन्य अनेक घुमक्कड़ समाजों में प्रत्येक जवान सदस्य हथियारबंद होते थे। कभी जरूरत होती थी तो यही लोग सशस्त्र सेना के रूप में संगठित हो जाते थे। विभिन्न मंगोल जनजातियों के एकीकरण और उसके बाद अनेक लोगों के खिलाफ अभियानों से चंगेज खान की सेना में नए सदस्य शामिल हुए। इस तरह उसकी सेना जोकि अपेक्षाकृत छोटी तथा अविभेदित समूह थी, वह अविश्वसनीय रूप से एक बड़े विषमजातीय संगठन में परिवर्तित हो गई। इसमें उसकी सत्ता को अपनी इच्छा से स्वीकार करने वाले तुकीमूल के उइग़ुर समुदाय के लोग सम्मिलित थे। केराइटों जैसे द्वारा पराजित शत्रुओं को भी महासंघ में शामिल कर लिया गया था।
चंगेज खान उन विभिन्न जनजातीय समूहों, जो उसके महासंघ के सदस्य थे, उनकी पहचान को योजनाबद्ध रूप से मिटाने को कृतसंकल्प था। स्टेपी-क्षेत्रों की पुरानी दशमलव प्रणाली के अंतर्गत उसकी सेना गठित की गई थी। यह दस, सी, हजार और दस हजार सैनिकों की इकाई में विभाजित थी। पुरानी प्रणाली में कुल (clan), कबीले (tribe) और सैनिक दशमलव इकाइयाँ एक साथ कायम थीं। चंगेज खान ने इस प्रथा को समाप्त किया। उसने प्राचीन जनजातीय समूहों को विभाजित कर उनके सदस्यों को नवीन सैनिक इकाइयों में विभाजित कर दिया। इसके अलावा उस व्यक्ति को कठोर दंड दिया जाता था जो अपने अधिकारी से अनुमति लिए बिना बाहर जाने का प्रयास करता था। सैनिकों की सबसे बड़ी इकाई लगभग दस हजार सैनिकों, जिसे 'तुमन' कहा जाता था, की थी, जिसमें अनेक कबीलों व कुलों के सदस्य शामिल होते थे। इसके साथ-ही-साथ उसने स्टेपी-क्षेत्र की पुरानी सामाजिक व्यवस्था को भी बदल दिया और विविध वंशों व कुलों को एकीकृत कर इसके संस्थापक चंगेज खान ने इन सभी को एक नयी पहचान दी। चंगेज खान ने मंगोलियाई कबीलों को नवीन सामाजिक व सैन्य इकाइयों में विभक्त कर दिया। इस वजह से उसे यह संदेह था कि कहीं ये सभी लोग संगठित होकर उसकी सत्ता न पलट दें और अपने-अपने साम्राज्य स्थापित न कर लें।
यही कारण था कि चंगेज खान को ऐसा अनुभव हुआ कि मंगोल कबीलों को नवीन सामाजिक और सैनिक इकाइयों में विभक्त किया जाए।


3. यास के बारे में परवर्ती मंगोलों का चिंतन किस प्रकार चंगेज खान की स्मृति के साथ जुड़े हुए उनके तनावपूर्ण संबंधों को उजागर करता है?

उत्तर - चंगेज खान के बाद परवर्ती मंगोलों ने यास को स्वीकार कर लिया, लेकिन उनके बीच चंगेज खान की स्मृति के साथ उनके मन में भारी तनाव था। परिणामत: वे एक होकर न रह सके। उनमें विरोध उतपन्न हो गए। स्थानबद्धता का दबाव मंगोल निवास-स्थानों के नए भागों में ज्यादा व्यापक था। उन भागों में जो घुमक्कड़ मूल स्टेपी-आवास से दूर थे। वहाँ धीरे-धीरे तेरहवीं सदी के मध्य तक भाइयों के मध्य पिता के द्वारा अर्जित धन को मिल-बाँटकर इस्तेमाल करने के स्थान पर व्यक्तिगत राजवंश बनाने की भावना उभरने लगी और हर एक अपने उलुस (अधिकृत क्षेत्र) का स्वामी बनकर एक नए राज्य की स्थापना करना चाहता था। यह आंशिक उत्तराधिकार के संघर्ष का परिणाम था। इसमें चंगेज खान के वंशजों के मध्य महान पद प्राप्ति व उत्कृष्ट चरागाही भूमि प्राप्ति के लिए होड़ होती थी। चीन व ईरान दोनों पर शासन करने के लिए आए टोलुई वंशजों ने युआन और इल-खानी की स्थापना की। जोची ने सुनहरा गिरोह (Golden Horde) का गठन किया और रूस के स्टेपी-क्षेत्रों पर कब्जा किया। चघताई के वंशज मध्य एशिया व रूस के गोल्डन होर्ड के स्टेपी निवासियों में यायावर परंपराएँ सर्वाधिक समय तक चलीं।
वस्तुत: यास मंगोल जनजाति की प्रथागत रीति-रिवाजों का एक संकलन था, जिसे चंगेज खान के वंशजों ने चंगेज खान की विधि-संहिता कहा। उसके वंशज अच्छी तरह जानते थे कि 1221 में चंगेज खान ने अपने यास या हुक्मनामा में बुखारा के लोगों की निंदा की थी और उन्हें पापी कहा था तथा यह चेतावनी दी थी कि अपने प्रायश्चित के लिए वे अपना छिपा धन उसे दे दें। इस यास ने उसके उत्तराधिकारियों के शासनकाल में काफी कठिनाई उत्पन्न कर दी। चंगेज खान की स्मृति को ध्यान में रखते हुए इसने शंकालु और तनावपूर्ण संबंध पैदा हुए ,उनके वंशज पश्चात के मंगोलों पर चंगेज खान के कठोर नियमों को अपनी प्रजा पर लागू नहीं कर सकते थे। इसका कारण यह था कि अब तक वे स्वयं बहुत सभ्य अवस्था में आ चुके थे और अनेक सभ्य जातियों पर उनका अधिकार देक्ल्हआ जा सकता था  नि:संदेह चंगेज खान के वंशजों को विरासत के रूप में जो कुछ भी मिला वह महत्वपूर्ण था, लेकिन उनके सामने एक समस्या थी। उन्हें अब एक स्थानबद्ध समाज में अपनी धाक जमाने की जरूरत थी। इस बदले हुए समय में वे वीरता की वह तस्वीर पेश नहीं कर सकते थे जैसी कि चंगेज खान ने की थी। इस तरह यास का संकलन चंगेज खान की स्मृति के साथ गहराई से जुड़ा था।


4. यदि इतिहास नगरों में रहने वाले साहित्यकारों के लिखित विवरणों पर निर्भर करता है तो यायावर समाजों के बारे में हमेशा प्रतिकूल विचार ही रखे जाएँगे। क्या आप इस कथन से सहमत हैं? क्या आप इसका कारण बताएँगे कि फ़ारसी इतिवृत्तकारों ने मंगोल अभियानों में मारे गए लोगों की इतनी बढ़ा-चढ़ाकर संख्या क्यों बताई है?

उत्तर - यह माना जाता है की इतिहास लिखित तथ्यों पर भरोसा करता है तथा यह साक्ष्यों की पृष्ठभूमि पर ही लिखा जाता इसमें मिथ्या का कोई स्थान नहीं होता। यदि नगरों में रहने वाले साहित्यकारों के लिखित विवरणों से इतिहास रचा गया हो तो यायावर समाजों के प्रति हमेशा विपरीत विचार ही रखे जाएँगे। हाँ, हम इस बात से सहमत हूँ कि कथन सही है। इसका कारण यह है, फ़ारसी इतिहासकारों ने मंगोल अभियानों में मारे गए लोगों की संख्या बढ़ा-चढ़ाकर बताई है, जिसकी वजह से लोग अपने शासकों के लिए ईमानदार रहे तथा इससें मंगोल शासक को कमजोर समझकर अन्य मंगोल उनके देश में न घुस आएँ। इसके साथ ही इतिहासकारों को मंगोलों का संरक्षण प्राप्त नहीं था। इल खानी ईरान में तेरहवीं सदी के आखिरी दशक में फ़ारसी इतिहासवृत्त में महान खानों द्वारा की गई रक्त-रंजित हत्याओं का विस्तृत वर्णन किया गया है और मृतकों की संख्या बहुत अधिक बढ़ा-चढाकर व्यक्त की गई है। उदाहरणत: एक चश्मदीद गवाह द्वारा इसका एक विरोध विवरण लिखा गया है कि बुखारा की किले की रक्षा के लिए 400 सैनिक तैनात थे। इसके अलावा एक इल खानी इतिहासवृत्त में यह विवरण दिया गया है कि बुखारा के किले पर हुए आक्रमण में 3000 सैनिक हताहत हुए। यद्यपि इल खानी विवरणों में अभी भी चंगेज खान की प्रशंसा की जाती थी, तथापि उनमें साथ ही तसल्लीबख्श यह कथन भी दिया जाने लगा कि समय बदल चुका है और अब खून-खराबा समाप्त हो चुका है। चंगेज खान के वंशजो द्वारा उनके राज्य में यह धारणा कायम नहीं की जा सकी कि इस बदले हुए समय में वीरता की ऐसी तस्वीर नहीं पेश कर सकते थे जैसी उनके पूर्वज चंगेज खान ने की थी।


संक्षेप में निबंध लिखिए -

5. मंगोल और बेदोइन समाज की यायावरी विशेषताओं को ध्यान में रखते हुए, यह बताइए कि आपके विचार में किस तरह उनके ऐतिहासिक अनुभव एक-दूसरे से भिन्न थे? इन भिन्नताओं से जुड़े कारणों को समझने के लिए आप क्या स्पष्टीकरण देंगे?

उत्तर - मंगोल विविध जनसमुदाय का निकाय था। ये लोग पूर्व में तातार, खितान और मंचू लोगों से और पश्चिम में तुर्की कबीलों से भाषागत समानता होने के कारण आपस में जुड़े हुए थे। मंगोलो में कुछ पशुपालक थे और कुछ शिकारी संग्राहक थे। पशुपालक घोड़ों, भेड़ों और कुछ हद तक अन्य पशुओं जैसे ऊँट और बकरी को भी पालते थे। उनका यायावरीकरण मध्य एशिया की चारण भूमि (स्टेपीज) में हुआ जो आज के आधुनिक मंगोलिया राज्य का भूभाग है। इस क्षेत्र का दृश्य आज जैसा ही अत्यंत मनोरम था और क्षितिज अत्यंत विस्तृत और लहरिया मैदानों से घिरा था। पशुचारण के लिए यहाँ पर विभिन्न हरे घास के मैदान और प्रचुर मात्रा में छोटे-मोटे शिकार अनुकूल ऋतुओं में उपलब्ध हो जाते थे। शिकारी-संग्राहक लोग, पशुपालक कबीलों के आवास क्षेत्र के उत्तरी भाग में साईबेरियाई वनों में रहते थे। वे लोगों की अपेक्षा पशुपालक अधिक निर्धन होते थे और ग्रीष्मकाल में पकड़े गए जानवरों की खाल के व्यापार से अपना जीविकोपार्जन करते थे। इसलिए इन क्षेत्रों में कोई नगर विशेष रूप से नहीं उभरे। मंगोल तंबुओं और जरों (gers) में रहते थे और अपने पशुओं के साथ शीतकालीन निवास-स्थान से ग्रीष्मकालीन चारण भूमि की ओर चले जाते थे।
नृजातीय तथा भाषायी संबंधों के कारण मंगोल समाज आपस में संगठित था, पर उपलब्ध आर्थिक संसाधनों में कमी के कारण उनका समाज अनेक पितृपक्षीय वंशों में बँटा हुआ था। समृद्ध परिवारों में सदस्यों की तादाद ज्यादा होती थी और पशु व चारण भूमि व्यापक स्तर पर उनके पास रहती थी। इसके कारण उनका स्थानीय राजनीति पर नियंत्रण रहता था। शीत ऋतु के समय इकट्ठा की गई शिकार-सामग्रियाँ और अन्य भंडार में रखी हुई सामग्रियों के समाप्त हो जाने पर या वर्षा के अभाव में उन्हें हरे-भरे घास के मैदानों की खोज में लगातार भटकना पड़ता था। अत: उनमें परस्पर संघर्ष होता रहता था। पशुधन के लिए लूटपाट भी उनके द्वारा की जाती थी। प्राय: मंगोल परिवारों के समूह आक्रमण करने तथा अपनी रक्षा के लिए अधिक शक्तिशाली और समृद्ध कुलों से मित्रता कर लेते थे और परिसंघ का निर्माण कर लेते थे। कुछ अपवादों को यदि छोड़ दिया जाए तो ऐसे परिसंघ प्राय: अत्यधिक छोटे और अल्पकालिक समय के लिए होते थे। मंगोल तथा तुर्की के कबीलों को मिलाकर चंगेज खान द्वारा निर्मित परिसंघ पाँचवीं सदी के अट्टीला (मृत्यु 453 ई०) द्वारा निर्मित परिसंघ के बराबर था।
अट्टीला के बनाए गए परिसंघ के विपरीत चंगेज खान की राजनीतिक व्यवस्था बहुत स्थायी रही और अपने संस्थापक की मृत्यु के बाद भी बरकरार रही। यह व्यवस्था इतनी सुदृढ़ थी कि चीन, ईरान और पूर्वी यूरोपीय देशों की उन्नत शस्त्रों से लैस विशाल सेनाओं का सामना कर सकती थी। मंगोलों द्वारा इन क्षेत्रों में नियंत्रण करने के साथ जटिल कृषि अर्थव्यवस्था एवं नगरीय आवासों-स्थानबद्ध समाजों का बड़ी कुशलता से प्रशासन किया। मंगोलों के रीति-रिवाज व परंपराएँ इन लोगों से पूर्णत अलग थीं। यायावर कबीले कृषि कार्य से उत्पादित वस्तुओं और लोहे के उपकरणों को चीन से लाते थे और फ़र, घोड़े और स्टेपी में पकड़े गए शिकार का विनिमय करते थे। यह सत्य है कि उन्हें वाणिज्यिक कार्यप्रणाली के अंतर्गत काफी तनाव का सामना करना पड़ता था क्योंकि दोनों समाज अधिकाधिक लाभ कमाना चाहते थे। इसके अतिरिक्त जब मंगोल कबीलों के साथ मिलकर व्यापार करते थे तो उन्हें चीनी पड़ोसियों की बेहतर शर्त रखने के लिए बाध्य कर देते थे। कभी-कभी ये लोग व्यापारिक रिश्तों को अलावा केवल लूटपाट करने लगते थे। नि:संदेह दूसरीऔर चीन की महान दीवार उत्तरी चीन के किसानों पर यायावरों द्वारा लगातार आक्रमणों और उनमें लूटपाट के कारण उत्पन्न अस्थिरता और भय का एक प्रभावशाली आँखों देखा (प्रत्यक्ष) सबूत है। इससे यायावरों की आतंक नीति का साफ पता चलता है।


6. तेरहवीं शताब्दी के मध्य में मंगोलिया द्वारा निर्मित 'पैक्स मंगोलिका' का निम्नलिखित विवरण उसके चरित्र को किस तरह उजागर करता है?

एक फ्रेन्सिसकन भिक्षु, रूब्रुक निवासी विलियम को फ्रांस के सम्राट लुई IX ने राजदूत बनाकर महान खान मोंके के दरबार में भेजा। वह 1254 में मोंके की राजधानी कराकोरम पहुँचा और वहाँ वह लोरेन, फ्रांस की एक महिला पकेट (Paquette) के संपर्क में आया जिसे हंगरी से लाया गया था। यह महिला राजकुमार की पत्नियों में से एक पत्नी की सेवा में नियुक्त थी जो नेस्टोरियन ईसाई थी। वह दरबार में एक फ़ारसी जौहरी ग्वीयोम् बूशेर के संपर्क में आया, जिसका भाई पेरिस के 'ग्रेन्ड पोन्ट' में रहता था। इस व्यक्ति को सर्वप्रथम रानी सोरगकतानी ने और उसके उपरांत मोंके के छोटे भाई ने अपने पास नौकरी में रखा। विलियम ने यह देखा कि विशाल दरबारी उत्सवों में सर्वप्रथम नेस्टोरिन पुजारियों को उनके चिहनों के साथ तथा इसके उपरांत मुसलमान, बौद्ध और ताओ पुजारियों को महान खान को आशीर्वाद देने के लिए आमंत्रित किया जाता था।

उत्तर - उपरोक्त अनुच्छेद में तेरहवीं शताब्दी के मध्य में मंगोलिया द्वारा निर्मित 'पैक्स मंगोलिका' का विवरण कई दृष्टिकोण से उसके चरित्र को स्पष्ट करता है -

  1. फ्रांस के सम्राट लुई- IX के द्वारा एक फ्रेन्सिसकन भिक्षु, रूब्रुक निवासी विलियम को मोंके की राजधानी कराकोरम भेजे जाने से यह तथ्य स्पष्ट होता है कि चंगेज खान के बाद आने वाले शासकों ने अपने पड़ोसी देशों से अच्छे संबंध बनाय थे। यह घटना मंगोलियाई शासकों की कूटनीतिक तथा सभ्य होने का प्रमाण या साक्ष्य मानी जा सकती है।
  2. बड़े दरबारी उत्सवों में - अनेक मुसलमानों, बौद्धों, पुजारियों व ताओ पुजारियों द्वारा महान खान मोंके को आशीर्वाद देने के लिए आमंत्रित किया जाना यह स्पष्ट करता है कि मंगोल शासक धार्मिक सहिष्णु थे और सभी लोगों के द्वारा आशीर्वाद प्राप्ति के इच्छुक थे। मंगोल शासन बहुभाषीय, बहुजातीय व बहुधार्मिक था। मंगोल शासकों के दृष्टिकोण में सभी धर्म समान थे।
  3. फ्रांस के सम्राट लुई- IX के द्वारा विलियम को मोंके की राजधानी कराकोरम भेजना, हगरी की महिला पकेट (Paquette) से मिलना व उसके माध्यम से राजकुमारों की एक पत्नी की सेवा करना तथा फ़ारसी जौहरी ग्वीयोम् बूशेर का कराकोरम में मिलना व उससे संपर्क रखना-ये सभी तथ्य यह उजागर करते हैं कि मंगोल शासक बहुत  शान-शौकत व विलासितापूर्ण जीवन बिताते थे। सेवा करने के लिए उनके माध्यम से नौकर व कारीगर विश्व के विभिन्न भागों से लाए गए थे। इन सेविकाओं तथा कारीगरों को उचित वेतन मिलता था। इसलिए वे मंगोल शासन में उनके दरबारों में रहते थे। नि:संदेह तब तक मंगोल पहले की अपेक्षा काफी सभ्य व समृद्ध हो चुके थे।

उपरोक्त निष्कर्षों के द्वारा यह कह सकते है कि मंगोल चतुर, महत्वाकांक्षी, विलासितापूर्ण जीवन-शैली के धनी, शासक कूटनीतिज्ञ व धार्मिक दृष्टिकोण से स्तिकतावादी थे। वे धार्मिक कट्टरवाद से काफी दूर थे। उनका जीवन स्तर करीब-करीब सभ्य था।