राजस्थान की रजत बूँदें - महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर

 CBSE कक्षा 11 हिन्दी (केन्द्रिक)

पूरक पुस्तक - वितान भाग -1
पाठ-2 राजस्थान की रजत बूँदें


महत्त्वपूर्ण लघूत्तरात्मक प्रश्नः-

  1. राजस्थान में पानी के कौन-कौन से रूप माने जाते हैं?
    उत्तर- राजस्थान में पानी के तीन रूप माने जाते हैं-
    1. पालर पानी - वर्षा का वह जल जो बहकर नदी तालाब आदि में एकत्रित हो जाता है।
    2. पाताल पानी - जो वर्षा जल जमीन में नीचे धँसकर ‘भूजल’ बन जाता है। वह कुओं/ट्यूबबेल आदि द्वारा हमें प्राप्त होता है।
    3. रेजाणी पानी - वह वर्षा जल जो रेत के नीचे जाता तो है, परन्तु खड़िया मिट्टी के परत के कारण भूजल से नहीं मिल पाता व नमी के रूप में रेत में समा जाता है, जो कुंई द्वारा प्राप्त किया जाता है।
  2. रेगिस्तान की भीषण गर्मी में भी रेत में समाया रेजाणी पानी भाप बनकर क्यों नहीं उड़ पाता?
    उत्तर- मिट्टी के कणों के विपरीत रेत के कण बारीक होते हैं। वे एक दूसरे से चिपकते नहीं अतः मिट्टी की तरह रेत में दरारें नहीं पड़तीं। इस कारण नमी भाप बनकर उड़ नहीं पाती व कुंइयों के माध्यम से शुद्ध मीठे जल के रूप में प्राप्त होती है।
  3. कुंई का मुँह छोटा क्यों रखा जाता है?
    उत्तर- कुंई का मुँह छोटा रखने के पीछे तीन प्रमुख कारण हैं-
    1. दिनभर में एक कुंई में मुश्किल से दो तीन घड़ा पानी ही एकत्रित हो पाता है। बड़ा व्यास होने पर पानी की गहराई कम हो जाएगी, जिससे उसे निकालना सम्भव नहीं होगा।
    2. मुँह चैड़ा होने पर गर्मी से पानी वाष्प बनकर उड़ जाएगा।
    3. पानी को साफ रखने व चोरी से बचाने के लिए कुंई को ढँकना जरूरी है, जो सँकरे मुँह होने पर ही संभव है।
  4. कुंई की खुदाई में काम आने वाले औजार व चिनाई के काम में आने वाली सामग्री का विवरण दीजिए।
  5. उत्तर- कुंई की खुदाई, व्यास कम होने के कारण फावड़े या कुदाल से नहीं की जाती; उसके लिए ‘बसौली’ का प्रयोग किया जाता है। यह छोटे हत्थे वाला फावड़े के आकार जैसा औजार होता है। कुंई की चिनाई के लिए ‘खींप’ नामक घास से बने, लगभग तीन अंगुल मोटे रस्से-का प्रयोग होता है। जहाँ खींप घास उपलब्ध नहीं होती, वहाँ चिनाई के लिए अरणी, बण(कैर), बावल या कुंबट के पेड़ों की लकड़ी से बने लट्ठों का प्रयोग किया जाता है।
  6. एक कुंई की चिनाई में लगभग कितना रस्सा लग जाता है?
    उत्तर- पाँच हाथ व्यास वाली कुंई में रस्से की एक कुंडली/घेरा बनाने में ही लगभग पन्द्रह हाथ रस्सा लग जाता है। एक हाथ की गहराई तक की चिनाई में रस्से के आठ-दस लपेटे लग जाते हैं। यदि कुंई की गहराई तीस हाथ भी मान लें तो उसकी चिनाई में लगभग चार हजार हाथ लंबा रस्सा लगेगा।

अन्य महत्त्वपूर्ण लघूत्तरात्मक प्रश्नः-

  1. चेजारों अपने सिर की रक्षा कैसे करते हैं?
  2. गहराई में चेजारो को भीषण गर्मी से राहत कैसे पहुँचाई जाती है?
  3. मरुभूमि में वर्षा की मात्रा का माप कैसे किया जाता है?
  4. राजस्थान के किन-किन क्षेत्रों में कुंइयों का निर्माण होता हैअथवा खड़िया पत्थर की परत कहाँ कहाँ पाई जाती है?
  5. गोधूलि बेला में कुंइयों से पानी निकालने का वर्णन लेखक ने किस प्रकार किया है?

निबंधात्मक प्रश्न:-

  1. कुंई निर्माण की प्रक्रिया का वर्णन विस्तार से कीजिए।
    उत्तर- मरुभूमि में कुंई निर्माण का कार्य चेलवांजी यानी चेजारो करते है। वे खुदाई व विशेष तरह की चिनाई करने में दक्षतम है। कुंई बनाना एक विशिष्ट कला है। चार-पाँच हाथ के व्यास की कुंई को तीस से साठ-पैंसठ हाथ तक की गहराई तक खोदने वाले चेजारो अत्यन्त कुशलता व सावधानी पूर्वक यह कार्य सम्पन्न करते हैं। चिनाई में थोड़ी सी भी चूक चेजारो के प्राण ले सकती है। हर दिन थोड़ी-थोड़ी खुदाई होती है। डोल से मलवा निकाला जाता है और फिर अब तक खुद चुकी गहराई की चिनाई की जाती है। ताकि मिट्टी धँसे नहीं।
    बीस-पच्चीस हाथ की गहराई तक जाते-जाते गर्मी का काफी बढ़ जाती है और हवा भी कम होने लगती है। इससे चेजारो की कार्यक्षमता पर विपरीत प्रभाव पड़ता है। तब ऊपर से मुट्ठी भर रेत तेजी से नीचे फेंकी जाती है, ताकि ताजी हवा नीचे जा सके और गर्म हवा बाहर आ सके। चेजारो सिर पर कांसे, पीतल या किसी अन्य धातु का एक बर्तन टोप की तरह पहनते हैं ताकि ऊपर से रेत, कंकड़-पत्थर से उनका बचाव हो सके। किसी-किसी स्थान पर ईंट की चिनाई से मिट्टी नहीं रुकती तब कुंई को रस्से से बाँधा जाता है। ऐसे स्थानों पर कुंई खोदने के पूर्व ही खींप नामक घास का ढेर लगाया जाता है। खुदाई शुरू होते ही तीन अंगुल मोटा रस्सा बनाने का कार्य प्रारम्भ कर दिया जाता है। एक दिन की खुदाई पूरी होने पर इसके तल पर दीवाल के साथ सटाकर रस्से का एक के ऊपर एक गोला बिछाया जाता है और रस्से का आखिरी छोर ऊपर रहता है। अगले दिन फिर कुछ हाथ मिट्टी खोदी जाती है और रस्से की पहले दिन जमाई गई कुंडली दूसरे दिन खोदी गई जगह में सरका दी जाती है। बीच-बीच में जरूरत होने पर ईंट से भी चुनाई की जाती है।
    जिन स्थानों पर पत्थर और खींप नहीं मिलता वहाँ लकड़ी के लंबे लट्ठों से चिनाई की जाती है। ये लट्ठे, अरणी, बण, बावल या कुंबट के पेड़ों से बनाए जाते है। इनके उपलब्ध न होने पर आक तक से भी काम लिया जाता है। खड़िया पत्थर की पट्टी आते ही खुदाई का काम रुक जाता है और नीचे बूँद-बूँद करके पानी की धार लग जाती है। यह समय कुंई की सफलता स्वरूप उत्सव का अवसर बन जाता है।